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लो ओवेरियन रिजर्व से होती है गर्भाधान में समस्याएं

एएमएच यानी एंटी मूलेरियन हार्मोन एक प्रोटीन हार्मोन होता है, जो महिलाओं के शरीर में गर्भाशय के अंदर बनने वाले फॉलिकल्स यानी अंडों की संख्या, उनकी अवस्था तथा उनकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। एएमएच रक्त जांच के माध्यम से महिलाओं के शरीर में निर्मित होने वाले अंडों की संख्या तथा उनकी गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। जिससे भविष्य में मां बनने की संभावनाओं को सुरक्षित किया जा सके।

low ovarian reserve
लो ओवेरियन रिजर्व
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Published : Mar 4, 2021, 1:42 PM IST

Updated : Mar 4, 2021, 2:33 PM IST

एंटी मुलेरियन हार्मोन (एएमएच) महिलाओं के शरीर में पाया जाने वाला जरूरी प्रोटीन हार्मोन है। गर्भधारण में आने वाली समस्याओं से जूझ रही ज्यादातर महिलाओं में इस हार्मोन की गड़बड़ी पाई जाती है। यह हार्मोन अंडाशय में बनता है और इसका स्तर अंडाणुओं के प्रवाह को प्रभावित करता है। एंटी मूलेरियन हार्मोन के स्तर में कमी किस तरह हमारी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है, साथ ही एएमएच रक्त जांच के माध्यम से किस तरह भविष्य में मां बनने की संभावनाओं के बारे में जाना जा सकता है, के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए केआईएमएस फर्टिलिटी सेंटर, हैदराबाद की प्रजनन विशेषज्ञ तथा विभाग अध्यक्ष तथा मदर टू बी फर्टिलिटी में निदेशक डॉ. एस वैजयंथी ने बताया कि महिलाओं के शरीर में एएमएच का स्तर कम होने से बांझपन जैसी समस्या तक हो सकती है।

एंटी मुलेरियन हार्मोन के स्तर में कमी के कारण

डॉ. वैजयंथी बताती हैं की महिलाओं में इस हार्मोन का स्तर आमतौर पर उनके अच्छे ओवेरियन रिजर्व यानी अंडाशय द्वारा पर्याप्त मात्रा में फर्टिलाइज होने लायक एग सेल्स उपलब्ध कराने का संकेत है। यह हार्मोन छोटे विकसित फॉलिकल्स के जरिए बनता है। वैजयंती बताती हैं कि शरीर में एएमएस का स्तर कम होना इस बात का संकेत है कि महिला की ओवरी में बनने वाले अंडों की संख्या प्रजनन के लिए जरूरी संख्या से कम है। वैसे भी जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, उनकी प्रजनन क्षमता या उनकी गर्भधारण करने की क्षमता में कमी आने लगती है। जानकारों के अनुसार एक स्वस्थ महिला के शरीर में एमएच का सामान्य स्तर 2.0-3.0 एनजी/ मिलीलीटर होता है। लेकिन यदि शरीर में एमएच की मात्रा 1 एनजी/ मिलीलीटर से कम हो, तो उसे लो यानि कम एएमएच माना जाता है।

आमतौर पर रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज के समय तथा उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं में एमएच का स्तर काफी कम होने लगता है। ऐसी महिलाएं जिनमें यह स्तर जरूरत से कम हो, उन्हें गर्भधारण करने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

डॉ. वैजयंथी बताती हैं कि बढ़ती उम्र के अलावा शरीर के पोषण में गड़बड़ी, विटामिन की कमी तथा कई बार कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के उपचार के दौरान की जाने वाली कीमो या रेडिएशन थेरेपी का शरीर पर असर महिलाओं में अंडों की कमी का कारण बनता है।

कब कराएं एएमएच टेस्ट

ऐसी महिलाएं जो गर्भधारण के लिए विभिन्न प्रकार के उपचार करवाने के बारे में सोच रही हो या फिर ऐसी महिलाएं, जो 30 वर्ष के बाद भी गर्भधारण करने में सफल ना हो पा रही हों, इस टेस्ट को करवा सकती हैं। वहीं ऐसी महिलाएं जो देर से मां बनने की इच्छुक हों, वह भी इस टेस्ट के माध्यम से अपने अंडों की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकती हैं, जिससे आवश्यकता पड़ने पर भविष्य के लिए अपने अंडों को संरक्षित करवा सकें।

