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Ear Fungal Infection: बरसात के मौसम में बरतें ये सावधानी, नहीं होगी कान में संक्रमण की समस्या - ear fungal infection

बारिश का मौसम कानों के स्वास्थ्य पर भी भारी पड़ता है. इस मौसम में फ्लू, सर्दी जुकाम, त्वचा संबंधी समस्याओं व तमाम संक्रमणों व एलर्जी के साथ ही कानों में संक्रमण Ear fungal infection की समस्या भी लोगों को काफी परेशान करती है. Fungal infection in Monsoon

Ear Fungal Infection
कान में संक्रमण की समस्या
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Published : Aug 10, 2022, 9:07 PM IST

बारिश के मौसम में वायरस तथा बैक्टीरिया जनित संक्रमण तथा रोग (Virus and bacterial infections) हमेशा से ही लोगों को परेशान करते आये हैं. इसलिए बारिश के मौसम को बीमारियों का मौसम भी कहा जाता है. इस मौसम में सर्दी-जुकाम, फ्लू, पेट में संक्रमण, त्वचा रोग तथा विभिन्न प्रकार की एलर्जी सहित कानों में संक्रमण या समस्या के मामले भी काफी ज्यादा सामने आते हैं. ईएनटी सेंटर इंदौर (ENT Center Indore) के नाक, कान, गला, कैंसर व एलर्जी विशेषज्ञ, एंडोस्कोपिस्ट एवं सर्जन तथा जर्मनी से एडवांस ईएनटी ट्रेनिंग प्राप्त डॉ सुबीर जैन (Dr Subir Jain ENT specialist) बताते हैं कि बरसात के मौसम में कान में फंगस और संक्रमण (Ear fungal infection) की समस्या होना काफी आम बात है. लेकिन इसकी अनदेखी करना या सही इलाज ना करवाना, कान के परदे को स्थाई रूप से प्रभावित करने सहित कई अन्य समस्याओं का कारण भी बन सकता है.

कान में फंगल संक्रमण (Ear fungal infection) : ETV भारत सुखीभव को मानसून में होने वाली कानों से संबंधित समस्याओं के बारें में ज्यादा जानकारी देते हुए डॉ सुबीर जैन (Dr. Subir Jain ENT specialist) बताते हैं कि बरसात के मौसम में वातावरण में नमी काफी ज्यादा बढ़ जाती है. जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कानों में फंगल इंफेक्शन के खतरे को काफी ज्यादा बढ़ा देती है. वह बताते हैं कि इस मौसम में होने वाले कान के संक्रमण में ऑटोमायकोसिस संक्रमण (automycosis infection) आम होता है. जिसके लिए दो कारणों को जिम्मेदार माना जाता है.

  • कैंडाइडा (Candida)
  • एस्पर्जिलस (Aspergillus)

इनमें कैंड़ाइडा (कैंडाइडा) में कान से सफेद पस जैसा पदार्थ या फ्लैक्स निकलते हैं. वहीं एस्पर्जिलस में कान से खून जैसे रंग वाला पदार्थ या द्रव्य निकलता है.

सेरुमेन (Cerumen) भी बढ़ाता है समस्या : डॉ सुबीर जैन बताते हैं कि कई बार कान में संक्रमण या समस्या के लिए कान का मैल या वैक्स, जिसे सेरुमेन भी कहा जाता है, जिम्मेदार हो सकता है. वह बताते हैं कि सेरुमेन हमारे कान में मौजूद ग्लैंड्स में बनती है तथा इसकी प्रकृति अलग-अलग व्यक्ति के कान में भिन्न-भिन्न हो सकती है. कुछ लोगों के कान में यह पतली अवस्था में रहती है तो कुछ में हल्की सख्त, और कुछ लोगों में ज्यादा सुखी व सख्त . वह बताते हैं कि वैसे तो सेरुमेन कानों के लिए प्राकृतिक सुरक्षा का कार्य करती है और बाहरी धूल और बैक्टीरिया को कान के भीतरी हिस्सों में जाने से बचाती है. लेकिन आमतौर पर बारिश के मौसम में जब वातावरण में नमी बढ़ जाती है तो यह कई बार नमी को सोखने लगती है और फूल जाती है. जिससे कान की नली में बाधा उत्पन्न होने लगती है. इसके कारण कई बार कान के बंद होने तथा उसमें दर्द या खुजली होने या उनमें संक्रमण होने की आशंका भी बढ़ जाती है.

