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सामान्य सर्दी को कोरोना का लक्षण नहीं माना जा सकता : एम्स - सामान्य सर्दी कोरोनावायरस का 100 प्रतिशत संकेत नहीं

एम्स ने ब्रिटेन के जनरल फिजिशियन के एक समूह के दावों को गलत ठहराया है. सामान्य सर्दी, खांसी जैसे संकेत को कोरोनावायरस का लक्षण मानना गलत बताया है. जाहिर है कोरोना पॉजिटिव होने पर मरीजों में इस तरह के लक्षण नजर आते हैं, लेकिन जरूरी है कि वह उन्हें कोरोना संक्रमण ही है. वहीं सर्दी के संक्रमण होने पर भी लापरवाही ना बरतें, मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपायों का सख्ती से पालन करें.

AIIMS does not consider common cold a symptom of COVID
एम्स सामान्य सर्दी को कोविड का लक्षण नहीं मानता
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Published : Feb 15, 2021, 10:48 AM IST

कुछ समय पहले, ब्रिटेन में जनरल फिजिशियन के एक समूह ने दावा किया था कि सामान्य सर्दी के लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए, बल्कि इसे कोरोनावायरस का लक्षण मानना चाहिए, लेकिन इसे लेकर एक अलग नजरिया भी है.

एम्स की भोपाल और जम्मू इकाई के प्रेसीडेंट वाई.के. गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि खांसी, बुखार और सामान्य सर्दी को कोरोनावायरस के संकेत के रूप में 100 प्रतिशत नहीं माना जा सकता.

कथित तौर पर, 140 ईस्ट लंदन के जनरल प्रैक्टिशनर्स (जीपी) और हेल्थ केयर पेशेवरों ने इंग्लैंड के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी क्रिस व्हिट्टी और पब्लिक हेल्थ की सुजन हॉपकिंस को एक खुला पत्र लिखा था और दावा किया था कि मरीजों को कोरोना पॉजिटिव होने के पहले आमतौर पर गले में खराश, नाक बहना, सिरदर्द जैसे सामान्य सर्दी के लक्षण अनुभव होते हैं.

एम्स नई दिल्ली के फार्माकोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख गुप्ता ने कहा, 'सामान्य सर्दी कोरोनोवायरस का 100 प्रतिशत संकेत नहीं हो सकती. अधिकांश सामान्य सर्दी वायरल संक्रमण गिरावट पर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों को लापरवाही करनी चाहिए. मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना आवश्यक है.'

गुप्ता ने चेतावनी दी कि हाल ही में कोविड के मामलों में कमी आई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खतरा टल गया है. उन्होंने कहा कि मामलों और मौतों में गिरावट के लिए योगदान करने वाले कारकों में टीकाकरण अभियान और देश में लोगों की आंतरिक प्रतिरक्षा हो सकती है.

उन्होंने कहा, 'एक बड़ी आबादी पहले से ही संक्रमित हो गई है, जो सबक्लिनिकल रूप से गिरावट में योगदान कर सकती है. इस की रोगजनकता शायद कम हो रही है.'

पश्चिमी देशों में बढ़ती संख्या और भारत में मामलों में लगातार गिरावट के पहलू पर, गुप्ता ने संकेत दिया कि यह संभवत: पश्चिमी आबादी की तुलना में वायरस के प्रति भारतीय आबादी की उच्च प्रतिरक्षा के कारण है, लेकिन इसे साबित करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है.

जिन लोगों ने कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद टीका लगवाया, उनमें कुछ स्वास्थ्य चीजें विकसित हुई हैं. क्या यह एक लास्टिंग हेल्थ समस्या बनने की क्षमता है? गुप्ता ने उत्तर दिया कि यह एक रिजिडूअल स्वास्थ्य समस्या हो सकती है और वैक्सीन रिजिडूअल साइड-इफेक्ट नहीं है, वास्तव में टीकाकरण के बाद एलर्जी की प्रतिक्रिया दो दिनों से अधिक नहीं रहती है.

