गोरखपुर: आजकल ऐसे मरीजों की तादाद ज्यादा हो गई है. जो नौकरीपेशा हैं और ऑफिस में कार्य करते हुए अचानक कब सो जाते हैं, उन्हें पता ही नहीं चलता. इससे उनकी इमेज और कार्य क्षमता दोनों प्रभावित होती है. इस समस्या से निजात पाने के लिए डॉक्टर का सहारा ले रहे हैं. मनोचिकित्सक इस समस्या को नार्कोलेप्सी यानी नींद का दौरा पड़ना कहते हैं. यह उस अवस्था में होता है जब व्यक्ति अपनी नींद पूरी नहीं कर पाता.
67 फीसदी पुरुषों का पड़ता है नींद का दौराः ऐसे मरीजों की संख्या को देखते हुए गोरखपुर जिला अस्पताल के साइकोलॉजी और मनोचिकित्सा विभाग ने संयुक्त रूप से मिलकर अध्ययन किया तो पाया कि 67% पुरुष और 56% महिला कर्मचारियों में ऑफिस में सोने की समस्या है. करीब 365 लोगों पर इस रिसर्च को अपनाया गया है, जिसमें चिकित्सकों ने पाया है कि देर रात तक जागना, स्क्रीन टाइम ज्यादा होना, इस समस्या का मुख्य कारण है. ऐसे लोगों को ही नींद का दौरा पड़ता है, जिसकी वजह से कर्मचारी ऑफिस में कार्य करते-करते सोने लगते हैं. कुछ लोग गाड़ी चलाते हुए सोने लगते हैं, जो सेहत के लिए ठीक नहीं हैं.
'मेलाटोनिन' की कमी के कारण स्लीप अटैकः जिला अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉक्टर अमित शाही ईटीवी भारत को बताते हैं कि नींद बनाने वाले हार्मोन 'मेलाटोनिन' की कमी के कारण स्लीप अटैक की समस्या पैदा होती है. नींद के दौरे बिना किसी चेतावनी के कभी भी आ सकते हैं. इससे तनाव भी बढ़ता है. इससे बचने के लिए लोग हेल्दी डाइट के साथ तनाव कम, योग और एक्सरसाइज करें. इसके साथ ही सोने और जागने का समय निर्धारित करें. जब सोने के लिए बिस्तर पर जाएं तो मोबाइल, टीवी आदि को न देखें. यही नहीं सोने से पहले पेशाब करके सोना ठीक होता है. इससे बीच में जागना नहीं पड़ता.
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सोने से पहले लगातार फोन चलाना हानिकारः डॉक्टर अमित शाही ने बताया कि ऑफिस में काम करते हुए अचानक से सो जाने की समस्या फिर भी ठीक है. लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो गाड़ी चलाते-चलाते सो जाते हैं. संयोग बस दुर्घटना तो नहीं हुई लेकिन उनके रास्ते बदल जाते हैं. उन्होंने बताया कि महाराजगंज का एक सरकारी कर्मचारी ऐसी ही समस्या से पीड़ित है. एक बार वह उन्हें दिखाने आ रहा था तो गाड़ी चलाते हुए उसे नींद आ गई और उसका रास्ता ही बदल गया. फिलहाल वह ठीक है. उन्होंने कहा कि देर रात तक अनावश्यक जागने, सोने से पहले लगातार फोन पर आंखों को गड़ाए रखना नींद चक्र को प्रभावित करता है. इसे स्लीप अटैक कहते हैं. जिसे मेडिकल साइंस की भाषा में "नार्कोलेप्सी" भी कहा जाता है. यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें दिन के समय अचानक तेज नींद आने लगती है और व्यक्ति चाह कर भी नींद पर काबू नहीं कर पाता. वह कई बार शराब और दवा का सहारा लेने लगता है, जो ठीक नहीं है.
एहतियात ही समस्या के समाधान में कारगरः डॉक्टर शाही ने बताया कि जिला अस्पताल के ओपीडी में ऐसे तमाम मरीज उनके पास आते हैं, जिनका वह इलाज कर रहे हैं. जरूरी दवाएं भी उन्हें अस्पताल से दी जाती हैं. लेकिन जो मरीज के स्तर से इस समस्या के निदान में उठाए जाने वाले उपाय हैं, वह ज्यादा ज्यादा हितकारी हैं. कुछ लोग पारिवारिक कलह की वजह से भी अनिद्रा के शिकार हैं. डॉक्टर शाही ने बताया कि दिन के दौरान बहुत अधिक नींद आना, उठने और जागने में परेशानी होना, जागने के बाद मदहोश या उलझन महसूस करना, सोने या ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई का आना, कम ऊर्जावान या सुस्ती महसूस करना, उदासी या चिंता का बना रहना, अच्छी नींद के नहीं लेने का कारण होता है. जिससे व्यक्ति दिन के समय नींद का शिकार होता है और यह स्लीप अटैक उसके लिए ठीक नहीं है.
वहीं, अस्पताल में आए जितेन्द्र शुक्ला और शशिभूषण ने दिन में नीद आने की समस्या का जिक्र करते हुए कहते हैं कि कब कलम और मोबाइल हाथ से गिर जाए पता नहीं चलता. सिर मेज पर टिकाया नहीं कि नीद का आना तय है.