नई दिल्ली: भारत में कुश्ती का एक बड़ा इतिहास रहा है. लोग पहले अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कसरत किया करते थे और पहलवानी कर जोर आजमाइश करते थे. लेकिन पिछले 100 सालों में कुश्ती को लेकर काफी अवधारणाएं भी बदली है और जरूरतें भी बदली हैं. फतेहपुर बेरी में रहने वाले कुछ ऐसे ही बुजुर्ग हैं, जो कहते हैं कि वक्त के साथ जरूरतों पर विशेष ध्यान देना चाहिए.
10 साल की उम्र से कुश्ती की शुरूआत
लेखराज पहलवान ने बताया कि उन्होंने 10 साल की उम्र से कुश्ती की शुरुआत की थी. उन्होंने अपनी मेहनत और प्रैक्टिस के जरिए कई अखाड़ों में परचम लहराया, लेकिन आज की परिस्थिति को लेकर वह कई जगह खुश होते हैं तो कई जगह मायूस भी होते हैं.
उनका मानना है कि आज की युवा पीढ़ी भले ही कुश्ती कर रही हो लेकिन उनका भविष्य कहीं ना कहीं डगमगाता है, क्योंकि सरकार इस तरफ विशेष ध्यान नहीं दे रही उनका मानना है कि कुश्ती को लेकर अगर अखाड़ों पर सरकार का ध्यान जाए तो आज की युवा पीढ़ी और जरूर आकर्षित हो.
क्या देखते हैं बदलाव
लेखराज पहलवान ने बताया कि ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि पहले लोग ज्यादा मेहनत करते थे. अगर उसी तरह शरीर बनाना है तो आज भी वह पहले की भांति ही कसरत करना और शुद्ध देसी खाना-पीना सबसे पहली प्राथमिकता है. इनका मानना है की पहले की तरह अब लोगों की रुचि कुश्ती के प्रति कम हुई हो. लेकिन फतेहपुर बेरी के युवा आज भी कुश्ती में जोर आजमाइश करते हैं. बचपन से उन्हें सीख दी जाती है कि अगर पहलवानी करते हो तो न केवल स्वास्थ्य ठीक रहेगा बल्कि अपनी अलग पहचान भी होगी. उनका मानना है कि कुश्ती रावण राज की जगह राम राज्य बनाती है.
फिलहाल वह 95 साल की उम्र में भी वो कुश्ती के अखाड़े में जाकर बच्चों से लेकर बड़ों को टिप्स देते हैं और कुश्ती के नियम सिखाते हैं. उनका मानना है कि जब तक मुझमें सांस है कुश्ती के प्रति लोगों को ट्रेन करता रहूंगा.