नई दिल्ली : आजकल छोटे-छोटे बच्चों में आंखों की समस्याएं आम बात हो गई है. बीते कुछ साल में छोटे बच्चों में आंखों की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं. ज्यादातर मामलों में बहुत कम उम्र से ही बच्चों की टीवी या मोबाइल के साथ ज्यादा दोस्ती और अस्वस्थ आहार शैली या शरीर में जबरदस्त पोषण की कमी को जिम्मेदार माना जा सकता है.
बच्चों में नेत्र दोष के कारण
रेहान आई क्लिनिक ठाणे मुंबई के नेत्र चिकित्सक डॉ लगिष शहाणे बताते हैं कि पहले के समय में जहां ज्यादातर हर उम्र के बच्चे ज्यादा भागते दौड़ते थे और अपने दोस्तों के साथ बाहर खेलते थे, जिससे उनकी कसरत भी थी, आजकल वे कार्टून, कार्टून वीडियो , मोबाइल गेमिंग, पढ़ाई या मनोरंजन के लिए स्मार्ट फोन या अन्य स्मार्ट स्क्रीन के बारे में बहुत अधिक समय बोलते हैं. इसलिए खतरनाक खतरनाक आंखों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं.
वहीं उनके आहार में जंक फूड की बढ़ती मात्रा व उनका चूजी स्टाइल डाइट (उनकी पसंद के अनुसार ही खाना खाना) के कारण उनके शरीर में जबरदस्त पोषण की कमी भी उनकी आंखों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. इसके चलते कम उम्र में ही बच्चों में नजर में कमजोरी, नजर में समस्या, आंखों में धुंधलापन, आंखों में सूखापन, आंखों में सिर में दर्द और कई चीजों पर नजर केंद्रित करने में परेशानी जैसी समस्याएं होने लगती हैं.
डॉ.आयुष का कहना है कि बच्चों में दृष्टि दोष या आंखों की समस्या के लिए कई बार चकमा देने के कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं, जैसे मायोपिया, हाइपरमेट्रोपिया, एम्ब्लियोपिया या लेजी आई और स्ट्रोबिस्मस या क्रॉस आई जैसे ब्राजीलियाई आदि. ये मायोपिया और हाइपरमेट्रोपिया में जहां आंखों में लेंस या फोकस समस्या जिम्मेदार होती है, जिसके कारण बच्चों में पास और दूर की नजर कमजोर हो जाती है, वहीं एम्बलायोपिया यानी लेजी आई एक दृश्य विचित्र विकार होता है. किस बच्चे की एक आंख में देखने की सामान्य क्षमता विकसित नहीं होती है. यह समस्या बच्चों में छोटी उम्र में ही हो सकती है.
इसके अलावा कई बार बच्चों में ग्लूकोमा या ग्लूकोमा की समस्या भी हो सकती है. वहीं कई बार बच्चों में विभिन्नता कारणों से भी आंख का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. जैसे ऑक्लाइन ऐल्बिनिजम और रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा जैसी आनुवंशिकता कई बार बच्चों में कमजोर आंखें, कलर ब्लाइंडनेस, नाइट ब्लाइंडनेस, रोशनी को बचाने की क्षमता की कम होना या कई बार अंधापन जैसी समस्या का कारण बन सकती हैं.
डॉ आयुष के बयान हैं कि कई बार किसी चोट, या रोग संक्रमण के तीव्र प्रभाव के कारण मस्तिष्क के उन हिस्सों की नसों से प्रभावित या होने के कारण जो दृष्टि को नियंत्रित करते हैं बच्चों में दृष्टि दोष, आंखों से जुड़े रोग और कई बार अस्थाई या ब्रॉडबैंड अंधेपन की समस्या हो सकती है.
पेरेंट्स का अलर्ट रहना जरूरी है
वह दावा करती हैं कि समस्या का पता चलने पर ज्यादातर मामलों में सही उपचार देखभाल से समस्या का निवारण और रोग के प्रभाव को कम करना या उनके कारण होने वाली क्षति को नियंत्रित करना संभव है. लेकिन आमतौर पर मातापिता नवजात या ज्यादा छोटे बच्चों में नजर की समस्या से जुड़े लक्षणों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, जिसके कारण कई बार समस्या का पता नहीं चल पाता है. और उससे ज्यादा बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है.
डॉ एज एज स्टेटमेंट्स हैं कि बच्चों को नजर आने या आंखों से संबंधित किसी भी समस्या से बचने के लिए बहुत जरूरी है कि अभिभावक के लक्षणों को लेकर अलर्ट रहे. जो लक्षण आंखों से संबंधित होने के संकेत हो सकते हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं...
- बच्चे की आंखों में या छोटा या पूरे सिर में दर्द
- आंखों में लवजिमा, सूखापन या लगातार पानी आना
- बच्चे पढ़ने के लिए या किसी काम के लिए आंखों को सिकोड़ कर देख रहे हो
- आंखों को खुजलाना
- सामान्य समय तथा टीवी या मोबाइल देखने का समय एक आंख को बंद करना
- किताब, टीवी, कंप्यूटर या मोबाइल की स्क्रीन को बहुत पास से देखें
- सामान्य से अधिक पलकें झपकना
- आंखों में पुतली पर या आसपास अलग-अलग रंग के धब्बे नजर आना, आदि.
कैसे करें आंखों की सुरक्षा
बच्चों की आंखों की सुरक्षा और स्वस्थ रहने के लिए स्वस्थ आहार और स्वस्थ व्यवहार का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. स्वस्थ आहार की बात करें तो बहुत जरूरी है कि उनके आहार में विटामिन विशेष रूप से विटामिन ए, सी, ई, जीत, एंटीऑक्सीडेंट और अन्य मिलावट, तथा ओमेगा-3 फैटी एसिड जैसे आवश्यक पोषक तत्व शामिल हों। वहीं स्वस्थ व्यवहार के अधीन नींद के साथ मोबाइल या किसी भी तरह की स्मार्ट स्क्रीन के साथ उनका स्क्रीन टाइम कंट्रोल करना भी बहुत जरूरी है.
इसके अलावा कुछ ऐसी भी हैं जो बच्चों की आंखों को स्वस्थ व निरोगी बनाए रखने में काफी उपयोगी हो सकती हैं जिसके कुछ प्रकार हैं.
- जरूरी मात्रा में नींद लें
- शारीरिक कसरत या देखने वाले खेल दें
- रोजाना ज्यादा से ज्यादा पानी पिए
- कमर झुकाकर, महीनों को टिकाकर या लेटकर न पढ़ें
- पढ़ने के लिए हमेशा टेबल-कुर्सी का इस्तेमाल करें