नई दिल्ली/गाजियाबाद: भगवान शिव की पूजा अर्चना के लिए यूं तो देशभर के हर मंदिर में भक्तों की आस्था होती है, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जिस की मान्यता ना सिर्फ प्राचीन काल से चली आ रही है, बल्कि इससे जुड़ी हुई पौराणिक बातें इस मंदिर के बारे में जानने के लिए और जिज्ञासा उत्पन्न करती हैं. आज हम आपको प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर के बारे में बताने वाले हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में रावण और ऋषि विश्रवा ने भी पूजा-अर्चना की थी.
गाजियाबाद के प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर मठ, देश के 8 प्रसिद्ध मठों में से एक माना जाता है. यह मंदिर गाजियाबाद में जस्सीपुरा मोड़ के नजदीक स्थित है. हर साल शिवरात्रि पर यहां पर लाखों भक्तों का तांता लगता है. इस मंदिर से जुड़ी प्राचीन मान्यता है कि भक्त यहां पर जो भी मन्नत मांगते हैं, वह पूरी होती है. बताया जाता है कि प्राचीन काल में मंदिर वाली जगह पर एक टीला हुआ करता था. इस टीले पर कुछ लोग गाय चराने के लिए आया करते थे. लेकिन जब गाय यहां पर आती थी तो वह स्वयं दूध देने लगती थी. ऐसे में लोग इसे चमत्कार से मानते थे. तब ऋषि विश्रवा ने यहां शिवलिंग होने की बात बताई, जिसके बाद आज उन्हें भगवान दूधेश्वर के रूप में पूजा जाता है. लेकिन वहां पर सिर्फ शिवलिंग ही नहीं, बल्कि कुएं का भी महत्व है.
मीठे पानी का कुंआ: जिस समय यहा शिवलिंग मिला, उस समय लोगों ने जल की व्यवस्था के लिए खुदाई की. इसी दौरान यहां एक कुआं भी मिला. बताया जाता है कि इस कुएं में से जो जल निकलता था वह मीठे दूध की तरह होता था. इसलिए कुछ लोग इसे रहस्यमय कुआं भी कहते हैं. यह भी बताया जाता है कि इस कुएं का पानी दिन में तीन बार रंग बदलता था और पुराने समय में कुएं के अंदर मौजूद गुफा में ऋषि मुनि तपस्या किया करते थे. कुएं को फिलहाल जाल से बंद किया गया है. माना जाता है कि इस कुएं की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
रावण ने अर्पित किया था अपना सिर: यहां की एक और मान्यता है. बताया जाता है कि रावण के पिता ने भी मंदिर में भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की थी और बाद में रावण ने भी भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना की. सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्राचीन काल की मान्यता के अनुसार, रावण ने अपना दसवां सिर इसी मंदिर में भगवान भोलेनाथ के चरणों में अर्पित किया था. इस मान्यता के सामने आने के बाद से लोगों की आस्था मंदिर में बढ़ती चली गई. आज ना सिर्फ दिल्ली एनसीआर से, बल्कि देशभर से भक्त यहां पर भगवान भोलेनाथ पर दूध अर्पण करने के लिए आते हैं.
शिवाजी ने बनवाया था हवन कुंड: यहां के बारे में शिवाजी महाराज से भी जुड़ी एक दिलचस्प बात है. बताया जाता है कि शिवाजी महाराज ने भी मंदिर में हवन किया था. उन्होंने यहां पर जमीन की खुदाई करवाई और काफी गहराई में हवन कुंड बनवाया था, जो आज भी यहां पर मौजूद है. इस हवन कुंड वाली जगह पर ही मठ की स्थापना की गई है जहां पर दूर-दूर से विद्यार्थी आते हैं और सांस्कृतिक और धार्मिक पाठ पढ़ते हैं.
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