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आयुर्वेद से रखें सम्पूर्ण स्वास्थ्य बरकरार

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Published : Apr 8, 2021, 10:54 AM IST

Updated : Apr 8, 2021, 11:06 AM IST

हम हमेशा अच्छे स्वास्थ्य के बारे में बात करते हैं, लेकिन बहुत से लोग अच्छे स्वास्थ्य को सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य से जोड़कर देखते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अच्छा स्वास्थ्य वही है, जहां शरीर शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से निरोगी हो।

Holistic health with Ayurveda
आयुर्वेद के साथ सम्पूर्ण स्वास्थ्य

आयुर्वेद के अनुसार शरीर स्वस्थ तब माना जाता हैं, जब शरीर के सभी अंग सही और संतुलित तरीके से काम करें और शरीर की नब्ज सही गति से चलती रहे। नब्ज़ की सही गति ही स्वस्थ और निरोगी शरीर की निशानी होती है। शरीर को निरोगी और स्वस्थ रखने में आयुर्वेद की भूमिका और उसके योगदान के बारे में ETV भारत सुखीभवा की टीम ने आयुर्वेदाचार्य डॉ. पी. वी. रंगनायकुलु तथा ए.एम.डी. आयुर्वेदिक कॉलेज, हैदराबाद में प्रवक्ता तथा आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉक्टर राज्यलक्ष्मी माधवम से बात की।

आयुर्वेद का उद्देश्य

आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ शरीर के लक्षणों और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी बातों की जानकारी देते हुए डॉक्टर पी.वी. रंगनायकुलु बताते हैं की भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, रोगों तथा उनके इलाज के लिए अपनी अलग व्याख्या रखती है। इस पद्धति में औषधियों से ज्यादा सही जीवन शैली और आहार को स्वस्थ शरीर का आधार माना जाता है। इस विधा में विभिन्न उपचारों के दौरान दिए जाने वाले रसायन तथा औषधियां भी आमतौर पर जड़ी बूटियों तथा भोज्य पदार्थों से बनाई जाती हैं।

डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं की आयुर्वेद मुख्यतः दो उद्देश्यों की प्राप्ति को लेकर कार्य करता है;

  1. स्वास्थ्य की देखभाल
  2. लोगों का इलाज

आयुर्वेद से कैसे रखें संपूर्ण स्वास्थ्य बरकरार

शरीर के संपूर्ण स्वास्थ्य को बरकरार रखने में आयुर्वेद की भूमिका के बारे में अधिक जानकारी देते हुए डॉ. राज्यलक्ष्मी माधवम बताती हैं कि स्वस्थ जीवन के लिए चार बातों और आदतों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए, जो इस प्रकार हैं;

  • दिन की शुरुआत

सुबह सोकर उठने के उपरांत सबसे पहले दांतों की सफाई जरूरी मानी जाती है। डॉ. राज्यलक्ष्मी बताती हैं की आयुर्वेद में नीम की दातुन से दांत साफ करना दांतों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतरीन माना गया है। यदि ऐसा संभव ना हो तो कम से कम रसायन वाली हर्बल मंजन से नियमित तौर पर दांतों को साफ करना चाहिए। दांतों की सफाई के बाद कवल तथा गडुषा क्रिया करनी चाहिए, जिसमें नारियल या तिल के तेल से 5-10 मिनट तक कुल्ला करना चाहिए। इस क्रिया से साइनस तथा नेत्र संबंधी रोगों में आराम मिलता है। इसके अलावा रोज नाक में चिकित्सीय तेल की कुछ बूंदें भी डाली जा सकती है।

  • व्यायाम

दिन की शुरुआत व्यायाम से करने से बेहतर कुछ नहीं है। नियमित रूप से व्यायाम की किसी भी शाखा, जैसे योग, ध्यान, कसरत आदि के अभ्यास से ना सिर्फ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, बल्कि शरीर के सभी अंग भी सुचारू तरीके से काम करते हैं।

व्यायाम के बाद अभ्यंग यानी शरीर की तिल के तेल से मालिश भी स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाता है। अभ्यंग के बाद हल्के गरम या गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए। बहुत तेज गरम या बहुत ज्यादा ठंडे पानी से स्नान करने से बचना चाहिए।

