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बच्चों में आटिज्म के लिए फायदेमंद होती है सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी

समय के साथ ऑटिज्म को लेकर लोगों में धीरे धीरे जागरूकता बढ़ रही है। जिसके नतीजा यह है की इस क्षेत्र में उपचार के नजरिए से विभिन्न प्रकार की थेरेपी को लेकर शोध किए जा रहे है साथ ही बच्चों में आटिज्म की मदद के लिए हर संभावना को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन जानकार मानते हैं की कोई भी थेरेपी या प्रक्रिया तभी मदद करती है जब थेरेपी ग्रहण करने वाला उसे मन से अपनाए। विशेष तौर पर बच्चों की स्तिथि को बेहतर तथा नियंत्रण में रखने के लिए अपनाई जाने वाली थेरेपियां कारगर हो इसके लिए बहुत जरूरी है की इस बात का ध्यान रखा जाए की बच्चे दुनिया को किस नजर से देखते हैं। इसीलिए जानकार सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी को बच्चों में ऑटिज्म पर नियंत्रण के लिए काफी कारगर मानते हैं। क्योंकि यह एक खेल आधारित थेरेपी है।

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सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी
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Published : Apr 16, 2021, 3:51 PM IST

Updated : Apr 16, 2021, 4:00 PM IST

ऑटिज्म के क्षेत्र में कार्य कर रहे चिकित्सक, थेरेपिस्ट तथा स्वास्थ्य कर्मी मानते हैं की बच्चों में ऑटिज्म पर नियंत्रण में सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई ) काफी मददगार साबित होती है, क्योंकि यह एक खेल आधारित थेरेपी है। सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने किमाया थेरेपी सेंटर विले पार्ले ईस्ट तथा बॉडी डायनेमिक क्लीनिक मुंबई की सेंसरी इंटीग्रेशन तथा एनडीटी थेरेपी प्रशिक्षण प्राप्त बाल मनोचिकित्सक डॉ किमाया सबनिस से बात की।

सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई )

डॉक्टर किमाया बताती हैं कि एस.आई यानी सेंसरी इंटीग्रेशन एक न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया है जो ऑटिस्टिक बच्चे के आसपास की परिस्थितियों के आधार पर इस बात का पता चलाने के लिए इस्तेमाल की जाती है कि वह कैसे अपने आसपास की बातों तथा चीजों के बारे में जानकारी ग्रहण करता है और कैसे उनके प्रति प्रतिक्रिया देता है। साधारण भाषा में कहा जाए तो सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी इंद्रियों पर आधारित नीतिगत उपचार पद्धति है जो देखने में एक खेल जैसी लगती है। यह आमतौर पर उन बच्चों के लिए ज्यादा इस्तेमाल की जाती है जिन्हें अपने इंद्रियों के माध्यम से चीजों और बातों को महसूस करने में समस्याएं होती हैं।

किनके लिए उचित है सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई )

डॉ किमाया बताती हैं की हर ऑटिस्टिक बच्चे के लक्षण तथा उसके हाव भाव तथा गतिविधियां दूसरे ऑटिस्टिक बच्चों से अलग होती है, इसलिए बहुत जरूरी है कि सबसे पहले यह जानकारी ली जाय की जिस बच्चे को यह थैरेपी दी जा रही है उसके लिए यह मददगार भी होगी या नही।

सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी उन बच्चों के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है जिनमें इंद्रियों पर आधारित विकासात्मक, व्यवहारपरक तथा सीखने संबंधी समस्याएं देखने में आती हैं। ऐसे ऑटिस्टिक बच्चों के लक्षण जिनके लिए एस थेरेपी मददगार हो सकती है , इस प्रकार हैं ।

