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कोरोना संक्रमित ह्रदयरोगियों की जांच और इलाज में बरते ज्यादा सावधानी

कोरोना संक्रमण के कारण आमतौर पर ह्रदयरोगियों को सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता है। संक्रमण की गंभीरता से बचने के लिए बहुत जरूरी है की संक्रमण से पीड़ित ह्रदयरोगियों के इलाज में विशेष सावधानीयां बरती जाय, जिसके लिए बहुत जरूरी है की ऐसी लोगों के सभी जरूरी टेस्ट करवाए जाए।

Heart Health
Cardiac problems after Covid
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Published : Jun 29, 2021, 1:16 PM IST

यह बात सभी जानते हैं कि कोरोना संक्रमण का सटीक और स्थाई उपचार मौजूद नहीं है ऐसे में मरीजों के शरीर की अवस्था तथा उनके विभिन्न अंगों पर संक्रमण के प्रभाव के आधार पर ही चिकित्सक उनका इलाज करते हैं। कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर से ही ह्रदयरोगियों को इस संक्रमण के लिहाज से काफी संवेदनशील माना जाता है। सिर्फ संक्रमण होने की आशंका के चलते ही नही बल्कि संक्रमण के दौरान या उसके उपरांत बड़ी संख्या में ह्रदयरोगियों के शरीर पर कोरोना के गंभीर असर नजर आते हैं । इसलिए बहुत जरूरी है की विशेषकर ह्रदयरोगियों में संक्रमण की जांच के दौरान सभी जरूरी टेस्ट करवाए जाएं। यह टेस्ट मरीजों की स्थिति जानने तथा उनके सही इलाज में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

कोरोना संक्रमण की जांच के लिए कराए जाने वाले विभिन्न टेस्ट तथा संक्रमण के दौरान इलाज के विभिन्न स्तरों के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने कार्डियोलॉजिस्ट डॉ महेंद्र कारे से बात की ।

कौन से टेस्ट जरूरी

डॉ महेंद्र कारे बताते हैं की आमतौर पर कोरोना संक्रमण के चलते लोगों को विभिन्न प्रकार की जांच और टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। दरअसल संक्रमण की जांच के लिए कराए जाने वाले अधिकांश टेस्ट शरीर के मुख्य अंगों जैसे हृदय और फेफड़ों पर संक्रमण के असर के बारे में जानने के लिए किए जाते हैं। जैसे शरीर में निमोनिया की जांच के लिए चिकित्सक सीटी स्कैंस की सलाह देते हैं क्योंकि यह फेफड़ों की स्तिथि के बारें में बताता है। इसी प्रकार कुछ अन्य स्कैंस भी होते हैं जो न सिर्फ कोरोना बल्कि सभी प्रकार के संक्रमण तथा रोगों की अवस्था में ह्रदय और फेफड़ों में समस्या के स्तर और उसकी गंभीरता के बारे में बताते हैं। यह टेस्ट निम्नलिखित है

  • ईसीजी
  • इ.सी.एच.ओ
  • एडवांस इ.सी.एच.ओ

डॉ महेंद्र बताते हैं की कोरोना के गंभीर मामलों में आमतौर पर “प्रो- बी.एन.पी एडवांस रक्त जांच” की भी सलाह दी जाती है। वहीं संक्रमण के चलते छाती में दर्द होने पर यदि ईसीजी टेस्ट में समस्या के कारणों की स्पष्ट जानकारी नही मिलती है तो ऐसे में चिकित्सक हृदय एंजाइम की जांच के लिए ट्रोपोनींन टेस्ट करवाने की सलाह देते है।

रिकवरी का समय

डॉ महेंद्र बताते हैं की संक्रमण का पूरा इलाज करवा चुके लोग आमतौर पर सवाल पूछते हैं की उनकी रिकवरी कितनी अवधि में हो जाएगी। दरअसल किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य की रिकवरी उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करती है।

आमतौर पर संक्रमण के शिकार वे लोग जिन्हे एक भी कोरोना वैक्सीन न लगी हो संक्रमण के शुरुआती दौर में दो स्तरों का सामना करते है ।जिनमें पहला होता है “वीरेमिक फेज”। इस अवस्था में शरीर में वायरस के फैलने के शुरुआत होती है, तथा संक्रमण तेजी से शरीर के अंगों को प्रभावित करना शुरू करता है।