  • भोजन

जहां तक संभव है, सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। प्रतिदिन मौसमी फलों और सब्जियों से युक्त ताजा और सुपाच्य आहार ग्रहण करना चाहिए। दिन और रात का भोजन ग्रहण करने के उपरांत यदि संभव हो, तो कम से कम 100 कदम या पांच मिनट तक तेज चाल में चलना चाहिए।

  • अच्छी नींद

रात को सोने से पहले नारियल या तिल के तेल से अपने पांव की दो से तीन मिनट तक मालिश करनी चाहिए। ऐसा करने से थकान में राहत मिलती है। जिसके उपरांत रात में लगभग 8 घंटे की अच्छी नींद लें। रात को अच्छी नींद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। आमतौर पर दिन में सोने से परहेज करना चाहिए। लेकिन गर्मियों के मौसम में दोपहर के भोजन के बाद झपकी ली जा सकती है।

ऋतुचर्या के अनुसार हो भोजन तथा दिनचर्या

डॉ. राज्यलक्ष्मी बताती हैं की आयुर्वेद की लगभग सभी उपचार पद्धतियों में ऋतुचर्या का विशेष ध्यान रखा जाता है। ऋतुचर्या यानी मौसम के आधार पर ही आयुर्वेद में खानपान तथा दिनचर्या को अपनाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ठंडी और गरम तासीर वाले भोजन हर मौसम में शरीर पर अलग-अलग असर दिखाते हैं। आयुर्वेद में छः मौसम माने गए हैं, जिनकी प्रकृति के आधार पर आहार के चयन की सलाह दी जाती है। ये मौसम इस प्रकार हैं;

  1. हेमंत ऋतु (पतझड़ का अंतिम दौर)
  2. शिशिर ऋतु (सर्दियां)
  3. वसंत ऋतु (बसंत)
  4. ग्रीष्म ऋतु (गर्मी)
  5. शरद ऋतु (पतझड़)

सदवृत्त या आचार्य रसायन (नियम और नैतिक मूल्य)

डॉ. माधवम बताती हैं की हमारी सामाजिक, शारीरिक, धार्मिक और व्यावसायिक गतिविधियां कुछ नियमों पर आधारित होती है, जो हमारी सोच और जीवनशैली को काफी प्रभावित करते हैं। इन नियमों तथा उनके पालन के अभाव में कई बार व्यक्ति की मनः स्थिति पर असर पड़ने लगता है और ना चाहते हुए भी उस पर मानसिक दबाव बढ़ने लगता है, जिससे ना सिर्फ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है, साथ ही कई अन्य रोग भी पनपने लगते हैं। सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए जरूरी है की मानसिक स्वास्थ्य का भी विशेष ध्यान रखा जाये। ना सिर्फ मानसिक समस्याओं से दूर रहने बल्कि बेहतर जीवनशैली जीने के लिए इन विशेष नियमों तथा नैतिक मूल्यों का पालन किया जा सकता है।

  • हमेशा सच बोलें और बड़ों का आदर करें।
  • गुस्से और अन्य भावनाओं पर नियंत्रण रखें।
  • जलन, दुश्मनी और नफरत जैसी भावनाओं से दूरी बना कर रखें।
  • तनाव, चिंता और अनावश्यक सोचने की आदत से बचे।
  • व्यवहार में संयम तथा भावनाओं पर नियंत्रण रखने का प्रयास करें।
  • किसी भी चीज का आदि होने से बचे। किसी भी प्रकार की लत तथा हिंसक व्यवहार ना सिर्फ खुद को बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकता हैं।

प्राकृतिक क्रियाओं को रोके नहीं

डॉ. माधवम बताती हैं की हमारे शरीर के सभी तंत्र सही तरीके से कार्य करें इसके लिए बहुत जरूरी है की उन पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ना चाहिए। मूत्र और मल त्याग सहित हमारे शरीर में कई प्रकार की प्राकृतिक नित क्रियाएं होती हैं, जिन्हें अनावश्यक नहीं रोकना चाहिए। आयुर्वेद में 13 प्राकृतिक क्रियाओं के बारे में कहा जाता है की उन्हें रोकने से स्वास्थ्य पर गंभीर असर नजर आ सकते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं;

