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वर्ष 2020 में मानसिक रोगियों की संख्या में दोगुना इजाफा - Kushal Punjabi suicide

वर्ष 2020 एक ऐसा साल रहा, जिससे सालों-साल लोग डर के साथ याद रखेंगे. इस साल पूरी दुनिया कोरोना महामारी के साथ एक जुट होकर युद्ध करती नजर आई. एक ओर जहां इस साल कई लोगों ने कोरोनावायरस के संक्रमण के चलते जान गवाई, वहीं पूरी दुनिया में शायद ही कुछ प्रतिशत लोग होंगे, जिनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर ना पड़ा हो. डब्ल्यूएचओ की माने तो वैसे ही सामान्य अवस्था में हर पांचवा भारतीय किसी ना किसी मानसिक समस्या या अवस्था से जूझ रहा होता है, ऐसे में कोरोना के कारण हर उम्र और वर्ग के लोगों में विभिन्न मानसिक समस्याओं ने दोगुना प्रभाव डाला. वर्ष 2020 में कौन- कौन से मानसिक रोगों ने सामान्य जन को प्रभावित किया, ETV भारत सुखीभवा की टीम अपने पाठकों के साथ साझा कर रही है.

mental patients
मानसिक स्वास्थ्य
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Published : Dec 25, 2020, 8:01 AM IST

मानसिक स्वास्थ्य के नजरिए से देखा जाए तो वर्ष 2020 एक काला साल रहा, क्योंकि मुख्यतः कोविड-19 चलते उत्पन्न परिस्थितियों और उनसे उत्पन्न अवसाद, दबाव और चिंताओं के चलते बहुत से लोगों ने अपने जीवन आत्महत्या करके समाप्त कर ली. इस साल निराशा, तनाव और अवसाद के बेहिसाब मामले दर्ज हुए. वहीं लॉकडाउन के कारण मानसिक रोगियों की दवाइयों की सप्लाई में कमी के कारण भी डिमेंशिया, अल्जाइमर तथा पर्किनसन जैसी बीमारियों के मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. इनके अलावा भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली घरेलू हिंसा तथा पारिवारिक कलह जैसे मामले को लेकर भी मनोचिकित्सकों से बड़ी संख्या में सलाह मांगी गई. इस साल जिन मानसिक रोगों और अवस्थाओं ने सबसे ज्यादा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया, उनमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं;

तनाव, अवसाद के मामलों में बेहिसाब बढ़ोतरी

साल की शुरुआत से ही जैसे कोरोना वायरस के फैलने की सूचनाएं लोगों में प्रसारित होने लगी तथा वायरस के संक्रमण की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया गया, तो स्वास्थ्य और आर्थिक अवस्था, दोनों को लेकर लोगों के मन में चिंताए बढ़ने लगी. इसके अलावा कोरोना के दौरान लॉकडाउन के चलते घर में बंद लोग जेल जैसा महसूस करने लगे. इन सब बातों और परिस्थितियों के कारण लोगों में मानसिक अवसाद के मामले तेजी से बढ़ने लगे.

इस संक्रमण के पीड़ितों में भी बड़ी संख्या में अवसाद के मामले देखने में आए. भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान इस बीमारी से पीड़ित लगभग 30 फीसदी लोग अवसाद या डिप्रेशन का शिकार हुए हैं.

इसके अलावा तालाबंदी के कारण घर में रहने को मजबूर लोगों में भी बड़ी संख्या में आपसी असहमती के चलते पारिवारिक कलह और घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई. जिनसे लोगों में तनाव व अवसाद की घटनाएं भी बढ़ गई.

यही नहीं बच्चों में भी इस वर्ष अवसाद और तनाव के काफी ज्यादा मामले देखने में आए. बच्चों और टीनेजर्स में स्कूल कॉलेज बंद होने के कारण घर में होने वाली ऑनलाइन कक्षाओं के चलते बढ़ते दबाव, पूरा समय घर पर ही रहने की मजबूरी, और कोरोना के कारण होने वाली चिंता, बैचनी और डर के कारण तनाव और अवसाद उत्पन्न हुआ. यह स्थिति इतनी चिंतनीय रही की कई राज्य सरकारों ने पहल कर बच्चों के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग सेशन की भी शुरुआत की.

