प्रदूषण, विशेषकर वायु प्रदूषण बड़ों तथा बच्चों में ना सिर्फ शारीरिक रोगों और समस्याओं का कारण बन सकता है बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है. बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ की एक रिसर्च में सामने आया है कि वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में एडीएचडी जैसी व्यवहार आधारित मानसिक समस्या का खतरा तेजी से बढ़ रहा है.
अति प्रदूषित वातावरण में एडीएचडी का खतरा 50% ज्यादा
शोध में बताया गया है कि वैसे तो वायु प्रदूषण की अधिकता वाले इलाकों में रहने वाले बच्चों को गंभीर शारीरिक व मानसिक बीमारियों को लेकर संवेदनशील माना जाता ही है, लेकिन ऐसे वातावरण में बच्चों में अतिसक्रियता की बीमारी, एडीएचडी यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव डिसआर्डर होने का जोखिम भी काफी ज्यादा होता है. रिसर्च में बताया गया है कि हवा में मौजूद प्रदूषण के छोटे-छोटे कणों से होने वाले संक्रमण के प्रभाव में आकर बच्चों में व्यवहारात्मक समस्याओं विशेषकर एडीएचडी के बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है. वहीं ऐसे बच्चे जो हरे-भरे और कम प्रदूषित इलाकों में रहते हैं उनमें इस समस्या का खतरा 50 प्रतिशत तक कम होता है.
'एनवायरमेंट इंटरनेशनल' नामक जर्नल में प्रकाशित इस शोध में वर्ष 2000 से लेकर 2001 तक जन्में बच्चों के स्वास्थ्य रिकार्ड का अध्ययन किया गया था . इस शोध में बार्सिलोना ग्लोबल हेल्थ की मटिल्डा वान डेन बाश के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने कनाडा के वैन्कूवर में 37 हजार बच्चों पर स्वास्थ्य रिकार्ड से मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया था. जिनमें से एडीएचडी के 1,217 मामले सामने आए थे, जोकि अध्ययन किए गए कुल बच्चों का करीब 4.2 फीसदी था.
शोध के लिये शोधकर्ताओं ने अस्पतालों के रिकॉर्ड तथा चिकित्सकों के पास पंजीकृत प्रिस्क्रिप्शन से एडीएचडी सम्बन्धी मामलों के आंकड़ों को प्राप्त किया था. इसके अलावा पीड़ित बच्चों के घर के आसपास के वातावरण के बारें में जानकारी लेने के लिये उपग्रहों से प्राप्त छवियों और साथ ही नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पीएम 2.5 एवं ध्वनि प्रदूषण सम्बन्धी आंकड़ों का भी विश्लेषण किया है. शोध में इन तीनों पर्यावरण प्रदूषकों और एडीएचडी के बीच जुड़ाव की जानकारी लेने के लिये सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग किया गया था.
जिसमें सामने आया कि ऐसे बच्चे जो उन इलाकों में रहते हैं जहां प्रदूषण का स्तर पीएम 2.5 या उससे ज्यादा हो, उनमें व्यवहार से जुड़ी बीमारी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव डिसआर्डर यानी एडीएचडी का खतरा अपेक्षाकृत ज्यादा रहता है. शोध के नतीजों के आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया था कि प्रदूषण के स्तर पीएम 2.5 में हर 2.1 माइक्रोग्राम की वृद्धि, बच्चों में एडीएचडी होने के जोखिम को 11 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है.
क्या है एडीएचडी
गौरतलब है कि एडीएचडी एक न्यूरोडेवलपमेंटल विकार है जो बच्चों में काफी आम होता है. आंकड़ों की माने तो यह समस्या लगभग 5 से 10 फीसदी बच्चों को प्रभावित करती है. मनोवैज्ञानिक डॉ रेणुका शर्मा के अनुसार एडीएचडी यानी अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर एक मानसिक स्वास्थ्य विकार समस्या है जिसके चलते व्यवहार में अति-सक्रियता उत्पन्न हो जाती है. एडीएचडी मुख्यतः बच्चों में नजर आने वाली समस्या है, लेकिन यह कई बार यह बड़ों में भी नजर आ सकती है. वहीं लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह समस्या ज्यादा देखने में आती है.
इस समस्या से ग्रस्त बच्चे किसी भी काम में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते और वे हाइपर एक्टिव यानी अतिसक्रिय होते हैं. ऐसे बच्चे पढ़ाई, कोई अन्य कार्य, यहां तक की आराम भी स्थिरता से नहीं कर पाते हैं.
लक्षणों के आधार पर एडीएचडी को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है- पहली श्रेणी में वैसे बच्चे आते हैं,जिनमें एकाग्रता की कमी होती है यानी वे किसी भी कार्य में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं. दूसरी श्रेणी में हाइपर ऐक्टिव बच्चे आते हैं, जो पल भर के लिए भी स्थिर या शांत होकर नहीं बैठ पाते, तीसरी श्रेणी में उन बच्चों को रखा जाता है जिनमें अटेंशन डेफिसिट और हाइपर ऐक्टिविटी, दोनों के लक्षण एक साथ पाए जाते हैं.
आमतौर पर इस समस्या से पीड़ित बच्चों में किसी की निर्देश का पालन न करना,एकाग्रता में कमी, याद्दाश्त में कमी, किसी की बात को ना सुनना, लगातार गलतियां करना, अपना होमवर्क करना भूल जाना, संयम में कमी होना, छोटी-छोटी सी बात पर गुस्सा करना या चिल्लाना तथा जरूरत से ज्यादा बात करना जैसे लक्षण नजर आते हैं.