  1. मूत्र त्याग
  2. मल त्याग
  3. छींकना
  4. खांसना
  5. उबासी लेना
  6. उल्टी करना
  7. रोना या आंसू बहाना
  8. हिचकी आना
  9. वीर्यपात
  10. डकार लेना
  11. अधोवायु यानी पेट की वायू का मलमार्ग से बाहर निकालना

स्वस्थ शरीर के लिए सुझाव

डॉ. राज्यलक्ष्मी बताती हैं की किसी भी प्रकार की समस्या के निवारण के लिए रसायन यानी स्वास्थ्य को फायदा करने वाले खाद्य पदार्थ जैसे घी तथा दूध आदि का सेवन अवश्य करना चाहिए। इसके अतिरिक्त रोज के आहार में आमलकी चूर्ण या आंवला तथा शहद को शामिल किया जा सकता है। इन्हें बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट माना जाता है, जो शरीर के हानिकारक तत्वों को बाहर निकालने में सक्षम होते हैं।

इसके अतिरिक्त हमेशा ताजा भोजन ही करना चाहिए। शरीर में पानी की कमी ना हो इसके लिए ज्यादा मात्रा में पानी पीना चाहिए। लेकिन भोजन के कम से कम एक घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए।

पढ़े: आयुर्वेद से संभव है पतली कमर और सपाट पेट पाना

कोविड-19 से बचाव से लिए सुझाव

वर्तमान समय में कोरोना संक्रमण के फैलने की आशंका के मद्देनजर डॉ. पी. वी. रंगनायकुलु लोगों को ज्यादा सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। वे बताते हैं की आमतौर पर लोगों को लगता हैं सिर्फ जड़ी-बूटियों और दवाइयों के सेवन से शरीर की प्रतिरोध क्षमताएं बेहतर हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है, वर्तमान परिस्थितियों में बहुत जरूरी है कि रोजाना के आहार में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की मात्रा बढ़ाई जाए। इसके अतिरिक्त भोजन में पुराने घी, दूध तथा पनीर जैसे डेयरी उत्पाद को नियमित तौर पर शामिल करने से भी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है।

आयुर्वेद के अनुसार शरीर स्वस्थ तब माना जाता हैं, जब शरीर के सभी अंग सही और संतुलित तरीके से काम करें और शरीर की नब्ज सही गति से चलती रहे। नब्ज़ की सही गति ही स्वस्थ और निरोगी शरीर की निशानी होती है। शरीर को निरोगी और स्वस्थ रखने में आयुर्वेद की भूमिका और उसके योगदान के बारे में ETV भारत सुखीभवा की टीम ने आयुर्वेदाचार्य डॉ. पी. वी. रंगनायकुलु तथा ए.एम.डी. आयुर्वेदिक कॉलेज, हैदराबाद में प्रवक्ता तथा आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉक्टर राज्यलक्ष्मी माधवम से बात की।

आयुर्वेद का उद्देश्य

आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ शरीर के लक्षणों और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी बातों की जानकारी देते हुए डॉक्टर पी.वी. रंगनायकुलु बताते हैं की भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, रोगों तथा उनके इलाज के लिए अपनी अलग व्याख्या रखती है। इस पद्धति में औषधियों से ज्यादा सही जीवन शैली और आहार को स्वस्थ शरीर का आधार माना जाता है। इस विधा में विभिन्न उपचारों के दौरान दिए जाने वाले रसायन तथा औषधियां भी आमतौर पर जड़ी बूटियों तथा भोज्य पदार्थों से बनाई जाती हैं।

डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं की आयुर्वेद मुख्यतः दो उद्देश्यों की प्राप्ति को लेकर कार्य करता है;

  1. स्वास्थ्य की देखभाल
  2. लोगों का इलाज

आयुर्वेद से कैसे रखें संपूर्ण स्वास्थ्य बरकरार

शरीर के संपूर्ण स्वास्थ्य को बरकरार रखने में आयुर्वेद की भूमिका के बारे में अधिक जानकारी देते हुए डॉ. राज्यलक्ष्मी माधवम बताती हैं कि स्वस्थ जीवन के लिए चार बातों और आदतों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए, जो इस प्रकार हैं;