डॉ सुबीर जैन (Dr. Subir Jain ENT specialist) बताते हैं कि इसके अलावा कई बार लोग कान में मैल महसूस होने पर बालों की चिमटी, माचिस की तीली तथा अन्य चीजों से कान का मैल साफ करने लगते हैं. बालों की चिमटी का इस्तेमाल करने से जहां कानों की अंदरूनी त्वचा , यहाँ तक की कान के परदे पर भी चोट लग सकती है, वहीं माचिस की तीली पर लगा मसाला कान में जाने के बाद नमी के कारण फफूंद या फंगस के होने का कारण बन सकता है. जो कई बार ना सिर्फ संक्रमण का कारण बन सकता है बल्कि यदि पहले से कान में संक्रमण है तो उसे ज्यादा गंभीर भी बना सकता है. वह बताते हैं कि कान को साफ करने के लिए ईयर बड भी सुरक्षित उपाय नहीं है क्योंकि आमतौर पर इसका इस्तेमाल करने से कान का अधिकांश वैक्स बाहर आने की बजाय कान में ज्यादा अंदर चला जाता है. जो कई बार ना सिर्फ संक्रमण या किसी प्रकार की समस्या का कारण बन सकता है बल्कि कान के पर्दे को भी नुकसान पहुंचा सकता है.

सावधानी जरूरी : वह बताते हैं कि हमारे शरीर की संरचना कुछ इस प्रकार की है जिसमें आमतौर पर शरीर के लगभग सभी अंदरूनी अंगों की सफाई व देखभाल स्वतः ही हो जाती है. वैसे ही सामान्य तौर पर कान में जरूरत से ज्यादा मैल होने पर वह भी अपने आप कान से बाहर आ जाता है लेकिन किसी कारण से यदि ऐसा ना हो पाए तो कान साफ करने के लिए किसी भी ऐसी चीज का उपयोग करने से बचना चाहिए जो कान को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचा सकती हो . वहीं यदि कान साफ करने के लिए ईयर बड का इस्तेमाल करना ही पड़े तो इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि सफाई के दौरान कान में बड़ की कुल लंबाई का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही डाला जाय.

डॉ सुबीर जैन बताते हैं कि जहां तक संभव हो कान साफ करने के लिए चिकित्सक की मदद लेना ही सबसे सुरक्षित तरीका होता है. इसके अलावा कानों को संक्रमण या चोट से बचाने के लिए कुछ और बातों का भी ध्यान रखा जा सकता है जैसे कभी भी कानों को ज्यादा रगड़ कर या हिलाते हुए साफ करने से बचना चाहिए. ऐसा करने से कान की त्वचा के कटने या उस पर चोट लगने की आशंका बढ़ जाती है. और कई बार यह चोट संक्रमण का कारण भी बन सकती है. इसके अलावा नदी या स्विमिंग पूल में तैराकी के समय हमेशा ईयर प्लग का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे पानी कान के अंदर ना जा पाए. क्योंकि कई बार दूषित पानी भी कान में संक्रमण के लिए जिम्मेदार हो सकता है.

चिकित्सकीय इलाज जरूरी : डॉ सुबीर जैन बताते हैं कि कान में दर्द, कान के बंद होने का अहसास या उससे लगातार सीटी जैसी आवाज आने, कान में सुई के चुभने जैसी अनुभूति होने या कान में सूजन, जलन, दर्द व पस बनने सहित किसी भी प्रकार की समस्या होने पर अपने आप इलाज करने की बजाय तत्काल ईएनटी विशेषज्ञ या चिकित्सक से संपर्क करना बहुत जरूरी होता है. साथ ही जरूरी है कि चिकित्सक के दिशा-निर्देशों तथा दवाओं का पूरी तरह से पालन किया जाए. कभी भी समस्या में हल्का आराम होने पर बिना चिकित्सक से परामर्श लिए दवाओं को बंद नही करना चाहिए. अन्यथा समस्या ना सिर्फ लंबे समय तक परेशान कर सकती है बल्कि कई बार वह बढ़ भी जाती है.

