हैदराबाद: रक्तदान को महादान माना जाता है, क्योंकि इस दान से आप किसी दूसरे व्यक्ति का जीवन बचा सकते हैं. परिवार में किसी व्यक्ति को जरूरत पड़ने पर रक्त दान करना एक अलग बात है, हालांकि बहुत से लोग उससे भी कतराते हैं, लेकिन किसी अनजान व्यक्ति के जीवन को बचाने के लिए रक्तदान करना बेहद सराहनीय बात होती है. वैसे तो समय-समय पर विभिन्न स्वास्थ्य व सामाजिक संस्थाएं रक्तदान शिविर लगाते रहते हैं, जहां लोग स्वेच्छा से रक्तदान कर सकते हैं.
लेकिन इनके तथा अन्य माध्यमों से भी जरूरत के अनुसार रक्त एकत्रित नहीं हो पाता है. जिसके चलते हर साल बड़ी संख्या में लोग रक्त की कमी के कारण गंभीर समस्याओं का सामना करते हैं और यहां तक कि यह कई लोगों की मृत्यु का कारण भी बन जाता है. विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों के आंकड़ों की माने तो हमारे देश में रक्तदान करने वालों का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं है.
ऐसे में 1 अक्टूबर को देशभर में मनाया जाने वाला ‘राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस’, आमजन को रक्तदान के बारे में सही जानकारी प्रदान करने तथा ज्यादा से ज्यादा लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान हेतु प्रेरित करने के लिए एक बेहतरीन तथा बेहद जरूरी मौका प्रदान करता है.
रक्तदान का महत्व
रक्तदान के आंकड़ों में कमी के लिए आमतौर पर लोगों में भ्रम, डर तथा जानकारी के अभाव को कारण माना जाता है, जो काफी हद तक सही भी है. आमतौर पर लोगों के मन में धारणा होती है कि रक्तदान करने से दान देने वाला व्यक्ति कमजोर हो सकता है, उसके शरीर में खून की कमी हो सकती है या वह कुछ अन्य बीमारियों का शिकार भी हो सकता है, जो सही नहीं है. सही तरह से मानकों के अनुसार तथा पूरी सुरक्षा के साथ रक्तदान करने से आमतौर पर रक्तदाता को किसी तरह की समस्या नहीं होती हैं.
चिकित्सकों की माने तो दान किए गए रक्त की मात्र एक यूनिट से ही लगभग तीन से चार लोगों की जान बचाई जा सकती है. लेकिन सामान्य तौर पर रक्त की जितनी इकाइयों की जरूरत होती है, उनसे बहुत कम यूनिट रक्तदान से एकत्रित हो पाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर साल लगभर एक करोड़ यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है, लेकिन विभिन्न शिविरों तथा अन्य माध्यमों से केवल लगभग 75 लाख यूनिट रक्त ही एकत्रित हो पाता है.
ऐसे में मलेरिया, डेंगू सहित कई अन्य कम या ज्यादा गंभीर रोगों व दुर्घटनाओं के इलाज में, आपरेशन, गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं तथा थैलेसिमिया सहित कई ऐसे रोगों से इलाज व उनके प्रबंधन के लिए जिनमें रक्त चढ़ाना एकमात्र विकल्प हो, ज्यादा से ज्यादा लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए प्रेरित करना बेहद जरूरी है. जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके.
उद्देश्य तथा इतिहास
राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस जीवन रक्षक उपायों का पालन करने, सुरक्षित रक्तदान के लिए लोगों को प्रेरित करने तथा आम जनता में अज्ञानता, भय और भ्रांतियों को दूर करने के उद्देश्य से हर साल 1 अक्टूबर को मनाया जाता है. इस दिन देश के स्वयंसेवी व स्वास्थ्य संगठन ना सिर्फ रक्तदान शिविरों का आयोजन करते हैं, बल्कि विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों को जागरूक व प्रेरित करने के लिए कॉलेजों, संस्थानों, क्लबों व सामुदायिक भवनों आदि में गोष्ठियों, सेमिनार तथा अन्य कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं.
राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस मनाए जाने की शुरुआत सबसे पहले 1 अक्टूबर 1975 को इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो हेमेटोलॉजी द्वारा की गई थी. गौरतलब है कि इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो हेमेटोलॉजी की स्थापना 22 अक्टूबर 1971 को श्रीमती के. स्वरूप कृष्ण और डॉ. जेजी जॉली के नेतृत्व में की गई थी.
रक्तदान से जुड़े नियम
सुरक्षित रक्तदान के लिए तथा रक्तदान के कारण रक्तदाता को कोई नुकसान ना हो इसके लिए कई मानक निर्धारित किए गए हैं. औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के अनुसार रक्त दाताओं की आयु 18 से 60 वर्ष के बीच होनी चाहिए, उनका वजन 45 किलोग्राम या उससे अधिक होना चाहिए. वहीं उनकी पल्स रेट रेंज 60 से 100/मिनट, बीपी सामान्य, एचबी 12.5 होना चाहिए. इसके अलावा उनके शरीर का तापमान 37.5 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक नहीं होना चाहिए.
वहीं ऐसे लोग जो मधुमेह, थायरॉइड, हाई ब्लड प्रेशर या रक्त से जुड़े किसी प्रकार के रोग का शिकार या जिनके शरीर में हीमोग्लोबिन नार्मल रेंज से कम हो तथा जो हेपेटाइटिस या एचआईवी जैसे गंभीर संक्रमणों के शिकार हों, उन्हें रक्तदान की अनुमति नहीं होती है.