यूं तों मोटापे से होने वाली बीमारियों और उसके चलते सामान्य बीमारियों में भी जोखिम के बढ़ने की आशंका को लेकर कई शोध किए जा चुके हैं, लेकिन हाल ही में जर्नल आफ डेंटल रिसर्च (Journal of Dental Research) में प्रकाशित यूनिवर्सिटी आफ बफलो (University of Buffalo) के विज्ञानियों के एक शोध में सामने आया है कि मोटापे के कारण शरीर में होने वाली क्रानिक सूजन या इंफ्लेमेशन का प्रभाव हमारे बोन उतक पर भी पड़ता है. साथ ही शरीर में अस्थि ऊतकों को नुकसान पहुंचने वाली कोशिकाओं का विकास तेजी से होने लगता है. इसका असर दांतों व मसूड़ों के टिश्यू पर पड़ता है, जिससे उनमें बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.
सूजन से बढ़ सकती हैं एमडीएससी में ओस्टियोक्लास्ट कोशिकाएं
शोध में वैज्ञानियों ने एनिमल माडल पर परीक्षण किया था, जिसमें सामने आया कि मोटापे के कारण शरीर में ज्यादा इंफ्लेमेशन यानी सूजन बढ़ जाने से माइलॉयड-व्युत्पन्न शमन कोशिकाओं (एमडीएससी /MDSC) की संख्या बढ़ जाती है.
दरअसल एमडीएससी हमारी प्रतिरक्षा कोशिकाओं यानी इम्यून सेल्स का एक समूह होता है, जो बीमार होने पर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करता है. मोटापे की समस्या होने पर हमारी बोन मैरो यानी अस्थि मज्जा में माइलॉयड-व्युत्पन्न शमन कोशिकाओं में ओस्टियोक्लास्ट कोशिकायें विकसित होने लगती हैं. ओस्टियोक्लास्ट वे कोशिकायें होती हैं जो हमारे बोन टिश्यू को विखंडित यानी तोड़ने का कार्य करती हैं. परिणाम स्वरूप दांतों व मसूड़ों में रोग की आशंका बढ़ जाती है.
वैसे भी मसूड़ों की बीमारी हड्डियों में कमजोरी के प्रमुख लक्षणों में से एक है. अमेरिकी सेंटर्स फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) की माने तो 30 साल या इससे ज्यादा उम्र के लगभग 47 प्रतिशत से ज्यादा लोग मसूड़ों की बीमारी से पीड़ित होते हैं.
इस शोध में यूबी स्कूल आफ डेंटल मेडिसिन (UB School of Dental Medicine) में ओरल बायोलाजी के प्रोफेसर तथा शोधकर्ता कैथ किर्कवुड ने बताया है कि मोटापा और पीरियडोंटल डिजीज के बीच सीधा संबंध होने के बावजूद अभी तक इस संबंध में बहुत ज्यादा जानकारियां उपलब्ध नहीं हैं. गौरतलब है कि पीरियडोंटल डिजीज उन रोगों को कहते हैं जो मुख्य रूप से दांतों और मसूड़ों को जकड़ कर रखने वाली हड्डियों में संक्रमण तथा सूजन के परिणाम के चलते उत्पन्न होते हैं.
शोध में यूबी डिपार्टमेंट आफ ओरल बायोलाजी के ही सहायक शोधकर्ता क्यूहवान क्वाकी ने बताया कि इस शोध से मोटापे की स्थिति में एमडीएससी के बढ़ने तथा पीरियोडोंटिस के दौरान ओस्टियोक्लास्ट को लेकर ज्यादा जानकारियां मिली है. जिनके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मोटापे से पीरियडोंटल बोन लास का जोखिम बढ़ता है.
एनिमल मॉडल पर हुआ परीक्षण
इस शोध के तहत चूहों पर परीक्षण किया गया था. जिसके चलते चूहों को दो वर्गों में बांट कर उन्हे 16 सप्ताहों तक अलग-अलग आहार दिए गए थे. परीक्षण के दौरान एक वर्ग के चूहों को ऐसे कम वसायुक्त आहार दिये गए, जिसमें 10 प्रतिशत तक ऊर्जा हासिल की जा सके. वहीं दूसरे वर्ग वाले चूहों को अधिक वसायुक्त आहार दिया गया था , जिससे उन्हें कम से कम 45 प्रतिशत तक ऊर्जा मिले. परीक्षण के निष्कर्षों में देखा गया कि ज्यादा वसा वाला आहार ग्रहण करने वाले वर्ग में चूहों में मोटापा बढ़ने के साथ ही शरीर में सूजन में वृद्धि हुई थी, जिसके चलते उनके बोन मैरो व स्प्लीन (प्लीहा) में एमडीएससी की संख्या में भी ज्यादा वृद्धि हुई थी. इस समूह में चूहों में ओस्टियोक्लास्ट कोशिकाओं में भी बढ़ोतरी देखी गई. साथ ही चूहों में उन हड्डियाँ में भी कमजोरी देखी गई थी जो दांतों व मसूड़ों को अपनी जगह जकड़ कर रखने का कार्य करती हैं. इतना ही नहीं, मोटापे से पीड़ित चूहों में ओस्टियोक्लास्ट से जुड़े 27 जीन ज्यादा सक्रिय रूप में नजर आए.
शोधकर्ता किर्कवुड ने शोध के निष्कर्षों के बारे में जानकारी देते हुए उम्मीद जताई है कि इस शोध के माध्यम से मोटापे के चलते शरीर में होने वाली सूजन यानी इंफ्लेमेशन से अर्थराइटिस तथा हड्डियों संबंधी अन्य रोगों के ट्रिगर होने तथा सूजन व रोग के आपसी संबधों के बारें में ज्यादा जानकारी मिल पाएगी.