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संतुलित आहार और जीवनशैली अपनाकर हड्डियों की समस्याएं करें दूर - nutrition to maintain bone health

बुढ़ापे का रोग कहा जाने वाला कमर दर्द अब कम उम्र में भी लोगों को परेशान करने लगा है. जिसके लिए हड्डियों संबंधी समस्याओं सहित आहार और जीवनशैली को भी जिम्मेदार माना जा रहा है. आइए जानते हैं कि कौन सी समस्याएं होती हैं जो हड्डियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं और क्यों माना जाता है कि 35 की आयु के बाद हड्डियों के स्वास्थ्य की देखभाल ज्यादा जरूरी हो जाती है.

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हड्डियों की समस्या
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Published : Oct 13, 2021, 12:02 PM IST

हमारा शरीर बिना दर्द सही तरह से काम कर सके , इसके लिये हमारी हड्डियों का स्वस्थ, मजबूत तथा रोग रहित होना बहुत जरूरी है. पहले के समय में माना जाता था 40 से बाद लोगों में हड्डियों में कमजोरी या दर्द जैसी समस्याएं शुरू होने लगती हैं, लेकिन वर्तमान समय में 30 वर्ष या उससे कम उम्र के लोगों में भी कमर दर्द के मामले देखने में आने लगते हैं. जिसका कारण असंतुलित आहार तथा असक्रिय जीवनशैली के कारण हड्डियों में बढ़ने वाली समस्याओं को माना जा रहा है.

देहरादून के हड्डीरोग विशेषज्ञ डॉ हेम जोशी बताते है कि सामान्य परिस्तिथ्यों में 30 वर्ष की उम्र तक हमारी हड्डियों का विकास होता रहता है. 30 से 35 साल की उम्र में हमारी बोन डेनसिटी सबसे ज्यादा होती है. लेकिन 35 की उम्र के बाद उम्र, आहार में कमी तथा अन्य कई कारणों से शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी होने लगती है जिससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. कुछ लोगों में इस अवस्था में ऑस्टोपोरियोसिस की बीमारी भी हो जाती है.

वहीं वर्तमान समय में कम उम्र में हड्डियों में होने वाली समस्याओं के लिए किसी विशेष बीमारी के अलावा, पौष्टिक आहार की कमी, व्यायाम की कमी, बिगड़ी हुई जीवन शैली के कारण नींद में कमी, कम उम्र में लोगों में शराब सिगरेट या कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन बढ़ने को जिम्मेदार माना जा सकता है. आमतौर पर हड्डियों में कमजोरी के लिए विटामिन डी और कैल्शियम की कमी को भी जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन इनके अलावा

कुछ अन्य कारण भी हैं जो हड्डियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं.

  • ऑस्टोपोरियोसिस: यह एक बीमारी है जो हड्डियों को कमज़ोर करती है. इससे अप्रत्याशित फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है. यह बीमारी बिना किसी दर्द या लक्षणों के बढ़ाती है.
  • आनुवंशिक : यदि परिवार में पहले ऑस्टोपोरियोसिस या हड्डी संबंधी समस्याओं का इतिहास रहा हो तो यह समस्या हो सकती है. इसीलिए अपने परिवार के इतिहास के आधार पर अपनी हड्डियों का बेहतर ख्याल रखना जरूरी है.
  • हॉर्मोन के स्तर में समस्या : शरीर में विभिन्न कारणों से हॉर्मोन्स में बदलाव होने पर भी हड्डियों के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. विशेषतौर पर थायरॉइड की अधिकता होने पर बोन डेंसिटी को नुकसान पहुंचता है. वहीं रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज के दौरान तथा उसके बाद महिलाओं का हार्मोनल स्वास्थ्य काफी प्रभावित होता है , विशेषतौर तौर उनके शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा तेजी से घटती है, जो हड्डियां की कमजोरी का कारण बन सकती है. वहीं पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की घटती मात्रा भी उनकी हड्डियों की कमजोरी का कारण बनती हैं.
  • शराब और तंबाकू का इस्तेमाल: शराब और सिगरेट में तंबाकू, निकोटीन और एल्कोहल होता है जिससे हड्डियों की डेंसिटी कमजोर हो सकती है. साथ ही हड्डियों के स्वस्थ टिशूज को नुकसान पहुंच सकता हैं। जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है.
  • इटिंग डिसऑर्डर: खाने के विकार यानि इटिंग डिसऑर्डर जैसे एनोरेक्सिया या बुलिमिया से पीड़ित लोगों में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या होने की आशंका रहती हैं.
  • कैफीन का सेवन: चाय और कॉफी में कैफीन पाया जाता है जो हड्डियों की डेंसिटी कम करने के लिए जिम्मेदार होता है. अधिक चाय कॉफी के सेवन से दांत और अन्य हड्डियां अपने जरूरी मिनरल खोने लगती हैं, जिसकी वजह से वो कमजोर होने लगती हैं और फ्रैक्चर तथा ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है.
  • शारीरिक सक्रियता की कमी : नियमित व्यायाम या शारीरिक सक्रियता की कमी भी हड्डियों और मांसपेशियों के स्वास्थ्य पर असर डालती है.

