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Dyslexia Awareness Week: डिस्‍लेक्सिया एक मानसिक अवस्था या रोग! जानिए विशेषज्ञों की राय

छोटे बच्चों में लिखने-पढ़ने में समस्या होना आम बात होती है. कुछ में यह कम तो कुछ में ज्यादा भी नजर आ सकती है. ज्यादातर लोग बच्चों के पढ़ने लिखने की क्षमता को उनकी बुद्धिमत्ता से जोड़ कर देखते हैं. जो सही नहीं है . कई बार बच्चों में पढ़ने लिखने में समस्या लर्निंग डिसएबिलिटी (Learning disability) कहे जाने वाले मनोरोग डिस्लेक्सिया का कारण भी हो सकती है. European Dyslexia Association dyslexia awareness day theme breaking through barrier . Dyslexia awareness campaign .

European Dyslexia Association dyslexia awareness day theme breaking through barrier
डिस्‍लेक्सिया एक मानसिक अवस्था
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Published : Oct 5, 2022, 6:17 PM IST

डिस्लेक्सिया दुनिया भर के बच्चों में पाई जाने वाली एक आम लर्निंग डिसेबिलिटी है. आंकड़ों कि माने तो हर 10 में से एक बच्चे में यह समस्या पाई जाती है. लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर लोग इसके कारणों , इसके प्रभावों तथा इसके निवारण के उपायों को लेकर ज्यादा जागरूक नहीं है. वैश्विक स्तर पर लोगों में इस लर्निंग डिसेबिलिटी को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में द इंटरनेशनल डिस्लेक्सिया एसोसिएशन (The International Dyslexia Association) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “डिस्लेक्सिया जागरूकता सप्ताह” (Dyslexia Awareness Week 3 - 9 October) मनाया जाता है . इस वर्ष यह सप्ताह “ब्रेकिंग थ्रू बैरियर थीम“ (Breaking Through Barrier Theme) पर 3 अक्टूबर से 9 अक्टूबर तक मनाया जा रहा है. European Dyslexia Association . Dyslexia awareness campaign .

इतिहास : डिस्लेक्सिया की पहचान पहली बार 1881 में जर्मन चिकित्सक ओसवाल्ड बर्खान ने की थी. इस विकार की पहचान के छह साल बाद नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्फ बर्लिन ने इसे 'डिस्लेक्सिया' नाम दिया था. बर्खान ने एक युवा लड़के के मामले का विश्लेषण करते हुए इस विकार के अस्तित्व की खोज की थी , जिसने ठीक से पढ़ना और लिखना सीखने में गंभीर परेशानियां थी.

गौरतलब है कि “डिस्लेक्सिया जागरूकता सप्ताह” (Dyslexia Awareness Week) के दौरान अक्टूबर माह के पहले गुरुवार को “विश्व डिस्लेक्सिया जागरूकता दिवस” (World Dyslexia Awareness Day) भी मनाया जाता है. इसलिए इस वर्ष यह विशेष दिवस 6 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. इस वर्ष यूरोपियन डिस्लेक्सिया एसोसिएशन (European Dyslexia Association) द्वारा इस अवसर पर डिस्लेक्सिया जागरूकता अवधारणा (Dyslexia awareness concept) को बढ़ावा देने के लिए हैशटैग #EDAdyslexiaday का उपयोग करने की सिफारिश की गई है.

क्या है डिस्‍लेक्सिया : डिस्लेक्सिया किस तरह का मनोरोग है तथा उसके क्या प्रभाव हो सकते है इस बारें में ज्यादा जानने के लिए ETV भारत सुखीभव ने देहरादून की मनोचिकित्सक, राष्ट्रीय स्तर पर मनोरोगों के लिए जागरूकता फैलाने तथा उनके निवारण के लिए देश भर के मनोचिकित्सकों द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम “मैप टॉक“ की जनरल सेकेट्री व सुसाइड प्रिवेंशन सहित विभिन्न मानसिक समस्याओं को लेकर चलाये जा रहे कई सरकारी व गैर सरकारी अभियानों की सदस्य डॉ वीना कृष्णन से बात की.

