बीएमजे न्यूट्रीशन, प्रिवेंशन एंड हेल्थ (BMJ Nutrition, Prevention and Health) नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में सामने आया है की जो बच्चे अपेक्षाकृत अधिक फल और सब्जियां खाते हैं, सामान्य आहार ग्रहण करने वाले बच्चों की तुलना में न सिर्फ शैक्षिक स्तर पर बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी उनके मानसिक विकास की दर ज्यादा होती है.
गौरतलब है की यह एक क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन था ,जिसमें बच्चों के फलों और सब्जियों के सेवन, भोजन में इनके विकल्प तथा उनके बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का आँकलन किया गया था. द नॉरफ़ॉक चिल्ड्रेन एंड यंग पीपुल्स हेल्थ एंड वेलबीइंग सर्वे 2017 से प्राप्त इस सर्वे में कुल 10,853 बच्चों ने इस सर्वेक्षण को भरा था .
इस शोध में शोधकर्ताओं ने 50 से अधिक प्राथमिक विद्यालयों, माध्यमिक विद्यालयों और उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले महाविद्यालयों से बच्चों का डेटा एकत्रित किया था. गौरतलब है की यूनाइटेड किंगडम की अध्धयन शैली हिंदुस्तान से भिन्न है. वहाँ प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की आयु औसतन 5-11 वर्ष है, और माध्यमिक विद्यालय के बच्चों की आयु 11-16 वर्ष होती है. इस सर्वेक्षण में शामिल सबसे छोटे बच्चे 8 साल के थे।
शोध के आँकलन के लिये विशेष तौर पर माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के लिए, शोधकर्ताओं ने वारविक-एडिनबर्ग मेंटल वेलबीइंग स्केल नामक मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन का उपयोग किया था वहीं प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए, उन्होंने स्टर्लिंग चिल्ड्रेन वेल-बीइंग स्केल नामक एक आंकलन का उपयोग किया था .
सर्वेक्षण में शोधकर्ताओं द्वारा विशेष रूप से बच्चों द्वारा खाए जाने वाले नाश्ते और दोपहर के भोजन के प्रकार तथा उनमें फलों और सब्जियों की मात्रा के बारे में जानकारी ली गई थी. शोधकर्ताओं ने शोध के दौरान पोषण व स्वास्थ्य से जुड़े कुछ अन्य मुद्दों पर को भी संज्ञान में लिया था जो इस इस प्रकार हैं.
- स्कूलों में मिलने वाले मुफ़्त भोजन की स्थिति, युवा वयस्कों में शराब का सेवन और बच्चों का वजन
- जनसांख्यिकी, जिसमें आयु, जातीयता और अभाव (गरीबी) का स्तर शामिल है
- स्वास्थ्य, लंबी अवधि की बीमारियों और विकलांगता संबंधी जानकारी
- रहने की स्थिति, जैसे क्या बच्चे के पास अपने घर में अपना कमरा है या फिर उनके माता-पिता या देखभाल करने वाले धूम्रपान तो नही करते हैं .
- प्रतिकूल अनुभव, जिसमें सुरक्षित महसूस करना और डराना-धमकाना
अध्ययन के सह-लेखक प्रो. आइल्सा वेल्च ने शोध के निष्कर्षों पर जानकारी देते हुए बताया कि " माध्यमिक विद्यालय के 30 बच्चों की एक कक्षा में शोधकर्ताओं ने पाया की चार बच्चों ने सुबह में कक्षाएं शुरू करने से कुछ खाया या पिया नहीं था, वहीं तीन ने दोपहर में कुछ भी खाया- पिया नही था . उक्त कक्षा में मात्र 25 % बच्चों ने पूरे दिन में जरूरी मात्रा में फल और सब्जियों का सेवन किया था. "जिन बच्चों ने नाश्ता और दोपहर का भोजन नहीं किया, उनकी मानसिक स्तिथि उन लोगों के समान था, जो नियमित रूप से अपने घर पर नियमित रूप से बहस या हिंसा का सामना करते हैं .
प्रो वेल्च बताते हैं कि "ये आंकड़े पुष्टि करते हैं की खराब पोषण न सिर्फ स्कूल में बच्चों के अकादमिक प्रदर्शन को प्रभावित करता है बल्कि बच्चे के विकास के जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को भी प्रभावित कर सकता है. हालांकि यह अध्ययन कुछ सीमाओं में सीमित था क्योंकि बच्चों ने केवल एक दिन -एक बार प्रश्नावली भरी थी जिसके चलते वैज्ञानिक भोजन के समय में परिवर्तन तथा आहार के प्रकार में परिवर्तन के चलते होने वाले बदलाव का लंबा ट्रैक नहीं रख पाए थे. वहीं यह डेटा संग्रह बच्चों से स्व-रिपोर्टिंग पर निर्भर था , जिसके चलते कुछ सूचनाओं के गलत होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है ।
शोध में प्रो वेल्च तथा उनके साथियों ने इस बात पर जोर दिया कि "स्कूली उम्र में सभी बच्चों के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले पौष्टिक भोजन को ग्रहण करना तथा उनके लिये भरपूर मात्रा में फल सब्जियों की उपलब्धता जरूरी है. जिससे बच्चों के सम्पूर्ण स्वास्थ्य को सशक्त बनाया जा सके. इसके साथ ही उन कारणों को समझने की जरूरत है कि कुछ छात्र भोजन क्यों नही करते हैं .
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