कैसे बनाए रखें हड्डियों का स्वास्थ्य

डॉ जोशी बताता हैं कि हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये स्वस्थ खान-पान के साथ व्यायाम और सही व अनुशासित जीवनशैली को अपनाना बहुत जरूरी है. वे बताते हैं किसी भी प्रकार के पोषण के लिये प्राकृतिक स्त्रोत सप्लीमेंट्स से बेहतर होते हैं . इसलिए जहां तक संभव हो प्रतिदिन ऐसा आहार ग्रहण करें जिससे प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर को कैल्शियम तथा अन्य जरूरी पोषक तत्व मिल सके. जिसके लिये डेयरी उत्पाद जैसे दही, दूध, सोया मिल्क, टोफू, सोयाबीन, सफेद बीन, केला ब्रोकली सहित अन्य फल तथा सब्जियों का नियमित रूप से सेवन जरूरी है. शरीर में विटामिन डी की पूर्ति के लिये प्रतिदिन सुबह के समय कुछ देर धूप में रहना चाहिए. इसके अलावा भोजन के जरिए भी विटामिन डी लिया जा सकता है जिसके लिये मछली, फोर्टिफाइड मिल्क, सोया मिल्क, संतरे का रस और अंडे की जर्दी का सेवन किया जा सकता है.

प्रोटीन भी हड्डियों के लिए जरूरी होता है. यदि हड्डियों में कम प्रोटीन हो तो हड्डियां कैल्शियम को सही तरह से अवशोषित नहीं कर पाती हैं. प्रोटीन हड्डियों को बनाने और हड्डियों को टूटने से रोकने में मदद करता है, इसलिए हड्डियों में कैल्शियम के प्रवाह को बढ़ाने के लिए प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करना चाहिए .

हड्डियों के लिए ओमेगा -3 फैटी एसिड भी आवश्यक होते हैं . ओमेगा -3 फैटी एसिड हड्डियों की समस्याओं को कम करने तथा नई हड्डियों के निर्माण में मदद करते हैं. इन फैटी एसिड में एंटी इंफ्लेमेटरी प्रभाव होता है. इसलिए अपने भोजन में जो ओमेगा -3 फैटी एसिड युक्त आहार जैसे अखरोट, अलसी और चिया सीड्स को अवश्य शामिल करना चाहिए.

इसके बाद भी यदि हाथों, पैरों विशेषकर जोड़ों में समस्या प्रतीत हो तो चिकित्सक से परामर्श बहुत जरूरी है. इसक अतिरिक्त 35 वर्ष के बाद महिलाओं तथा पुरुषों , दोनों को नियमित अंतराल पर हड्डियों के स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिये बोन डेनसिटी की जांच अवश्य करानी चाहिए.

पढ़ें: असंतुलित जीवनशैली और खानपान बढ़ा रहें हैं अर्थराइटिस की समस्या

हमारा शरीर बिना दर्द सही तरह से काम कर सके , इसके लिये हमारी हड्डियों का स्वस्थ, मजबूत तथा रोग रहित होना बहुत जरूरी है. पहले के समय में माना जाता था 40 से बाद लोगों में हड्डियों में कमजोरी या दर्द जैसी समस्याएं शुरू होने लगती हैं, लेकिन वर्तमान समय में 30 वर्ष या उससे कम उम्र के लोगों में भी कमर दर्द के मामले देखने में आने लगते हैं. जिसका कारण असंतुलित आहार तथा असक्रिय जीवनशैली के कारण हड्डियों में बढ़ने वाली समस्याओं को माना जा रहा है.

देहरादून के हड्डीरोग विशेषज्ञ डॉ हेम जोशी बताते है कि सामान्य परिस्तिथ्यों में 30 वर्ष की उम्र तक हमारी हड्डियों का विकास होता रहता है. 30 से 35 साल की उम्र में हमारी बोन डेनसिटी सबसे ज्यादा होती है. लेकिन 35 की उम्र के बाद उम्र, आहार में कमी तथा अन्य कई कारणों से शरीर में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी होने लगती है जिससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. कुछ लोगों में इस अवस्था में ऑस्टोपोरियोसिस की बीमारी भी हो जाती है.

वहीं वर्तमान समय में कम उम्र में हड्डियों में होने वाली समस्याओं के लिए किसी विशेष बीमारी के अलावा, पौष्टिक आहार की कमी, व्यायाम की कमी, बिगड़ी हुई जीवन शैली के कारण नींद में कमी, कम उम्र में लोगों में शराब सिगरेट या कैफीन युक्त पदार्थों का सेवन बढ़ने को जिम्मेदार माना जा सकता है. आमतौर पर हड्डियों में कमजोरी के लिए विटामिन डी और कैल्शियम की कमी को भी जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन इनके अलावा

कुछ अन्य कारण भी हैं जो हड्डियों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं.

