पहले के समय में लोग ज्यादातर संयुक्त परिवार में रहते थे। जहां घर में सिर्फ माता-पिता ही नहीं, दादा-दादी, ताऊ-ताई, चाचा-चाची और बहुत सारे भाई-बहन भी होते थे। ऐसे में बच्चों के लालन पोषण की जिम्मेदारी, उन्हे अच्छी बातें और सही व्यवहार सिखाने की जिम्मेदारी सिर्फ उनके माता-पिता की नहीं होती थी, बल्कि घर के सभी सदस्य इस कार्य में भागेदरी निभाते थे। लेकिन आज के दौर में ज्यादातर लोग न्यूक्लियर परिवारों में रहते हैं, ऐसे में सही पेरेंटिंग कैसी होती है इस बारें में ज्यादातर अभिभावकों, विशेषकर नए बने माता-पिता के मन में सवाल रहते हैं।
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन बताती हैं की बच्चे भले ही वह बात न सीखें जो उनके माता-पिता कहकर सीखाना चाहते हैं लेकिन वह अधिकांश बातें अपने माता-पिता को देख कर ही सीखते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है सबसे पहले माता-पिता का आपसी व्यवहार सकारात्मक, सम्मानीय तथा खुशनुमा हो, तभी बच्चे एक खुशनुमा बचपन जी पाएंगे।
अच्छी पेरेंटिंग कैसी हो इस बारें में अलग-अलग विशेषज्ञ अलग-अलग सुझाव देते हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- विशेषज्ञ मानते हैं की माता-पिता को घर का माहौल हमेशा सम्मानीय, खुशनुमा और सकारात्मक बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे स्वस्थ माहौल में बच्चे में खुशी,सम्मान, संतुष्टि और सुरक्षा की भावना पनपती है।
- नियमित तौर पर बच्चे के साथ क्वालिटी टाईम बिताना चाहिए, उससे बात करनी चाहिए, विशेषकर उसकी बातें सुननी चाहिए। ऐसा करने से माता-पिता और बच्चे के बीच का संबंध और स्नेह ज्यादा प्रगाड़ होता है।
- अपने बच्चे के अच्छे रवैये या उनके सकारात्मक व्यवहार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। माता-पिता जितना अपने बच्चे को उसके बुरे व्यवहार के बारे में डांटेंगे, बच्चा उतना ही इसकी तरफ आकर्षित होगा। इसे पेरेंटिंग की भाषा में नकारात्मक रवैया या नेगेटिव अपरोच कहते हैं। जहां तक संभव हो डांटने की बजाय उसे समझा कर सही गलत का एहसास कराएं। लेकिन यदि बात ज्यादा गंभीर हो तो उन्हे डांटना भी जरूरी है, लेकिन बहुत जरूरी है की उस डांट में अभद्र भाषा या अपमानजनक शब्दों के उपयोग ना हो।
- बच्चों को चीजें बांटने की आदत सीखना बहुत जरूरी होता है। स्कूल में टिफन, पेंसिल-पेन, जरूरत पड़ने पर कोई किताब, यदि बच्चा यह आदत सीख जाये तो इसका उसके व्यक्तित्व पर सकारात्मक असर पड़ता है।
- आमतौर पर देखने में आता है की माता-पिता अपने काम का तनाव और परेशानी होने पर अपने व्यवहार पर नियंत्रण खोने लगते हैं और नतीजतन जाने अनजाने व अपना गुस्सा बच्चों पर चिल्ला कर निकालने लगते हैं। लेकिन इससे परेशानी कम नहीं होती बल्कि बढ़ जाती है। ऐसा करने से बच्चों के कोमल मन पर असर पड़ता है और उनके व्यवहार में गुस्सा और जिद बढ़ जाती है। वहीं माता-पिता व बच्चों के रिश्तों में भी दूरी और सम्मान में कमी आने लगती है। जहां तक संभव हो अभिभावकों को बच्चों पर चिल्लाना नहीं चाहिए। अगर आप उन्हें अपनी कोई बात समझाना चाहते हैं तो उससे पहले आप बच्चे का नजरिया और उसके मनोभावों को समझें।
- अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा बड़ा होकर अपनी जिम्मेदारियां उठाए तो उसकी शुरुआत आपको अभी से करनी होगी। घर के छोटे-छोटे कामों में उनका सहयोग ले। कभी-कभी घर के कुछ सामान्य निर्णयों में उनकी भी राय लें। इससे बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ेगा और वे आत्म-निर्भर और आत्म-विश्वासी भी बनेंगे।
- अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा कुछ सीखे तो उसे उसके काम खुद करने दें। हो सकता है कि शुरू में वह चीजों को सही तरीके से न कर पाए। लेकिन उसे खुद से सीखने दें।
- अपने बच्चों को चुनौतियों का सामना सकारात्मक तरीके से करना सिखाएं। विशेषज्ञों का मानना है कि जो लोग चुनौतियों को सकारात्मक तरीके से देखते हैं, उन्हें सफलता जरूर मिलती है। वहीं जो लोग चुनौतियों को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं, वे पहले ही इनसे हार मान लेते हैं और इन्हें स्वीकार ही नहीं करते।
- बच्चे को सख्त नियंत्रण में रखने की बजाय उनका दोस्त या मार्गदर्शक बनने का प्रयास करें। हद से ज्यादा नियंत्रण बच्चे के विकास में बाधा बन सकता है। बच्चे के हर चीज, हर बात में आपको अपनी राय देने की जरूरत नहीं है, खासकर तब जब आपके बच्चे टीनएज या उससे अधिक उम्र के हों तो। और सबसे जरूरी बात, बच्चे को अपने जैसा नहीं बल्कि उसे उसके जैसा बनने दें यानी उसकी शक्सियत को स्वीकारें।
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