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गंभीर मनोविकारों का कारण बन सकता है ट्रॉमा: विश्व ट्रॉमा दिवस

आपात परिस्थितियों में किसी भी प्रकार के ट्रॉमा का शिकार होने से बचने के लिए तथा ट्रॉमा के लक्षणों और उसके निवारण को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर वर्ष 17 अक्टूबर को 'विश्व ट्रॉमा दिवस' मनाया जाता है.

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विश्व ट्रॉमा दिवस 2021
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Published : Oct 17, 2021, 6:01 AM IST

ट्रॉमा का हिन्दी में शाब्दिक अर्थ है सदमा या आघात. इसे साधारण शब्दों में समझा जाये तो यह उस गुम चोट सरीखा है जो देखने में कम नजर आता है लेकिन उसके कारण होने वाला दर्द या नुकसान लंबे समय तक या कभी-कभी आजीवन परेशान कर सकता है. ट्रॉमा सिर्फ शारीरिक चोट या दर्द के कारण नहीं होता है, बल्कि यहाँ ट्रॉमा को लेकर जिस संदर्भ में हम बात कर रहे हैं उसका संबंध मानसिक आघात से है.

किसी अपने की मृत्यु, किसी खास से दूरी, बीमारी , हिंसा, असफलता, प्राकृतिक आपदा या विकलांगता, बहुत से ऐसे कारण हैं जो हमारे जीवन में किसी गंभीर सदमें का कारण बन सकते हैं . यदि इस अवस्था पर समय रहते नियंत्रण न हो पाए तो कई बार पीड़ित पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (PTSD) जैसे मनोविकारों का शिकार भी बन सकते हैं. ट्रॉमा जैसी परिस्तिथि से स्वयं बचने तथा अपने परिजनों तथा नजदीकियों को बचाने के लिए बहुत जरूरी है की जहां तक संभव हो सके आपात परिसतिथ्यों में सुरक्षा तथा बचाव दोनों को लेकर लोग जागरूक रहें. इसी के चलते दुनिया भर में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 17 अक्टूबर को पूरी दुनिया में 'विश्व ट्रॉमा दिवस' मनाया जाता है. सर्वप्रथम इस दिवस को मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 2011 में देश की राजधानी दिल्ली में की गई थी .

ट्रॉमा के प्रभाव तथा लक्षण

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ट्रॉमा विश्‍व भर में मृत्‍यु और विकलांगता का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है. ट्रॉमा को किसी एक बीमारी के रूप में परिभाषित नही किया जा सकता है. यह एक ऐसी अवस्था है जिसका पीड़ित के सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, और भावनात्‍मक स्वास्थ्य तथा व्यवहार पर असर पड़ता है. वहीं ट्रॉमा का शिकार होने के लिए जरूरी नही है की आपदा या दुर्घटना का शिकार आप स्वयं या आपका कोई नजदीकी व्यक्ति हुआ हो. कई बार महामारी, युद्ध , प्राकृतिक आपदा या किसी सामाजिक समस्या के बारें में टीवी या संचार के अन्य माध्यमों से जानने के बाद भी लोगों में डर तथा स्वयं के साथ भी कुछ बुरा होने का आशंका घर करने लगती है जो ट्रॉमा का कारण बन सकती है. जिसका सबसे ताजा उदारहण हाल ही में कोरोना महामारी के रूप में नजर आया है . जहां महामारी और उसके चलते मृत्यु के डर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित किया है . इस दौर में फैले डर का असर अभी भी बड़ी संख्या में लोगों के मन मस्तिष्क पर पोस्ट ट्रोमेटिक डिसॉर्डर के रूप में नजर आ रहा है।

ट्रॉमा से पीड़ित व्यक्ति में आमतौर पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं .

