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ऑनलाइन मीटिंग और कक्षाओं ने बढ़ाई एडीएचडी पीड़ितों के लिए समस्या - mental disorder

कोविड-19 के दौरान दफ्तर, सामाजिक व पारिवारिक समारोह, स्कूल सभी कुछ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, वीडियो कॉल तक सीमित था. इस इन-पर्सन से वर्चुअल ह्यूमन इंटरेक्शन के चलते एडीएचडी पीड़ितों को ऑनलाइन मीटिंग और स्कूल के दौरान कड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा.

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एडीएचडी
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Published : Sep 25, 2021, 4:43 PM IST

कोविड 19 की शुरुआत से लेकर अब तक, लगभग अधिकांश मीटिंग तथा स्कूल वर्चुअल पटल पर चल रहे हैं जिसके चलते बड़ी संख्या में लोग दिन में कई घंटे वीडियो कॉल पर बिताते हैं. चूंकि वीडियो कॉल में व्यक्तिगत बैठकों की तुलना में अधिक एकाग्रता और फोकस की आवश्यकता होती है,ऐसे में ऐसे लोग जो अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) से पीड़ित हैं , उन्हे इस जीवनशैली के साथ सामंजस्य बैठने में काफी परेशानियों का सामना करना पड रहा है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (NIMH) के अनुसार, एडीएचडी वाले लोगों को अपना ध्यान नियंत्रित करने में कठिनाई होती है. वे आवेगपूर्ण तरीके से कार्य करते हैं, और उनमें लगातार बेचैनी हो सकती हैं. वहीं अनलाइन मीटिंग या कक्षाओं में ज्यादा देर तक एक स्थान पर बैठकर ध्यान केंद्रित करना होता है , जो उनके लिए कठिन हो सकता है.

आमतौर पर एडीएचडी के लक्षण तीन श्रेणियों में माना जाता हैं. जो इस प्रकार हैं.

  • असावधानी: ऐसे लोग आसानी से विचलित हो सकते हैं, अव्यवस्थित दिखाई दे सकते हैं और उन्हे लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो सकती है.
  • अति सक्रियता: एडीएचडी पीड़ितों को स्थिर रहने में परेशानी होती है. वे फिजूलखर्ची भी कर सकते हैं और बहुत बात भी कर सकते हैं.
  • आवेग: जब लोगों में आवेगी लक्षण होते हैं, तो वे अपने कार्यों के बारे में सोचे बिना जल्दबाजी में कार्य करते हैं.

ये लक्षण ध्यान और निर्णय लेने के व्यवहार को प्रभावित करते हैं. इस वजह से, एडीएचडी वाले लोग वीडियो कॉल पर लोगों के साथ बातचीत करने में अधिक समय बिताने के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं. ऐसे में लगातार वर्चुअल मीटिंग्स एडीएचडी वाले लोगों को अधिक थका हुआ महसूस करा सकती है, क्योंकि इस दौरान उन्हे लगातार एकाग्रता बनाए रखने की कोशिश करनी पड़ती है.

बच्चों में चुनौतियां

जर्नल ऑफ एडोलसेंट हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पता लगाने का प्रयास किया गया है की एडीएचडी पीड़ित बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा कैसे प्रभावित करती है.इस शोध में पाया गया कि एडीएचडी वाले बच्चों को सामान्य बच्चों की तुलना में ऑनलाइन कक्षाओं में ज्यादा कठिनाई होती है. शोध में प्रतिभागी एडीएचडी वाले अधिकांश बच्चों के माता-पिता ने इसकी सूचना दी है. शोध में पाया गया की कक्षाओं के दौरान एडीएचडी वाले बच्चों को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता सकता है .

  • सामान्य से अधिक समय तक बैठे रहना
  • सामूहिक गतिविधि के कम अवसर होना
  • उत्साह और विविधता की कमी के कारण आसानी से ऊब जाना
  • दोस्तों के साथ बातचीत करना मुश्किल होना
  • एक ही वातावरण में होमवर्क और स्कूल का काम पूरा करते समय ध्यान केंद्रित करने के लिए संघर्ष करना

वयस्कों में चुनौतियां

शोध में माना गया की एडीएचडी वाले वयस्कों पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के प्रभावों को लेकर हालांकि बहुत कम शोध हुआ है, लेकिन यह जाहिर है की उनके व बच्चों के लक्षण काफी हद तक समान है. एडीएचडी वाले वयस्कों को इस अवस्था में जिन समान चुनौतियों का अनुभव हो सकता है, वह इस प्रकार हैं.

