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ईएनटी विशेषज्ञ से ही कराएं कानों में फंगल इन्फेक्शन का इलाज

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Published : Aug 10, 2021, 1:09 PM IST

मानसून के मौसम में सिर्फ फ्लू, सर्दी जुखाम ही नही, कानों का संक्रमण भी लोगों को काफी परेशान करता है| इसलिए बहुत जरुरी है की इस मौसम में कान की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाय।

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मॉनसून का खुशनुमा मौसम परेशानियाँ भी कम नहीं लाता है। तमाम तरह की बीमारियों और संक्रमणों के लिए इस मौसम में फैली नमीं को जिम्मेदार माना जाता है। सर्दी-जुखाम, फ्लू, त्वचा रोग, पेट में संक्रमण सहित इस मौसम में हर उम्र के लोगों में कानों में संक्रमण जैसी समस्या भी देखने में आती है। मानसून का मौसम किस तरह कानों की समस्या बढ़ा सकता है इस बारें में ETV भारत सुखीभवा को ज्यादा जानकारी देते हुए ईएनटी सेंटर इंदौर के नाक, कान, गला, कैंसर, एलर्जी विशेषज्ञ, इंडोस्कोपिस्ट एवं सर्जन तथा जर्मनी से एडवांस ईएनटी ट्रेनिंग प्राप्त डॉ सुबीर जैन, कानों के संक्रमण के जड़ से इलाज के लिए ईएनटी विशेषज्ञ से ही जांच व इलाज करवाने की सिफारिश करते हैं।

क्या है कान में कवक यानी फंगल संक्रमण

डॉ सुबीर जैन बताते हैं की हर साल मानसून के दौरान काफी लोग कान में फंगस और संक्रमण की समस्या का शिकार होते हैं। बरसात के मौसम में वातावरण में नमी कानों में फंगल इंफेक्शन के खतरे को काफी ज्यादा बढ़ा देती है। वे बताते हैं की हमारे कान में मौजूद ग्लैंड्स में सेरुमेन बनाता है, जिसे आम भाषा में वैक्स या कान का मैल भी कहा जाता है। अलग-अलग लोगों के कान में इसकी प्रकृति अलग-अलग होती है जैसे कुछ लोगों के कान में यह मोम ज्यादा तरल प्रकृति का होता है तो कुछ में हल्का सख्त, और कुछ लोगों में ज्यादा सख्त । जब बारिश के मौसम में नमी बढ़ जाती है जो यह वैक्स इस नमीं को सोखने लगता है और फूल जाता है । जिससे कान की नाली में बाधा उत्पन्न होने लगती है । जिसके चलते कान में बंद होने, दर्द होने या खुजली होने जैसे अहसास होने लगते हैं। समस्या ज्यादा बढ़ने पर यह संक्रमण कान के परदे को भी नुकसान पहुँचा सकता है।

यह संक्रमण दो प्रकार के हो सकते हैं, एक है कैंडिडा और दूसरा है एस्पर्जिलस। कैंडिडा में कान से सफेद पस जैसा पदार्थ या फ्लैक्स निकलते है। और यदि कान से खून जैसे रंग वाला पदार्थ या द्रव्य निकलता है तो ये अवस्था एस्पर्जिलस होता है। डॉ जैन बताते हैं कि इन दोनों ही प्रकार के संक्रमणों के इलाज के लिए बहुत जरूरी है की चिकिसक से पूरा उपचार कराया जाय। कई बार लोग दूसरों से सुन के या कैमिस्ट से कान में संक्रमण के लिए दवाई या ड्रॉप ले लेते हैं और बगैर चिकित्सीय सलाह के उनका इस्तेमाल करने लगते हैं जिससे कान में संक्रमण के ज्यादा फैलने और कान के परदे को स्थाई नुकसान पहुँचने की आशंका बढ़ जाती है।