डॉ. कृष्णन बताती है कि डिस्‍लेक्सिया एक ऐसी मानसिक अवस्था है, जिसमें बच्चा किसी जानकारी को ग्रहण करने, उसको समझने और उसका इस्तेमाल करने में असमर्थ रहता है. यह लर्निंग डिसऑर्डर है. जिसमें आमतौर पर बच्चों को दिशा पहचान पाने में, अक्षरों को पहचान पाने में , लगातार इस्तेमाल होने वाले शब्दों की स्पेलिंग को भी पढ़ने व लिखने में, अक्षरों को हमेशा एक जैसा लिखने में , उनके सीधे या उलटे होने का भेद कर पाने में , वाक्यों या शब्दों का सही गठन करने तथा बातों या पाठ को याद रखने मुश्किल आती है. कई बार बच्चे इस समस्या में मिरर इमेज में अक्षर लिखने लगते हैं . यहाँ तक की कई बार डिस्‍लेक्सिक बच्चे ब्लैक बोर्ड या किताब से पढ़कर भी कॉपी में सही तरीके से नहीं लिख पाते हैं. इसके अलावा इन बच्चों को जूते के फीते बांधने या शर्ट में बटन लगाने जैसे कार्य, जहां ध्यान लगाने की जरूरत होती है, करने में समस्या होती है. इस समस्या से पीड़ित बच्चों की कुछ भी सीखने की गति काफी धीमी होती है.

वह बताती हैं कि यह दरअसल तंत्रिका तंत्र से जुड़ा एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसके लिए कई बार आनुवंशिक कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं. आमतौर पर ज्यादा छोटे बच्चों में शुरुआत में इसके लक्षणों को समझना मुश्किल होता है. क्योंकि यह कोई शारीरिक बीमारी तो है नहीं, इसलिए किसी बच्चे के स्वास्थ्य को देख कर इसके लक्षणों का पता नहीं लगाया जा सकता है. और जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है तो शुरुआत में लगभग सभी बच्चों को सीखने में समस्या होती ही है. आमतौर पर बच्चों में भी इसके लक्षण तब समझ में आते हैं जब स्‍कूल में लगातार उन्हे भाषा या नई चीजें सीखने में परेशानी होने लगती है.डॉ कृष्णन बताती हैं कि लक्षणों के आधार पर इस लर्निंग डिसऑर्डर के तीन मुख्य प्रकार माने जाते हैं.

  • डिस्‍लेक्सिया- जिसमें बच्चे को शब्दों को पढ़ने में दिक्कत होती है.
  • डिस्ग्राफिया- जिसमें बच्चे को लिखने में समस्या होती है.
  • डिस्कैल्कुलिया- जिसमें उसे मैथ्स विषय में समस्या आती है.

मानसिक बीमारी नहीं है डिस्‍लेक्सिया : डॉ. कृष्णन बताती है कि डिस्‍लेक्सिया मानसिक बीमारी नहीं है और इस समस्या से पीड़ित बच्चे जरूरी नहीं है की बुद्धू हों. कई बार डिस्लेक्सिक बच्चों की बौद्धिक क्षमता औसत या औसत से ज्यादा भी हो सकती है. ये बच्चे चित्रकार, बेहतरीन वक्ता या गायक भी हो सकते है. वह बताती हैं कि हालांकि पहले के मुकाबले अब लोग इस समस्या को लेकर ज्यादा जागरूक हो रहे हैं लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे मातापिता हैं जो इस समस्या के लक्षण नजर आने के बावजूद इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि उनके बच्चे को जांच तथा विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है. जिसका खामियाजा बच्चे को उठाना पड़ता है. जब सीखने में या पढ़ाई में सही परफ़ॉर्म ना करने पर अध्यापक और अभिभावक उन्हे सबके सामने डांटते हैं उनके दोस्त और उसके सहपाठी उनका मजाक उड़ाने लगते है, तो कई बार कुछ बच्चों में आत्मविश्वास में कमी आने लगती है, वहीं कुछ बच्चों में गुस्सा, जिद, लड़ने या मारपीट करने की आदत बढ़ जाती है. ऐसी हालात में बच्चा वह काम भी नहीं कर पाता, जो उसे ज्यादा बेहतर तरह से आता हैं.

