हमने अपनी मां और दादी को बचे हुए दूध से घर पर पनीर या दही बनाते देखा है। क्या आपने कभी सोचा है कि वह पानी जैसा पदार्थ क्या है? अक्सर पनीर बनाने के बाद कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है या दही सेट होने के बाद बचे हुए पानी के रूप में देखा जाता है। वास्तव में शुद्ध दूध का प्रोटीन होता है जो प्रक्रिया के दौरान फ़िल्टर हो जाता है।यह एक त्वरित पचने वाले वर्ग के अंतर्गत आने वाला प्रोटीन है जिसे मानव शरीर आसानी से अवशोषित कर सकता है और इससे लाभ उठा सकता है।
हमारे भारतीय शाकाहारी भोजन में आमतौर पर प्रोटीन के स्रोत कम मात्रा में इस्तेमाल होते हैं।ऐसे में साधारण दैनिक भोजन के पोषण मूल्य को सकारात्मक रूप से बढ़ाने के लिए पनीर बनाने के बाद बचे हुए पानी को फेंकने की बजाय या दही के ऊपर आ जाने वाले पानी का चपाती के लिए अपना आटा गूंथने में इस्तेमाल किया जा सकता है। यही नहीं दाल, सब्जी, सूप और यहाँ तक कि चावल और पास्ता पकाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रतिदिन कितना प्रोटीन जरूरी
सलाहकार आहार विशेषज्ञ वंदना काकोटकर के अनुसार आमतौर पर एक व्यक्ति को प्रतिदिन अपने वजन के प्रति किलो के हिसाब से 0.8 से 1.0 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए 50 किलो वजन वाले व्यक्ति को प्रतिदिन 40-50 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। शाकाहारी व्यक्ति इसकी पूर्ति दिन भर में 2 से 3 कटोरी दालों, अनाज (चावल, ज्वार, गेहूं, आदि) तथा 1 से 2 गिलास दूध या उससे बने उत्पादों के सेवन से की जा सकती है।वहीं मांसाहारी व्यक्ति मछली, चिकन, प्रतिदिन 2 अंडों और चावल या चपाती जैसे अनाज के माध्यम से शरीर में प्रोटीन की पूर्ति कर सकते हैं।
प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन
• पशुओं से प्राप्त होने वाला प्रोटीन: दूध और दूध उत्पाद, अंडे, मछली, चिकन, मांस आदि। इन सभी में आवश्यक अमीनो एसिड होते हैं और इन्हें पूर्ण प्रोटीन या उच्च जैविक मूल्य प्रोटीन की श्रेणी में रखा जाता है।
• वनस्पति स्रोतों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन: नट (सूखे मेवे), दालें, सोयाबीन, दाल, मशरूम आदि। चूंकि इनमें आवश्यक मात्रा में अमीनो एसिड नही होते है इसलिए इन्हे अपूर्ण प्रोटीन या कम जैविक मूल्य वाले प्रोटीन के रूप में जाना जाता है।
• लेकिन जब दो या दो से अधिक अधूरे प्रोटीन एक साथ खाए जाते हैं, तो वे एक दूसरे के पूरक का कार्य करते हैं और शरीर में आवश्यक अमीनो एसिड की कमी को पूरा करते हैं। उदाहरण के लिए, दालों का एक सामान्य संयोजन चावल और दाल या खिचड़ी होगा।
हालांकि पशुओं से मिलने वाले के प्रोटीन की तुलना में, प्रोटीन के शाकाहारी स्रोत में संतृप्त वसा कम होती हैं और इसमें कोई कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है,साथ ही इनके सेवन में आहार फाइबर, एंटीऑक्सिडेंट और फाइटोकेमिकल्स का अतिरिक्त लाभ भी मिलता है।
• इसलिए प्रतिदिन लंच और डिनर में 1 कटोरी दाल और 1 कटोरी सब्जी के साथ चपाती या चावल खाने से शरीर की प्रोटीन की आवश्यकता पूरी हो जाती है।
• गेहूं के आटे में सोया आटा 1:4 के अनुपात में मिलाकर उसका प्रयोग करने से चपाती में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।
• नियमित तौर पर ज्यादा पशु प्रोटीन के सेवन से परहेज करना चाहिए ।इसकी बजाय पौधो से मिलने वाले प्रोटीन का भी सेवन किया जा सकता है क्योंकि वह मांसाहार के ज्यादा उपयोग से होने वाली समस्याओं से बचा सकता है।
इसी संबंध में ज्यादा जानकारी देते हुए आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ पी.वी रंगनायकूलु बताते हैं की प्रकृति में 20 प्रकार के अमीनो एसिड पाए जाते हैं जिन्हे जीवन के निर्माण खंड के रूप में भी जाना जाता हैं। ये अमीनो एसिड असंख्य प्रोटीन का निर्माण करते हैं जो त्वचा, बालों, मांसपेशियों, हड्डियों आदि का निर्माण करते हैं।प्रोटीन के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है।
डॉ पी.वी रंगनायकूलु बताते हैं सिस्टीन, ग्लूटामाइन, लाइसिन, आर्जिनिन और कुछ अन्य अमीनो एसिड को आवश्यक अमीनो एसिड की श्रेणी में रखा जाता है जिन्हे मांस या अंडे से सेवन से प्राप्त किया जा सकता है। ऐलेनिन, ग्लाइसिन, टायरोसिन, एस्पार्टेट आदि गैर-आवश्यक अमीनो एसिड हैं जिन्हे हम अपने शरीर में ही कार्बोहाइड्रेट या वसा से संश्लेषित कर सकते हैं।
संपूर्ण प्रोटीन के स्त्रोत्र
1. चावल और दाल
2. साबुत अनाज की ब्रेड पर पीनट बटर सैंडविच
3. साबुत अनाज की ब्रेड/ साबुत अनाज के पिसे के साथ हुमस
4. सेम और मेवा या बीज से बना सलाद
5. सूरजमुखी के बीज या बादाम के साथ दही
डॉ. रंगनायकुलु बताते हैं की हालांकि आयुर्वेद के साहित्य में विभिन्न पक्षियों, जानवरों और मछलियों का मांस खाने की सिफारिश की गई थी, लेकिन धार्मिक मान्यताओं के प्रभाव के कारण आयुर्वेद काफी समय से शाकाहार को आहार के रूप में प्राथमिकता देने लगा है । इसलिए आयुर्वेद में अब अच्छे स्वास्थ्य तथा शरीर में प्रोटीन की पूर्ति के लिए डेयरी उत्पादों की सिफारिश की जाती है क्योंकि दूध और डेयरी उत्पाद प्रोटीन के लिए आवश्यक सभी 9 आवश्यक अमीनो एसिड प्रदान कर सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार दूध को इम्युनिटी बढ़ाने वाला भी माना जाता है। आयुर्वेद में दूध के अलावा ऐसे फल, मेवा, जड़ की सिफारिश की गई है जिनमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन हो।
Also Read: शाकाहारी प्रोटीन है फायदेमंद