आत्महत्या के मामले बढ़े

आंकड़ों की माने तो हर साल विश्व में लगभग 8 लाख लोग तथा अपने देश में लगभग 2 से 3 लाख लोग आत्महत्या करते हैं. वर्ष 2020 में यदि किसी एक मानसिक अवस्था ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह है आत्महत्या के मामले. इस वर्ष आत्महत्या करने वालों की संख्या में दोगुनी से काफी अधिक बढ़ोत्तरी हुई. अवसाद, निराशा तथा अनिश्चितता की चपेट में आकार इस साल बड़ी संख्या में लोगों ने आत्महत्या कर मौत को गले लगा लिया, इन लोगों में कुछ बहुत ही चर्चित फिल्मी और टीवी जगत के सितारे भी शामिल रहे.

आमतौर पर आत्महत्या करने वाले लोगों में ज्यादातर 18 से 35 की उम्र वाले लोग शामिल रहे हैं, लेकिन इस वर्ष बड़ी संख्या में हर उम्र के लोगों ने अपनी जान गवाई. आत्महत्या के मामलों में इजाफे को देखते हुए राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर कई मनोचिकित्सकों ने एक जुट होकर आत्महत्या जैसा कदम उठाने से लोगों को बचाने के लिए ऑनलाइन मदद तथा मनोचिकित्सीय सलाह देने की शुरुआत की.

अल्जाइमर, तथा पर्किनसन के रोगियों की हालत ज्यादा बिगड़ी

इस वर्ष लॉकडाउन के कारण लंबे अरसे वाली दवाइयों तथा अन्य जरूरी चिकित्सीय सुविधाओं का अभाव रहा. जिसके कारण अल्जाइमर, सिजोफ्रेनिया, डिमेंशिया तथा पर्किनसन जैसे रोग, जिनमें नियमित दवाइयों का सेवन करना होता है, के मरीजों को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ा. इसके अतिरिक्त लंबे समय तक तालाबंदी के कारण मनोचिकित्सीय संस्थाओं के बंद होने तथा दवाइयों की आपूर्ति ना होने के कारण भी ऐसे रोगियों के उपचार की प्रक्रिया में काफी समस्याएं सामने आई.

अनिद्रा यानि इनसोमेनिया के मामले बढ़े

वैश्विक महामारी कोरोना के चलते लोगों में घर, कार्यस्थल और निजी जीवन में बढ़े तनाव के कारण हर उम्र के लोगों में अनिन्द्रा या इन्सोम्निया की समस्या बड़े पैमाने पर देखने सुनने में आई. आंकड़ों की माने तो वर्ष 2020 में अनिद्रा के मरीजों की संख्या 10 फीसदी से बढ़कर 33 प्रतिशत से ज्यादा हो गई है.

कई तरह के फोबिया बढ़े

कारण चाहे कोई भी हो, इस वर्ष तमाम विपरीत परिस्थितियों के कारण लोगों में विभिन्न प्रकार के फोबिया होने जैसी समस्याएं भी देखने में आई, फिर चाहे बीमारी से बचने के लिए सेनेटाइजेशन से जुड़ी प्रक्रिया का फोबिया हो या कोरोना काल में घर से बाहर निकलने को लेकर होने वाला डर.

मानसिक स्वास्थ्य के नजरिए से देखा जाए तो वर्ष 2020 एक काला साल रहा, क्योंकि मुख्यतः कोविड-19 चलते उत्पन्न परिस्थितियों और उनसे उत्पन्न अवसाद, दबाव और चिंताओं के चलते बहुत से लोगों ने अपने जीवन आत्महत्या करके समाप्त कर ली. इस साल निराशा, तनाव और अवसाद के बेहिसाब मामले दर्ज हुए. वहीं लॉकडाउन के कारण मानसिक रोगियों की दवाइयों की सप्लाई में कमी के कारण भी डिमेंशिया, अल्जाइमर तथा पर्किनसन जैसी बीमारियों के मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. इनके अलावा भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली घरेलू हिंसा तथा पारिवारिक कलह जैसे मामले को लेकर भी मनोचिकित्सकों से बड़ी संख्या में सलाह मांगी गई. इस साल जिन मानसिक रोगों और अवस्थाओं ने सबसे ज्यादा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित किया, उनमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं;

तनाव, अवसाद के मामलों में बेहिसाब बढ़ोतरी

साल की शुरुआत से ही जैसे कोरोना वायरस के फैलने की सूचनाएं लोगों में प्रसारित होने लगी तथा वायरस के संक्रमण की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया गया, तो स्वास्थ्य और आर्थिक अवस्था, दोनों को लेकर लोगों के मन में चिंताए बढ़ने लगी. इसके अलावा कोरोना के दौरान लॉकडाउन के चलते घर में बंद लोग जेल जैसा महसूस करने लगे. इन सब बातों और परिस्थितियों के कारण लोगों में मानसिक अवसाद के मामले तेजी से बढ़ने लगे.