इलाज : डॉ. कृष्णन बताती है कि इस मानसिक अवस्था का कोई निश्चित या विशेष इलाज नहीं है. बच्चे में डिस्लेक्सिया के लक्षण नजर आने पर बहुत जरूरी है कि मनोचिकित्सक से सलाह ली जी तथा उनके निर्देशानुसार सही शिक्षा शैली और मार्गदर्शन के जरिये बच्चे की लिखने, पढ़ने और सीखने की क्षमता को बेहतर करने के लिए काम किया जाए. चूंकि इन बच्चों के सीखने की गति अपेक्षाकृत धीमी होती है इसलिए सिर्फ अभिभावक ही नहीं बल्कि उनके अध्यापकों को भी लगातार तथा सही दिशा में प्रयास करने की जरूरत होती है. सही दिशानिर्देशों के अनुसार प्रयास करने से बच्चे की क्षमता को काफी सुधारा जा सकता है. यहाँ तक की उनकी सीखने, लिखने तथा याद करने की क्षमता भी बेहतर हो सकती है.

इसके अलावा बहुत जरूरी है कि बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए और उनमें आत्मविश्वास जगाने के लिए उन्हें वह काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए जो वो बहुत अच्छे से करते हों जैसे चित्रकारी, गायन, वादन, किसी प्रकार का कोई खेल, या कोई भी अन्य गतिविधि. साथ ही उनमें अच्छी हॉबी विकसित करने का भी प्रयास करना चाहिए. ऐसे बच्चों के साथ बहुत जरूरी है कि अध्यापक और अभिभावक दोनों ही धैर्य और संयम से काम ले. वह बताती हैं कि डिस्लेक्सिक बच्चों को अगर सही दिशा निर्देशन मिले तो वे अपने करियर में भी बहुत तरक्की कर सकते हैं.

एकेड एप से आसानी से लिख-पढ़ सकेंगे डिस्लेक्सिया पीड़ित छात्र, जानें तरीका...

डिस्लेक्सिया दुनिया भर के बच्चों में पाई जाने वाली एक आम लर्निंग डिसेबिलिटी है. आंकड़ों कि माने तो हर 10 में से एक बच्चे में यह समस्या पाई जाती है. लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर लोग इसके कारणों , इसके प्रभावों तथा इसके निवारण के उपायों को लेकर ज्यादा जागरूक नहीं है. वैश्विक स्तर पर लोगों में इस लर्निंग डिसेबिलिटी को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में द इंटरनेशनल डिस्लेक्सिया एसोसिएशन (The International Dyslexia Association) द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “डिस्लेक्सिया जागरूकता सप्ताह” (Dyslexia Awareness Week 3 - 9 October) मनाया जाता है . इस वर्ष यह सप्ताह “ब्रेकिंग थ्रू बैरियर थीम“ (Breaking Through Barrier Theme) पर 3 अक्टूबर से 9 अक्टूबर तक मनाया जा रहा है. European Dyslexia Association . Dyslexia awareness campaign .

इतिहास : डिस्लेक्सिया की पहचान पहली बार 1881 में जर्मन चिकित्सक ओसवाल्ड बर्खान ने की थी. इस विकार की पहचान के छह साल बाद नेत्र रोग विशेषज्ञ रूडोल्फ बर्लिन ने इसे 'डिस्लेक्सिया' नाम दिया था. बर्खान ने एक युवा लड़के के मामले का विश्लेषण करते हुए इस विकार के अस्तित्व की खोज की थी , जिसने ठीक से पढ़ना और लिखना सीखने में गंभीर परेशानियां थी.

