आयुर्वेद में गृध्रसी रोग के नाम से जाना जाने वाला सायटिका एक ऐसा रोग है जिसमें कमर के निचले हिस्से की तंत्रिकाओं या नर्व में समस्या होने लगती है तथा उन दबाव पडने लगता है. दरअसल हमारी कमर के निचले हिस्से में सायटिक नर्व होती है, जिसे आयुर्वेद में गृध्रसी तंत्रिका भी कहा जाता है. यह तंत्रिका कमर के निचले हिस्से से शुरू होकर जांघो के अंदरूनी हिस्सों तथा घुटने के जोड़ों से होते हुए पांव के सबसे निचले हिस्से तक जाती है. सायटिका के लिए इसी नर्व में समस्या को जिम्मेदार माना जाता है. इस रोग में पीड़ित को पाँव में कई बार असहनीय दर्द का सामना भी करना पड़ जाता है. यही नहीं इस रोग के प्रभाव में पीड़ित को कई बार पलंग पर सीधे लेटने, चलने तथा बैठने तक में समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
आयुर्वेद में सायटिका
भोपाल मध्यप्रदेश के वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ राजेश शर्मा बताते हैं कि आयुर्वेद में सायटिका को वात रोगों की श्रेणी में रखा जाता है. तथा इसके लिए बढ़े हुए वातदोष एवं दूषित कफदोष को कारण माना जाता है. वह बताते हैं कि डिब्बाबंद भोजन, शुष्क एवं ज्यादा ठंडे पदार्थ तथा कषाय रसयुक्त द्रव्यों तथा अन्य ऐसे आहार का ज्यादा मात्रा में सेवन करने से जो वात्त को बढ़ाते हैं, हमारी नसे प्रभावित होने लगती हैं. यही नही ज्यादा देर तक खड़े या बैठे रहने से , बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत करने या ज्यादा भारी वजन उठाने से भी हमारी नसों विशेषकर सायटिक नर्व पर दबाव पड़ सकता है. जिससे कारण भी इस रोग के होने की आशंका बढ़ जाती है.
वह बताते हैं कि पहले के समय में सायटिका रोग ज्यादातर 50 वर्ष की आयु के बाद लोगों को अपने प्रभाव में लेना शुरू करता लेकिन आजकल खानपान व जीवनशैली में असंतुलन के चलते कम उम्र में भी लोगों में यह समस्या आम तौर पर नजर आने लगी है.
सायटिका के प्रभाव
डॉ राजेश बताते हैं की इस समस्या में आमतौर पर रीढ़ की हड्डी से लेकर नीचे की तरफ जाती हुई नसों में अजीब सा दर्द महसूस होता है जो कि कई बार असहनीय भी हो जाता है. इसके अलावा कई बार पीड़ित को पांव में सुन्नता तथा झन्नाहट महसूस हो सकती है. समस्या के ज्यादा गंभीर होने पर पीड़ित को खड़े होने , बैठने तथा लेटने में असहजता, दर्द तथा अन्य समस्यायें हो सकती है. वहीं कुछ मामलों में पीड़ित को पलंग पर पीठ के बल सीधा लेटने में भी काफी ज्यादा दर्द का सामना करना पड़ता है .दरअसल सीधा लेटने से हमारे कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों तथा प्रभावित नसों पर दबाव पड़ता है जो कि दर्द को काफी ज्यादा बढ़ा देते हैं.
साइटिका के दर्द कैसे करें बचाव
डॉ राजेश बताते हैं कुछ विशेष व्यायामों के अलावा खानपान व स्वस्थ जीवनशैली का पालन करने से तथा अन्य कुछ विशेष सावधानियों का पालन करने से भी दर्द में काफी हद तक कमी लाई जा सकती है. बचाव के इन उपायों में से कुछ इस प्रकार हैं.
- नियमित रूप से प्रशिक्षक द्वारा बताए गए व्यायामों या योग आसनों का अभ्यास करें.
- अपने पोशचर का ध्यान रखें तथा लम्बे समय तक एक ही जगह पर बैठे रहने या खड़े रहने से बचे. यदि आप लंबे समय से बैठे हैं तो लगभग हर आधा घंटे में कुछ देर के लिए खड़े होने या चलने की कोशिश करें, वहीं यदि आप खड़े हैं तो कुछ देर बैठ जाएं.
- आगे की ओर कमर से झुककर समान विशेषकर ज्यादा वजन वाला समान ना उठाएँ.
- ऊंची एडी के जूते या चप्पल न पहनें.
- जंक फूड, डिब्बाबंद आहार, ज्यादा तेल मसाले वाले आहार तथा मटर, राजमा, उड़द, अरबी, बैंगन, आलू, कटहल जैसे वात्त बढ़ाने वाले आहार से परहेज करना चाहिए.
- शरीर में पानी की कमी ना होने दे .
- अपने आहार में विटामिन-बी12, विटामिन-ए, ओमेगा-3 फैटी एसिड तथा पोटेशियम सहित अन्य नसों को मजबूत बनाने वाले पोषक तत्वों युक्त खाध्य पदार्थों जैसे पनीर एवं दूध के उत्पाद, अलसी के बीज, मूंगफली व नट्स,तथा गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, आम, खुबानी, सफेद सेम, हरा साग,आलू, एवोकाडो, मशरूम और केले आदि को शामिल करें.
- दिनचर्या को संतुलित व अनुशासित करें. यानी भोजन के समय व आवृत्ती, सोने व जागने का समय तथा नींद की अवधि सही व नियमित हो.
डॉ राजेश बताते हैं कि ये उपाय सायटिका के दर्द में सिर्फ रोग के प्रभावों और उसकी गंभीरता को नियंत्रित रखने में मदद कर सकते है. लेकिन समस्या से राहत सही उपचार से ही मिलती है. इसलिए यह समस्या होने पर किसी भी विधा के चिकित्सक के परामर्श व उपचार लें.
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