एएमएच के लिए उपचार पद्धतियां

आमतौर पर एएमएच का स्तर शरीर में कम होने पर उसे बढ़ाया जाना संभव नहीं होता है। लेकिन डॉक्टर की सलाह पर विभिन्न प्रकार की सहायक प्रजनन तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। ऐसी महिलाएं जो कम उम्र में गर्भ धारण नहीं करना चाहती हैं, वह भविष्य में मां बनने की संभावनाओं को मजबूती देने के उद्देश्य से एग कायोप्रिजर्वेशन यानी अंडो को संरक्षित करवा सकती हैं। पूर्व भारतीय विश्व सुंदरी डायना हेडन एग क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक की मदद से अपने अंडों को सुरक्षित कराने वाले सबसे पहले लोगों में से एक रही, जिन्होंने अपनी उम्र के 30 के दशक के मध्य में अपने अंडों को संरक्षित करवाया था और जिसके 8 वर्षों के उपरांत डायना ने अपने संरक्षित किए हुए अंडो का उपयोग कर 42 वर्ष की आयु में मां बनने का सुख प्राप्त किया।

डॉ. वैजयंती बताती हैं कि महिला के शरीर में यदि एएमएच का स्तर जरूरत मुताबिक है, तभी उसे आईवीएफ कराने की सलाह दी जाती है। जिसके तहत हार्मोन थेरेपी के चलते अंडों की संख्या बढ़ने पर उन्हें लैब में प्रजनन के लिए तैयार कर महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

वहीं जिन महिला के अंडों की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है और उनके शरीर में एएमएच का स्तर 1एमएच से कम होता है या फिर आईवीएफ के लिए जरूरी मानकों के अनुसार नहीं होता हैं, तो उसे आईवीएफ तकनीक के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। ऐसी अवस्था में दान कर्ताओं द्वारा दान किए गए अंडों से लैब में तैयार भ्रूण को आईवीएफ तकनीक की मदद से महिलाओं के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

पढ़ें : लाइलाज रोग नहीं है बांझपन : बांझपन के उपचार

कैसे करें ओवेरियन रिजर्व की स्थिति बेहतर

ओवेरियन रिजर्व की स्थिति प्राकृतिक रूप से अपने आप ज्यादा या बेहतर नहीं होती है, इसके लिए विभिन्न माध्यमों से प्रयास करने पड़ते हैं। स्वस्थ जीवन शैली भी एक ऐसा ही कारक है, जो महिला के शरीर में अंडों के स्वास्थ्य तथा उसके गुणवत्ता को बेहतर बनाने की क्षमता रखता है। ट्रीटमेंट के दौरान यदि महिलायें अच्छे खानपान और स्वस्थ दिनचर्या का पालन करें, तो उनके शरीर में बनने वाले अंडों की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।

डॉ. वैजयंती बताती हैं कि यदि महिलाओं के शरीर में एएमएच का स्तर जांच के दौरान जरूरत से कम निकलता है, ऐसी अवस्था में महिलाओं को जल्द से जल्द प्रजनन विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए।

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए डॉ. वैजयंती से svyjayanthi99@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

एंटी मुलेरियन हार्मोन (एएमएच) महिलाओं के शरीर में पाया जाने वाला जरूरी प्रोटीन हार्मोन है। गर्भधारण में आने वाली समस्याओं से जूझ रही ज्यादातर महिलाओं में इस हार्मोन की गड़बड़ी पाई जाती है। यह हार्मोन अंडाशय में बनता है और इसका स्तर अंडाणुओं के प्रवाह को प्रभावित करता है। एंटी मूलेरियन हार्मोन के स्तर में कमी किस तरह हमारी प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है, साथ ही एएमएच रक्त जांच के माध्यम से किस तरह भविष्य में मां बनने की संभावनाओं के बारे में जाना जा सकता है, के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए केआईएमएस फर्टिलिटी सेंटर, हैदराबाद की प्रजनन विशेषज्ञ तथा विभाग अध्यक्ष तथा मदर टू बी फर्टिलिटी में निदेशक डॉ. एस वैजयंथी ने बताया कि महिलाओं के शरीर में एएमएच का स्तर कम होने से बांझपन जैसी समस्या तक हो सकती है।

एंटी मुलेरियन हार्मोन के स्तर में कमी के कारण

डॉ. वैजयंथी बताती हैं की महिलाओं में इस हार्मोन का स्तर आमतौर पर उनके अच्छे ओवेरियन रिजर्व यानी अंडाशय द्वारा पर्याप्त मात्रा में फर्टिलाइज होने लायक एग सेल्स उपलब्ध कराने का संकेत है। यह हार्मोन छोटे विकसित फॉलिकल्स के जरिए बनता है। वैजयंती बताती हैं कि शरीर में एएमएस का स्तर कम होना इस बात का संकेत है कि महिला की ओवरी में बनने वाले अंडों की संख्या प्रजनन के लिए जरूरी संख्या से कम है। वैसे भी जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, उनकी प्रजनन क्षमता या उनकी गर्भधारण करने की क्षमता में कमी आने लगती है। जानकारों के अनुसार एक स्वस्थ महिला के शरीर में एमएच का सामान्य स्तर 2.0-3.0 एनजी/ मिलीलीटर होता है। लेकिन यदि शरीर में एमएच की मात्रा 1 एनजी/ मिलीलीटर से कम हो, तो उसे लो यानि कम एएमएच माना जाता है।

