नई दिल्ली : आईआईटी ने एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जो हाई ब्लड शुगर के स्तर अनुसार इंसुलिन जारी करती है. यह ब्लड शुगर के उपचार के लिए एक नियंत्रित दृष्टिकोण प्रदान करती है. साथ ही यह नई प्रणाली ब्लड शुगर के मैनेजमेंट में सुविधा और सुरक्षा को बढ़ाती है.
आईआईटी भिलाई के रसायन विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुचेतन पाल ने कहा कि यह हाइड्रोजेल-आधारित दवा वितरण प्रणाली हाई ब्लड शुगर के स्तर के जवाब में नियंत्रित तरीके से इंसुलिन जारी करने की क्षमता रखती है. यह स्वस्थ अग्न्याशय कोशिकाओं की प्राकृतिक इंसुलिन स्राव प्रक्रिया की नकल करती है. आईआईटी भिलाई के मुताबिक यह अध्ययन और इसकी खोजें भारत के लिए महत्व रखती हैं, एक ऐसा देश जिसे अक्सर मधुमेह का वैश्विक केंद्र कहा जाता है.
10 करोड़ से ज्यादा भारतीय मधुमेह से पीड़ित
द लांसेट में छपे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के हालिया अध्ययन से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. लगभग 10.1 करोड़ (101 मिलियन) भारतीय वर्तमान में मधुमेह से जूझ रहे हैं. अग्न्याशय में अपर्याप्त इंसुलिन उत्पादन से उत्पन्न होने वाली यह पुरानी स्वास्थ्य बीमारी, जिसके परिणामस्वरूप उच्च रक्त शर्करा का स्तर होता है और काफी स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होता है. टाइप 1 मधुमेह वाले कई रोगियों के लिए इंसुलिन एक आधारशिला चिकित्सा बनी हुई है. वर्तमान में, मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति अपने रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित करने के लिए अक्सर सुइयों या विशेष उपकरणों का उपयोग करके दैनिक इंसुलिन इंजेक्शन का सहारा लेते हैं.
भारत में 30 लाख लोग इंसुलिन थेरेपी पर निर्भर
अनुमान है कि भारत में लगभग 30 लाख लोग इंसुलिन थेरेपी पर निर्भर हैं. यह अध्ययन डॉ. सुचेतन पाल के नेतृत्व में किया गया है. इसमें इंसुलिन पर निर्भर मधुमेह रोगियों को इंसुलिन की आपूर्ति करने की एक सुरक्षित और कुशल विधि का वादा करता है. वर्तमान इंसुलिन इंजेक्शन विधियों की सीमाओं पर प्रकाश डालते हुए डॉ. सुचेतन ने कहा, "वर्तमान इंसुलिन इंजेक्शन विधियों की कुछ सीमाएं हैं. वे शरीर की प्राकृतिक प्रणाली की तरह काम नहीं करते हैं और घातक हो सकते हैं. वर्तमान इंसुलिन इंजेक्शन विधियां ब्लड सुगर के स्तर को खतरनाक रूप से कम कर सकती हैं, और रोगियों को हमेशा उन पर निर्भर रहना पड़ सकता है."
इंसुलिन वितरण के बेहतर तरीकों की तलाश में, आईआईटी भिलाई के शोधकर्ताओं ने हाइड्रोजेल के बारे में पता लगाया. हाइड्रोजेल बायोकंपैटिबल पॉलिमर हैं जिनमें पानी की मात्रा अधिक होती है और कार्डियोलॉजी, ऑन्कोलॉजी, इम्यूनोलॉजी, घाव भरने और दर्द प्रबंधन सहित विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों में नियंत्रित दवा रिलीज के लिए इसका अध्ययन किया जा रहा है.
शोधकर्ताओं ने इंसुलिन को विशेष रूप से डिजाइन किए गए हाइड्रोजेल में समाहित किया है जिसे सीधे इंसुलिन इंजेक्शन के बजाय प्रशासित किया जा सकता है. ग्लूकोज द्वारा शुरू की गई शरीर की प्राकृतिक इंसुलिन स्राव प्रक्रिया से प्रेरणा लेते हुए, टीम ने हाइड्रोजेल को इस तरह डिजाइन किया कि ग्लूकोज का स्तर ऊंचा होने पर वे इंसुलिन जारी करेंगे.
चूहे के मॉडल में परीक्षणों के माध्यम से इंसुलिन-लोडेड हाइड्रोजेल की सुरक्षा और मधुमेह विरोधी प्रभावकारिता की पुष्टि की गई. डॉ. पाल ने कहा, "ये मॉड्यूलर हाइड्रोजेल माइक्रोनीडल्स या मौखिक फॉर्मूलेशन का रूप ले सकते हैं और ऊंचे रक्त शर्करा के स्तर के जवाब में इंसुलिन की निरंतर डिलीवरी साबित कर सकते हैं. इससे इंसुलिन थेरेपी की आवश्यकता वाले रोगियों के लिए सुविधा और सुरक्षा में काफी वृद्धि हो सकती है.
अमेरिकन केमिकल सोसाइटी जर्नल, एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस के पेपर में, इस अभूतपूर्व शोध के निष्कर्ष प्रकाशित किए गए हैं. आईआईटी भिलाई के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में शिव नादर इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस, दिल्ली, एनसीआर, और श्रीरावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी, छत्तीसगढ़, के वैज्ञानिक इस शोध में शामिल हैं.
(आईएएनएस)