इस संक्रमण के पीड़ितों में भी बड़ी संख्या में अवसाद के मामले देखने में आए. भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान इस बीमारी से पीड़ित लगभग 30 फीसदी लोग अवसाद या डिप्रेशन का शिकार हुए हैं.

इसके अलावा तालाबंदी के कारण घर में रहने को मजबूर लोगों में भी बड़ी संख्या में आपसी असहमती के चलते पारिवारिक कलह और घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई. जिनसे लोगों में तनाव व अवसाद की घटनाएं भी बढ़ गई.

यही नहीं बच्चों में भी इस वर्ष अवसाद और तनाव के काफी ज्यादा मामले देखने में आए. बच्चों और टीनेजर्स में स्कूल कॉलेज बंद होने के कारण घर में होने वाली ऑनलाइन कक्षाओं के चलते बढ़ते दबाव, पूरा समय घर पर ही रहने की मजबूरी, और कोरोना के कारण होने वाली चिंता, बैचनी और डर के कारण तनाव और अवसाद उत्पन्न हुआ. यह स्थिति इतनी चिंतनीय रही की कई राज्य सरकारों ने पहल कर बच्चों के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग सेशन की भी शुरुआत की.

आत्महत्या के मामले बढ़े

आंकड़ों की माने तो हर साल विश्व में लगभग 8 लाख लोग तथा अपने देश में लगभग 2 से 3 लाख लोग आत्महत्या करते हैं. वर्ष 2020 में यदि किसी एक मानसिक अवस्था ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह है आत्महत्या के मामले. इस वर्ष आत्महत्या करने वालों की संख्या में दोगुनी से काफी अधिक बढ़ोत्तरी हुई. अवसाद, निराशा तथा अनिश्चितता की चपेट में आकार इस साल बड़ी संख्या में लोगों ने आत्महत्या कर मौत को गले लगा लिया, इन लोगों में कुछ बहुत ही चर्चित फिल्मी और टीवी जगत के सितारे भी शामिल रहे.

आमतौर पर आत्महत्या करने वाले लोगों में ज्यादातर 18 से 35 की उम्र वाले लोग शामिल रहे हैं, लेकिन इस वर्ष बड़ी संख्या में हर उम्र के लोगों ने अपनी जान गवाई. आत्महत्या के मामलों में इजाफे को देखते हुए राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर कई मनोचिकित्सकों ने एक जुट होकर आत्महत्या जैसा कदम उठाने से लोगों को बचाने के लिए ऑनलाइन मदद तथा मनोचिकित्सीय सलाह देने की शुरुआत की.

अल्जाइमर, तथा पर्किनसन के रोगियों की हालत ज्यादा बिगड़ी

इस वर्ष लॉकडाउन के कारण लंबे अरसे वाली दवाइयों तथा अन्य जरूरी चिकित्सीय सुविधाओं का अभाव रहा. जिसके कारण अल्जाइमर, सिजोफ्रेनिया, डिमेंशिया तथा पर्किनसन जैसे रोग, जिनमें नियमित दवाइयों का सेवन करना होता है, के मरीजों को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ा. इसके अतिरिक्त लंबे समय तक तालाबंदी के कारण मनोचिकित्सीय संस्थाओं के बंद होने तथा दवाइयों की आपूर्ति ना होने के कारण भी ऐसे रोगियों के उपचार की प्रक्रिया में काफी समस्याएं सामने आई.

अनिद्रा यानि इनसोमेनिया के मामले बढ़े

वैश्विक महामारी कोरोना के चलते लोगों में घर, कार्यस्थल और निजी जीवन में बढ़े तनाव के कारण हर उम्र के लोगों में अनिन्द्रा या इन्सोम्निया की समस्या बड़े पैमाने पर देखने सुनने में आई. आंकड़ों की माने तो वर्ष 2020 में अनिद्रा के मरीजों की संख्या 10 फीसदी से बढ़कर 33 प्रतिशत से ज्यादा हो गई है.

कई तरह के फोबिया बढ़े

कारण चाहे कोई भी हो, इस वर्ष तमाम विपरीत परिस्थितियों के कारण लोगों में विभिन्न प्रकार के फोबिया होने जैसी समस्याएं भी देखने में आई, फिर चाहे बीमारी से बचने के लिए सेनेटाइजेशन से जुड़ी प्रक्रिया का फोबिया हो या कोरोना काल में घर से बाहर निकलने को लेकर होने वाला डर.

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