  • दिन की शुरुआत

सुबह सोकर उठने के उपरांत सबसे पहले दांतों की सफाई जरूरी मानी जाती है। डॉ. राज्यलक्ष्मी बताती हैं की आयुर्वेद में नीम की दातुन से दांत साफ करना दांतों के स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतरीन माना गया है। यदि ऐसा संभव ना हो तो कम से कम रसायन वाली हर्बल मंजन से नियमित तौर पर दांतों को साफ करना चाहिए। दांतों की सफाई के बाद कवल तथा गडुषा क्रिया करनी चाहिए, जिसमें नारियल या तिल के तेल से 5-10 मिनट तक कुल्ला करना चाहिए। इस क्रिया से साइनस तथा नेत्र संबंधी रोगों में आराम मिलता है। इसके अलावा रोज नाक में चिकित्सीय तेल की कुछ बूंदें भी डाली जा सकती है।

  • व्यायाम

दिन की शुरुआत व्यायाम से करने से बेहतर कुछ नहीं है। नियमित रूप से व्यायाम की किसी भी शाखा, जैसे योग, ध्यान, कसरत आदि के अभ्यास से ना सिर्फ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, बल्कि शरीर के सभी अंग भी सुचारू तरीके से काम करते हैं।

व्यायाम के बाद अभ्यंग यानी शरीर की तिल के तेल से मालिश भी स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाता है। अभ्यंग के बाद हल्के गरम या गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए। बहुत तेज गरम या बहुत ज्यादा ठंडे पानी से स्नान करने से बचना चाहिए।

  • भोजन

जहां तक संभव है, सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। प्रतिदिन मौसमी फलों और सब्जियों से युक्त ताजा और सुपाच्य आहार ग्रहण करना चाहिए। दिन और रात का भोजन ग्रहण करने के उपरांत यदि संभव हो, तो कम से कम 100 कदम या पांच मिनट तक तेज चाल में चलना चाहिए।

  • अच्छी नींद

रात को सोने से पहले नारियल या तिल के तेल से अपने पांव की दो से तीन मिनट तक मालिश करनी चाहिए। ऐसा करने से थकान में राहत मिलती है। जिसके उपरांत रात में लगभग 8 घंटे की अच्छी नींद लें। रात को अच्छी नींद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। आमतौर पर दिन में सोने से परहेज करना चाहिए। लेकिन गर्मियों के मौसम में दोपहर के भोजन के बाद झपकी ली जा सकती है।

ऋतुचर्या के अनुसार हो भोजन तथा दिनचर्या

डॉ. राज्यलक्ष्मी बताती हैं की आयुर्वेद की लगभग सभी उपचार पद्धतियों में ऋतुचर्या का विशेष ध्यान रखा जाता है। ऋतुचर्या यानी मौसम के आधार पर ही आयुर्वेद में खानपान तथा दिनचर्या को अपनाने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ठंडी और गरम तासीर वाले भोजन हर मौसम में शरीर पर अलग-अलग असर दिखाते हैं। आयुर्वेद में छः मौसम माने गए हैं, जिनकी प्रकृति के आधार पर आहार के चयन की सलाह दी जाती है। ये मौसम इस प्रकार हैं;

  1. हेमंत ऋतु (पतझड़ का अंतिम दौर)
  2. शिशिर ऋतु (सर्दियां)
  3. वसंत ऋतु (बसंत)
  4. ग्रीष्म ऋतु (गर्मी)
  5. शरद ऋतु (पतझड़)

सदवृत्त या आचार्य रसायन (नियम और नैतिक मूल्य)

