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आयुर्वेद से करें हाइपरपिग्मेंटेशन का निवारण - Ayurveda treatment for Hyperpigmentation

हाइपरपिग्मेंटेशन या झाइयां त्वचा संबंधी समस्या है जिसमें त्वचा पर ज्यादा गहरे रंग के पैच बन जाते है। आयुर्वेद में इस समस्या के लिए काफी प्रभावी उपचार मौजूद है। इस संबंध में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा ने एस.ए.एस.ए.एस आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज, आंध्र प्रदेश में सहायक प्रोफेसर तथा एमडी आयुर्वेद डॉ. एस यास्मीन से जानकारी ली ।

Hyperpigmentation
Black patches on skin
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Published : Jul 5, 2021, 1:52 PM IST

हाइपरपिग्मेंटेशन एक ऐसी समस्या है जो आमतौर पर सूरज के संपर्क में आने पर लोगों को प्रभावित करती है। यह समस्या किसी भी प्रकार की त्वचा वाले व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। हाइपरपिग्मेंटेशन को लेकर आमतौर पर एलोपैथिक दवाइयों की मदद लेते हैं, लेकिन आयुर्वेद में भी इस समस्या का काफी कारगर इलाज मौजूद है।

हाइपरपिग्मेंटेशन

डॉ यास्मीन बताती हैं की हाइपरपिग्मेंटेशन के कुछ सामान्य प्रकारों में मेलाज्मा और सन स्पॉट्स शामिल हैं, जो आमतौर पर चेहरे , हाथ और पैर को प्रभावित करती है। वे बताती हैं की हाइपरपिग्मेंटेशन को साधारण कॉस्मेटिक समस्या मानना सही नही है क्योंकि यह व्यक्ति में मानसिक व भावनात्मक तनाव भी उत्पन्न कर सकती है।

गौरतलब हैं की आयुर्वेद में हाइपरपिग्मेंटेशन की स्थिति को “व्यंग” के नाम से जाना जाता है और इसके लिए वात और पित्त दोष के साथ-साथ क्रोध , शोक, और थकावट सहित मानसिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है।

हाइपरपिग्मेंटेशन के मुख्य कारण

डॉ. यास्मीन बताती हैं की आयुर्वेद में हाइपरपिग्मेंटेशन के लिए 12 कारको को जिम्मेदार माना जाता है।

1. त्वचा में ज्यादा मात्रा में मेलेनिन उत्पन्न होना तथा सूर्य की अल्ट्रा वायलट किरणों का त्वचा पर प्रभाव ।

2. मासिक धर्म के दौरान हार्मोनल परिवर्तन, गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति, कुछ दवाओं विशेषकर गर्भनिरोधक गोलियां के कारण ।

3. पोस्ट इंफ्लेमेटरी हाइपरपिग्मेंटेशन (पी.आई.एच) भी इसका एक कारण हो सकता है। आमतौर पर किसी भी प्रकार की चोट लगने पर शरीर में प्रतिक्रिया स्वरूप सूजन उत्पन्न होती है, जो त्वचा में मेलेनिन के उत्पादन को ट्रिगर करती है, जिसके परिणामस्वरूप त्वचा पर भूरे रंग के धब्बे, मुँहासे या पैच हो सकते हैं।

4. एनीमिया-आयरन, फॉलिक एसिड, विटामिन बी12 और विटामिन डी की कमी के कारण ।

5. पारिवारिक इतिहास।

6. यकृत विकार।

7. उल्टी जैसी प्राकृतिक समस्याओं को रोकने का प्रयास करना।

8. खाने के तुरंत बाद चेहरे के भारी व्यायाम करना जैसे गाना गाना या जोर से पढ़ना आदि।

9. दिन में सोना।

10. रक्त में दोष उत्पन्न करने वाला भोजन ग्रहण करना जैसे बासी, तेज मिर्च-मसाले और ज्यादा तेल वाला , तथा गलत फूड कॉम्बिनेशन का सेवन करना आदि ।

