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प्रदूषण, क्लाइमेट चेंज व ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं बढ़ा रही युवाओं में इको एंजायटी - symptoms of anxiety

हाल ही में एक ब्रिटिश मेडिकल जनरल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में सामने आया था कि जीवाश्म ईंधन जलाने, जंगलों की कटाई तथा अन्य कारणों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन धरती को काफी नुकसान पहुंचा रहा है. शोध में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वॉर्मिंग तथा वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर पड़ रहा है. सिर्फ इस शोध में ही नही बल्कि बिगड़ते पर्यावरण के चलते लोगों, विशेषकर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने तथा उनमें इको एंजायटी के मामलों के बढ़ने की बात पूर्व में हुए कई अन्य शोधों में भी सामने आ चुकी है.

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प्रदूषण, क्लाइमेट चेंज व ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं बढ़ा रही है युवाओं में “इको एंजायटी “
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Published : May 13, 2022, 7:54 PM IST

पिछले साल मेडिकल पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित एक शोध/सर्वे के नतीजों में बताया गया था कि युवाओं में प्रदूषण, क्लाइमेट चेंज व ग्लोबल वार्मिंग के कारण आने वाले समय में धरती तथा उनके जीवन पर पड़ने वाले असर को लेकर डर तथा चिंता काफी ज्यादा बढ़ रही है. जिसके फलस्वरूप वे इको एंजाइटी का शिकार बन रहे हैं. सिर्फ इसी शोध में ही नही बल्कि देश-विदेश में हुए कई अन्य शोधों तथा सर्वे में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि प्रदूषण व बदलते वातावरण का असर हर उम्र के लोगों में डर तथा चिंता को बढ़ा रही है. लेकिन युवाओं पर इसका असर ज्यादा गंभीर स्वरूप में नजर आ रहा है, नतीजतन उनमें इको एंजायटी के मामलों में लगातार बढ़त देखी जा रही है.

इको एंजाइटी को लेकर क्या कहते हैं शोध

लैंसेट में प्रकाशित उक्त शोध में 10 देशों के 16 से 25 साल वाले लगभग 10,000 युवाओं पर सर्वे किया गया था. जिसमें लगभग 45% ने इस बात को माना था कि वातावरण व जलवायु में बदलाव उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या पर नकारात्मक रूप में असर डाल रहा है. सर्वे में लगभग 59% लोगों ने माना था कि वे जलवायु में परिवर्तन तथा इसके चलते पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं. वहीं 84% लोगों ने इस विषय को लेकर अलग-अलग स्तर की चिंता जताई थी . लेकिन सर्वे में 50% लोगों ने इस बात को माना था कि उन्हे पर्यावरण तथा प्रदूषण के चलते वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव तथा उसके चलते भविष्य में अनिश्चितता की आशंका को लेकर बहुत ज्यादा घबराहट, दुख, गुस्सा, असहायता तथा आत्मग्लानि महसूस होती है. शोध में तकरीबन 75% लोगों ने माना कि भविष्य डरावना लग रहा है.

इस सर्वे के नतीजों में बताया गया था कि ग्लोबल वॉर्मिंग, प्रदूषण तथा पर्यावरण से जुड़े अन्य संकटों की वजह से भविष्य, नौकरी और आने वाले समय में पैदा हो सकने वाले संकट व अनिश्चितता तथा पर्यावरण संबंधी समस्याओं को रोकने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठा पाने की ग्लानि का चलते लोगोंन विशेषकर युवाओं में इको एंजायटी के मामले काफी बढ़ रहें हैं.

इससे पूर्व वर्ष 2017 में “ कोलोरेडो बौल्डर यूनिवर्सिटी” के शोधकर्ताओं द्वारा इसी विषय पर एक शोध किया गया था. जिसमें तकरीबन 114 विद्यार्थियों को विषय बनाया गया था. शोध में प्रतिभागियों से पर्यावरण के बदलते स्वरूप, प्रदूषण, ग्लोबल वॉर्मिंग तथा उनके भविष्य पर पड़ने वाले संभावित असर को लेकर उनकी चिंताओं के संबंध में उनसे सवाल पूछे गए थे. जिसके नतीजों में सामने आया था कि इन सभी मुद्दों को लेकर बच्चों में तनाव का स्तर काफी ज्यादा था.