दूसरा फेज होता है “इम्यून फेज’ । जिसमें व्यक्ति के शरीर पर संक्रमण का असर बुखार, थकान तथा अन्य लक्षणों के रूप में गंभीरता से नजर आने लगता है। आमतौर पर पहले स्तर की अवधि 7 दिनों की मानी जाती है, यदि इन 7 दिनों में व्यक्ति का बुखार कम नहीं होता है तो व्यक्ति इम्यून फेस में प्रवेश कर जाता है जिसका अर्थ होता है कि व्यक्ति का शरीर स्वयं अपने स्तर पर वायरस से लड़ने में सक्षम नहीं हो पा रहा है, ऐसे में व्यक्ति को एंटीवायरल व अन्य प्रकार की दवाइयों तथा इम्यूनोमोड्यूलेटरी तत्वों जैसे स्टेरॉइड की मदद लेनी पड़ती है।

डॉ महेंद्र बताते हैं की व्यक्ति की शारीरिक अवस्था इन दोनों ही स्तरों की अवधि तथा संक्रमण से ठीक होने की रफ्तार के लिए जिम्मेदार होती है। आंकड़ों की माने तो लगभग 80% लोग संक्रमण के प्रथम स्तर में ही ठीक हो जाते हैं । मात्र 20% लोग ऐसे होते हैं जिन्हे शारीरिक समस्याओं या अवस्थाओं की गंभीरता के चलते संक्रमण के दूसरे स्तर में ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन तसल्ली वाली बात यह है की इनमें से अधिकांश सही देखभाल और दवाइयों की मदद से बिल्कुल ठीक हो जाते हैं।

कई बार बहुत से मामले ऐसे भी सामने आते हैं जहां पीड़ित में किसी प्रकार के लक्षण नजर नहीं आते हैं। ऐसे में व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए हल्का बुखार होता है जो आमतौर पर 5 से 7 दिन में ठीक भी हो जाता है।

कौन होते हैं सबसे ज्यादा संवेदनशील

कोरोना संक्रमण के पहले दौर से ही माना जा रहा है कि यह संक्रमण वृद्ध लोगों , ऐसे लोग जो पहले से ही हृदय संबंधी समस्याओं या को-मोरबीटी समस्याओं से जूंझ रहे हो या फिर बाईपास सर्जरी या फिर एंजियोंप्लास्टी करवा चुके हो, के शरीर पर ज्यादा असर डालता है। इसके अतिरिक्त ऐसे व्यक्ति जो किडनी से संबंधित समस्याओं से पीड़ित हो या किडनी ट्रांसप्लांट और किडनी फेलियर जैसी अवस्थाओं का सामना कर चुके हो, उन्हें भी इस संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील माना जाता है ।

पढ़ें : कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में बढ़ते ह्रदय रोग के मामले, क्या है कारण?

यह बात सभी जानते हैं कि कोरोना संक्रमण का सटीक और स्थाई उपचार मौजूद नहीं है ऐसे में मरीजों के शरीर की अवस्था तथा उनके विभिन्न अंगों पर संक्रमण के प्रभाव के आधार पर ही चिकित्सक उनका इलाज करते हैं। कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर से ही ह्रदयरोगियों को इस संक्रमण के लिहाज से काफी संवेदनशील माना जाता है। सिर्फ संक्रमण होने की आशंका के चलते ही नही बल्कि संक्रमण के दौरान या उसके उपरांत बड़ी संख्या में ह्रदयरोगियों के शरीर पर कोरोना के गंभीर असर नजर आते हैं । इसलिए बहुत जरूरी है की विशेषकर ह्रदयरोगियों में संक्रमण की जांच के दौरान सभी जरूरी टेस्ट करवाए जाएं। यह टेस्ट मरीजों की स्थिति जानने तथा उनके सही इलाज में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

कोरोना संक्रमण की जांच के लिए कराए जाने वाले विभिन्न टेस्ट तथा संक्रमण के दौरान इलाज के विभिन्न स्तरों के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने कार्डियोलॉजिस्ट डॉ महेंद्र कारे से बात की ।

कौन से टेस्ट जरूरी

डॉ महेंद्र कारे बताते हैं की आमतौर पर कोरोना संक्रमण के चलते लोगों को विभिन्न प्रकार की जांच और टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। दरअसल संक्रमण की जांच के लिए कराए जाने वाले अधिकांश टेस्ट शरीर के मुख्य अंगों जैसे हृदय और फेफड़ों पर संक्रमण के असर के बारे में जानने के लिए किए जाते हैं। जैसे शरीर में निमोनिया की जांच के लिए चिकित्सक सीटी स्कैंस की सलाह देते हैं क्योंकि यह फेफड़ों की स्तिथि के बारें में बताता है। इसी प्रकार कुछ अन्य स्कैंस भी होते हैं जो न सिर्फ कोरोना बल्कि सभी प्रकार के संक्रमण तथा रोगों की अवस्था में ह्रदय और फेफड़ों में समस्या के स्तर और उसकी गंभीरता के बारे में बताते हैं। यह टेस्ट निम्नलिखित है