11. पित्त दोष को बढ़ाने वाले कारक जैसे भय, क्रोध, शोक आदि।

12. अत्यधिक तीखा, खट्टा, मसालेदार और नमकीन भोजन का सेवन।

हाइपरपिग्मेंटेशन के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचार

डॉ यास्मीन बताती हैं की हाइपरपिग्मेंटेशन के लिए चिकित्सक निम्नलिखित आयुर्वेदिक उपचारों को अपनाने की सलाह देते है। लेकिन बहुत जरूरी है की इन उपचारों को अपनाने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लिया जाय।

1. मंजिष्ठा और शहद का पेस्ट, जावित्री और दूध का पेस्ट, दूध के साथ अनार तथा / अनार के छिलके का पेस्ट बनाकर प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त मक्खन लगाने से भी मदद मिलती है।

2. जिंजेली तेल, कुमकुमदि तैलम, मक्खन और शतदौथ घृत (घी) जैसे तेलों से चेहरे की मालिश करें। कुमकुमादि तैलम के लिए 4-5 बूंद तेल लें और इसे अपनी हथेलियों के बीच रगड़ें। अब इसे अपने चेहरे पर 5 मिनट तक हल्के हाथों से मसाज करें।

3. नाक में तेल की बूंदें डालने से आमतौर पर गर्दन के ऊपर के सभी विकारों को फायदा मिलता है। यह प्रक्रिया नाक या मौखिक मार्ग से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है। इस समस्या में अनु तेल या कुमकुमदि तेल को बूंदों को नाक में डाला जा सकता है।

4. खाली पेट अदरक के तेल से 5 से 10 मिनट तक कुल्ला करना चाहिए।

5. सप्ताह में एक बार सुबह खाली पेट गर्म पानी में नींबू का रस डाल कर पीने से रक्त शुद्ध होता है और शरीर को डिटॉक्सीफाई करने में मदद मिलती है।

इसके अतिरिक्त रक्त को साफ करने के लिए निम्नलिखित रक्त शोधकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

• कुमार्यासव

• चंदनासव

• महामंजिष्ठादि कषायम

• चंद्रप्रभा वटी

• सारिवाद्यसव

• महातिक्तं कषायम

• लोधरासव

• कैशोर गुग्गुलु

• खादीरारिष्ट

• गंधक रसायन

डॉ यास्मीन बताती हैं की गर्भावस्था में विशेषकर 5वें और 6वें महीने के दौरान दूध के साथ एक चुटकी कुमकुम का सेवन करने से मेलास्मा से बचाव होता है , जोकी आमतौर पर गर्भवती महिलाओं में होने वाली झाइयों के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

Also Read: बदलते मौसम में रखें त्वचा का ख्याल

हाइपरपिग्मेंटेशन एक ऐसी समस्या है जो आमतौर पर सूरज के संपर्क में आने पर लोगों को प्रभावित करती है। यह समस्या किसी भी प्रकार की त्वचा वाले व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। हाइपरपिग्मेंटेशन को लेकर आमतौर पर एलोपैथिक दवाइयों की मदद लेते हैं, लेकिन आयुर्वेद में भी इस समस्या का काफी कारगर इलाज मौजूद है।

हाइपरपिग्मेंटेशन

डॉ यास्मीन बताती हैं की हाइपरपिग्मेंटेशन के कुछ सामान्य प्रकारों में मेलाज्मा और सन स्पॉट्स शामिल हैं, जो आमतौर पर चेहरे , हाथ और पैर को प्रभावित करती है। वे बताती हैं की हाइपरपिग्मेंटेशन को साधारण कॉस्मेटिक समस्या मानना सही नही है क्योंकि यह व्यक्ति में मानसिक व भावनात्मक तनाव भी उत्पन्न कर सकती है।

गौरतलब हैं की आयुर्वेद में हाइपरपिग्मेंटेशन की स्थिति को “व्यंग” के नाम से जाना जाता है और इसके लिए वात और पित्त दोष के साथ-साथ क्रोध , शोक, और थकावट सहित मानसिक कारणों को जिम्मेदार माना जाता है।

हाइपरपिग्मेंटेशन के मुख्य कारण

डॉ. यास्मीन बताती हैं की आयुर्वेद में हाइपरपिग्मेंटेशन के लिए 12 कारको को जिम्मेदार माना जाता है।

1. त्वचा में ज्यादा मात्रा में मेलेनिन उत्पन्न होना तथा सूर्य की अल्ट्रा वायलट किरणों का त्वचा पर प्रभाव ।