यह पूछे जाने पर कि किसी विशेष आयु समूह खासकर बुजुर्गो या कॉमरबिडिटिज को लेकर उनके सामने कोई सुरक्षा संबंधी मुद्दा आया है, तो गुप्ता ने कहा कि अभी तक तो नहीं आया है, क्योंकि डेटा पूरी तरह से उपलब्ध नहीं है और कहा कि कोवैक्सिन के तीसरे चरण के ट्रायल के बारे में डेटा शायद मार्च के अंत तक उपलब्ध हो, जो इसकी प्रभावकारिता साबित करेगा.

कुछ समय पहले, ब्रिटेन में जनरल फिजिशियन के एक समूह ने दावा किया था कि सामान्य सर्दी के लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए, बल्कि इसे कोरोनावायरस का लक्षण मानना चाहिए, लेकिन इसे लेकर एक अलग नजरिया भी है.

एम्स की भोपाल और जम्मू इकाई के प्रेसीडेंट वाई.के. गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि खांसी, बुखार और सामान्य सर्दी को कोरोनावायरस के संकेत के रूप में 100 प्रतिशत नहीं माना जा सकता.

कथित तौर पर, 140 ईस्ट लंदन के जनरल प्रैक्टिशनर्स (जीपी) और हेल्थ केयर पेशेवरों ने इंग्लैंड के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी क्रिस व्हिट्टी और पब्लिक हेल्थ की सुजन हॉपकिंस को एक खुला पत्र लिखा था और दावा किया था कि मरीजों को कोरोना पॉजिटिव होने के पहले आमतौर पर गले में खराश, नाक बहना, सिरदर्द जैसे सामान्य सर्दी के लक्षण अनुभव होते हैं.

एम्स नई दिल्ली के फार्माकोलॉजी विभाग के पूर्व प्रमुख गुप्ता ने कहा, 'सामान्य सर्दी कोरोनोवायरस का 100 प्रतिशत संकेत नहीं हो सकती. अधिकांश सामान्य सर्दी वायरल संक्रमण गिरावट पर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों को लापरवाही करनी चाहिए. मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना आवश्यक है.'

गुप्ता ने चेतावनी दी कि हाल ही में कोविड के मामलों में कमी आई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खतरा टल गया है. उन्होंने कहा कि मामलों और मौतों में गिरावट के लिए योगदान करने वाले कारकों में टीकाकरण अभियान और देश में लोगों की आंतरिक प्रतिरक्षा हो सकती है.

उन्होंने कहा, 'एक बड़ी आबादी पहले से ही संक्रमित हो गई है, जो सबक्लिनिकल रूप से गिरावट में योगदान कर सकती है. इस की रोगजनकता शायद कम हो रही है.'

पश्चिमी देशों में बढ़ती संख्या और भारत में मामलों में लगातार गिरावट के पहलू पर, गुप्ता ने संकेत दिया कि यह संभवत: पश्चिमी आबादी की तुलना में वायरस के प्रति भारतीय आबादी की उच्च प्रतिरक्षा के कारण है, लेकिन इसे साबित करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है.

जिन लोगों ने कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद टीका लगवाया, उनमें कुछ स्वास्थ्य चीजें विकसित हुई हैं. क्या यह एक लास्टिंग हेल्थ समस्या बनने की क्षमता है? गुप्ता ने उत्तर दिया कि यह एक रिजिडूअल स्वास्थ्य समस्या हो सकती है और वैक्सीन रिजिडूअल साइड-इफेक्ट नहीं है, वास्तव में टीकाकरण के बाद एलर्जी की प्रतिक्रिया दो दिनों से अधिक नहीं रहती है.

यह पूछे जाने पर कि किसी विशेष आयु समूह खासकर बुजुर्गो या कॉमरबिडिटिज को लेकर उनके सामने कोई सुरक्षा संबंधी मुद्दा आया है, तो गुप्ता ने कहा कि अभी तक तो नहीं आया है, क्योंकि डेटा पूरी तरह से उपलब्ध नहीं है और कहा कि कोवैक्सिन के तीसरे चरण के ट्रायल के बारे में डेटा शायद मार्च के अंत तक उपलब्ध हो, जो इसकी प्रभावकारिता साबित करेगा.

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