मौसम और हमारे आसपास का वातावरण इंसान के मूड और व्यवहार दोनों को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है. जैसे माना जाता है कि बारिश के मौसम में लोग ज्यादा रोमांटिक हो जाते हैं , वहीं गर्मियों के मौसम को हमेशा “ब्राइट एंड हैप्पी समर” कहा जाता है. यानी गर्मियों के मौसम में लोगों के व्यवहार और मूड दोनों में उत्साह, खुशी व गर्माहट बनी रहती है. इसी तरह हल्की गुलाबी सर्दियों को जम के खाने-पीने तथा धूप में सोने का समय माना जाता है.
लेकिन सर्दियों का मौसम, कुछ लोगों में निराशा, नकारात्मकता तथा अवसाद का कारण भी बन सकता है. सर्दियों के मौसम में “विंटर ब्लूज” यानी मौसमी अवसाद के चपेट में आमतौर पर लोग आ जाते हैं. कुछ लोगों में इसका प्रभाव कम नजर आता है तो कई बार कुछ लोगों में यह मौसम जटिल मानसिक, भावनात्मक या व्यावहारिक समस्याओं का कारण भी बन सकता है. सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर या विंटर डिप्रेशन के नाम से भी जाने जाने वाले विंटर ब्लूज से लोगों के प्रभावित होने के कई कारण हो सकते हैं.
क्या है कारण और लक्षण
मनोचिकित्सक डॉक्टर रेणुका शर्मा बताती हैं विंटर ब्लूज या सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर दरअसल मौसम के चलते व्यक्ति के मानसिक विशेषकर भावनात्मक स्वास्थ्य में उत्पन्न होने वाली समस्याओं से संबंधित विकार है. जिसके लिए कई कारकों को जिम्मेदार माना जा सकता है.
वह बताती हैं कि इस मौसम में कई इलाकों में लंबे-लंबे समय तक धूप नजर नहीं आती है और उसका स्थान कोहरा या बादल ले लेते हैं. इसके अलावा इस मौसम में रातें लंबी तथा दिन छोटे होते हैं. जिसका असर शरीर की सर्काडियन रिदम यानी जैविक घड़ी पर भी पड़ता है. दरअसल हमारे आंतरिक अंगों के कार्य जैसे उनके आराम तथा सक्रिय होने का समय हमारे शरीर की जैविक घड़ी पर निर्भर करता है. लेकिन यदि इस घड़ी के मुताबिक शरीर कार्य ना कर पाए तो उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर अलग अलग प्रकार के नकारात्मक प्रभाव नजर आ सकते हैं
इसके अलावा सर्दियों के मौसम में धूप की कमी से शरीर में सिरेटोनिन के स्तर में कमी आती है. सिरेटोनिन दरअसल एक न्यूरोट्रांसमीटर होता है और जब शरीर में इसके स्तर में कमी आने लगती है तो ना सिर्फ व्यक्ति के व्यवहार तथा भावनाओं पर असर पड़ता है, बल्कि उसमें अवसाद जैसी समस्याओं के लक्षण नजर आने की आशंका भी बढ़ जाती है. शरीर में सिरेटोनिन के उत्पादन में विटामिन डी मुख्य भूमिका निभाता है. ऐसे में धूप की कमी के चलते सिरेटोनिन के स्तर में कमी होने लगती है और व्यक्ति में अन्य मानसिक विकारों के अलावा ऊर्जा में कमी, सुस्ती तथा आलस जैसी अवस्थाएं भी नजर आने लगती हैं. इसके अलावा व्यक्ति में ज्यादा थकान, निराशा, लंबे समय तक दुखी महसूस करना, किसी भी प्रकार के कार्य को करने की इच्छा ना होना, सामाजिक गतिविधियों में प्रतिभाग ना करने की इच्छा होना तथा अन्य भावनात्मक तथा व्यावहारिक समस्याएं भी नजर आ सकती हैं.
मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों के लिए कठिन समय होता है विंटर ब्लूज़
डॉ रेणुका बताती है कि यदि व्यक्ति पहले से ही मानसिक अवस्थाओं जैसे अवसाद, निराशा, तनाव या मानसिक विकार जैसे बायपोलर डिसॉर्डर, एडीएच आदि का शिकार हो तो उसे “विंटर ब्लूज” ज्यादा प्रभावित करता है. वह बताती हैं कि सामान्य तौर पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में यह समस्या अपेक्षाकृत ज्यादा नजर आती है. वहीं मौसमी अवसाद को लेकर बुजुर्गों के मुकाबले युवा पीढ़ी ज्यादा संवेदनशील होती है.
कैसे बचे विंटर ब्लूज के प्रभाव से
डॉ रेणुका बताती हैं कि सर्दियों में मौसम का प्रभाव हमारे व्यवहार या मूड को प्रभावित ना करें इसके लिए बहुत जरूरी है कि अपनी दिनचर्या को सक्रिय रखा जाए. तथा उसमें नियमित व्यायाम को शामिल किया जाय . दरअसल व्यायाम न सिर्फ हमारी सोच तथा व्यवहार में सकारात्मकता बढ़ाता है, आलस को दूर भगाता है तथा शरीर को सक्रिय रखने में मदद करता है बल्कि शरीर में हैप्पी हार्मोन्स का निर्माण करने में भी मदद करता है.
इसके अलावा आहार पर नियंत्रण भी बहुत ज्यादा जरूरी होता है. दरअसल सर्दियों के मौसम में आम तौर पर लोग जरूरत से ज्यादा तला भुना, तेज मसालेदार या तेज मीठा आहार ग्रहण करते हैं, जो खाने में स्वादिष्ट तो लगता है लेकिन सर्दियों के मौसम में जैविक घड़ी पर पड़े प्रभाव के चलते हमारा शरीर उस आहार का सही तरीके से पाचन करने में सक्षम नहीं हो पाता है. नतीजतन व्यक्ति ज्यादा थकान, आलस या अन्य प्रकार की शारीरिक समस्याएं महसूस करने लगता है. इसलिए बहुत जरूरी है कि नियमित तौर पर संतुलित तथा पौष्टिक डाइट ग्रहण की जाए.
इसके अलावा शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए आवश्यक मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है. डॉ रेणुका बताती हैं कि जहां तक संभव हो दिन का कुछ समय धूप में बताने का प्रयास करें क्योंकि सूरज की रोशनी में विटामिन डी मिलता है और विटामिन डी अवसाद तथा अन्य प्रकार की मानसिक समस्याओं को दूर रखने में मददगार होता है.
डॉ रेणुका बताती हैं कि सर्दियों के मौसम में ज्यादातर लोग दोस्तों से मिलने जुलने की बजाय अपने घर में हीटर के समक्ष रजाई में बैठना ज्यादा पसंद करते हैं. जो कि एक अच्छी आदत नहीं है. इसकी बजाय घर से बाहर निकले, दोस्तों के साथ समय बिताएं ,अपने पसंदीदा कार्य करें तथा खुश रहने का प्रयास करने से व्यक्ति उत्साही तथा खुश रहता है. जिसके चलते मौसम का असर भी उसे कम प्रभावित करता है.
डॉ रेणुका बताती हैं कि यदि व्यक्ति में मौसमी अवसाद के लक्षण नजर आने लगे तो प्राथमिक तौर पर सक्रिय दिनचर्या, सामाजिक गतिविधियों तथा संतुलित आहार जैसी अच्छी आदतों को अपनाकर शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को स्वस्थ रखने का प्रयास करना चाहिए. लेकिन यदि अवसाद या अन्य प्रकार की समस्याएं ज्यादा प्रभावित करने लगे तो चिकित्सक की मदद जरूर लेनी चाहिए. विशेष तौर पर ऐसे लोग जो पहले से ही किसी मानसिक रोग, विकार या अवस्था से पीड़ित हो, उन्हें तथा उनके परिजनों को इस मौसम में ज्यादा सचेत रहने की जरूरत होती है. क्योंकि यदि पीड़ित पर मौसम का असर ज्यादा नजर आने लगे तो उसकी समस्याएं ज्यादा बढ़ सकती हैं. ऐसे लोगों के लिए चिकित्सीय सलाह बहुत जरूरी हो जाती है.
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