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ऊंची डिग्री, सूट-बूट और हाथ में झाड़ू, ये हैं असली सफाई वाले हीरो - new delhi

दिल्ली को स्वच्छ बनाने के लिए सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनोज साबले और उनकी 17 लोगों की टीम 4 साल से मेहनत कर रही है, ये टीम घर से कूड़ा लेकर जाती है और उससे खाद बनाई जाती है.

ऊंची डिग्री, सूट-बूट और हाथ में झाड़ू, ये हैं असली सफाई वाले हीरो
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Published : Mar 27, 2019, 5:50 PM IST

नई दिल्ली: एक तरह जहां हजारों-करोड़ों रुपये खर्च कर दिल्ली की साफ-सफाई एजेंसियां नाकाम साबित हो रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर निस्वार्थ पढ़े लिखे नौजवान राजधानी को सुंदर साफ सुथरा बनाने में लगे हैं. ये नौजवान सूट-बूट पहनकर हाथों में गल्ब्स पहने घर-घर जाकर रसोई से कूड़ा इकट्ठा करते हैं. सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनोज साबले और उनकी टीम इस काम में लगी है.

सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनोज साबले इन्हीं लोगों में से एक हैं. सूट-बूट पहनकर, टाई लगाकर मनोज रोजाना अपनी टीम के साथ पश्चिमी दिल्ली के इलाकों में निकलते हैं. सड़कों और गलियों की साफ-सफाई के साथ-साथ कूड़े से 'सोना' बनाने का काम करते हैं. चार साल पहले शुरू किए गए इस अनोखे सफर में आज मनोज के साथ 16 अन्य लोग जुड़ गए हैं. साफ-सफाई, कूड़ा इकट्ठा करना, मंदिरों से फूल इकट्ठे करना, कूड़े से खाद बनाना, मेट्रो पिलर साफ करना ये सब मनोज साबले की टीम करती है.

हाल ही में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने इनके कामकाज की रिपोर्ट आला अधिकारियों को भेजी इनके कामकाज को देखकर इन्हें कई पुरुस्कारों से नवाजा भी गया है.

ऊंची डिग्री, सूट-बूट और हाथ में झाड़ू, ये हैं असली सफाई वाले हीरो

4 साल से बिना पैसे काम कर रही है ये टीम
पिछले 4 साल से बिना किसी पैसे के साफ सफाई को अपना समय देने वाले मनोज कहते हैं कि इस काम में भी उन्हें कोई कम चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता. यहां सबसे बड़ी समस्या खाद बनाने को लेकर जगह की आ रही है जिसके लिए पिछले दिनों सरकार और एजेंसियों को पत्र लिखकर थोड़ी जगह देने की मांग की गई. इस क्रम में दिल्ली सरकार ने एक स्कूल में उन्हें ये जगह दे दी है लेकिन मनोज कहते हैं कि 200 किलो से ज्यादा के रोज के कूड़े के लिए ये जगह पर्याप्त नहीं है.

पूरी दिल्ली को साफ करना है टारगेट
मनोज कहते हैं कि अभी कम लोगों और कम संसाधनों के होने के चलते उन्होंने अपना काम पश्चिमी दिल्ली के कुछ इलाकों इलाकों तक ही सीमित रखा गया है. हालांकि बहुत जल्दी वो अपनी टीमें बढ़ाएंगे. वो कहते हैं कि उन्हें सरकार से किसी वित्तीय मदद की जरूरत नहीं है लेकिन अगर उन्हें खाद बनाने के लिए थोड़ी जमीन मुहैया करा दी जाए तो उनका काम बेहतर तरीके से हो सकता है.

नई दिल्ली: एक तरह जहां हजारों-करोड़ों रुपये खर्च कर दिल्ली की साफ-सफाई एजेंसियां नाकाम साबित हो रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर निस्वार्थ पढ़े लिखे नौजवान राजधानी को सुंदर साफ सुथरा बनाने में लगे हैं. ये नौजवान सूट-बूट पहनकर हाथों में गल्ब्स पहने घर-घर जाकर रसोई से कूड़ा इकट्ठा करते हैं. सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनोज साबले और उनकी टीम इस काम में लगी है.

सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनोज साबले इन्हीं लोगों में से एक हैं. सूट-बूट पहनकर, टाई लगाकर मनोज रोजाना अपनी टीम के साथ पश्चिमी दिल्ली के इलाकों में निकलते हैं. सड़कों और गलियों की साफ-सफाई के साथ-साथ कूड़े से 'सोना' बनाने का काम करते हैं. चार साल पहले शुरू किए गए इस अनोखे सफर में आज मनोज के साथ 16 अन्य लोग जुड़ गए हैं. साफ-सफाई, कूड़ा इकट्ठा करना, मंदिरों से फूल इकट्ठे करना, कूड़े से खाद बनाना, मेट्रो पिलर साफ करना ये सब मनोज साबले की टीम करती है.

हाल ही में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने इनके कामकाज की रिपोर्ट आला अधिकारियों को भेजी इनके कामकाज को देखकर इन्हें कई पुरुस्कारों से नवाजा भी गया है.