  • क्रोध, चिड़चिड़ापन और मूड में बदलाव
  • निराशा और उदासी
  • अकेलेपन का अहसास
  • किसी भी काम में मन न लगना
  • सामाजिक जीवन से दूरी बना लेना
  • चिंता और डर
  • नींद की कमी
  • बात-बात पर चौंक जाना या घबरा जाना
  • अविश्‍वास
  • भावनात्मक आघात

सड़क दुघर्टना के प्रमुख कारण

पूरे विश्‍व में ट्रॉमा का सबसे प्रमुख कारण सड़क दुघर्टनाओं को माना जाता है ,जिसे 'आरटीए' के नाम से भी जाना जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं विकसित देशों में होती हैं.

सिर्फ भारत की बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2013 में लगभग 1 लाख 37 हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे. तब से यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

इस संबंध में अलग अलग स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों की माने तो हर साल दुनिया भर में लगभग 5 मिलियन लोग और सिर्फ हिंदुस्तान में एक मिलियन लोग सड़क दुर्घटनाओं के चलते मृत्यु और बड़ी संख्या में शारीरिक विकलांगता का शिकार बनते हैं. माना जाता है की हमारे देश में हर 2 मिनट में एक सड़क दुर्घटना तथा हर 8 मिनट में दुर्घटना के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु होती है. सड़क दुर्घटना का शिकार होने वाले लोगों में से अधिकांश युवा पुरुष होते हैं. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है की हर साल हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या पिछले साल के मुकाबले 3 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैं.

सड़क दुर्घटना के अलावा हमारे देश में कैंसर तथा हृदय संबंधी बीमारियां भी ट्रॉमा के मुख्य कारणों में से मानी जाती हैं.

सावधानियाँ बरतना जरूरी

प्रचलित कहावत है कि इलाज से बेहतर बचाव है, इसलिए ट्रॉमा जैसी परिस्थिति से बचने के लिए जरूरी सावधानियाँ बरतना और सुरक्षा नियम अपनाना . घर तथा बाहर निम्नलिखित सुरक्षा नियमों को अपनाकर लोग अपने सुरक्षा दायरे को मजबूर कर सकते हैं.

  • सड़क सुरक्षा, ट्रैफिक सिग्नल तथा यातायात के नियमों का सख्ती से पालन करें.
  • दो पहिया वाहन चलाते समय हमेशा हेलमेट का उपयोग करें. साथ ही वाहन चलाते समय मोबाइल का उपयोग ना करें.
  • घर के छोटे बच्चों की सुरक्षा को विशेष तवज्जों दें और उन्हे बिजली के स्विच, और नुकीली चीजों से दूर रखने का प्रयास करें.
  • सीढ़ियों, बालकनी, छत तथा खिड़कियों के लिए जरूरी सुरक्षा मानकों का उपयोग करें.
  • सीपीआर जैसी आपातकाल में जीवन को बचाने वाली तकनीकों के बारे में जानकारी रखें.
  • घर पर तथा अपनी गाड़ी में हमेशा फर्स्ट ऐड किट तैयार रखें.

कैसे करें ट्रॉमा पीड़ित की मदद

गंभीर ट्रॉमा के लक्षण नजर आने पर पीड़ित की व्यक्तिगत देखभाल के साथ कई बार थेरेपी या चिकित्सीय मदद लेना जरूरी हो जाता है. ऐसी अवस्था में कई बार पीड़ित बहुत चिड़चिड़ा तथा मानसिक अवसाद का शिकार हो सकता है. ऐसे में उसके साथ के साथ धैर्य पूर्वक व्यवहार करें. इसके साथ ही पीड़ित के आत्मविश्वास को बनाए रखने तथा उसके आसपास के माहौल को खुशनुमा बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए. इसके साथ ही जरूरी होता है पीड़ित को यह अहसास दिलाना जो हुआ उसे बदला नहीं जा सकता हैं लेकिन सिर्फ दुख या डर को अपनाए रखना न सिर्फ उन्हे बल्कि उनके नजदीकियों को भी दुखी कर सकता है, इसलिए अपने मन के डर से उबरने का प्रयास करें.