आमतौर पर रजोनिवृत्ति यानी मेनोपॉज के समय तथा उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं में एमएच का स्तर काफी कम होने लगता है। ऐसी महिलाएं जिनमें यह स्तर जरूरत से कम हो, उन्हें गर्भधारण करने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

डॉ. वैजयंथी बताती हैं कि बढ़ती उम्र के अलावा शरीर के पोषण में गड़बड़ी, विटामिन की कमी तथा कई बार कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के उपचार के दौरान की जाने वाली कीमो या रेडिएशन थेरेपी का शरीर पर असर महिलाओं में अंडों की कमी का कारण बनता है।

कब कराएं एएमएच टेस्ट

ऐसी महिलाएं जो गर्भधारण के लिए विभिन्न प्रकार के उपचार करवाने के बारे में सोच रही हो या फिर ऐसी महिलाएं, जो 30 वर्ष के बाद भी गर्भधारण करने में सफल ना हो पा रही हों, इस टेस्ट को करवा सकती हैं। वहीं ऐसी महिलाएं जो देर से मां बनने की इच्छुक हों, वह भी इस टेस्ट के माध्यम से अपने अंडों की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकती हैं, जिससे आवश्यकता पड़ने पर भविष्य के लिए अपने अंडों को संरक्षित करवा सकें।

एएमएच के लिए उपचार पद्धतियां

आमतौर पर एएमएच का स्तर शरीर में कम होने पर उसे बढ़ाया जाना संभव नहीं होता है। लेकिन डॉक्टर की सलाह पर विभिन्न प्रकार की सहायक प्रजनन तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। ऐसी महिलाएं जो कम उम्र में गर्भ धारण नहीं करना चाहती हैं, वह भविष्य में मां बनने की संभावनाओं को मजबूती देने के उद्देश्य से एग कायोप्रिजर्वेशन यानी अंडो को संरक्षित करवा सकती हैं। पूर्व भारतीय विश्व सुंदरी डायना हेडन एग क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक की मदद से अपने अंडों को सुरक्षित कराने वाले सबसे पहले लोगों में से एक रही, जिन्होंने अपनी उम्र के 30 के दशक के मध्य में अपने अंडों को संरक्षित करवाया था और जिसके 8 वर्षों के उपरांत डायना ने अपने संरक्षित किए हुए अंडो का उपयोग कर 42 वर्ष की आयु में मां बनने का सुख प्राप्त किया।

डॉ. वैजयंती बताती हैं कि महिला के शरीर में यदि एएमएच का स्तर जरूरत मुताबिक है, तभी उसे आईवीएफ कराने की सलाह दी जाती है। जिसके तहत हार्मोन थेरेपी के चलते अंडों की संख्या बढ़ने पर उन्हें लैब में प्रजनन के लिए तैयार कर महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

वहीं जिन महिला के अंडों की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है और उनके शरीर में एएमएच का स्तर 1एमएच से कम होता है या फिर आईवीएफ के लिए जरूरी मानकों के अनुसार नहीं होता हैं, तो उसे आईवीएफ तकनीक के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है। ऐसी अवस्था में दान कर्ताओं द्वारा दान किए गए अंडों से लैब में तैयार भ्रूण को आईवीएफ तकनीक की मदद से महिलाओं के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

पढ़ें : लाइलाज रोग नहीं है बांझपन : बांझपन के उपचार

कैसे करें ओवेरियन रिजर्व की स्थिति बेहतर

ओवेरियन रिजर्व की स्थिति प्राकृतिक रूप से अपने आप ज्यादा या बेहतर नहीं होती है, इसके लिए विभिन्न माध्यमों से प्रयास करने पड़ते हैं। स्वस्थ जीवन शैली भी एक ऐसा ही कारक है, जो महिला के शरीर में अंडों के स्वास्थ्य तथा उसके गुणवत्ता को बेहतर बनाने की क्षमता रखता है। ट्रीटमेंट के दौरान यदि महिलायें अच्छे खानपान और स्वस्थ दिनचर्या का पालन करें, तो उनके शरीर में बनने वाले अंडों की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।

डॉ. वैजयंती बताती हैं कि यदि महिलाओं के शरीर में एएमएच का स्तर जांच के दौरान जरूरत से कम निकलता है, ऐसी अवस्था में महिलाओं को जल्द से जल्द प्रजनन विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए।

इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए डॉ. वैजयंती से svyjayanthi99@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

Last Updated : Mar 4, 2021, 2:33 PM IST
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