लगातार उन्नत होती चिकित्सा पद्धति का नतीजा है कि बांझपन एक लाइलाज रोग नहीं रह गया है. हमारे चिकित्सा जगत में ऐसे बहुत से उपचार और पद्धतियां हैं, जिनकी मदद से बहुत से संतानहीन दंपत्ति संतान सुख प्राप्त कर चुके हैं. लेकिन यह उपचार हमेशा सफल रहे यह जरूरी नहीं हैं, वहीं संतानोत्पत्ति के लिए अपनाए जाने वाले ज्यादातर उपचार तथा पद्धतियां लंबी चलने वाली तथा महंगी प्रक्रिया होती हैं. इसलिए बहुत जरूरी होता है कि इन उपचारों के जरिए संतानोत्पत्ति के लिए प्रयास करने वाले लोग पूरी प्रक्रिया के दौरान धैर्य तथा संयम बनाए रखें.
बांझपन के निस्तारण के लिए जरूरी जांचों और विभिन्न उपचारों के बारे में गायनेकोलॉजिस्ट तथा बांझपन विशेषज्ञ डॉक्टर पूर्वा सहकारी ने ETV भारत सुखीभवा की टीम को विस्तार से जानकारी दी.
किसी भी उपचार से पहले संपूर्ण तथा विस्तृत जांच जरूरी
डॉक्टर पूर्वा बताती हैं की संतानोत्पत्ति के लिए माता तथा पिता दोनों ही जिम्मेदार होते हैं, ऐसे में संतानोत्पत्ति में किसी भी प्रकार की समस्या होने पर महिला तथा पुरुष दोनों को चिकित्सक की सलाह लेकर अपनी संपूर्ण शारीरिक जांच करानी चाहिए. महिलाओं में आमतौर पर देखा गया है कि 30 वर्ष की आयु के उपरांत उनमें संतानोत्पत्ति की क्षमता धीरे-धीरे कम होने लगती है. इसलिए 30 वर्ष की आयु के उपरांत यदि महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो उन्हें तुरंत चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए.
डॉक्टर पूर्वा बताते हैं की ऐसी अवस्था में सर्वप्रथम रक्त जांच के माध्यम से महिलाओं के हार्मोनल स्वास्थ्य तथा पेट का अल्ट्रासाउंड कर तथा एचएसजी टेस्ट (हिस्टेरोसलपिंगोग्राफी) के माध्यम से महिलाओं के जनन अंगों के स्वास्थ्य की जानकारी ली जाती है.
वहीं पुरूषों में बांझपन का कारण जानने के लिए उनके खून की जांच, सीमेन की जांच तथा जनन अंगों के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए अल्ट्रासाउंड कराया जाता है.
बांझपन के लिए प्रचलित उपचार
डॉक्टर पूर्वा बताती हैं कि वर्तमान समय में बांझपन ऐसा रोग नहीं है, जो ठीक ना हो सके, लेकिन ऐसा भी जरूरी नहीं है कि हर उपचार का नतीजा सकारात्मक निकले. बहुत से दंपत्ति तमाम उपचारों के बाद भी संतानोत्पत्ति में सफल नहीं हो पाते हैं, हालांकि यह आंकड़ा अपेक्षाकृत काफी कम है. बांझपन की समस्या के निस्तारण के लिए चिकित्सक आवश्यकता अनुरूप सर्जरी तथा दवाइयों दोनों का सहारा लेते हैं. जैसे महिलाओं की ट्यूब्स में यदि अवरोध हो या फिर वह गर्भाशय सेप्टम जैसे संरचनात्मक विकार तथा एंडोमेट्रियोसिस जैसी समस्या है, तो उन्हें सर्जरी के लिए सुझाव दिया जाता है. हालांकि वर्तमान समय में चिकित्सक सहूलियत को ध्यान में रखते हुए लेप्रोस्कोपी और हिस्ट्रोस्कोपी को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं. वहीं पुरुषों में वैरीकोसेल यानी अंडकोष की नसों में सूजन होने की स्थिति में चिकित्सक समस्या की गंभीरता को देखते हुए सर्जरी की सलाह देते है. यदि संभव हो तो चिकित्सक दवाइयों की मदद से समस्या को दूर करने का प्रयास करते हैं.