  • अति संवेदनशीलता , जैसे किसी के छूने पर, किसी विशेष स्वाद या सुगंध को लेकर, तेजशोर के चलते, किसी विशेष चीज को देखने पर या किसी एक प्रतिक्रिया के डर के चलते तीव्र प्रतिक्रिया देना।
  • ऐसे बच्चे जो इंद्रियों से संबंधित संवेदनाओं के प्रति कम प्रतिक्रिया देते हैं।
  • ऐसे बच्चे जिनकी कार्य संबंधी गतिविधियां या तो बहुत ज्यादा होती है या बहुत ही कम यानी नहीं के बराबर होती हैं। जिन्हें अंग्रेजी में हाइपरएक्टिव या लेथार्जिक भी कहा जाता है।
  • ऐसे बच्चे जिन्हें आंखों व हाथ तथा आंखों व पांव के कार्यों के बीच समन्वय बैठाने में समस्याएं होती हैं।
  • ऐसे ही बच्चे जो देर से बोलना शुरू करते हैं तथा जिन्हें भाषा समझने में समस्याएं होती हैं, या फिर शिक्षा ग्रहण करने में समस्याएं होती हैं।
  • ऐसे बच्चे जो व्यवस्थित नहीं हो, जिनका ध्यान सरलता से भटक जाता हो, जो नए वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने में समस्याएं महसूस करते हो तथा जिन्हें बताए गए निर्देशों के अनुसार कार्य करने तथा उन निर्देशों को समझने में समस्या होती हो।
  • ऐसे बच्चे जो आमतौर पर आलसी तथा हमेशा थके दिखते हो । तथा जिनमें प्रेरणा की कमी हो।

जरूरी है समस्याओं के बारें में जानना

डॉ किमाया कहती हैं की बच्चे के व्यवहार को अप्रिय, अच्छा या बुरा कहना नीतिगत तरीके से सही नही है। क्योंकि उनका व्यवहार प्रतिक्रिया पर आधारित होता है। उनकी मदद करने के लिए चिकित्सक तथा उनके आसपास रहने वाले लोग उनकी भावनाओं तथा प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह पता लगा सकते हैं की वह किन चीजों को लेकर अच्छा महसूस करते हैं और किन चीजों को लेकर असहजता या परेशानी महसूस करते हैं । एसआई थेरेपी के दौरान कुछ यंत्रों का भी इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर ऑटिस्टिक बच्चों के समक्ष जो समस्याएं आती है उनमें इंद्रियों से संबंधित संवेदनाओं के साथ ही विभिन्न अन्य कारणों से होने होने समस्याएं भी होती हो। ऐसी अवस्था में इन यंत्रों के अभाव में थेरेपी को पूरा करना सरल नहीं होता है।

पढ़ें : एक दुनिया,कई आवाजें: विश्व आवाज दिवस 2021

“सेंसरी डाइट”

डॉ किमाया बताती है आमतौर पर चिकित्सक ऑटिस्टिक बच्चो के माता-पिता तथा शिक्षकों को बच्चे की उपचार पद्धति से जोड़ने के लिए घर तथा स्कूल में “सेंसरी डाइट” अपनाने की सलाह देते हैं। यहाँ “सेंसरी डाइट” से तात्पर्य एक ऐसी जीवन शैली से हैं जिसमें बच्चे की दिनचर्या इंद्रियों की संवेदना यानी इंद्रियों संबंधी गतिविधियों के आधार पर बनाई जाती है। इसके लिए घर तथा स्कूल में बच्चे के आसपास ऐसी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जा सकता है जिनसे उनकी इंद्रियों की संवेदनाएं प्रभावित हो, जैसे ऐसे खिलौने, स्लाइम या वस्तुएं जिन्हें वह महसूस कर सके। इसके अतिरिक्त उनकी दिनचर्या में ऐसे खेल तथा गतिविधियां भी शामिल किए जाते हैं जिनसे उनकी देखने, सुनने, स्वाद लेने और महसूस करने जैसी संवेदनाएं प्रभावित हों।

थेरेपी में खेल को करें शामिल

“यदि बच्चा हमारे तरीके से नहीं सीख पाता है तो उसे सिखाने के लिए हमें उसका तरीका अपनाने की जरूरत है “ डॉक्टर किमाया कहती है कि इस एक लाइन में सफल उपचार तथा थेरेपी संबंधी प्रक्रिया को बहुत सरलता से बताया गया है। ऑटिज्म एक ऐसी समस्या नहीं है जिसे सिर्फ दवाइयों और परंपरागत उपचार पद्धतियों की मदद से नियंत्रित किया जा सके। ऑटिस्टिक बच्चो में सामान्य जीवन जीने की संभावना बढ़े इसके लिए बहुत जरूरी है कि उनकी थेरेपी के दायरों को सीमित न किया जाए, बल्कि जिस भी माध्यम से उनकी मदद की जा सकती है उन्हें समझ कर उनकी थेरेपी में शामिल किया जाय । बच्चों को खेल आकर्षित करते हैं इसलिए उनकी थेरेपी में हर संभव तरीके से खेल को शामिल करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिये kimayatherapycentre@gmail.com संपर्क किया जा सकता है।