ईयर बड्स और माचिस की तीली से बनाएँ दूरी

डॉ सुबीर जैन बताते हैं की कान में वैक्स एक प्राकृतिक सुरक्षा होती है, जो बाहरी धूल और बैक्टीरिया को कान के भीतरी हिस्सों में जाने से रोकती है। आमतौर पर लोग कानों के मैल निकालने के लिए बालों की चिमटी, माचिस की तीली तथा अन्य चीजों का उपयोग करते हैं जो सही नहीं है। दरअसल एक प्राकृतिक प्रक्रिया के चलते यदि कान में वैक्स जरूरत से ज्यादा बन जाये तो वह अपने आप बाहर आ जाता है । लेकिन यदि ऐसा न हो तो किसी भी दुर्घटना या संक्रमण से बचने के लिए स्वतः कान का मैल साफ करने से बचना चाहिए। डॉ जैन बताते हैं की आमतौर पर लोग कान की सफाई के लिए माचिस की तीली का उपयोग करते हैं। दरअसल माचिस की तीली पर लगे मसाले में नमी या फफूंद, कान में फंगल इन्फेक्शन का कारण बन सकती है। वहीं बालों की चिमटी का इस्तेमाल करने से कानों की अंदरूनी त्वचा, यहाँ तक की कान के परदे पर भी चोट लग सकती है।

वहीं ईयर बड का इस्तेमाल भी कान साफ करने का सुरक्षित तरीका नहीं है। इसका इस्तेमाल करने से आमतौर पर कान का अधिकांश वैक्स कान में ज्यादा अंदर तक चला जाता है जो कि कान के पर्दे को प्रभावित कर सकता है। यदि ईयर बड का इस्तेमाल मजबूरी हो तो ध्यान रहे की बड की कुल लंबाई का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही कान में डालना चाहिए। लेकिन कान का वैक्स साफ करने का सबसे सुरक्षित तरीका चिकित्सक की मदद लेना ही होता है।

ध्यान रखने योग्‍य बातें

डॉ जैन बताते हैं की कान में संक्रमण लंबे समय तक रह सकता है लेकिन संभव है की सामान्य अवस्था में उसके ज्यादा लक्षण नजर ना आए, लेकिन मौसम की नमी, कान में पानी के जाने या किसी अन्य कारण से संक्रमण के लक्षण प्रत्यक्ष रूप में नजर आ सकते है। कानों की सेहत को बरकरार रखने तथा संक्रमण मुक्त रखने के लिए निम्न बातों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए:

  • नहाते समय कान में थोड़ी बड़ी रुई लगाकर पानी जाने से बचना चाहिए।
  • कान को ज्यादा रगड़ कर साफ न करें। ऐसा करने से कान की त्वचा में चोट लगने और उसके बाद संक्रमण होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। इसकी बजाय सूती मुलायम कपड़े से नहाने के बाद कानों की बाहरी त्वचा को बहुत सावधानी व हल्के हाथ से साफ करना चाहिए।
  • नदी या स्विमिंग पूल में तैराकी के समय ईयर प्लग का इस्तेमाल करना चाहिए, या फिर कानों को प्लास्टिक की पन्नी से ढक कर उस पर रबड़ लगाकर ही पानी में उतरना चाहिए।

कान में तेल नहीं डालना चाहिए

डॉ सुबीर जैन बताते हैं की कान में सूजन, जलन, दर्द, पस बनने, कान के अंदरूनी हिस्से में अवरोध हो जाने, कम सुनाई देने और कान में किसी भी प्रकार की आवाज लगातार सुनाई देने की अवस्था में तत्काल ईएनटी विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। बहुत जरूरी है की कान में होने वाले संक्रमण या किसी भी समस्या का इलाज, किसी भी विधा के चिकित्सक के कराने की बजाय सिर्फ नाक, कान गला विशेषज्ञ से कराना चाहिए।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए subir_j@yahoo.com पर संपर्क किया जा सकता है या drsubirentcentre.com (वेब साइट) से सूचना प्राप्त की जा सकती है।