बारिश के मौसम में वायरस तथा बैक्टीरिया जनित संक्रमण तथा रोग (Virus and bacterial infections) हमेशा से ही लोगों को परेशान करते आये हैं. इसलिए बारिश के मौसम को बीमारियों का मौसम भी कहा जाता है. इस मौसम में सर्दी-जुकाम, फ्लू, पेट में संक्रमण, त्वचा रोग तथा विभिन्न प्रकार की एलर्जी सहित कानों में संक्रमण या समस्या के मामले भी काफी ज्यादा सामने आते हैं. ईएनटी सेंटर इंदौर (ENT Center Indore) के नाक, कान, गला, कैंसर व एलर्जी विशेषज्ञ, एंडोस्कोपिस्ट एवं सर्जन तथा जर्मनी से एडवांस ईएनटी ट्रेनिंग प्राप्त डॉ सुबीर जैन (Dr Subir Jain ENT specialist) बताते हैं कि बरसात के मौसम में कान में फंगस और संक्रमण (Ear fungal infection) की समस्या होना काफी आम बात है. लेकिन इसकी अनदेखी करना या सही इलाज ना करवाना, कान के परदे को स्थाई रूप से प्रभावित करने सहित कई अन्य समस्याओं का कारण भी बन सकता है.

कान में फंगल संक्रमण (Ear fungal infection) : ETV भारत सुखीभव को मानसून में होने वाली कानों से संबंधित समस्याओं के बारें में ज्यादा जानकारी देते हुए डॉ सुबीर जैन (Dr. Subir Jain ENT specialist) बताते हैं कि बरसात के मौसम में वातावरण में नमी काफी ज्यादा बढ़ जाती है. जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कानों में फंगल इंफेक्शन के खतरे को काफी ज्यादा बढ़ा देती है. वह बताते हैं कि इस मौसम में होने वाले कान के संक्रमण में ऑटोमायकोसिस संक्रमण (automycosis infection) आम होता है. जिसके लिए दो कारणों को जिम्मेदार माना जाता है.

  • कैंडाइडा (Candida)
  • एस्पर्जिलस (Aspergillus)

इनमें कैंड़ाइडा (कैंडाइडा) में कान से सफेद पस जैसा पदार्थ या फ्लैक्स निकलते हैं. वहीं एस्पर्जिलस में कान से खून जैसे रंग वाला पदार्थ या द्रव्य निकलता है.

सेरुमेन (Cerumen) भी बढ़ाता है समस्या : डॉ सुबीर जैन बताते हैं कि कई बार कान में संक्रमण या समस्या के लिए कान का मैल या वैक्स, जिसे सेरुमेन भी कहा जाता है, जिम्मेदार हो सकता है. वह बताते हैं कि सेरुमेन हमारे कान में मौजूद ग्लैंड्स में बनती है तथा इसकी प्रकृति अलग-अलग व्यक्ति के कान में भिन्न-भिन्न हो सकती है. कुछ लोगों के कान में यह पतली अवस्था में रहती है तो कुछ में हल्की सख्त, और कुछ लोगों में ज्यादा सुखी व सख्त . वह बताते हैं कि वैसे तो सेरुमेन कानों के लिए प्राकृतिक सुरक्षा का कार्य करती है और बाहरी धूल और बैक्टीरिया को कान के भीतरी हिस्सों में जाने से बचाती है. लेकिन आमतौर पर बारिश के मौसम में जब वातावरण में नमी बढ़ जाती है तो यह कई बार नमी को सोखने लगती है और फूल जाती है. जिससे कान की नली में बाधा उत्पन्न होने लगती है. इसके कारण कई बार कान के बंद होने तथा उसमें दर्द या खुजली होने या उनमें संक्रमण होने की आशंका भी बढ़ जाती है.

