आमतौर पर लोगों में धारणा है कि लंग कैंसर यानी फेफड़ों का कैंसर केवल उन्हीं लोगों में होता है, जो बहुत अधिक धूम्रपान करते हैं. लेकिन आंकड़ों की मानें तो पिछले कुछ सालों में ऐसे लोगों में लंग कैंसर की घटनाएं बहुत ज्यादा बढ़ी है, जो धूम्रपान से कोसों दूर रहते हैं. जिसका कारण वातावरण में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण को माना जा रहा है. अपोलो हॉस्पिटल इंद्रप्रस्थ में कार्यरत पल्मोनोलॉजी व श्वसन चिकित्सा में वरिष्ठ कंसलटेंट डॉ. सुधा कंसल के अनुसार विशेष तौर पर उत्तर भारत में वायु में प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ गया है कि लोगों में फेफड़ों के कैंसर के मामले 5 गुना तक बढ़ गए हैं, वहीं सीओपीडी और अस्थमा जैसे श्वसन तंत्र संबंधी रोगों के मामलों में इजाफा हुआ है.
वातावरण में बढ़ता प्रदूषण
अपोलो हॉस्पिटल इंद्रप्रस्थ के विशेषज्ञों के अनुसार पिछले कुछ सालों में सर्दियां के मौसम में विशेषकर नवंबर से जनवरी माह तक हवा में आमतौर स्मोग की घटनाएं नजर आती हैं, स्मोग यानी प्रदूषण वाला कोहरा. डॉ. सुधा बताती हैं कि हमारे वातावरण में प्रदूषण इतना फैल गया है कि उसका लोगों के शरीर पर उतना ही असर पड़ता है, जितना प्रतिदिन 70 सिगरेट पीने के बाद लोगों के शरीर पर पड़ता है. जिसके चलते लोगों में सीओपीडी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस तथा अन्य प्रकार के गंभीर श्वसन रोग फैलने की आशंका रहती है.
भारत में तीसरा सबसे कॉमन कैंसर बना लंग कैंसर
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार लंबे समय तक प्रदुषण युक्त वायु में सांस लेने से लोगों के शरीर में कार्सिनोजेनिक यानी ऐसे तत्व जो कैंसर जैसे रोग को बढ़ावा देते हैं, पनपने लगते हैं. वायु में लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण भारत में लंग कैंसर को पेट और ब्रेस्ट कैंसर के बाद लोगों में होने वाला सबसे कॉमन कैंसर माना गया है. पहले के समय जहां तंबाकू के सेवन और धूम्रपान को ज्यादातर लंग कैंसर के लिए जिम्मेदार माना जाता था. वहीं पिछले एक दशक में ऐसे लोग विशेषकर महिलाएं, जो कि धूम्रपान और तंबाकू से दूर रहती हैं, उनमें फेफड़ों के कैंसर की घटनाएं लगभग 50 फीसदी तक बढ़ गई हैं.
डीएनए को प्रभावित करते हैं प्रदूषण
डॉक्टर कंसल बताती हैं कि हमारे वातावरण को प्रभावित या प्रदूषित करने के लिए दो तत्व विशेष रूप से जिम्मेदार होते हैं, वह है ओजोन और प्रदूषण के कण. इस पर व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करने में प्रदूषण के कण का आकार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यदि वातावरण में प्रदूषण के कण का आकार 2.5 माइक्रोन से ज्यादा बड़ा हो जाता है, तो यह सीधे-सीधे लंग कैंसर के लिए जिम्मेदार बनता है. जैसे ही प्रदुषण के छोटे-छोटे पार्टिकल मनुष्य के शरीर में प्रवेश करते हैं, तो ज्यादातर मामलों में उसके डीएनए को प्रभावित करते हैं. जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति में कैंसर की आशंका बढ़ जाती है. विशेषज्ञों की मानें तो, यह प्रदूषण के कण ना सिर्फ शरीर में कैंसर की आशंका को बढ़ाते हैं, बल्कि सीधे-सीधे तौर पर शरीर के लगभग सभी अंगों और उनके कार्यों को प्रभावित करते हैं.
प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर
वायु प्रदूषण के बढ़ने से ना सिर्फ हमारे श्वसन तंत्र पर असर पड़ता है और लंग कैंसर की आशंका बढ़ती है, बल्कि हमारे तंत्रिका तंत्र को भी काफी नुकसान पहुंचता है. इसके अतिरिक्त सीओपीडी रोग, कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं, नाक, कान, गले संबंधी समस्याएं तथा रोग, थकान, तथा सिर में दर्द की समस्याएं भी बढ़ने की आशंका रहती है.