हैदराबाद : कई बार कुछ लोगों में ज्यादा खर्राटे लेने के साथ नाक बंद रहने या जल्दी-जल्दी जुकाम जैसी समस्या आम होने लगती हैं. इसके लिए टर्बिनेट हाइपरट्रोफी को एक आम कारण माना जाता है. टर्बिनेट हाइपरट्रोफी या जिसे आम भाषा में नाक की हड्डी बढ़ना भी कहा जाता है, पीड़ित में कई बार कारणों के आधार पर कम या ज्यादा परेशानियों का कारण बन सकती हैं. वहीं यह आंशिक या दीर्घकालिक दोनों प्रकार की हो सकती है. यानी कुछ लोगों में यह कारणों के आधार पर अस्थाई समस्या होती है लेकिन कुछ मामलों में यह पीड़ित को लंबे समय तक परेशान कर सकती है.
टर्बिनेट हाइपरट्रोफी
नाक की हड्डी बढ़ने से तात्पर्य यह नहीं होता है की नाक की हड्डी के आकार में परिवर्तन हो, बल्कि यह नाक में टर्बिनेट में सूजन के कारण होने वाली समस्या है. टर्बिनेट नाक के अंदर मौजूद वायु मार्ग की सतह को कहा जाता है. दरअसल नाक में 3 या 4 टर्बिनेट होते हैं. जो वायु मार्ग के ऊपरी, निचले या मध्यम हिस्से में हो सकते हैं. अगर इन टर्बिनेट में कभी-कभी किसी प्रकार की चोट, संक्रमण, एलर्जी या रोग आदि के कारण सूजन आने लगे तो इनका आकार सामान्य से ज्यादा बढ़ जाता है. विशेषतौर पर नाक में मध्यम या निचले टर्बिनेट में यदि सूजन ज्यादा बढ़ जाए और उक्त टर्बिनेट का आकार ज्यादा बदलने लगे तो इस समस्या को नाक की हड्डी बढ़ना या टर्बिनेट हाइपरट्रोफी नाम से जाना जाता है.
लक्षण तथा प्रभाव
चंडीगढ़ के नाक कान गला रोग विशेषज्ञ डॉ सुखबीर सिंह बताते हैं कि टर्बिनेट हाइपरट्रॉफी में आमतौर पर नाक के अंदर कई प्रकार की रुकावटें तथा परेशानियां उत्पन्न होने लगती हैं. वह बताते हैं कि टर्बिनेट में सूजन के चलते जब सांस लेने वाला रास्ता संकरा होने लगता है तो आमतौर पर वायु के प्रवाह में कम या ज्यादा समस्या होने लगती हैं. खासतौर पर सोते समय इस समस्या का प्रभाव ज्यादा परेशान करता है जिसके कारण पीड़ित में सोते समय सांस लेने में भारीपन या ज्यादा खर्राटों की समस्या होने लगती है.
इसके अलावा टर्बिनेट में लंबे समय तक या ज्यादा सूजन के कारण से पीड़ित को नाक में भारीपन, असहजता या सामान्य रूप में भी सांस लेने में बाधा महसूस हो सकती हैं. यही नहीं समस्या के कारणों तथा प्रभाव के आधार पर पीड़ित को सूंघने में परेशानी, लगातार सिरदर्द या कई बार माइग्रेन की समस्या, सिर तथा नाक में भारीपन और यहां तक की कभी कभी नाक से हल्का रक्त आने जैसी समस्याएं भी हो सकती है.
वह बताते हैं कि टर्बिनेट हाइपरट्रोफी के आमतौर पर दो प्रकार माने जाते हैं. क्रोनिक तथा नेसल साइकिल. इनमें नेसल साइकिल की बात करें तो यह समस्या अस्थाई मानी जाती है . इसमें नाक की एक तरफ मौजूद टर्बिनेट कुछ घंटों के लिए सूज जाते हैं और फिर ठीक भी हो जाते हैं. वहीं कई बार इस समस्या में एक तरफ के टर्बिनेट ठीक होने बाद दूसरी तरफ के टर्बिनेट में भी सूजन हो सकती है. आमतौर पर ऐसा किसी प्रकार की एलर्जी या चोट के कारण हो सकता है.
