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विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देने के खिलाफ दिल्ली बार काउंसिल ने PM को लिखी चिट्ठी

बीसीडी ने अपने पत्र में लिखा है कि विदेशी लॉ फर्मों को भारत में काम करने की अनुमति देने के खिलाफ ये पहला विरोध नहीं है. इसके खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया से लेकर सभी राज्यों की बार काउंसिलों ने अपना विरोध जताया है.

विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देने के खिलाफ दिल्ली बार काउंसिल ने पीएम को लिखी चिट्ठी etv bharat
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Published : Aug 3, 2019, 7:46 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली बार काउंसिल (बीसीडी) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर स्पेशल इकोनॉमिक जोन में विदेशी लॉ फर्मों को अपना दफ्तर खोलने की इजाजत देने पर नाराजगी जाहिर की है. बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई है. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में बीसीडी के सभी 25 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं.

'सुप्रीम कोर्ट दे चुका है पहले ही आदेश'

बीसीडी ने अपने पत्र में लिखा है कि विदेशी लॉ फर्मों को भारत में काम करने की अनुमति देने के खिलाफ ये पहला विरोध नहीं है. इसके खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया से लेकर सभी राज्यों की बार काउंसिलों ने इस पर अपना विरोध जताया है.

पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम एके बालाजी और अन्य के फैसले में रिजर्व बैंक को निर्देश दिया था कि वो देश में ना तो किसी विदेशी लॉ फर्म को खोलने की इजाजत दें और न ही पहले से काम कर रहे लॉ फर्म की अनुमति का नवीनीकरण करे.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद रिजर्व बैंक ने विदेशी लॉ फर्म को अनुमति दी.

बीसीडी ने कहा है कि विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देने के लिए स्पेशल इकोनॉमिक जोन एक्ट 2005 में 3 जनवरी 2017 को संशोधन कर लीगल सर्विसेज को भी सर्विसेज की श्रेणी में रखा गया. इसके अलावा विदेशी विनिमय प्रबंधन कानून 2016 में भी विधि व्यवसाय को शामिल कर लिया गया.

इन दिशानिर्देशों की वजह से विदेशी लॉ फर्मों को स्पेशल इकोनॉमिक जोन में काम करने की अनुमति मिली है. ये दिशानिर्देश एडवोकेट एक्ट 1961 के विपरीत है. पत्र में कहा गया है कि विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देना देश भर के वकीलों के हित में नहीं है. बीसीडी ने पत्र के जरिये प्रधानमंत्री से मांग की है कि रिजर्व बैंक के साथ ही विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देने वाले दिशानिर्देशों को वापस लिया जाए.

नई दिल्ली: दिल्ली बार काउंसिल (बीसीडी) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर स्पेशल इकोनॉमिक जोन में विदेशी लॉ फर्मों को अपना दफ्तर खोलने की इजाजत देने पर नाराजगी जाहिर की है. बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई है. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में बीसीडी के सभी 25 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं.

'सुप्रीम कोर्ट दे चुका है पहले ही आदेश'

बीसीडी ने अपने पत्र में लिखा है कि विदेशी लॉ फर्मों को भारत में काम करने की अनुमति देने के खिलाफ ये पहला विरोध नहीं है. इसके खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया से लेकर सभी राज्यों की बार काउंसिलों ने इस पर अपना विरोध जताया है.

पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम एके बालाजी और अन्य के फैसले में रिजर्व बैंक को निर्देश दिया था कि वो देश में ना तो किसी विदेशी लॉ फर्म को खोलने की इजाजत दें और न ही पहले से काम कर रहे लॉ फर्म की अनुमति का नवीनीकरण करे.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद रिजर्व बैंक ने विदेशी लॉ फर्म को अनुमति दी.

बीसीडी ने कहा है कि विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देने के लिए स्पेशल इकोनॉमिक जोन एक्ट 2005 में 3 जनवरी 2017 को संशोधन कर लीगल सर्विसेज को भी सर्विसेज की श्रेणी में रखा गया. इसके अलावा विदेशी विनिमय प्रबंधन कानून 2016 में भी विधि व्यवसाय को शामिल कर लिया गया.

इन दिशानिर्देशों की वजह से विदेशी लॉ फर्मों को स्पेशल इकोनॉमिक जोन में काम करने की अनुमति मिली है. ये दिशानिर्देश एडवोकेट एक्ट 1961 के विपरीत है. पत्र में कहा गया है कि विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देना देश भर के वकीलों के हित में नहीं है. बीसीडी ने पत्र के जरिये प्रधानमंत्री से मांग की है कि रिजर्व बैंक के साथ ही विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देने वाले दिशानिर्देशों को वापस लिया जाए.

Intro:नई दिल्ली । दिल्ली बार काउंसिल (बीसीडी) ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर स्पेशल इकोनॉमिक जोन में विदेशी लॉ फर्मों को अपना दफ्तर खोलने की इजाजत देने से सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में बीसीडी के सभी 25 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं।



Body:बीसीडी ने अपने पत्र में लिखा है कि विदेशी लॉ फर्मों को भारत में काम करने की अनुमति देने के खिलाफ ये पहला विरोध नहीं है। इसके खिलाफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया से लेकर सभी राज्यों की बार काउंसिलों ने इस पर अपना विरोध जताया है। पत्र में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी बार काउंसिल ऑफ इंडिया बनाम एके बालाजी और अन्य के फैसले में रिजर्व बैंक को निर्देश दिया था कि वो देश में न तो किसी विदेशी लॉ फर्म को खोलने की इजाजत दें और न ही पहले से काम कर रहे लॉ फर्म की अनुमति का नवीनीकरण करें। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद रिजर्व बैंक ने विदेशी लॉ फर्म को अनुमति दी।
बीसीडी ने कहा है कि विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देने के लिए स्पेशल इकोनॉमिक जोन एक्ट 2005 में 3 जनवरी 2017 को संशोधन कर लीगल सर्विसेज को भी सर्विसेज की श्रेणी में रखा गया। इसके अलावा विदेशी विनिमय प्रबंधन कानून 2016 में भी विधि व्यवसाय को शामिल कर लिया गया। इन दिशानिर्देशों की वजह से विदेशी लॉ फर्मों को स्पेशल इकोनॉमिक जोन में काम करने की अनुमति मिली है। ये दिशानिर्देश एडवोकेट एक्ट 1961 के विपरीत हैं।



Conclusion:पत्र में कहा गया है कि विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देना देश भर के वकीलों के हित में नहीं है। बीसीडी ने पत्र के जरिये प्रधानमंत्री से मांग की है कि रिजर्व बैंक के साथ ही विदेशी लॉ फर्मों को अनुमति देनेवाले दिशानिर्देशों को वापस लिया जाए।
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