  • स्थिर बैठने में कठिनाई होना
  • कॉल पर लोगों को बाधित करना
  • लंबे समय तक सुनना
  • लंबे समय तक आंखों से संपर्क बनाए रखने के लिए संघर्ष करना
  • अत्यधिक उत्तेजना महसूस करना
  • फिजूलखर्ची करना, टैप करना और इधर-उधर घूमना

कैसे करें प्रबंधन

शोध का नतीजों में बताया गया है की एडीएचडी पीड़ित, लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए कुछ विशेष रणनीतियों को अपना सकते हैं. जैसे अभिभावक विशेषतौर पर बच्चों के लिए जितना हो सके तनावमुक्त व्यवहार बनाने की कोशिश कर सकते हैं. साथ ही वे पढ़ने की जगह को व्यवस्थित कर सकते हैं. इसके अलावा दिन को सीखने के वर्गों में बांटना तथा दिनचर्या में नियमित ब्रेक शामिल करना भी फायदेमंद होता है.

यदि बच्चे एडीएचडी के लिए दवा ले रहे हैं, तो उनके माता-पिता को अपने बच्चे के व्यवहार की निगरानी करनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर अपनी उपचार योजना को अपडेट करने के लिए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

वहीं एडीएचडी वाले वयस्क लोग बेचैनी की भावना को कम करने के लिए स्पान्ज बॉल का सहारा ले सकते हैं या घूमने वाली कुर्सी पर बैठ सकते हैं. इसके अतिरिक्त एक फिजेट क्यूब का उपयोग भी बैचेनी को कम करने में मददगार हो सकता है. यदी संभव हो बैठक को टेलीविजन या बड़े मॉनिटर पर रखना चाहिए, जिससे इस दौरान कमरे में घूमा जा सके.

शोधकर्ता बताते हैं की इस अवस्था से जूझने के लिए एडीएचडी वाले लोग डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के साथ उपचार योजना पर चर्चा कर सकते हैं. इसमें दवा, मनोचिकित्सा, और पूरक स्वास्थ्य रणनीतियां शामिल हो सकती हैं.

पढ़ें: सिर्फ 10% बच्चों में बड़े होने पर भी नजर आते हैं एडीएचडी के लक्षण

कोविड 19 की शुरुआत से लेकर अब तक, लगभग अधिकांश मीटिंग तथा स्कूल वर्चुअल पटल पर चल रहे हैं जिसके चलते बड़ी संख्या में लोग दिन में कई घंटे वीडियो कॉल पर बिताते हैं. चूंकि वीडियो कॉल में व्यक्तिगत बैठकों की तुलना में अधिक एकाग्रता और फोकस की आवश्यकता होती है,ऐसे में ऐसे लोग जो अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) से पीड़ित हैं , उन्हे इस जीवनशैली के साथ सामंजस्य बैठने में काफी परेशानियों का सामना करना पड रहा है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ (NIMH) के अनुसार, एडीएचडी वाले लोगों को अपना ध्यान नियंत्रित करने में कठिनाई होती है. वे आवेगपूर्ण तरीके से कार्य करते हैं, और उनमें लगातार बेचैनी हो सकती हैं. वहीं अनलाइन मीटिंग या कक्षाओं में ज्यादा देर तक एक स्थान पर बैठकर ध्यान केंद्रित करना होता है , जो उनके लिए कठिन हो सकता है.

आमतौर पर एडीएचडी के लक्षण तीन श्रेणियों में माना जाता हैं. जो इस प्रकार हैं.

  • असावधानी: ऐसे लोग आसानी से विचलित हो सकते हैं, अव्यवस्थित दिखाई दे सकते हैं और उन्हे लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो सकती है.
  • अति सक्रियता: एडीएचडी पीड़ितों को स्थिर रहने में परेशानी होती है. वे फिजूलखर्ची भी कर सकते हैं और बहुत बात भी कर सकते हैं.
  • आवेग: जब लोगों में आवेगी लक्षण होते हैं, तो वे अपने कार्यों के बारे में सोचे बिना जल्दबाजी में कार्य करते हैं.

