आयुर्वेद में रोग के लिए शरीर के दोषों में असंतुलन को जिम्मेदार माना जाता है। किसी दोष के अधिक बढ़ने या घटने के कारण दोष असंतुलित अवस्था में आकर रोगोत्पत्ति करते है। अम्लपित्त यानी एसिडिटी में भी मुख्यत पित्त दोष बढ़कर अम्लता उत्पन्न करता है। एसिडिटी से बचाव, उसके उपचार के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए ETV भारत सुखीभवा में हैदराबाद के वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ पी वी रंगनायकूलु से बात की।
हाइपरएसिडिटी
डॉ.पी.वी रंगनायकूलु बताते है की एसिडिटी के लिए ज्यादातर मामलों में आहार जिम्मेदार होता है। वर्तमान जीवनशैली में हाइपर एसिडिटी यानि अम्लपित्त की समस्या बहुत आम समस्या है। जिससे हर व्यक्ति को कभी न कभी सामना करना पड़ता है। आंकड़ों की माने तो आज के दौर में लगभग 70 प्रतिशत लोग इसी रोग से पीड़ित हैं।
हाइपर एसिडिटी में भोजन को टुकड़ों में तोड़ने वाले अम्ल 'हाइड्रोक्लोरिक एसिड' इसोफेगस की परत से होकर गुजरता है, जिससे सीने या पेट मे जलन महसूस होने लग जाती है, क्योंकि ये परत हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के लिए नहीं बनी है। लेकिन इससे बचाव के लिए हमारे पेट में पर्याप्त मात्रा में बलगम स्रावित करता है ताकि हाइड्रोक्लोरिक एसिड पेट की परत को न जलाए। हाइड्रोक्लोरिक एसिड की मात्रा अधिक होने पर या बलगम स्रावित करने वाली कोशिकाओ के क्षतिग्रस्त होने पर पेट में जलन महसूस होती है। बार-बार होने वाली एसिडिटी की समस्या को गर्ड या भाटा रोग भी कहा जाता है।
एसिडिटी होने के कारण
एसिडिटी के लिए बहुत से कारणों को जिम्मेदकर माना जाता है जिनमें से कुछ निम्न है।
- अत्यधिक मिर्च-मसालेदार और तैलीय भोजन करना।
- पेट के भोजन के बिना पचे दोबारा भोजन करना।
- अधिक अम्ल पदार्थों के सेवन करने पर।
- पर्याप्त नींद न लेना
- भूखा रहना
- लम्बे समय से पेनकिलर जैसी दवाइओं का सेवन करने से।
- गर्भवती महिलाओं में भी एसिड रिफ्लक्स की समस्या हो जाती है।
- नमक का अत्यधिक सेवन करना
- शराब और कैफीन युक्त पदार्थ का अधिक सेवन।
- अधिक भोजन करना और भोजन करते ही सो जाना।
- अधिक धूम्रपान के कारण।
- कभी-कभी अत्यधिक तनाव लेने के कारण भी भोजन ठीक प्रकार से हजम नहीं होता और एसिडिटी की समस्या हो जाती है।
- सब्जी और फलों में ज्यादा मात्रा में हानिकारक कीटनाशक और उर्वरक जैसे रसायनों का इस्तेमाल ।
एसिडिटी के लक्षण
वैसे तो पेट में गैस और पेट या सीने में जलन एसिडिटी का मुख्य लक्षण होते है। लेकिन इसके सिवा और भी लक्षण होते हैं जो आम होता है।
- भोजन करने के बाद कुछ समय या घंटों तक सीने में जलन ।
- खट्टी डकारों का आना कई बार डकार के साथ खाने का भी गले तक आ जाना।
- अत्यधिक डकार आना और मुँह का स्वाद कड़वा होना
- पेट फूलना
- मिचलाहट होना एवं उल्टी आना
- मुंह से दुर्गन्ध आना
- सिर और पेट में दर्द
उपचार
डॉ.पी.वी रंगनायकूलु बताते है की आयुर्वेदीय उपचार में औषधि के साथ ही सही खान-पान और जीवनशैली के लिए लोगों निर्देशित किया जाता है । इसमें पित्त को कम करने वाला उपचार के साथ-साथ पित्त को कम करने वाले आहार सेवन करने का भी निर्देश दिया जाता है। यदि उपचार करते समय निर्दिष्ट आहार का पालन न किया जाए तो रोग ठीक नहीं होता। कुछ आयुर्वेदिक घरेलू उपचार हैं जो एसिडिटी से राहत दिलाते हैं।
- मुलेठी के पाउडर को पानी में उबालकर मुलेठी का काढ़ा बना लें। जिसका लंच और डिनर से पहले 10 से 5 मिली मात्रा में सेवन करें।
- जीरा और धनियां बराबर मात्रा में लेकर 4 गुना पानी में 15 मिनट तक उबालें। काढ़े को छानकर 30 मिलीलीटर मात्रा में दिन में दो बार थोड़ा सा घी मिलाकर पीएं।
- सोंठ के पाउडर को हल्का सा भून लें. आधा चम्मच लें और उसमें 1 चम्मच चीनी मिलाकर सुबह नाश्ते से पहले खाएं।