2. मासिक धर्म के दौरान हार्मोनल परिवर्तन, गर्भावस्था, रजोनिवृत्ति, कुछ दवाओं विशेषकर गर्भनिरोधक गोलियां के कारण ।

3. पोस्ट इंफ्लेमेटरी हाइपरपिग्मेंटेशन (पी.आई.एच) भी इसका एक कारण हो सकता है। आमतौर पर किसी भी प्रकार की चोट लगने पर शरीर में प्रतिक्रिया स्वरूप सूजन उत्पन्न होती है, जो त्वचा में मेलेनिन के उत्पादन को ट्रिगर करती है, जिसके परिणामस्वरूप त्वचा पर भूरे रंग के धब्बे, मुँहासे या पैच हो सकते हैं।

4. एनीमिया-आयरन, फॉलिक एसिड, विटामिन बी12 और विटामिन डी की कमी के कारण ।

5. पारिवारिक इतिहास।

6. यकृत विकार।

7. उल्टी जैसी प्राकृतिक समस्याओं को रोकने का प्रयास करना।

8. खाने के तुरंत बाद चेहरे के भारी व्यायाम करना जैसे गाना गाना या जोर से पढ़ना आदि।

9. दिन में सोना।

10. रक्त में दोष उत्पन्न करने वाला भोजन ग्रहण करना जैसे बासी, तेज मिर्च-मसाले और ज्यादा तेल वाला , तथा गलत फूड कॉम्बिनेशन का सेवन करना आदि ।

11. पित्त दोष को बढ़ाने वाले कारक जैसे भय, क्रोध, शोक आदि।

12. अत्यधिक तीखा, खट्टा, मसालेदार और नमकीन भोजन का सेवन।

हाइपरपिग्मेंटेशन के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचार

डॉ यास्मीन बताती हैं की हाइपरपिग्मेंटेशन के लिए चिकित्सक निम्नलिखित आयुर्वेदिक उपचारों को अपनाने की सलाह देते है। लेकिन बहुत जरूरी है की इन उपचारों को अपनाने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लिया जाय।

1. मंजिष्ठा और शहद का पेस्ट, जावित्री और दूध का पेस्ट, दूध के साथ अनार तथा / अनार के छिलके का पेस्ट बनाकर प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त मक्खन लगाने से भी मदद मिलती है।

2. जिंजेली तेल, कुमकुमदि तैलम, मक्खन और शतदौथ घृत (घी) जैसे तेलों से चेहरे की मालिश करें। कुमकुमादि तैलम के लिए 4-5 बूंद तेल लें और इसे अपनी हथेलियों के बीच रगड़ें। अब इसे अपने चेहरे पर 5 मिनट तक हल्के हाथों से मसाज करें।

3. नाक में तेल की बूंदें डालने से आमतौर पर गर्दन के ऊपर के सभी विकारों को फायदा मिलता है। यह प्रक्रिया नाक या मौखिक मार्ग से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है। इस समस्या में अनु तेल या कुमकुमदि तेल को बूंदों को नाक में डाला जा सकता है।

4. खाली पेट अदरक के तेल से 5 से 10 मिनट तक कुल्ला करना चाहिए।

5. सप्ताह में एक बार सुबह खाली पेट गर्म पानी में नींबू का रस डाल कर पीने से रक्त शुद्ध होता है और शरीर को डिटॉक्सीफाई करने में मदद मिलती है।

इसके अतिरिक्त रक्त को साफ करने के लिए निम्नलिखित रक्त शोधकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

• कुमार्यासव

• चंदनासव

• महामंजिष्ठादि कषायम

• चंद्रप्रभा वटी

• सारिवाद्यसव

• महातिक्तं कषायम

• लोधरासव

• कैशोर गुग्गुलु

• खादीरारिष्ट

• गंधक रसायन

डॉ यास्मीन बताती हैं की गर्भावस्था में विशेषकर 5वें और 6वें महीने के दौरान दूध के साथ एक चुटकी कुमकुम का सेवन करने से मेलास्मा से बचाव होता है , जोकी आमतौर पर गर्भवती महिलाओं में होने वाली झाइयों के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

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