वहीं वर्ष 2021 में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ एंड ग्लोबल फ्यूचर थिंकटैंक के एक सर्वे में भी लोगों में क्लाइमेट चेंज को लेकर ईको एंजाइटी के बढ़ने की पुष्टि हुई थी. इस सर्वे में लगभग 78% लोगों ने माना था कि वातावरण/जलवायु में परिवर्तन के चलते वह कुछ हद तक डर महसूस करते हैं लेकिन 41% लोगों ने माना था कि यह विषय उन्हें बहुत ज्यादा डराता है. सीओपी26 ग्लासगो में इस शोध का उल्लेख किया गया था.

क्या है इको एंजाइटी

अमेरिकन साइकाइट्रिक एसोसिएशन (एपीए) के अनुसार इको एंजाइटी एक ऐसी अवस्था है जिसमें बढ़ते प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग व प्रदूषण जैसी पर्यावरण व जलवायु संबंधी समस्याओं के चलते वर्तमान में होने वाली समस्याओं तथा भविष्य की अनिश्चितता को लेकर लोगों में डर तथा चिंता बढ़ जाती है. जिसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. इको एंजाइटी का शिकार होने पर लोगों का कामकाज, उनकी दिनचर्या तथा उनका शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है.

एंजाइटी के लक्षण

उत्तराखंड की मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रेणुका बताती हैं कि इको एंजाइटी एक वैश्विक समस्या है. जो वर्तमान समय में विशेषतौर पर विद्यार्थियों तथा युवाओं को काफी ज्यादा प्रभावित कर रही है. दरअसल ज्यादातर बच्चे पहली बार पर्यावरण संबंधी समस्याओं के अलावा वातावरण या जलवायु में लगातार परिवर्तन तथा उसके कारण जीवन पर प्रभाव को लेकर स्कूलों में विभिन्न गतिविधियों के चलते, पुस्तकों तथा समाचार आदि माध्यमों से जानते हैं. जैसे-जैसे व इस मुद्दे की गंभीरता को समझने लगते हैं तो कई सवाल उनके मन में घर करने लगते हैं जैसे, क्या भविष्य में सृष्टि बनी रहेगी, यदि हां तो वह इन समस्याओं के चलते किस स्वरूप में होगी तथा क्या इन सबके चलते होने वाले परिवर्तनों के दौरान उनका भविष्य तथा जीवन सुरक्षित होगा? आदि.जिसके चलते उत्पन्न होने वाली चिंता कई बार उनमें एंजाइटी का कारण बन जाती है. वह बताती है कि इको एंजाइटी के लक्षण सामान्य एंजाइटी लक्षणों जैसे ही होते हैं जैसे , बहुत ज्यादा चिंता महसूस होना, डर , अनिश्चितता, घबराहट, नींद ना आना, भूख ना लगना तथा किसी भी कार्य में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाना आदि.

कैसे करें बचाव

डॉ रेणुका बताती हैं कि इको एंजाइटी से बचने के लिए जहां तक संभव हो सके नकारात्मक परिस्थिति तथा नकारात्मक विचारों व सोच से दूरी बनाने का प्रयास करना चाहिए. खुद ऐसे कामों में व्यस्त रखें जिससे मन को शांति व खुशी मिले. नियमित व्यायाम तथा मेडिटेशन भी काफी फायदा करते हैं. विशेषतौर पर इको एंजाइटी से पीड़ित लोग विशेषकर बच्चे अपनी दिनचर्या का कुछ समय पर्यावरण की बेहतरी से जुड़े कार्यों में लगाएं. जिससे उनके मन की ग्लानि कुछ कम हो तथा उन्हे संतोष हो कि वह अपने स्तर पर पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं. इसके अलावा सभी बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास करने व अपने परिजनों, दोस्तों तथा अन्य लोगों को पर्यावरण को संरक्षित करने के तरीकों को लेकर जागरूक करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. साथ ही परिजनों तथा शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों को चिंता को समझें, उनकी बातों को सुने तथा उन्हे सकारात्मक तरीके से समझाएं . जिससे उनके मन का डर कुछ कम हो. वह बताती हैं कि यदि एंजाइटी ज्यादा प्रभावित करने लगे तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए क्योंकि कई बार यह अवस्था पैनिक या अन्य समस्याओं का कारण भी बन सकती है.

