बारिश का मौसम मच्छरों तथा बीमारियों का मौसम होता है. इस मौसम में कितना भी बचने की कोशिश करें लेकिन मच्छरों के काटने से बचना काफी मुश्किल होता है. यही कारण है कि इस मौसम में मच्छरो के काटने से फैलने वाले डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे संक्रामक रोगों का प्रसार काफी ज्यादा बढ़ जाता है. गौरतलब है कि जून माह को राष्ट्रीय मलेरिया रोधी माह के रूप में मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य इस संक्रमण तथा अन्य वेक्टर जनित (मच्छरों के काटने के कारण फैलने वाले संक्रमण) संक्रमणों से बचाव व उनके निदान को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ाना है.
आयुर्वेद में भी संभव है मलेरिया तथा अन्य वेक्टर जनित रोगों का इलाज
वैसे तो मलेरिया में ज्यादातर एलोपैथिक इलाज अपनाया जाता है, लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में भी इस तरह के संक्रमणों को लेकर काफी कारगर इलाज मौजूद है. मलेरिया तथा अन्य वेक्टर जनित संक्रमणों के इलाज के लिए आयुर्वेद में मूल जड़ी-बूटी, औषधि या संयुक्त रसायन के साथ पंचकर्म को भी शामिल किया जाता है. चूंकि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में सिर्फ इलाज ही नहीं रोग से बचाव के लिए शरीर को मजबूत बनाना भी शामिल है, ऐसे में आयुर्वेद में कई प्रकार के औषधीय गुण वाले आहार को नियमित आहार में शामिल करने तथा नियमित दिनचर्या में योग व्यायाम को अपनाने की सलाह भी दी जाती है जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो.
आयुर्वेद में मलेरिया का उपचार
भोपाल के आयुर्वेदिक चिकित्सक (बी.ए.एम.एस) डॉ राजेश शर्मा बताते हैं कि आयुर्वेद में मलेरिया या मच्छरों के काटने से फैलने वाले संक्रमणों को विषम ज्वर की श्रेणी में रखा जाता है. आयुर्वेद में इस प्रकार के ज्वर तथा मच्छरों के काटने से होने वाले अन्य संक्रमणों के निदान के लिए कई औषधि मौजूद हैं. जिनमें मलेरिया रोधी / वायरल रोधी गुण होने के साथ, कवकरोधी , बुखार को कम करने, कमजोरी को दूर करने, हड्डियों व मांसपेशियों के दर्द को कम करने, खून को साफ करने व बढ़ाने तथा तीनों दोषों वात, पित्त व कफ को संतुलित करने सहित मलेरिया के उपचार तथा शरीर को पुनः स्वस्थ बनाने के लिए जरूरी गुण होते हैं.
वह बताते हैं कि मलेरिया या मच्छरों के काटने से होने वाले अन्य विषम ज्वर में जो औषधियां सबसे उपयोगी मानी जाती हैं उनमें गुडूची, आमलकी/आंवला , निम्बा/नीम, सप्तपर्ण, मुस्ता तथा गिलोय प्रमुख हैं. मलेरिया के इलाज में इन तथा अन्य मूल औषधियों तथा उनके मिश्रण से बने रसायन के अलावा कुछ अन्य आसव, रस तथा चूर्ण के सेवन को भी शामिल किया जाता है. जैसे सुदर्शन चूर्ण, आयुष 64, अमृतारिष्ट , महाकल्याणक घृत, गुडूच्यादि क्वाथ, तथा कल्याणक घृत आदि.
वह बताते हैं कि मलेरिया के इलाज में औषधी के अलावा आहार व जीवनशैली से जुड़े नियमों को लेकर सावधानी बरतने के लिए भी निर्देशित किया जाता है. साथ ही पंचकर्म के तहत विरेचन कर्म, वमन कर्म तथा बस्ती कर्म जैसी शोधन क्रियाओं को भी इलाज में शामिल किया जाता है, जिससे शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकाल कर , तीनों दोषों को संतुलित करके बीमारी को ठीक जा सके .
निदान ही नहीं बचाव भी जरूरी
डॉ राजेश शर्मा बताते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में सिर्फ मूल रोग के इलाज ही नहीं बल्कि उससे बचाव के लिए तथा दोबारा उस रोग के होने की आशंका को दूर करने के लिए भी प्रयास किया जाता है. जिसके तहत शरीर को प्राकृतिक रूप से मजबूत बनाने तथा उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आहार, व्यवहार तथा जीवनशैली से जुड़े नियमों को अपनाने की बात कही जाती है .
खासतौर पर ऐसे लोग जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है या जो ऐसे स्थानों में रहते हैं जहां इस प्रकार के संक्रमण फैलने का जोखिम ज्यादा रहता है, उन्हे अन्य स्वच्छता संबंधी नियमों को अपनाने के साथ अपने आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करने की सलाह दी जाती है जो उनके शरीर की रोग प्रतिरोशक क्षमता को मजबूत करें.
आयुर्वेद के अनुसार अदरक, तुलसी, हल्दी/कच्ची हल्दी, दालचीनी,मुलेठी, लॉंग,कालीमिर्च,बड़ी इलायची, सूखे मेवे, हरी सब्जियां तथा अमरुद, संतरा,कच्चा पपीता, नींबू तथा ब्लैकबेरी सहित अन्य ऐसे फल जिनमें विटामिन ‘सी’ ज्यादा मात्रा में पाया जाता है, शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने में काफी लाभकारी होते हैं. साथ ही इनमें हल्के फुल्के संक्रमण में अपने आप समस्या को ठीक करने के गुण भी होते हैं.
वह बताते हैं कि आहार में भोजन, काढ़े या अन्य तरह से अदरक, हल्दी, तुलसी व दालचीनी को नियमित रूप से शामिल करने के अलावा नियमित व्यायाम तथा शरीर व आसपास की स्वच्छता का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है. इसके अलावा घर व आसपास की सफाई के साथ नियमित अंतराल पर घर में हवन करने तथा नियमित रूप से लोबान, गाय के गोबर का उपला तथा नीम की पत्तियां जलाने से भी मच्छरों से बचाव होता है.