ऑटिज्म के क्षेत्र में कार्य कर रहे चिकित्सक, थेरेपिस्ट तथा स्वास्थ्य कर्मी मानते हैं की बच्चों में ऑटिज्म पर नियंत्रण में सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई ) काफी मददगार साबित होती है, क्योंकि यह एक खेल आधारित थेरेपी है। सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा की टीम ने किमाया थेरेपी सेंटर विले पार्ले ईस्ट तथा बॉडी डायनेमिक क्लीनिक मुंबई की सेंसरी इंटीग्रेशन तथा एनडीटी थेरेपी प्रशिक्षण प्राप्त बाल मनोचिकित्सक डॉ किमाया सबनिस से बात की।

सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई )

डॉक्टर किमाया बताती हैं कि एस.आई यानी सेंसरी इंटीग्रेशन एक न्यूरोलॉजिकल प्रक्रिया है जो ऑटिस्टिक बच्चे के आसपास की परिस्थितियों के आधार पर इस बात का पता चलाने के लिए इस्तेमाल की जाती है कि वह कैसे अपने आसपास की बातों तथा चीजों के बारे में जानकारी ग्रहण करता है और कैसे उनके प्रति प्रतिक्रिया देता है। साधारण भाषा में कहा जाए तो सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी इंद्रियों पर आधारित नीतिगत उपचार पद्धति है जो देखने में एक खेल जैसी लगती है। यह आमतौर पर उन बच्चों के लिए ज्यादा इस्तेमाल की जाती है जिन्हें अपने इंद्रियों के माध्यम से चीजों और बातों को महसूस करने में समस्याएं होती हैं।

किनके लिए उचित है सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी( एस. आई )

डॉ किमाया बताती हैं की हर ऑटिस्टिक बच्चे के लक्षण तथा उसके हाव भाव तथा गतिविधियां दूसरे ऑटिस्टिक बच्चों से अलग होती है, इसलिए बहुत जरूरी है कि सबसे पहले यह जानकारी ली जाय की जिस बच्चे को यह थैरेपी दी जा रही है उसके लिए यह मददगार भी होगी या नही।

सेंसरी इंटीग्रेशन थेरेपी उन बच्चों के लिए ज्यादा फायदेमंद होती है जिनमें इंद्रियों पर आधारित विकासात्मक, व्यवहारपरक तथा सीखने संबंधी समस्याएं देखने में आती हैं। ऐसे ऑटिस्टिक बच्चों के लक्षण जिनके लिए एस थेरेपी मददगार हो सकती है , इस प्रकार हैं ।

  • अति संवेदनशीलता , जैसे किसी के छूने पर, किसी विशेष स्वाद या सुगंध को लेकर, तेजशोर के चलते, किसी विशेष चीज को देखने पर या किसी एक प्रतिक्रिया के डर के चलते तीव्र प्रतिक्रिया देना।
  • ऐसे बच्चे जो इंद्रियों से संबंधित संवेदनाओं के प्रति कम प्रतिक्रिया देते हैं।
  • ऐसे बच्चे जिनकी कार्य संबंधी गतिविधियां या तो बहुत ज्यादा होती है या बहुत ही कम यानी नहीं के बराबर होती हैं। जिन्हें अंग्रेजी में हाइपरएक्टिव या लेथार्जिक भी कहा जाता है।
  • ऐसे बच्चे जिन्हें आंखों व हाथ तथा आंखों व पांव के कार्यों के बीच समन्वय बैठाने में समस्याएं होती हैं।
  • ऐसे ही बच्चे जो देर से बोलना शुरू करते हैं तथा जिन्हें भाषा समझने में समस्याएं होती हैं, या फिर शिक्षा ग्रहण करने में समस्याएं होती हैं।
  • ऐसे बच्चे जो व्यवस्थित नहीं हो, जिनका ध्यान सरलता से भटक जाता हो, जो नए वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने में समस्याएं महसूस करते हो तथा जिन्हें बताए गए निर्देशों के अनुसार कार्य करने तथा उन निर्देशों को समझने में समस्या होती हो।
  • ऐसे बच्चे जो आमतौर पर आलसी तथा हमेशा थके दिखते हो । तथा जिनमें प्रेरणा की कमी हो।