  • ईसीजी
  • इ.सी.एच.ओ
  • एडवांस इ.सी.एच.ओ

डॉ महेंद्र बताते हैं की कोरोना के गंभीर मामलों में आमतौर पर “प्रो- बी.एन.पी एडवांस रक्त जांच” की भी सलाह दी जाती है। वहीं संक्रमण के चलते छाती में दर्द होने पर यदि ईसीजी टेस्ट में समस्या के कारणों की स्पष्ट जानकारी नही मिलती है तो ऐसे में चिकित्सक हृदय एंजाइम की जांच के लिए ट्रोपोनींन टेस्ट करवाने की सलाह देते है।

रिकवरी का समय

डॉ महेंद्र बताते हैं की संक्रमण का पूरा इलाज करवा चुके लोग आमतौर पर सवाल पूछते हैं की उनकी रिकवरी कितनी अवधि में हो जाएगी। दरअसल किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य की रिकवरी उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करती है।

आमतौर पर संक्रमण के शिकार वे लोग जिन्हे एक भी कोरोना वैक्सीन न लगी हो संक्रमण के शुरुआती दौर में दो स्तरों का सामना करते है ।जिनमें पहला होता है “वीरेमिक फेज”। इस अवस्था में शरीर में वायरस के फैलने के शुरुआत होती है, तथा संक्रमण तेजी से शरीर के अंगों को प्रभावित करना शुरू करता है।

दूसरा फेज होता है “इम्यून फेज’ । जिसमें व्यक्ति के शरीर पर संक्रमण का असर बुखार, थकान तथा अन्य लक्षणों के रूप में गंभीरता से नजर आने लगता है। आमतौर पर पहले स्तर की अवधि 7 दिनों की मानी जाती है, यदि इन 7 दिनों में व्यक्ति का बुखार कम नहीं होता है तो व्यक्ति इम्यून फेस में प्रवेश कर जाता है जिसका अर्थ होता है कि व्यक्ति का शरीर स्वयं अपने स्तर पर वायरस से लड़ने में सक्षम नहीं हो पा रहा है, ऐसे में व्यक्ति को एंटीवायरल व अन्य प्रकार की दवाइयों तथा इम्यूनोमोड्यूलेटरी तत्वों जैसे स्टेरॉइड की मदद लेनी पड़ती है।

डॉ महेंद्र बताते हैं की व्यक्ति की शारीरिक अवस्था इन दोनों ही स्तरों की अवधि तथा संक्रमण से ठीक होने की रफ्तार के लिए जिम्मेदार होती है। आंकड़ों की माने तो लगभग 80% लोग संक्रमण के प्रथम स्तर में ही ठीक हो जाते हैं । मात्र 20% लोग ऐसे होते हैं जिन्हे शारीरिक समस्याओं या अवस्थाओं की गंभीरता के चलते संक्रमण के दूसरे स्तर में ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन तसल्ली वाली बात यह है की इनमें से अधिकांश सही देखभाल और दवाइयों की मदद से बिल्कुल ठीक हो जाते हैं।

कई बार बहुत से मामले ऐसे भी सामने आते हैं जहां पीड़ित में किसी प्रकार के लक्षण नजर नहीं आते हैं। ऐसे में व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए हल्का बुखार होता है जो आमतौर पर 5 से 7 दिन में ठीक भी हो जाता है।

कौन होते हैं सबसे ज्यादा संवेदनशील

कोरोना संक्रमण के पहले दौर से ही माना जा रहा है कि यह संक्रमण वृद्ध लोगों , ऐसे लोग जो पहले से ही हृदय संबंधी समस्याओं या को-मोरबीटी समस्याओं से जूंझ रहे हो या फिर बाईपास सर्जरी या फिर एंजियोंप्लास्टी करवा चुके हो, के शरीर पर ज्यादा असर डालता है। इसके अतिरिक्त ऐसे व्यक्ति जो किडनी से संबंधित समस्याओं से पीड़ित हो या किडनी ट्रांसप्लांट और किडनी फेलियर जैसी अवस्थाओं का सामना कर चुके हो, उन्हें भी इस संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील माना जाता है ।

पढ़ें : कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में बढ़ते ह्रदय रोग के मामले, क्या है कारण?

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