पढ़ें: सुखी व खुशहाल जीवन चाहिए तो स्वयं से भी प्रेम करें

पिछले साल मेडिकल पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित एक शोध/सर्वे के नतीजों में बताया गया था कि युवाओं में प्रदूषण, क्लाइमेट चेंज व ग्लोबल वार्मिंग के कारण आने वाले समय में धरती तथा उनके जीवन पर पड़ने वाले असर को लेकर डर तथा चिंता काफी ज्यादा बढ़ रही है. जिसके फलस्वरूप वे इको एंजाइटी का शिकार बन रहे हैं. सिर्फ इसी शोध में ही नही बल्कि देश-विदेश में हुए कई अन्य शोधों तथा सर्वे में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि प्रदूषण व बदलते वातावरण का असर हर उम्र के लोगों में डर तथा चिंता को बढ़ा रही है. लेकिन युवाओं पर इसका असर ज्यादा गंभीर स्वरूप में नजर आ रहा है, नतीजतन उनमें इको एंजायटी के मामलों में लगातार बढ़त देखी जा रही है.

इको एंजाइटी को लेकर क्या कहते हैं शोध

लैंसेट में प्रकाशित उक्त शोध में 10 देशों के 16 से 25 साल वाले लगभग 10,000 युवाओं पर सर्वे किया गया था. जिसमें लगभग 45% ने इस बात को माना था कि वातावरण व जलवायु में बदलाव उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या पर नकारात्मक रूप में असर डाल रहा है. सर्वे में लगभग 59% लोगों ने माना था कि वे जलवायु में परिवर्तन तथा इसके चलते पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित हैं. वहीं 84% लोगों ने इस विषय को लेकर अलग-अलग स्तर की चिंता जताई थी . लेकिन सर्वे में 50% लोगों ने इस बात को माना था कि उन्हे पर्यावरण तथा प्रदूषण के चलते वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव तथा उसके चलते भविष्य में अनिश्चितता की आशंका को लेकर बहुत ज्यादा घबराहट, दुख, गुस्सा, असहायता तथा आत्मग्लानि महसूस होती है. शोध में तकरीबन 75% लोगों ने माना कि भविष्य डरावना लग रहा है.

इस सर्वे के नतीजों में बताया गया था कि ग्लोबल वॉर्मिंग, प्रदूषण तथा पर्यावरण से जुड़े अन्य संकटों की वजह से भविष्य, नौकरी और आने वाले समय में पैदा हो सकने वाले संकट व अनिश्चितता तथा पर्यावरण संबंधी समस्याओं को रोकने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठा पाने की ग्लानि का चलते लोगोंन विशेषकर युवाओं में इको एंजायटी के मामले काफी बढ़ रहें हैं.

इससे पूर्व वर्ष 2017 में “ कोलोरेडो बौल्डर यूनिवर्सिटी” के शोधकर्ताओं द्वारा इसी विषय पर एक शोध किया गया था. जिसमें तकरीबन 114 विद्यार्थियों को विषय बनाया गया था. शोध में प्रतिभागियों से पर्यावरण के बदलते स्वरूप, प्रदूषण, ग्लोबल वॉर्मिंग तथा उनके भविष्य पर पड़ने वाले संभावित असर को लेकर उनकी चिंताओं के संबंध में उनसे सवाल पूछे गए थे. जिसके नतीजों में सामने आया था कि इन सभी मुद्दों को लेकर बच्चों में तनाव का स्तर काफी ज्यादा था.