ये लक्षण ध्यान और निर्णय लेने के व्यवहार को प्रभावित करते हैं. इस वजह से, एडीएचडी वाले लोग वीडियो कॉल पर लोगों के साथ बातचीत करने में अधिक समय बिताने के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं. ऐसे में लगातार वर्चुअल मीटिंग्स एडीएचडी वाले लोगों को अधिक थका हुआ महसूस करा सकती है, क्योंकि इस दौरान उन्हे लगातार एकाग्रता बनाए रखने की कोशिश करनी पड़ती है.

बच्चों में चुनौतियां

जर्नल ऑफ एडोलसेंट हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पता लगाने का प्रयास किया गया है की एडीएचडी पीड़ित बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा कैसे प्रभावित करती है.इस शोध में पाया गया कि एडीएचडी वाले बच्चों को सामान्य बच्चों की तुलना में ऑनलाइन कक्षाओं में ज्यादा कठिनाई होती है. शोध में प्रतिभागी एडीएचडी वाले अधिकांश बच्चों के माता-पिता ने इसकी सूचना दी है. शोध में पाया गया की कक्षाओं के दौरान एडीएचडी वाले बच्चों को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ता सकता है .

  • सामान्य से अधिक समय तक बैठे रहना
  • सामूहिक गतिविधि के कम अवसर होना
  • उत्साह और विविधता की कमी के कारण आसानी से ऊब जाना
  • दोस्तों के साथ बातचीत करना मुश्किल होना
  • एक ही वातावरण में होमवर्क और स्कूल का काम पूरा करते समय ध्यान केंद्रित करने के लिए संघर्ष करना

वयस्कों में चुनौतियां

शोध में माना गया की एडीएचडी वाले वयस्कों पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के प्रभावों को लेकर हालांकि बहुत कम शोध हुआ है, लेकिन यह जाहिर है की उनके व बच्चों के लक्षण काफी हद तक समान है. एडीएचडी वाले वयस्कों को इस अवस्था में जिन समान चुनौतियों का अनुभव हो सकता है, वह इस प्रकार हैं.

  • स्थिर बैठने में कठिनाई होना
  • कॉल पर लोगों को बाधित करना
  • लंबे समय तक सुनना
  • लंबे समय तक आंखों से संपर्क बनाए रखने के लिए संघर्ष करना
  • अत्यधिक उत्तेजना महसूस करना
  • फिजूलखर्ची करना, टैप करना और इधर-उधर घूमना

कैसे करें प्रबंधन

शोध का नतीजों में बताया गया है की एडीएचडी पीड़ित, लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए कुछ विशेष रणनीतियों को अपना सकते हैं. जैसे अभिभावक विशेषतौर पर बच्चों के लिए जितना हो सके तनावमुक्त व्यवहार बनाने की कोशिश कर सकते हैं. साथ ही वे पढ़ने की जगह को व्यवस्थित कर सकते हैं. इसके अलावा दिन को सीखने के वर्गों में बांटना तथा दिनचर्या में नियमित ब्रेक शामिल करना भी फायदेमंद होता है.

यदि बच्चे एडीएचडी के लिए दवा ले रहे हैं, तो उनके माता-पिता को अपने बच्चे के व्यवहार की निगरानी करनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर अपनी उपचार योजना को अपडेट करने के लिए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

वहीं एडीएचडी वाले वयस्क लोग बेचैनी की भावना को कम करने के लिए स्पान्ज बॉल का सहारा ले सकते हैं या घूमने वाली कुर्सी पर बैठ सकते हैं. इसके अतिरिक्त एक फिजेट क्यूब का उपयोग भी बैचेनी को कम करने में मददगार हो सकता है. यदी संभव हो बैठक को टेलीविजन या बड़े मॉनिटर पर रखना चाहिए, जिससे इस दौरान कमरे में घूमा जा सके.

शोधकर्ता बताते हैं की इस अवस्था से जूझने के लिए एडीएचडी वाले लोग डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के साथ उपचार योजना पर चर्चा कर सकते हैं. इसमें दवा, मनोचिकित्सा, और पूरक स्वास्थ्य रणनीतियां शामिल हो सकती हैं.

पढ़ें: सिर्फ 10% बच्चों में बड़े होने पर भी नजर आते हैं एडीएचडी के लक्षण

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