देखें: बेहतर स्वास्थ के लिये 7 फिट टिप्स

मॉनसून का खुशनुमा मौसम परेशानियाँ भी कम नहीं लाता है। तमाम तरह की बीमारियों और संक्रमणों के लिए इस मौसम में फैली नमीं को जिम्मेदार माना जाता है। सर्दी-जुखाम, फ्लू, त्वचा रोग, पेट में संक्रमण सहित इस मौसम में हर उम्र के लोगों में कानों में संक्रमण जैसी समस्या भी देखने में आती है। मानसून का मौसम किस तरह कानों की समस्या बढ़ा सकता है इस बारें में ETV भारत सुखीभवा को ज्यादा जानकारी देते हुए ईएनटी सेंटर इंदौर के नाक, कान, गला, कैंसर, एलर्जी विशेषज्ञ, इंडोस्कोपिस्ट एवं सर्जन तथा जर्मनी से एडवांस ईएनटी ट्रेनिंग प्राप्त डॉ सुबीर जैन, कानों के संक्रमण के जड़ से इलाज के लिए ईएनटी विशेषज्ञ से ही जांच व इलाज करवाने की सिफारिश करते हैं।

क्या है कान में कवक यानी फंगल संक्रमण

डॉ सुबीर जैन बताते हैं की हर साल मानसून के दौरान काफी लोग कान में फंगस और संक्रमण की समस्या का शिकार होते हैं। बरसात के मौसम में वातावरण में नमी कानों में फंगल इंफेक्शन के खतरे को काफी ज्यादा बढ़ा देती है। वे बताते हैं की हमारे कान में मौजूद ग्लैंड्स में सेरुमेन बनाता है, जिसे आम भाषा में वैक्स या कान का मैल भी कहा जाता है। अलग-अलग लोगों के कान में इसकी प्रकृति अलग-अलग होती है जैसे कुछ लोगों के कान में यह मोम ज्यादा तरल प्रकृति का होता है तो कुछ में हल्का सख्त, और कुछ लोगों में ज्यादा सख्त । जब बारिश के मौसम में नमी बढ़ जाती है जो यह वैक्स इस नमीं को सोखने लगता है और फूल जाता है । जिससे कान की नाली में बाधा उत्पन्न होने लगती है । जिसके चलते कान में बंद होने, दर्द होने या खुजली होने जैसे अहसास होने लगते हैं। समस्या ज्यादा बढ़ने पर यह संक्रमण कान के परदे को भी नुकसान पहुँचा सकता है।

यह संक्रमण दो प्रकार के हो सकते हैं, एक है कैंडिडा और दूसरा है एस्पर्जिलस। कैंडिडा में कान से सफेद पस जैसा पदार्थ या फ्लैक्स निकलते है। और यदि कान से खून जैसे रंग वाला पदार्थ या द्रव्य निकलता है तो ये अवस्था एस्पर्जिलस होता है। डॉ जैन बताते हैं कि इन दोनों ही प्रकार के संक्रमणों के इलाज के लिए बहुत जरूरी है की चिकिसक से पूरा उपचार कराया जाय। कई बार लोग दूसरों से सुन के या कैमिस्ट से कान में संक्रमण के लिए दवाई या ड्रॉप ले लेते हैं और बगैर चिकित्सीय सलाह के उनका इस्तेमाल करने लगते हैं जिससे कान में संक्रमण के ज्यादा फैलने और कान के परदे को स्थाई नुकसान पहुँचने की आशंका बढ़ जाती है।