वहीं वर्ष 2021 में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ एंड ग्लोबल फ्यूचर थिंकटैंक के एक सर्वे में भी लोगों में क्लाइमेट चेंज को लेकर ईको एंजाइटी के बढ़ने की पुष्टि हुई थी. इस सर्वे में लगभग 78% लोगों ने माना था कि वातावरण/जलवायु में परिवर्तन के चलते वह कुछ हद तक डर महसूस करते हैं लेकिन 41% लोगों ने माना था कि यह विषय उन्हें बहुत ज्यादा डराता है. सीओपी26 ग्लासगो में इस शोध का उल्लेख किया गया था.

क्या है इको एंजाइटी

अमेरिकन साइकाइट्रिक एसोसिएशन (एपीए) के अनुसार इको एंजाइटी एक ऐसी अवस्था है जिसमें बढ़ते प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग व प्रदूषण जैसी पर्यावरण व जलवायु संबंधी समस्याओं के चलते वर्तमान में होने वाली समस्याओं तथा भविष्य की अनिश्चितता को लेकर लोगों में डर तथा चिंता बढ़ जाती है. जिसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. इको एंजाइटी का शिकार होने पर लोगों का कामकाज, उनकी दिनचर्या तथा उनका शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है.

एंजाइटी के लक्षण

उत्तराखंड की मनोवैज्ञानिक डॉक्टर रेणुका बताती हैं कि इको एंजाइटी एक वैश्विक समस्या है. जो वर्तमान समय में विशेषतौर पर विद्यार्थियों तथा युवाओं को काफी ज्यादा प्रभावित कर रही है. दरअसल ज्यादातर बच्चे पहली बार पर्यावरण संबंधी समस्याओं के अलावा वातावरण या जलवायु में लगातार परिवर्तन तथा उसके कारण जीवन पर प्रभाव को लेकर स्कूलों में विभिन्न गतिविधियों के चलते, पुस्तकों तथा समाचार आदि माध्यमों से जानते हैं. जैसे-जैसे व इस मुद्दे की गंभीरता को समझने लगते हैं तो कई सवाल उनके मन में घर करने लगते हैं जैसे, क्या भविष्य में सृष्टि बनी रहेगी, यदि हां तो वह इन समस्याओं के चलते किस स्वरूप में होगी तथा क्या इन सबके चलते होने वाले परिवर्तनों के दौरान उनका भविष्य तथा जीवन सुरक्षित होगा? आदि.जिसके चलते उत्पन्न होने वाली चिंता कई बार उनमें एंजाइटी का कारण बन जाती है. वह बताती है कि इको एंजाइटी के लक्षण सामान्य एंजाइटी लक्षणों जैसे ही होते हैं जैसे , बहुत ज्यादा चिंता महसूस होना, डर , अनिश्चितता, घबराहट, नींद ना आना, भूख ना लगना तथा किसी भी कार्य में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाना आदि.

कैसे करें बचाव

डॉ रेणुका बताती हैं कि इको एंजाइटी से बचने के लिए जहां तक संभव हो सके नकारात्मक परिस्थिति तथा नकारात्मक विचारों व सोच से दूरी बनाने का प्रयास करना चाहिए. खुद ऐसे कामों में व्यस्त रखें जिससे मन को शांति व खुशी मिले. नियमित व्यायाम तथा मेडिटेशन भी काफी फायदा करते हैं. विशेषतौर पर इको एंजाइटी से पीड़ित लोग विशेषकर बच्चे अपनी दिनचर्या का कुछ समय पर्यावरण की बेहतरी से जुड़े कार्यों में लगाएं. जिससे उनके मन की ग्लानि कुछ कम हो तथा उन्हे संतोष हो कि वह अपने स्तर पर पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं. इसके अलावा सभी बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास करने व अपने परिजनों, दोस्तों तथा अन्य लोगों को पर्यावरण को संरक्षित करने के तरीकों को लेकर जागरूक करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. साथ ही परिजनों तथा शिक्षकों को चाहिए कि बच्चों को चिंता को समझें, उनकी बातों को सुने तथा उन्हे सकारात्मक तरीके से समझाएं . जिससे उनके मन का डर कुछ कम हो. वह बताती हैं कि यदि एंजाइटी ज्यादा प्रभावित करने लगे तो तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए क्योंकि कई बार यह अवस्था पैनिक या अन्य समस्याओं का कारण भी बन सकती है.

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