गौरतलब है कि “डिस्लेक्सिया जागरूकता सप्ताह” (Dyslexia Awareness Week) के दौरान अक्टूबर माह के पहले गुरुवार को “विश्व डिस्लेक्सिया जागरूकता दिवस” (World Dyslexia Awareness Day) भी मनाया जाता है. इसलिए इस वर्ष यह विशेष दिवस 6 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. इस वर्ष यूरोपियन डिस्लेक्सिया एसोसिएशन (European Dyslexia Association) द्वारा इस अवसर पर डिस्लेक्सिया जागरूकता अवधारणा (Dyslexia awareness concept) को बढ़ावा देने के लिए हैशटैग #EDAdyslexiaday का उपयोग करने की सिफारिश की गई है.

क्या है डिस्‍लेक्सिया : डिस्लेक्सिया किस तरह का मनोरोग है तथा उसके क्या प्रभाव हो सकते है इस बारें में ज्यादा जानने के लिए ETV भारत सुखीभव ने देहरादून की मनोचिकित्सक, राष्ट्रीय स्तर पर मनोरोगों के लिए जागरूकता फैलाने तथा उनके निवारण के लिए देश भर के मनोचिकित्सकों द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम “मैप टॉक“ की जनरल सेकेट्री व सुसाइड प्रिवेंशन सहित विभिन्न मानसिक समस्याओं को लेकर चलाये जा रहे कई सरकारी व गैर सरकारी अभियानों की सदस्य डॉ वीना कृष्णन से बात की.

डॉ. कृष्णन बताती है कि डिस्‍लेक्सिया एक ऐसी मानसिक अवस्था है, जिसमें बच्चा किसी जानकारी को ग्रहण करने, उसको समझने और उसका इस्तेमाल करने में असमर्थ रहता है. यह लर्निंग डिसऑर्डर है. जिसमें आमतौर पर बच्चों को दिशा पहचान पाने में, अक्षरों को पहचान पाने में , लगातार इस्तेमाल होने वाले शब्दों की स्पेलिंग को भी पढ़ने व लिखने में, अक्षरों को हमेशा एक जैसा लिखने में , उनके सीधे या उलटे होने का भेद कर पाने में , वाक्यों या शब्दों का सही गठन करने तथा बातों या पाठ को याद रखने मुश्किल आती है. कई बार बच्चे इस समस्या में मिरर इमेज में अक्षर लिखने लगते हैं . यहाँ तक की कई बार डिस्‍लेक्सिक बच्चे ब्लैक बोर्ड या किताब से पढ़कर भी कॉपी में सही तरीके से नहीं लिख पाते हैं. इसके अलावा इन बच्चों को जूते के फीते बांधने या शर्ट में बटन लगाने जैसे कार्य, जहां ध्यान लगाने की जरूरत होती है, करने में समस्या होती है. इस समस्या से पीड़ित बच्चों की कुछ भी सीखने की गति काफी धीमी होती है.

वह बताती हैं कि यह दरअसल तंत्रिका तंत्र से जुड़ा एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसके लिए कई बार आनुवंशिक कारण भी जिम्मेदार हो सकते हैं. आमतौर पर ज्यादा छोटे बच्चों में शुरुआत में इसके लक्षणों को समझना मुश्किल होता है. क्योंकि यह कोई शारीरिक बीमारी तो है नहीं, इसलिए किसी बच्चे के स्वास्थ्य को देख कर इसके लक्षणों का पता नहीं लगाया जा सकता है. और जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है तो शुरुआत में लगभग सभी बच्चों को सीखने में समस्या होती ही है. आमतौर पर बच्चों में भी इसके लक्षण तब समझ में आते हैं जब स्‍कूल में लगातार उन्हे भाषा या नई चीजें सीखने में परेशानी होने लगती है.डॉ कृष्णन बताती हैं कि लक्षणों के आधार पर इस लर्निंग डिसऑर्डर के तीन मुख्य प्रकार माने जाते हैं.