  • ऑस्टोपोरियोसिस: यह एक बीमारी है जो हड्डियों को कमज़ोर करती है. इससे अप्रत्याशित फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है. यह बीमारी बिना किसी दर्द या लक्षणों के बढ़ाती है.
  • आनुवंशिक : यदि परिवार में पहले ऑस्टोपोरियोसिस या हड्डी संबंधी समस्याओं का इतिहास रहा हो तो यह समस्या हो सकती है. इसीलिए अपने परिवार के इतिहास के आधार पर अपनी हड्डियों का बेहतर ख्याल रखना जरूरी है.
  • हॉर्मोन के स्तर में समस्या : शरीर में विभिन्न कारणों से हॉर्मोन्स में बदलाव होने पर भी हड्डियों के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है. विशेषतौर पर थायरॉइड की अधिकता होने पर बोन डेंसिटी को नुकसान पहुंचता है. वहीं रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज के दौरान तथा उसके बाद महिलाओं का हार्मोनल स्वास्थ्य काफी प्रभावित होता है , विशेषतौर तौर उनके शरीर में एस्ट्रोजन की मात्रा तेजी से घटती है, जो हड्डियां की कमजोरी का कारण बन सकती है. वहीं पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन की घटती मात्रा भी उनकी हड्डियों की कमजोरी का कारण बनती हैं.
  • शराब और तंबाकू का इस्तेमाल: शराब और सिगरेट में तंबाकू, निकोटीन और एल्कोहल होता है जिससे हड्डियों की डेंसिटी कमजोर हो सकती है. साथ ही हड्डियों के स्वस्थ टिशूज को नुकसान पहुंच सकता हैं। जिससे ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है.
  • इटिंग डिसऑर्डर: खाने के विकार यानि इटिंग डिसऑर्डर जैसे एनोरेक्सिया या बुलिमिया से पीड़ित लोगों में ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या होने की आशंका रहती हैं.
  • कैफीन का सेवन: चाय और कॉफी में कैफीन पाया जाता है जो हड्डियों की डेंसिटी कम करने के लिए जिम्मेदार होता है. अधिक चाय कॉफी के सेवन से दांत और अन्य हड्डियां अपने जरूरी मिनरल खोने लगती हैं, जिसकी वजह से वो कमजोर होने लगती हैं और फ्रैक्चर तथा ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है.
  • शारीरिक सक्रियता की कमी : नियमित व्यायाम या शारीरिक सक्रियता की कमी भी हड्डियों और मांसपेशियों के स्वास्थ्य पर असर डालती है.

कैसे बनाए रखें हड्डियों का स्वास्थ्य

डॉ जोशी बताता हैं कि हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये स्वस्थ खान-पान के साथ व्यायाम और सही व अनुशासित जीवनशैली को अपनाना बहुत जरूरी है. वे बताते हैं किसी भी प्रकार के पोषण के लिये प्राकृतिक स्त्रोत सप्लीमेंट्स से बेहतर होते हैं . इसलिए जहां तक संभव हो प्रतिदिन ऐसा आहार ग्रहण करें जिससे प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर को कैल्शियम तथा अन्य जरूरी पोषक तत्व मिल सके. जिसके लिये डेयरी उत्पाद जैसे दही, दूध, सोया मिल्क, टोफू, सोयाबीन, सफेद बीन, केला ब्रोकली सहित अन्य फल तथा सब्जियों का नियमित रूप से सेवन जरूरी है. शरीर में विटामिन डी की पूर्ति के लिये प्रतिदिन सुबह के समय कुछ देर धूप में रहना चाहिए. इसके अलावा भोजन के जरिए भी विटामिन डी लिया जा सकता है जिसके लिये मछली, फोर्टिफाइड मिल्क, सोया मिल्क, संतरे का रस और अंडे की जर्दी का सेवन किया जा सकता है.

प्रोटीन भी हड्डियों के लिए जरूरी होता है. यदि हड्डियों में कम प्रोटीन हो तो हड्डियां कैल्शियम को सही तरह से अवशोषित नहीं कर पाती हैं. प्रोटीन हड्डियों को बनाने और हड्डियों को टूटने से रोकने में मदद करता है, इसलिए हड्डियों में कैल्शियम के प्रवाह को बढ़ाने के लिए प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करना चाहिए .

हड्डियों के लिए ओमेगा -3 फैटी एसिड भी आवश्यक होते हैं . ओमेगा -3 फैटी एसिड हड्डियों की समस्याओं को कम करने तथा नई हड्डियों के निर्माण में मदद करते हैं. इन फैटी एसिड में एंटी इंफ्लेमेटरी प्रभाव होता है. इसलिए अपने भोजन में जो ओमेगा -3 फैटी एसिड युक्त आहार जैसे अखरोट, अलसी और चिया सीड्स को अवश्य शामिल करना चाहिए.

इसके बाद भी यदि हाथों, पैरों विशेषकर जोड़ों में समस्या प्रतीत हो तो चिकित्सक से परामर्श बहुत जरूरी है. इसक अतिरिक्त 35 वर्ष के बाद महिलाओं तथा पुरुषों , दोनों को नियमित अंतराल पर हड्डियों के स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिये बोन डेनसिटी की जांच अवश्य करानी चाहिए.

पढ़ें: असंतुलित जीवनशैली और खानपान बढ़ा रहें हैं अर्थराइटिस की समस्या

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