पढ़ें: सामान्य मानसिक विकार नहीं है पीटीएसडी

ट्रॉमा का हिन्दी में शाब्दिक अर्थ है सदमा या आघात. इसे साधारण शब्दों में समझा जाये तो यह उस गुम चोट सरीखा है जो देखने में कम नजर आता है लेकिन उसके कारण होने वाला दर्द या नुकसान लंबे समय तक या कभी-कभी आजीवन परेशान कर सकता है. ट्रॉमा सिर्फ शारीरिक चोट या दर्द के कारण नहीं होता है, बल्कि यहाँ ट्रॉमा को लेकर जिस संदर्भ में हम बात कर रहे हैं उसका संबंध मानसिक आघात से है.

किसी अपने की मृत्यु, किसी खास से दूरी, बीमारी , हिंसा, असफलता, प्राकृतिक आपदा या विकलांगता, बहुत से ऐसे कारण हैं जो हमारे जीवन में किसी गंभीर सदमें का कारण बन सकते हैं . यदि इस अवस्था पर समय रहते नियंत्रण न हो पाए तो कई बार पीड़ित पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (PTSD) जैसे मनोविकारों का शिकार भी बन सकते हैं. ट्रॉमा जैसी परिस्तिथि से स्वयं बचने तथा अपने परिजनों तथा नजदीकियों को बचाने के लिए बहुत जरूरी है की जहां तक संभव हो सके आपात परिसतिथ्यों में सुरक्षा तथा बचाव दोनों को लेकर लोग जागरूक रहें. इसी के चलते दुनिया भर में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 17 अक्टूबर को पूरी दुनिया में 'विश्व ट्रॉमा दिवस' मनाया जाता है. सर्वप्रथम इस दिवस को मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 2011 में देश की राजधानी दिल्ली में की गई थी .

ट्रॉमा के प्रभाव तथा लक्षण

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ट्रॉमा विश्‍व भर में मृत्‍यु और विकलांगता का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है. ट्रॉमा को किसी एक बीमारी के रूप में परिभाषित नही किया जा सकता है. यह एक ऐसी अवस्था है जिसका पीड़ित के सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, और भावनात्‍मक स्वास्थ्य तथा व्यवहार पर असर पड़ता है. वहीं ट्रॉमा का शिकार होने के लिए जरूरी नही है की आपदा या दुर्घटना का शिकार आप स्वयं या आपका कोई नजदीकी व्यक्ति हुआ हो. कई बार महामारी, युद्ध , प्राकृतिक आपदा या किसी सामाजिक समस्या के बारें में टीवी या संचार के अन्य माध्यमों से जानने के बाद भी लोगों में डर तथा स्वयं के साथ भी कुछ बुरा होने का आशंका घर करने लगती है जो ट्रॉमा का कारण बन सकती है. जिसका सबसे ताजा उदारहण हाल ही में कोरोना महामारी के रूप में नजर आया है . जहां महामारी और उसके चलते मृत्यु के डर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित किया है . इस दौर में फैले डर का असर अभी भी बड़ी संख्या में लोगों के मन मस्तिष्क पर पोस्ट ट्रोमेटिक डिसॉर्डर के रूप में नजर आ रहा है।

ट्रॉमा से पीड़ित व्यक्ति में आमतौर पर निम्नलिखित लक्षण नजर आते हैं .

  • क्रोध, चिड़चिड़ापन और मूड में बदलाव
  • निराशा और उदासी
  • अकेलेपन का अहसास
  • किसी भी काम में मन न लगना
  • सामाजिक जीवन से दूरी बना लेना
  • चिंता और डर
  • नींद की कमी
  • बात-बात पर चौंक जाना या घबरा जाना
  • अविश्‍वास
  • भावनात्मक आघात

सड़क दुघर्टना के प्रमुख कारण

पूरे विश्‍व में ट्रॉमा का सबसे प्रमुख कारण सड़क दुघर्टनाओं को माना जाता है ,जिसे 'आरटीए' के नाम से भी जाना जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार लगभग 50 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं विकसित देशों में होती हैं.