गर्भधारण के लिए कुछ प्रचलित उपचार इस प्रकार हैं;
अंडोत्सर्ग यानी ओव्यूलेशन इंडक्शन
यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें चिकित्सक दवाइयों के माध्यम से महिलाओं और पुरुषों के शरीर को अंडोत्सर्ग स्थापना के लिए तैयार करने का प्रयास करते हैं. इस प्रक्रिया में दवाइयों के साथ ही निर्धारित समय पर संसर्ग प्रक्रिया को निर्देशित कर गर्भधारण के अवसर को बढ़ाया जाता है.
इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन
साधारण भाषा में आईयूआई के नाम से प्रचलित यह प्रक्रिया कृत्रिम इनसेमिनेशन का एक प्रकार है. इस चिकित्सा पद्धति के तहत गर्भधारण के लिए दान किए गए शुक्राणुओं की मदद ली जाती है. यह एक साधारण प्रक्रिया है, जिसमें महिला के गर्भाशय में दान किए गए स्वस्थ शुक्राणुओं को प्रत्यारोपित किया जाता है, जो महिलाओं के अंडों के साथ निषेचन कर गर्भधारण की प्रक्रिया को सरल बनाते हैं.
इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन ( आईवीएफ)
आईवीएफ एक बहुत ही प्रसिद्ध तथा प्रचलित चिकित्सा पद्धति है. इस पद्धति में स्त्री के अंडे और पुरुष शुक्राणु को शरीर के बाहर फर्टीलाइज किया जाता है. फर्टीलाइजेशन प्रक्रिया लैब के अंदर एक ग्लास पेट्री डिश में की जाती है. इस भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है, ताकि वह बड़ा हो और शिशु का अकार ले. आमतौर पर आईयूआई पद्धति के असफल होने पर आईवीएफ का सहारा लिया जाता है.
सरोगेसी
जिन महिलाओं के गर्भाशय या अंडाशय में कोई समस्या होती है या किसी अन्य कारण से वह मां बनने में असक्षम होती है, सरोगेसी यानी किराए की कोख के जरिए वह मां बनने का सुख प्राप्त कर सकती है. सरोगेसी दो प्रकार की होती है- एक ट्रेडिशनल सरोगेसी और दूसरी जेस्टेशनल सरोगेसी.
ट्रेडिशनल सरोगेसी में पिता के शुक्राणुओं को एक अन्य महिला के अंडाणुओं के साथ निषेचित किया जाता है. इसमें जेनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है, जबकि जेस्टेशनल सरोगेसी में माता-पिता के अंडाणु व शुक्राणुओं का मेल परखनली विधि से करवा कर भ्रूण को सरोगेट मदर की बच्चेदानी में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इसमें बच्चे का जेनेटिक संबंध माता-पिता दोनों से होता है.
कुछ भाग्यशाली लोग दो से तीन बार प्रयास करने के बाद गर्भधारण की खुशी हासिल कर लेते हैं. हर कोई इस मामले में भाग्यशाली हो यह संभव नहीं है. कई लोग बार-बार उपचार के बावजूद माता-पिता बनने में सक्षम नहीं हो पाते हैं. इसलिए बहुत जरूरी है कि इस प्रकार के उपचारों को अपनाने से पहले लोग नतीजों के लिए पहले से स्वयं को तैयार कर लें तथा पूरी प्रक्रिया के दौरान धैर्य तथा संयम बनाए रखें.
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डॉ. पूर्वा सहकारी से purvapals@yahoo.co.in पर संपर्क किया जा सकता हैं.