डॉ सुबीर जैन (Dr. Subir Jain ENT specialist) बताते हैं कि इसके अलावा कई बार लोग कान में मैल महसूस होने पर बालों की चिमटी, माचिस की तीली तथा अन्य चीजों से कान का मैल साफ करने लगते हैं. बालों की चिमटी का इस्तेमाल करने से जहां कानों की अंदरूनी त्वचा , यहाँ तक की कान के परदे पर भी चोट लग सकती है, वहीं माचिस की तीली पर लगा मसाला कान में जाने के बाद नमी के कारण फफूंद या फंगस के होने का कारण बन सकता है. जो कई बार ना सिर्फ संक्रमण का कारण बन सकता है बल्कि यदि पहले से कान में संक्रमण है तो उसे ज्यादा गंभीर भी बना सकता है. वह बताते हैं कि कान को साफ करने के लिए ईयर बड भी सुरक्षित उपाय नहीं है क्योंकि आमतौर पर इसका इस्तेमाल करने से कान का अधिकांश वैक्स बाहर आने की बजाय कान में ज्यादा अंदर चला जाता है. जो कई बार ना सिर्फ संक्रमण या किसी प्रकार की समस्या का कारण बन सकता है बल्कि कान के पर्दे को भी नुकसान पहुंचा सकता है.

सावधानी जरूरी : वह बताते हैं कि हमारे शरीर की संरचना कुछ इस प्रकार की है जिसमें आमतौर पर शरीर के लगभग सभी अंदरूनी अंगों की सफाई व देखभाल स्वतः ही हो जाती है. वैसे ही सामान्य तौर पर कान में जरूरत से ज्यादा मैल होने पर वह भी अपने आप कान से बाहर आ जाता है लेकिन किसी कारण से यदि ऐसा ना हो पाए तो कान साफ करने के लिए किसी भी ऐसी चीज का उपयोग करने से बचना चाहिए जो कान को किसी भी तरह से नुकसान पहुंचा सकती हो . वहीं यदि कान साफ करने के लिए ईयर बड का इस्तेमाल करना ही पड़े तो इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि सफाई के दौरान कान में बड़ की कुल लंबाई का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही डाला जाय.

डॉ सुबीर जैन बताते हैं कि जहां तक संभव हो कान साफ करने के लिए चिकित्सक की मदद लेना ही सबसे सुरक्षित तरीका होता है. इसके अलावा कानों को संक्रमण या चोट से बचाने के लिए कुछ और बातों का भी ध्यान रखा जा सकता है जैसे कभी भी कानों को ज्यादा रगड़ कर या हिलाते हुए साफ करने से बचना चाहिए. ऐसा करने से कान की त्वचा के कटने या उस पर चोट लगने की आशंका बढ़ जाती है. और कई बार यह चोट संक्रमण का कारण भी बन सकती है. इसके अलावा नदी या स्विमिंग पूल में तैराकी के समय हमेशा ईयर प्लग का इस्तेमाल करना चाहिए जिससे पानी कान के अंदर ना जा पाए. क्योंकि कई बार दूषित पानी भी कान में संक्रमण के लिए जिम्मेदार हो सकता है.

चिकित्सकीय इलाज जरूरी : डॉ सुबीर जैन बताते हैं कि कान में दर्द, कान के बंद होने का अहसास या उससे लगातार सीटी जैसी आवाज आने, कान में सुई के चुभने जैसी अनुभूति होने या कान में सूजन, जलन, दर्द व पस बनने सहित किसी भी प्रकार की समस्या होने पर अपने आप इलाज करने की बजाय तत्काल ईएनटी विशेषज्ञ या चिकित्सक से संपर्क करना बहुत जरूरी होता है. साथ ही जरूरी है कि चिकित्सक के दिशा-निर्देशों तथा दवाओं का पूरी तरह से पालन किया जाए. कभी भी समस्या में हल्का आराम होने पर बिना चिकित्सक से परामर्श लिए दवाओं को बंद नही करना चाहिए. अन्यथा समस्या ना सिर्फ लंबे समय तक परेशान कर सकती है बल्कि कई बार वह बढ़ भी जाती है.

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