सिर्फ भारत की बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2013 में लगभग 1 लाख 37 हजार लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए थे. तब से यह संख्या लगातार बढ़ रही है.

इस संबंध में अलग अलग स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों की माने तो हर साल दुनिया भर में लगभग 5 मिलियन लोग और सिर्फ हिंदुस्तान में एक मिलियन लोग सड़क दुर्घटनाओं के चलते मृत्यु और बड़ी संख्या में शारीरिक विकलांगता का शिकार बनते हैं. माना जाता है की हमारे देश में हर 2 मिनट में एक सड़क दुर्घटना तथा हर 8 मिनट में दुर्घटना के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु होती है. सड़क दुर्घटना का शिकार होने वाले लोगों में से अधिकांश युवा पुरुष होते हैं. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है की हर साल हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या पिछले साल के मुकाबले 3 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैं.

सड़क दुर्घटना के अलावा हमारे देश में कैंसर तथा हृदय संबंधी बीमारियां भी ट्रॉमा के मुख्य कारणों में से मानी जाती हैं.

सावधानियाँ बरतना जरूरी

प्रचलित कहावत है कि इलाज से बेहतर बचाव है, इसलिए ट्रॉमा जैसी परिस्थिति से बचने के लिए जरूरी सावधानियाँ बरतना और सुरक्षा नियम अपनाना . घर तथा बाहर निम्नलिखित सुरक्षा नियमों को अपनाकर लोग अपने सुरक्षा दायरे को मजबूर कर सकते हैं.

  • सड़क सुरक्षा, ट्रैफिक सिग्नल तथा यातायात के नियमों का सख्ती से पालन करें.
  • दो पहिया वाहन चलाते समय हमेशा हेलमेट का उपयोग करें. साथ ही वाहन चलाते समय मोबाइल का उपयोग ना करें.
  • घर के छोटे बच्चों की सुरक्षा को विशेष तवज्जों दें और उन्हे बिजली के स्विच, और नुकीली चीजों से दूर रखने का प्रयास करें.
  • सीढ़ियों, बालकनी, छत तथा खिड़कियों के लिए जरूरी सुरक्षा मानकों का उपयोग करें.
  • सीपीआर जैसी आपातकाल में जीवन को बचाने वाली तकनीकों के बारे में जानकारी रखें.
  • घर पर तथा अपनी गाड़ी में हमेशा फर्स्ट ऐड किट तैयार रखें.

कैसे करें ट्रॉमा पीड़ित की मदद

गंभीर ट्रॉमा के लक्षण नजर आने पर पीड़ित की व्यक्तिगत देखभाल के साथ कई बार थेरेपी या चिकित्सीय मदद लेना जरूरी हो जाता है. ऐसी अवस्था में कई बार पीड़ित बहुत चिड़चिड़ा तथा मानसिक अवसाद का शिकार हो सकता है. ऐसे में उसके साथ के साथ धैर्य पूर्वक व्यवहार करें. इसके साथ ही पीड़ित के आत्मविश्वास को बनाए रखने तथा उसके आसपास के माहौल को खुशनुमा बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए. इसके साथ ही जरूरी होता है पीड़ित को यह अहसास दिलाना जो हुआ उसे बदला नहीं जा सकता हैं लेकिन सिर्फ दुख या डर को अपनाए रखना न सिर्फ उन्हे बल्कि उनके नजदीकियों को भी दुखी कर सकता है, इसलिए अपने मन के डर से उबरने का प्रयास करें.

पढ़ें: सामान्य मानसिक विकार नहीं है पीटीएसडी

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