वहीं क्रॉनिक समस्या में लंबे समय तक संक्रमण या रोग के कारण टर्बिनेट में सूजन बनी रहती है. जो कारण या समस्या के प्रभाव के आधार पर बढ़ती या घटती रह सकती है. जिसके चलते टर्बिनेट का आकार भी बढ़ता रहता है. ऐसे में यदि टर्बिनेट में सूजन लंबी अवधि तक बनी रहती है तो पीड़ित में साईनस, माइग्रेन या कई बार एनोस्मिया या सूंघने/गंध लेने में परेशानी की क्षमता में कमी का कारण बन सकती हैं.
डॉ सुखबीर सिंह बताते हैं कि नाक की हड्डी बढ़ने पर ज्यादा खर्राटे आना , सांस लेने में समस्या व सूंघने की क्षमता प्रभावित होने के साथ कुछ अन्य लक्षण भी नजर आ सकते हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- नाक बंद महसूस होना
- सुनने की क्षमता प्रभावित होना या कम होना
- चेहरे में हल्का दर्द होना
- माथे या सिर के सामने वाले हिस्से में ज्यादा दबाव महसूस करना, आदि.
- टर्बिनेट में सूजन के लिए जिम्मेदार कारण
वह बताते हैं टर्बिनेट हाइपरट्रोफी की समस्या कभी-कभी कुछ खास परिस्थितियों में ट्रिगर भी हो सकती है. जैसे कई बार गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में यह समस्या में कम या ज्यादा गंभीर रूप में नजर आ सकती है. हालांकि इस अवस्था में यह समस्या ज्यादातर अस्थाई होती है, जो आमतौर पर कुछ समय बाद अपने आप ठीक भी हो जाती है.
इसके अलावा कुछ अन्य अवस्थाएं भी होती हैं जो इस समस्या के ट्रिगर होने का कारण बन सकती हैं. जिनमें से कुछ प्रकार हैं.
- बार-बार सर्दी जुकाम होना या फ्लू आदि संक्रमण के प्रभाव में आना
- ज्यादा उम्र बढ़ना
- धूल, मिट्टी, फफूंद, मौसम तथा वातावरण के कारण होने वाली एलर्जी
- जानवरों के कारण एलर्जी
- किसी रोग विशेष के कारण
सावधानियां
वह बताते हैं कि एक बार इस समस्या के डाइग्नोस होने के बाद इलाज के साथ सावधानियां बरतना भी बेहद जरूरी होता है. जिससे आगे भी इसके ट्रिगर होने से बचा जा सके. इसके लिए नियमित समय पर दवा तथा चिकित्सक के निर्देशों के साथ ही कुछ बातों का ध्यान रखना लाभकारी हो सकता है. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.
- घर में या अपने आसपास धूल मिट्टी को एकत्रित ना होने दें. तथा स्वच्छता का ज्यादा ध्यान रखें.
- अपने बिस्तर, कपड़ों तथा सामान्य तौर पर ज्यादा इस्तेमाल में आने वाले सामान को धूल मुक्त तथा कीटाणुओं से मुक्त रखने का प्रयास करें.
- यदि पीड़ित मौसमी या किसी प्रकार की वातावरणीय एलर्जी का शिकार हैं, अपनी एलर्जी के आधार पर उक्त मौसम या वातावरण में ज्यादा सावधानी बरते. जैसे जिन लोगों को तेज धूप मे जाने से या ज्यादा नमी वाले मौसम से एलर्जी होती हो उन्हें उक्त मौसम में ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए.
- यदि जानवरों के बालों या लार से एलर्जी है तो उनसे दूर रहें. लेकिन यदि घर में पालतू जानवर हैं तो उसे अपने सोने वाले स्थान से दूर रखें तथा इस संबंध में चिकित्सक से भी परामर्श करें.