जन्म के बाद के लेकर शुरुआती कुछ महीने तथा साल नवजात शिशुओं के लिए काफी संवेदनशील होते है. क्योंकि इस अवधि में बच्चों को संक्रमण, एलर्जी या अलग-अलग कारणों से समस्या या रोग होने की आशंका ज्यादा रहती है. चूंकि इस आयु में बच्चा बोल कर अपनी समस्या को बता नहीं पाता है इसलिए जब तक मातापिता उसकी समस्या को जान पाते हैं कई बार उसकी अवस्था गंभीर भी हो जाती है. इसलिए बहुत जरूरी है की माता पिता को बच्चे को होने वाली आम समस्याओं के बारें में जानकारी हो तथा उन्हे यह भी जानकारी हो कि वे कैसे समस्याओं के लक्षणों को समझें.
नवजात बच्चों में होने वाली आम समस्याएं तथा रोग
लखनऊ उत्तरप्रदेश की बाल रोग विशेषज्ञ डा सृष्टि चतुर्वेदी बताती हैं नौ महीने तक मां के गर्भ में रहने के बाद जब बच्चा जन्म के बाद बाहरी वातावरण के संपर्क में आता है तो हल्की-फुलकी समस्याएं होने आम बात है. इसके अलावा चूंकि बच्चा आहार के लिए मां के दूध पर निर्भर करता है, ऐसे में माँ के आहार में कमी भी बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है. इसके अलावा भी कुछ आम समस्याएं या रोग हैं जो जन्म के बाद सामान्यतः बच्चों में नजर आ सकते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं।
पीलिया
नवजात शिशुओं में आंशिक पीलिया होना आम बात है. दरअसल बच्चों में पीलिया यानी नियोनेटल जौंडिस का कारण उनके लीवर का पूरी तरह से विकसित न होना होता है. जिससे रक्त में बिलीरुबिन की मात्रा प्रभावित होती है. लेकिन अधिकांश मामलों में थोड़ी सी सावधानी बरतने तथा चिकित्सक के दिशा निर्देशों का पालन करने से यह समस्या ठीक हो जाती है. ऐसी समस्या होने पर बहुत जरूरी है की दवा के साथ ही चिकित्सक के निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया जाय, जिससे समस्या को बढ़ने से रोका जा सके.
पेट सम्बंधी समस्याएं
नवजात बच्चों में पेट में दर्द, पेट फूलने, गैस तथा कब्ज जैसी समस्याएं आमतौर पर नजर आती हैं . इसे चिकित्सीय भाषा में एब्डोमिनल डिस्टेंशन कहा जाता है. इसके लिए माता द्वारा ग्रहण किया जाने वाले आहार को विशेषतौर पर जिम्मेदार माना जा सकता है. आमतौर पर ऐसी अवस्था में घर के बड़े बूढ़े कुछ घरेलू नुस्खों का भी इस्तेमाल करते हैं जो काफी असरदार भी होते हैं. लेकिन यदि दर्द के चलते बच्चा ज्यादा रोए या उसका पेट ज्यादा फूला तथा कसा हुआ नजर आए तो चिकित्सक से सलाह अवश्य लेनी चहिए.
उल्टी
नवजात बच्चे आमतौर पर दूध पीने के बाद डकार न दिलाने पर उल्टी कर देते हैं, जो की सामान्य बात है. लेकिन यदि बच्चा हल्के हरे रंग की उल्टी करें या उसे ज्यादा मात्रा में उल्टी हो तो यह किसी रोग या संक्रमण का संकेत हो सकता है. ऐसे मे तत्काल बच्चे को चिकित्सक के पास लेकर जाना चाहिए.
सांस लेने में समस्या
कई बार सर्दी जुखाम होने पर बच्चे की सांस की नाली में कफ जमने लगता है. ऐसे में उसे सांस लेने में समस्या हो सकती है. बहुत जरूरी है कि सर्दी होने पर माता पिता ध्यान रखें कि बच्चे की सांस लेने की लय ठीक है या नही , या फिर सांस लेने पर घरघराहट तो नही हो रही है. या फिर बच्चे की त्वचा में नीलापन तो नही लग रहा है. यदि ऐसा हो तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.
डायपर रैश, एलर्जी तथा त्वचा पर संक्रमण
बच्चों की त्वचा बेहद नाजुक तथा संवेदनशील होती है. तथा ऐसे में डायपर के ज्यादा इस्तेमाल से, मौसम के कारण, धूल मिट्टी, किसी साबुन या क्रीम के इस्तेमाल के कारण और यहाँ तक की किसी कपड़े के त्वचा पर असर के कारण सहित अन्य कई कारणों से भी उनकी त्वचा पर रैश या एलर्जी नजर आ सकती हैं. इसके अलावा बच्चों में सिर की त्वचा पर एलर्जी होना या उस पर पपड़ी बनना भी एक आम त्वचा संबंधी समस्या है. इनमें से किसी भी अवस्था के लक्षण नजर आने पर चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.
कान में संक्रमण
नवजात या छोटे बच्चों में कान में संक्रमण आम बात है. यह संक्रमण किसी बैक्टीरिया के कारण भी हो सकता है, या फिर उन्हे नहलाते समय कान में पानी जाने का कारण भी हो सकता है. वहीं कई बार लंबे समय तक सर्दी जुखाम होने का कारण भी कान में समस्या हो सकती है. ऐसी अवस्था में बच्चे को कान में दर्द या सुनने में समस्या हो सकती है. इसलिए ऐसी स्थिति में जल्द से जल्द चिकित्सक से जांच जरूरी हो जाती है.
कैसे जाने बच्चे को है समस्या
डा सृष्टि चतुर्वेदी बताती हैं कि चूंकि इतनी कम आयु में बच्चे बोल कर अपनी समस्या नही बता पाते हैं तो ऐसे में माता पिता तथा उनका ध्यान रखने वाले अन्य लोगों को उनकी गतिविधियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. जैसे क्या दूध पीने में, लेटने में, मल या मूत्र त्याग करने में या सोने में उन्हे किसी की असहजता या परेशानी तो नही रही है, वह ज्यादा रो तो नही रहा है, वह सही मात्रा में दूध पी रहा है या नही तथा नियमित तौर पर मल और मूत्र त्याग कर रहा है या नही. इसके अलावा कही उसकी हरकतों या प्रतिक्रियाओं में शिथिलता तो नही आ रही हैं. यदि ऐसा हो तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना जरूरी है.