पौष्टिक गुणों से भरपूर सहजन की खूबियों की कायल केंद्र सरकार भी हो गई है. दरअसल अगर लोग सहजन की खूबियों को जान जाएं और उनका सेवन करें, तो यह कुपोषण के खिलाफ एक सफल जंग सरीखा होगा. अब तो केंद्र सरकार भी सहजन की खूबियों के नाते इसकी मुरीद हो गई. चंद रोज पहले केंद्र की ओर से राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे प्रधानमंत्री पोषण योजना में सहजन के साथ स्थानीय स्तर पर सीजन में उगने वाले पोषक तत्वों से भरपूर पालक व अन्य शाक-भाजी एवं फलियों को भी शामिल करें.
जानकार बताते हैं कि दुनिया में जहां-जहां कुपोषण की समस्या है, वहां सहजन का वजूद है. यही वजह है कि इसे दैवीय चमत्कार भी कहते हैं. दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है. साथ ही इसकी फलियों और पत्तियों का कई तरह से प्रयोग भी. सहजन का पेड़ सिर्फ एक वनस्पति ही नहीं, बल्कि पॉवर हाउस भी है. अपनी तमाम औषधीय खूबियों के कारण इसे चमत्कारिक वृक्ष भी कहते हैं. मुख्यमंत्री योगी सहजन की इन खूबियों से तबसे वाकिफ हैं, जब वह गोरखपुर के सांसद थे. यही वजह है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश में हरीतिमा बढ़ाने एवं यहां के पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए पौधरोपण का जो काम शुरू करवाया, उसमें सहजन को भी प्राथमिकता दी गई. विकास के मानकों पर पिछड़े जिलों में हर परिवार को सहजन के कुछ पौध लगाने को भी प्रेरित किया. उनकी गृह वाटिका के पीछे भी यही सोच रही.
राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण 2019-2020 के मुताबिक देश के करीब 32 फीसद बच्चे अपनी उम्र के मानक वजन से कम (अंडरवेट) हैं. करीब 67 फीसद बच्चे ऐसे हैं, जो अलग-अलग वजहों से एनीमिया (खून की कमी) से पीड़ित हैं. अपनी खूबियों के नाते, ऐसे बच्चों के अलावा किशोरियों, मां बनने वाली महिलाओं के लिए सहजन वरदान साबित हो सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सहजन की पत्तियों एवं फलियों में 300 से अधिक रोगों की रोकथाम के गुण होते हैं. इनमें 92 तरह के विटामिन्स, 46 तरह के एंटी ऑक्सीडेंट, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं. तुलनात्मक रूप से सहजन के पौष्टिक गुण इस प्रकार हैं...
- विटामिन सी- संतरे से सात गुना.
- विटामिन ए- गाजर से चार गुना.
- कैल्शियम- दूध से चार गुना.
- पोटैशियम- केले से तीन गुना.
- प्रोटीन- दही से तीन गुना.
जानकार बताते हैं कि दुनिया में जहां-जहां कुपोषण की समस्या है, वहां सहजन का वजूद है. यही वजह है कि इसे दैवीय चमत्कार भी कहते हैं. दक्षिणी भारत के राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में इसकी खेती होती है. साथ ही इसकी फलियों और पत्तियों का कई तरह से प्रयोग भी. तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने पीकेएम-1 और पीकेएम-2 नाम से दो प्रजातियां विकसित की हैं. पीकेएम-1 यहां के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुकूल भी है. यह हर तरह की जमीन में हो सकता है. बस इसे सूरज की भरपूर रोशनी चाहिए.
कृषि विशेषज्ञ गिरीश पांडेय कहते हैं कि सहजन की खूबियां यहीं खत्म नहीं होतीं. चारे के रूप में इसकी हरी या सूखी पत्तियों के प्रयोग से पशुओं के दूध में डेढ़ गुने से अधिक और वजन में एक तिहाई से अधिक की वृद्धि की रिपोर्ट है. यही नहीं इसकी पत्तियों के रस को पानी के घोल में मिलाकर फसल पर छिड़कने से उपज में सवाया से अधिक की वृद्धि होती है. सहजन की पत्ती से लेकर फूल, फल सभी लाभकारी है. यह औषधीय, खनिज व विटामिन गुणों से भरपूर है. कुपोषण को दूर करने में सबसे कारगर है.
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)