ईयर बड्स और माचिस की तीली से बनाएँ दूरी

डॉ सुबीर जैन बताते हैं की कान में वैक्स एक प्राकृतिक सुरक्षा होती है, जो बाहरी धूल और बैक्टीरिया को कान के भीतरी हिस्सों में जाने से रोकती है। आमतौर पर लोग कानों के मैल निकालने के लिए बालों की चिमटी, माचिस की तीली तथा अन्य चीजों का उपयोग करते हैं जो सही नहीं है। दरअसल एक प्राकृतिक प्रक्रिया के चलते यदि कान में वैक्स जरूरत से ज्यादा बन जाये तो वह अपने आप बाहर आ जाता है । लेकिन यदि ऐसा न हो तो किसी भी दुर्घटना या संक्रमण से बचने के लिए स्वतः कान का मैल साफ करने से बचना चाहिए। डॉ जैन बताते हैं की आमतौर पर लोग कान की सफाई के लिए माचिस की तीली का उपयोग करते हैं। दरअसल माचिस की तीली पर लगे मसाले में नमी या फफूंद, कान में फंगल इन्फेक्शन का कारण बन सकती है। वहीं बालों की चिमटी का इस्तेमाल करने से कानों की अंदरूनी त्वचा, यहाँ तक की कान के परदे पर भी चोट लग सकती है।

वहीं ईयर बड का इस्तेमाल भी कान साफ करने का सुरक्षित तरीका नहीं है। इसका इस्तेमाल करने से आमतौर पर कान का अधिकांश वैक्स कान में ज्यादा अंदर तक चला जाता है जो कि कान के पर्दे को प्रभावित कर सकता है। यदि ईयर बड का इस्तेमाल मजबूरी हो तो ध्यान रहे की बड की कुल लंबाई का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही कान में डालना चाहिए। लेकिन कान का वैक्स साफ करने का सबसे सुरक्षित तरीका चिकित्सक की मदद लेना ही होता है।

ध्यान रखने योग्‍य बातें

डॉ जैन बताते हैं की कान में संक्रमण लंबे समय तक रह सकता है लेकिन संभव है की सामान्य अवस्था में उसके ज्यादा लक्षण नजर ना आए, लेकिन मौसम की नमी, कान में पानी के जाने या किसी अन्य कारण से संक्रमण के लक्षण प्रत्यक्ष रूप में नजर आ सकते है। कानों की सेहत को बरकरार रखने तथा संक्रमण मुक्त रखने के लिए निम्न बातों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए:

  • नहाते समय कान में थोड़ी बड़ी रुई लगाकर पानी जाने से बचना चाहिए।
  • कान को ज्यादा रगड़ कर साफ न करें। ऐसा करने से कान की त्वचा में चोट लगने और उसके बाद संक्रमण होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। इसकी बजाय सूती मुलायम कपड़े से नहाने के बाद कानों की बाहरी त्वचा को बहुत सावधानी व हल्के हाथ से साफ करना चाहिए।
  • नदी या स्विमिंग पूल में तैराकी के समय ईयर प्लग का इस्तेमाल करना चाहिए, या फिर कानों को प्लास्टिक की पन्नी से ढक कर उस पर रबड़ लगाकर ही पानी में उतरना चाहिए।

कान में तेल नहीं डालना चाहिए

डॉ सुबीर जैन बताते हैं की कान में सूजन, जलन, दर्द, पस बनने, कान के अंदरूनी हिस्से में अवरोध हो जाने, कम सुनाई देने और कान में किसी भी प्रकार की आवाज लगातार सुनाई देने की अवस्था में तत्काल ईएनटी विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। बहुत जरूरी है की कान में होने वाले संक्रमण या किसी भी समस्या का इलाज, किसी भी विधा के चिकित्सक के कराने की बजाय सिर्फ नाक, कान गला विशेषज्ञ से कराना चाहिए।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए subir_j@yahoo.com पर संपर्क किया जा सकता है या drsubirentcentre.com (वेब साइट) से सूचना प्राप्त की जा सकती है।

देखें: बेहतर स्वास्थ के लिये 7 फिट टिप्स

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