जरूरी है समस्याओं के बारें में जानना

डॉ किमाया कहती हैं की बच्चे के व्यवहार को अप्रिय, अच्छा या बुरा कहना नीतिगत तरीके से सही नही है। क्योंकि उनका व्यवहार प्रतिक्रिया पर आधारित होता है। उनकी मदद करने के लिए चिकित्सक तथा उनके आसपास रहने वाले लोग उनकी भावनाओं तथा प्रतिक्रियाओं के आधार पर यह पता लगा सकते हैं की वह किन चीजों को लेकर अच्छा महसूस करते हैं और किन चीजों को लेकर असहजता या परेशानी महसूस करते हैं । एसआई थेरेपी के दौरान कुछ यंत्रों का भी इस्तेमाल किया जाता है। आमतौर पर ऑटिस्टिक बच्चों के समक्ष जो समस्याएं आती है उनमें इंद्रियों से संबंधित संवेदनाओं के साथ ही विभिन्न अन्य कारणों से होने होने समस्याएं भी होती हो। ऐसी अवस्था में इन यंत्रों के अभाव में थेरेपी को पूरा करना सरल नहीं होता है।

पढ़ें : एक दुनिया,कई आवाजें: विश्व आवाज दिवस 2021

“सेंसरी डाइट”

डॉ किमाया बताती है आमतौर पर चिकित्सक ऑटिस्टिक बच्चो के माता-पिता तथा शिक्षकों को बच्चे की उपचार पद्धति से जोड़ने के लिए घर तथा स्कूल में “सेंसरी डाइट” अपनाने की सलाह देते हैं। यहाँ “सेंसरी डाइट” से तात्पर्य एक ऐसी जीवन शैली से हैं जिसमें बच्चे की दिनचर्या इंद्रियों की संवेदना यानी इंद्रियों संबंधी गतिविधियों के आधार पर बनाई जाती है। इसके लिए घर तथा स्कूल में बच्चे के आसपास ऐसी वस्तुओं का इस्तेमाल किया जा सकता है जिनसे उनकी इंद्रियों की संवेदनाएं प्रभावित हो, जैसे ऐसे खिलौने, स्लाइम या वस्तुएं जिन्हें वह महसूस कर सके। इसके अतिरिक्त उनकी दिनचर्या में ऐसे खेल तथा गतिविधियां भी शामिल किए जाते हैं जिनसे उनकी देखने, सुनने, स्वाद लेने और महसूस करने जैसी संवेदनाएं प्रभावित हों।

थेरेपी में खेल को करें शामिल

“यदि बच्चा हमारे तरीके से नहीं सीख पाता है तो उसे सिखाने के लिए हमें उसका तरीका अपनाने की जरूरत है “ डॉक्टर किमाया कहती है कि इस एक लाइन में सफल उपचार तथा थेरेपी संबंधी प्रक्रिया को बहुत सरलता से बताया गया है। ऑटिज्म एक ऐसी समस्या नहीं है जिसे सिर्फ दवाइयों और परंपरागत उपचार पद्धतियों की मदद से नियंत्रित किया जा सके। ऑटिस्टिक बच्चो में सामान्य जीवन जीने की संभावना बढ़े इसके लिए बहुत जरूरी है कि उनकी थेरेपी के दायरों को सीमित न किया जाए, बल्कि जिस भी माध्यम से उनकी मदद की जा सकती है उन्हें समझ कर उनकी थेरेपी में शामिल किया जाय । बच्चों को खेल आकर्षित करते हैं इसलिए उनकी थेरेपी में हर संभव तरीके से खेल को शामिल करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिये kimayatherapycentre@gmail.com संपर्क किया जा सकता है।

Last Updated : Apr 16, 2021, 4:00 PM IST
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