विवाह हमारे समाज की महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है. सामाजिक और धार्मिक स्तर पर इसके महत्व को सभी जानते और मानते हैं. लेकिन विवाह को अटूट बंधन मानने वाले हमारे समाज में विवाहेतर संबंध रखने वालों की भी कमी नहीं है. यह कोई नई बात नहीं है और हमेशा से ही लोग इसके बारे में सुनते आए है. हालांकि समाज में इस तरह के संबंधों को मान्यता नहीं दी जाती है, लेकिन फिर भी पिछले कुछ वर्षों में ऐसे किस्से, कहानियां इतनी सुनने में आने लगी हैं की लगता है ये एक तरह से हमारे समाज की रवायत सी बन गई हैं. इस सोच, व्यवहार तथा मानसिकता के कारण समाज में विवाहेतर संबंधों की घटनाएं बढ़ रही है, इस बारे में ETV भारत सुखीभवा टीम ने मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन से बात की.
विवाहेतर संबंध
डॉ. कृष्णन बताती हैं की मानव व्यवहार की फितरत होती है, नए को लेकर आकर्षित होना. कुछ लोग बहुत सरलता से इस आकर्षण की लपेट में आ जाते है. इसके अलावा कई बार दांपत्य जीवन में तनाव, उकताहट, किसी से भावनात्मक जुड़ाव, शारीरिक संबंधों से असंतुष्टि, सेक्स से जुड़े कुछ नए अनुभव लेने की लालसा, वक्त के साथ आपसी संबंधों में प्रेम का अभाव, तथा अपने पार्टनर की किसी आदत से तंग होना जैसी आदतों के चलते भी लोग इन रिश्तों को लेकर आकर्षित होते हैं.
हमारे सामाजिक नियम तथा रिवायतें भी एक हद तक इन रिश्तों के लिए मंच तैयार करते हैं, क्योंकि एक तो हमारे यहां युवावस्था में लड़के-लड़कियों को आपस में घुलने-मिलने नहीं दिया जाता. दूसरे, यौन शिक्षा का प्रचलन अभी भी हमारी सोसायटी में नहीं हो पाया है. नतीजतन संबंधों एवं सेक्स की अधकचरी जानकारी के साथ जब वे दांपत्य जीवन की शुरुआत करते है, तो कई बार ऐसे संबंध नाकाम हो जाते है. तब वे अपनी भावनाओं को बाहर तृप्त करना चाहते है. वहीं शादी के कुछ सालों के बाद पति-पत्नी के रिश्तों के बीच खिंचाव आने लगता है. ऐसे में रिश्तों के बीच की उलझनों के चलते कई बार पति-पत्नी बाहर कहीं सुकून तलाशने लगते है. यहीं से विवाहेतर संबंधों की शुरुआत होती है.
विवाहेतर संबंधों के कारण
विवाहेतर संबंधों की शुरुआत का सबसे बड़ा कारण होता है, शारीरिक आकर्षण तथा शारीरिक संबंधों में बदलाव की इच्छा. डॉ. कृष्णन बताती है की लोगों का मानना है की कई बार लोग अपने जीवन साथी के साथ यौन जीवन का आनंद नहीं ले पाते हैं या यूं कहे कि एक समय के बाद उनके संबंधों में एकरसता और नीरसता आ जाती है, तो उसे दूर करने के लिए वे ऐसे रिश्तों की ओर आकर्षित होते है. ये तर्क बिल्कुल निराधार है.
ऐसे कई लोग है, जो अपनी सेक्स लाइफ से पूरी तरह संतुष्ट होने के बावजूद बाहर भी संबंध बनाते है. पति-पत्नी के संबंधों का आधार प्रेम और विश्वास माना जाता है. वहीं शारीरिक संबंध इस प्रेम को बढ़ाने तथा रिश्तों को बांधने का कार्य करते है. लेकिन जब इस प्रेम का अहसास दोनों के बीच से कम होने लगता है, तब दोनों में भावनात्मक स्तर पर असुरक्षा की भावना आने लगती है. विवाहेतर संबंधों का कारण सिर्फ यौन आकर्षण या यौन संबंध नहीं है. कई मामलों में पति-पत्नी के बीच भावनात्मक स्तर पर जुड़ाव या लगाव का अभाव होने पर भी लोग विवाहेतर संबंधों की ओर बढ़ते है. इसी अभाव की पूर्ति के लिए पति या पत्नी बाहर संबंध बनाते है, जो पहले तो भावनात्मक होने के साथ-साथ शारीरिक संबंधों में भी बदल जाते है.
डॉ. कृष्णन बताती है की कई बार दंपती अपने साथी को किसी भी कारण से उसको सबक सिखाने के लिए भी विवाहेतर संबंध बना लेते है. इस तरह के रिश्तों में ना तो कोई सेक्सुअल डिजायर होती है, ना प्रेम बल्कि केवल बदले की भावना होती है. इसके अलावा एक ही ऑफिस में काम करने वाले स्त्री-पुरुषों में कभी-कभी भावनात्मक संबंध और शारीरिक संबंध बन जाते है.
विवाहेतर संबंधों का शादी पर असर
डॉ. कृष्णन बताती हैं की विवाहेतर संबंधों में यदि भावनात्मक जुड़ाव ज्यादा हो जाता है, तो लोग अपने जीवन साथी से तलाक ले लेते है या फिर अलग हो जाते है. लेकिन ज्यादातर मामलों में विवाहेतर संबंधों के बाद भी परिवार और बच्चों के लिए पति-पत्नी साथ रहते है. लेकिन उनके बीच का व्यवहार बेहद असहज हो जाता है. ऐसे में जीवनसाथी का विश्वासघात व्यक्ति को कई बार तनाव या अवसाद का रोगी बना देता है. विवाहेतर संबंध पति-पत्नी दोनों में से किसी भी एक की व्यक्तिगत असफलता नहीं है. इसीलिए दुख, क्षोभ, अहं, घृणा सब भुलाकर पार्टनर से सहजता से बातचीत करनी चाहिए. ताकि एक नई शुरुआत की जा सके और वे वापस से एक खुशनुमा जीवन व्यतीत कर सकें.