  • डिस्‍लेक्सिया- जिसमें बच्चे को शब्दों को पढ़ने में दिक्कत होती है.
  • डिस्ग्राफिया- जिसमें बच्चे को लिखने में समस्या होती है.
  • डिस्कैल्कुलिया- जिसमें उसे मैथ्स विषय में समस्या आती है.

मानसिक बीमारी नहीं है डिस्‍लेक्सिया : डॉ. कृष्णन बताती है कि डिस्‍लेक्सिया मानसिक बीमारी नहीं है और इस समस्या से पीड़ित बच्चे जरूरी नहीं है की बुद्धू हों. कई बार डिस्लेक्सिक बच्चों की बौद्धिक क्षमता औसत या औसत से ज्यादा भी हो सकती है. ये बच्चे चित्रकार, बेहतरीन वक्ता या गायक भी हो सकते है. वह बताती हैं कि हालांकि पहले के मुकाबले अब लोग इस समस्या को लेकर ज्यादा जागरूक हो रहे हैं लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे मातापिता हैं जो इस समस्या के लक्षण नजर आने के बावजूद इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर पाते हैं कि उनके बच्चे को जांच तथा विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है. जिसका खामियाजा बच्चे को उठाना पड़ता है. जब सीखने में या पढ़ाई में सही परफ़ॉर्म ना करने पर अध्यापक और अभिभावक उन्हे सबके सामने डांटते हैं उनके दोस्त और उसके सहपाठी उनका मजाक उड़ाने लगते है, तो कई बार कुछ बच्चों में आत्मविश्वास में कमी आने लगती है, वहीं कुछ बच्चों में गुस्सा, जिद, लड़ने या मारपीट करने की आदत बढ़ जाती है. ऐसी हालात में बच्चा वह काम भी नहीं कर पाता, जो उसे ज्यादा बेहतर तरह से आता हैं.

इलाज : डॉ. कृष्णन बताती है कि इस मानसिक अवस्था का कोई निश्चित या विशेष इलाज नहीं है. बच्चे में डिस्लेक्सिया के लक्षण नजर आने पर बहुत जरूरी है कि मनोचिकित्सक से सलाह ली जी तथा उनके निर्देशानुसार सही शिक्षा शैली और मार्गदर्शन के जरिये बच्चे की लिखने, पढ़ने और सीखने की क्षमता को बेहतर करने के लिए काम किया जाए. चूंकि इन बच्चों के सीखने की गति अपेक्षाकृत धीमी होती है इसलिए सिर्फ अभिभावक ही नहीं बल्कि उनके अध्यापकों को भी लगातार तथा सही दिशा में प्रयास करने की जरूरत होती है. सही दिशानिर्देशों के अनुसार प्रयास करने से बच्चे की क्षमता को काफी सुधारा जा सकता है. यहाँ तक की उनकी सीखने, लिखने तथा याद करने की क्षमता भी बेहतर हो सकती है.

इसके अलावा बहुत जरूरी है कि बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए और उनमें आत्मविश्वास जगाने के लिए उन्हें वह काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए जो वो बहुत अच्छे से करते हों जैसे चित्रकारी, गायन, वादन, किसी प्रकार का कोई खेल, या कोई भी अन्य गतिविधि. साथ ही उनमें अच्छी हॉबी विकसित करने का भी प्रयास करना चाहिए. ऐसे बच्चों के साथ बहुत जरूरी है कि अध्यापक और अभिभावक दोनों ही धैर्य और संयम से काम ले. वह बताती हैं कि डिस्लेक्सिक बच्चों को अगर सही दिशा निर्देशन मिले तो वे अपने करियर में भी बहुत तरक्की कर सकते हैं.

एकेड एप से आसानी से लिख-पढ़ सकेंगे डिस्लेक्सिया पीड़ित छात्र, जानें तरीका...

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