डॉ. माधवम बताती हैं की हमारी सामाजिक, शारीरिक, धार्मिक और व्यावसायिक गतिविधियां कुछ नियमों पर आधारित होती है, जो हमारी सोच और जीवनशैली को काफी प्रभावित करते हैं। इन नियमों तथा उनके पालन के अभाव में कई बार व्यक्ति की मनः स्थिति पर असर पड़ने लगता है और ना चाहते हुए भी उस पर मानसिक दबाव बढ़ने लगता है, जिससे ना सिर्फ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है, साथ ही कई अन्य रोग भी पनपने लगते हैं। सम्पूर्ण स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए जरूरी है की मानसिक स्वास्थ्य का भी विशेष ध्यान रखा जाये। ना सिर्फ मानसिक समस्याओं से दूर रहने बल्कि बेहतर जीवनशैली जीने के लिए इन विशेष नियमों तथा नैतिक मूल्यों का पालन किया जा सकता है।

  • हमेशा सच बोलें और बड़ों का आदर करें।
  • गुस्से और अन्य भावनाओं पर नियंत्रण रखें।
  • जलन, दुश्मनी और नफरत जैसी भावनाओं से दूरी बना कर रखें।
  • तनाव, चिंता और अनावश्यक सोचने की आदत से बचे।
  • व्यवहार में संयम तथा भावनाओं पर नियंत्रण रखने का प्रयास करें।
  • किसी भी चीज का आदि होने से बचे। किसी भी प्रकार की लत तथा हिंसक व्यवहार ना सिर्फ खुद को बल्कि दूसरों को भी नुकसान पहुंचा सकता हैं।

प्राकृतिक क्रियाओं को रोके नहीं

डॉ. माधवम बताती हैं की हमारे शरीर के सभी तंत्र सही तरीके से कार्य करें इसके लिए बहुत जरूरी है की उन पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ना चाहिए। मूत्र और मल त्याग सहित हमारे शरीर में कई प्रकार की प्राकृतिक नित क्रियाएं होती हैं, जिन्हें अनावश्यक नहीं रोकना चाहिए। आयुर्वेद में 13 प्राकृतिक क्रियाओं के बारे में कहा जाता है की उन्हें रोकने से स्वास्थ्य पर गंभीर असर नजर आ सकते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं;

  1. मूत्र त्याग
  2. मल त्याग
  3. छींकना
  4. खांसना
  5. उबासी लेना
  6. उल्टी करना
  7. रोना या आंसू बहाना
  8. हिचकी आना
  9. वीर्यपात
  10. डकार लेना
  11. अधोवायु यानी पेट की वायू का मलमार्ग से बाहर निकालना

स्वस्थ शरीर के लिए सुझाव

डॉ. राज्यलक्ष्मी बताती हैं की किसी भी प्रकार की समस्या के निवारण के लिए रसायन यानी स्वास्थ्य को फायदा करने वाले खाद्य पदार्थ जैसे घी तथा दूध आदि का सेवन अवश्य करना चाहिए। इसके अतिरिक्त रोज के आहार में आमलकी चूर्ण या आंवला तथा शहद को शामिल किया जा सकता है। इन्हें बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट माना जाता है, जो शरीर के हानिकारक तत्वों को बाहर निकालने में सक्षम होते हैं।

इसके अतिरिक्त हमेशा ताजा भोजन ही करना चाहिए। शरीर में पानी की कमी ना हो इसके लिए ज्यादा मात्रा में पानी पीना चाहिए। लेकिन भोजन के कम से कम एक घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए।

पढ़े: आयुर्वेद से संभव है पतली कमर और सपाट पेट पाना

कोविड-19 से बचाव से लिए सुझाव

वर्तमान समय में कोरोना संक्रमण के फैलने की आशंका के मद्देनजर डॉ. पी. वी. रंगनायकुलु लोगों को ज्यादा सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। वे बताते हैं की आमतौर पर लोगों को लगता हैं सिर्फ जड़ी-बूटियों और दवाइयों के सेवन से शरीर की प्रतिरोध क्षमताएं बेहतर हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है, वर्तमान परिस्थितियों में बहुत जरूरी है कि रोजाना के आहार में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की मात्रा बढ़ाई जाए। इसके अतिरिक्त भोजन में पुराने घी, दूध तथा पनीर जैसे डेयरी उत्पाद को नियमित तौर पर शामिल करने से भी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है।

Last Updated : Apr 8, 2021, 11:06 AM IST
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