नई दिल्लीः धूम्रपान के कारण न सिर्फ धूम्रपान करने वाले लोग, बल्कि उनके आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों के बारे में, लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल मार्च माह के दूसरे बुधवार को नो स्मोकिंग डे मनाया जाता है. इस वर्ष यह दिवस 8 मार्च 2023 को 'हमें भोजन चाहिए, तंबाकू नहीं’ थीम पर मनाया जा रहा है. धूम्रपान एक ऐसी लत है जिसके कारण स्वास्थ्य पर कई प्रकार के गंभीर असर पड़ सकते हैं.
चिंता की बात यह है कि जो लोग धूम्रपान करते हैं, सिर्फ वो ही नहीं बल्कि उनके साथ ज्यादा समय बिताने वाले तथा सिगरेट के धुंए की जद में ज्यादा देर तक रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसके बेहद गंभीर प्रभाव नजर आ सकते हैं. धूम्रपान के जोखिमों से आम जन को अवगत कराने व उन्हें इस लत को छोड़ने के लिए प्रेरित करने और इसके लिए वे क्या कर सकते हैं, इसके बारें में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल मार्च माह के दूसरे बुधवार को एक विशेष थीम पर 'नो स्मोकिंग डे' मनाया जाता है. इस वर्ष यह दिवस 8 मार्च को 'हमें भोजन चाहिए, तंबाकू नहीं' थीम पर मनाया जा रहा है.
क्या कहते हैं आंकड़े ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) के मुताबिक, दुनिया के 125 देशों में तंबाकू का उत्पादन तथा दुनियाभर में हर साल 5.5 खरब सिगरेट का उत्पादन होता है. वहीं पूरी दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोग इसका सेवन करते हैं. वर्ष 2021 में मेडिकल जर्नल पत्रिका द लांसेट में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में कहा गया था कि कैंसर से संबंधित मौतों के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार कारकों में से धूम्रपान भी एक अहम कारण होता है. वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 50 लाख से अधिक व्यक्ति धूम्रपान के सेवन के कारण अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं.
संगठन की एक रिपोर्ट में इस बात की आशंका भी जताई गई है कि यदि इस समस्या को नियंत्रित करने की दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो वर्ष 2030 तक धूम्रपान के सेवन से जान गंवाने वालों की संख्या प्रतिवर्ष 80 लाख से अधिक हो जाएगी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ धूम्रपान के कारण ही नहीं बल्कि तंबाकू के अप्रत्यक्ष प्रभाव के चलते या उनसे संबंधित बीमारियों के चलते भी हर साल करीब 5 मिलियन लोगों की मौत होती है. वहीं दुनियाभर के धूम्रपान करने वाले कुल लोगों का लगभग 10% सिर्फ भारत में ही हैं. भारत में करीब 25 करोड़ लोग गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि के जरिए तंबाकू का सेवन करते हैं.
नो स्मोकिंग डे का इतिहास
नो स्मोकिंग डे मनाए जाने की शुरुआत वर्ष 1984 में ब्रिटेन में लोगों को तंबाकू के नुकसानों के बारे में जागरूक करने और उन्हें तंबाकू का सेवन करने से रोकने के लिए उपाय बताने के उद्देश्य से हुई थी. तब से यह दिन हर साल मार्च माह के दूसरे बुधवार को मनाया जाता है. नो स्मोकिंग डे की शुरुआत भले ही ब्रिटेन में हुई थी लेकिन इसकी जरूरत को देखते हुए वर्तमान में इसे भारत समेत दुनिया के कई देशों में मनाया जाने लगा है.
धूम्रपान के नुकसान
तंबाकू में दरअसल निकोटिन नाम का तत्व पाया जाता है जो आदत लगने का कारण बन सकती है साथ ही इससे शरीर को काफी नुकसान भी पहुंचता है. धूम्रपान करने की आदत एक बार अगर पड़ जाए तो इसे छोड़ना बहुत कठिन होता है. वहीं इसके रिहैबिलिटेशन या इसे छोड़ने की प्रक्रिया भी बड़ी परेशानी भरी होती है. धूम्रपान यानी सिगरेट या हुक्के आदि के कारण तंबाकू के धुंए के संपर्क में आना भी लोगों को कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार बना सकता है. इसके कारण आमतौर पर लोगों को अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया, श्वसन संबंधी रोग तथा फेफड़ों से जुड़े रोग और यहां तक की कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के होने का जोखिम रहता है. वहीं यह कई गंभीर रोगों के होने पर स्थिति के जटिल होने का कारण भी बन सकता है.
महत्व
'नो स्मोकिंग डे' ना सिर्फ धूम्रपान के चलते शरीर और वातावरण को होने वाले नुकसान के बारे में लोगों को जागरूक करने का मौका है, बल्कि यह आयोजन उन लोगों को धूम्रपान की आदत से मुक्त होने से प्रेरणा लेने का भी मौका देता है जो इस लत का शिकार हो चुके हैं. इस अवसर पर कई तरह के आयोजनों के माध्यम से इस लत को छोड़ने में मदद करने वाले चिकित्सीय व अन्य उपायों को लेकर भी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
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