एक नए शोध के अनुसार अतिरिक्त चीनी के अत्यधिक सेवन पर प्रतिबंध लगाने से बच्चों में गैर-अल्कोहल फैटी-लिवर रोग (एनएएफएलडी) का खतरा कम हो सकता है।
हाल ही में पेडियाट्रिक ओबेसिटी नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि गैर-अल्कोहल फैटी-लिवर रोग होने का कारण, दोनों व्यायाम की कमी और सुक्रोज (टेबल शुगर, जो फ्रुक्टोज और ग्लूकोज दोनों से मिलकर बनते है) की अत्यधिक खपत है। फ्रुक्टोज और ग्लूकोज दोनों फलों, सब्जियों, डेयरी उत्पादों और अनाज में स्वाभाविक रूप से पाए जाते हैं, और कई प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के लिए एक योजक का कार्य करते हैं।
अल जीनोमिक्स रिसर्च इंस्टीट्यूट (टीजेन) में प्रोफेसर, शोधकर्ता जोहाना डिस्टेफ़ानो का कहना है कि 'फैटी-लिवर रोग की व्यापकता ना केवल वयस्कों में, बल्कि बच्चों में भी बढ़ रही है।' डिस्टेफ़ानो ने आगे कहा, 'टाइप -2 डायबिटीज की तरह, गैर-अल्कोहल फैटी-लिवर रोग सिर्फ वयस्कों में विकसित होने वाली बीमारी माना जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।'
आंतों में अवशोषित ग्लूकोज, शरीर का मुख्य कार्बोहाइड्रेट-आधारित ऊर्जा स्रोत है। वहीं फ्रुक्टोज पहले लिवर में जाकर ग्लूकोज में परिवर्तित होता है, उसके बाद शरीर इसे ऊर्जा के लिए उपयोग करता है।
डिस्टेफ़ानो के नेतृत्व में पहले किए गये एक अध्ययन से पता चला है कि फ्रुक्टोज जीन के स्वभाव में वृद्धि, उचित सेल फंक्शन में बदलाव, और लिवर रोग का कारण बना है। इस अध्ययन के लिए, शोधकर्ताओं ने उन अध्ययनों पर ध्यान केंद्रित किया, जो बच्चों में गैर-अल्कोहल फैटी-लिवर रोग के साथ अत्यधिक फ्रुक्टोज सेवन से संबंधित थे, जो फ्रक्टोज को प्रतिबंधित करते थे, और संबंधित मेटाबॉलिज्म बायोमार्कर की पहचान करते थे।
एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता गैब्रियल शबी का कहना है कि, 'गैर-अल्कोहल फैटी-लिवर रोग के निदान और रोग की गंभीरता पर बेहतर नियंत्रण प्राप्त करने से, हमारे पास प्रबंधन के लिए एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण होगा, जहां कुछ बच्चे आहार और व्यायाम के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देंगे, जबकि अन्य को अधिक आक्रामक हस्तक्षेप की आवश्यकता हो सकती है।'
समीक्षकों ने बताया है कि उच्च फ्रुक्टोज की खपत के छोटे और दीर्घकालिक प्रभाव और बच्चों में गैर-अल्कोहल फैटी-लिवर रोग के विकास दोनों को समझने के लिए अतिरिक्त अध्ययन की आवश्यकता है।
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हालांकि, उन्होंने सुझाव दिया हैं कि, 'आहार में अतिरिक्त चीनी की वैश्विक खपत को कम करने के प्रयासों से निश्चित रूप से युवाओं में समग्र स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।'