ऊंची डिग्री, सूट-बूट और हाथ में झाड़ू, ये हैं असली सफाई वाले हीरो

4 साल से बिना पैसे काम कर रही है ये टीम
पिछले 4 साल से बिना किसी पैसे के साफ सफाई को अपना समय देने वाले मनोज कहते हैं कि इस काम में भी उन्हें कोई कम चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता. यहां सबसे बड़ी समस्या खाद बनाने को लेकर जगह की आ रही है जिसके लिए पिछले दिनों सरकार और एजेंसियों को पत्र लिखकर थोड़ी जगह देने की मांग की गई. इस क्रम में दिल्ली सरकार ने एक स्कूल में उन्हें ये जगह दे दी है लेकिन मनोज कहते हैं कि 200 किलो से ज्यादा के रोज के कूड़े के लिए ये जगह पर्याप्त नहीं है.

पूरी दिल्ली को साफ करना है टारगेट
मनोज कहते हैं कि अभी कम लोगों और कम संसाधनों के होने के चलते उन्होंने अपना काम पश्चिमी दिल्ली के कुछ इलाकों इलाकों तक ही सीमित रखा गया है. हालांकि बहुत जल्दी वो अपनी टीमें बढ़ाएंगे. वो कहते हैं कि उन्हें सरकार से किसी वित्तीय मदद की जरूरत नहीं है लेकिन अगर उन्हें खाद बनाने के लिए थोड़ी जमीन मुहैया करा दी जाए तो उनका काम बेहतर तरीके से हो सकता है.

Intro:पश्चिमी दिल्ली:
एक तरह जहां हजारों-करोड़ों रुपये खर्च कर दिल्ली की एजेंसियां साफ-सफाई के मामले में फेल साबित हो रही हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग बिना किसी स्वार्थ के दिल्ली को सुंदर बनाने में जुटे हुए हैं. पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनोज साबले इन्हीं लोगों में से एक हैं. सूट-बूट पहनकर, टाई लगाकर मनोज रोजाना अपनी टीम के साथ पश्चिमी दिल्ली के इलाकों में निकलते हैं और सड़कों और गलियों की साफ-सफाई के साथ-साथ कूड़े से 'सोना' बनाने का काम करते हैं.


Body:चार साल पहले शुरू किए गए इस अनोखे सफर में आज मनोज के साथ 16 अन्य लोग जुड़ गए हैं. साफ-सफाई, कूड़ा इकट्ठा करना, मंदिरों से फूल इकट्ठे करना, कूड़े से खाद बनाना, मेट्रो पिलर साफ करना आदि काम इस टीम के मुख्य कामों में शामिल हैं. हाल ही में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने इनका कामकाज देख उसकी रिपोर्ट आला अधिकारियों को भेजी है. इनके कामकाज को देखकर इन्हें कई पुरुस्कारों से नवाजा गया है.

*सूट-बूट पहनकर झाड़ू लगाने के पीछे हैं खास कारण*

ईटीवी भारत से खास बातचीत में मनोज साबले ने बताया कि सूट-बूट पहनने के पीछे उनका मकसद महज इतना सा है कि साफ-सफाई को छोटा मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इन्होंने साफ-सफाई का भी एक ड्रेस कोड इख्तियार किया है जिसे देखकर अमूमन लोग इनसे पूछ बैठते हैं कि क्या ये वाकई सफाई करने वाले ही लोग हैं! मनोज बताते हैं कि इससे लोगों का ध्यान भी इनकी टीम की और जाता है और वे लोग फिर खुद से आगे आकर कूड़ा या रसोई में बचा हुआ खाद्य पदार्थ दे देते हैं.

**कूड़े से खाद बनाकर लोगों को करते थे भेंट**

मनोज बताते हैं कि शुरुआती दिनों में वो कूड़े से खाद बनाकर लोगों को ही भेंट कर देते थे. हालांकि जब उनकी टीम बढ़ती चली गई तब उन्हें किसी ने बताया कि इस खाद को ऑनलाइन बेचकर टीम का हौंसला बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया का सकता है. वो कहते हैं कि उनकी टीम में बच्चों और बड़ों से लेकर गृहिणियों और मजदूरों तक की श्रेणी के लोग हैं. सब अपनी स्वेच्छा से ये काम करते हैं और सभी को इसमें बहुत मजा आता है.

**जगह नहीं मिलना सबसे बड़ी चुनौती**

पिछले 4 साल से बिना किसी पैसे के साफ सफाई को अपना समय देने वाले मनोज कहते हैं कि इस काम में भी उन्हें कोई कम चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता. यहां सबसे बड़ी समस्या खाद बनाने को लेकर जगह की आ रही है जिसके लिए पिछले दिनों सरकार और एजेंसियों को पत्र लिखकर थोड़ी जगह देने की मांग की गई है. इस क्रम में दिल्ली सरकार ने एक स्कूल में उन्हें ये जगह दी भी है लेकिन मनोज कहते हैं कि 200 किलो से ज्यादा के रोज के कूड़े के लिए ये जगह पर्याप्त नहीं है.

*पूरी दिल्ली को साफ बनाने का है संकल्प*
मनोज कहते हैं कि अभी कम लोगों और कम संसाधनों के होने के चलते उन्होंने अपना काम पश्चिमी दिल्ली के कुछ इलाकों इलाकों तक ही सीमित रखा है. हालांकि बहुत जल्दी वो इसका विस्तार करेंगे. वो कहते हैं कि उन्हें सरकार से किसी वित्तीय मदद की जरूरत नहीं है लेकिन अगर उन्हें खाद बनाने के लिए थोड़ी जमीन मुहैया करा दी जाए तो उनका कांकेर बेहतर तरीके से हो सकता है.


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