नई दिल्ली : वर्द्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल ने पहली बार सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट कर एक नई उपलब्धि हासिल की है. अस्पताल में यह सुविधा हाल में ही शुरू की गई थी. अस्पताल में 45 वर्षीय एक महिला मरीज का बीएम ट्रांसप्लांट किया गया, जो मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित थी. उनकी जान बचाने के लिए ट्रांसप्लांट आवश्यक था. ऑटोलॉगस बोन मैरो ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया से गुजरने के बाद वह अब खतरे से बाहर है. मल्टीपल माइलोमा से पीड़ित एक 45 वर्षीय मरीज का सफल बोनमैरो ट्रांसप्लांट करने वाला सफदरजंग अस्पताल केंद्र सरकार का पहला अस्पताल बन गया है.
जून से शुरू हुई सेवाएं: अस्पताल में बोनमैरो ट्रांसप्लांट यूनिट का उद्घाटन इस साल जून में किया गया था. बीएमटी यूनिट प्रभारी डॉ. कौशल कालरा और डॉ. सुमिता चौधरी ने बताया कि एक अगस्त को मल्टीपल मायलोमा (एक प्रकार का कैंसर) से पीड़ित 45 वर्षीय एक मरीज को बीएमटी यूनिट में एडमिट किया गया था. 5 अगस्त को मरीज का बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया गया और 21 अगस्त को मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है. मरीज फिलहाल खतरे से बाहर है.
ट्रांसप्लांट करने वाली टीम में यूनिट के प्रभारी डॉ. कौशल कालरा, हीमोटोलॉजी विभाग की डॉ. सुमिता चौधरी और मेडिकल ओंकोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश नागर शामिल थे. डॉ. कौशल ने बताया कि बीएमटी यूनिट के फंक्शनल होने के बाद मल्टीपल माइलोमा से पीड़ित मरीजों को काफी लाभ होगा. अभी लगभग 100 और ऐसे मरीज हैं जिनका यहां ट्रांसप्लांट किया जाना है.
अस्पताल में बेहद कम लागत में होता है ट्रांसप्लांट: डॉ. वंदना तलवार ने कहा कि बोनमैरो ट्रांसप्लांट करने वाला यह अस्पताल सभी केंद्रीय सरकारी अस्पतालों में पहला है. यह सुविधा मल्टीपल मायलोमा, लिंफोमा और अन्य हेमेटोलॉजिकल मैलिग्नेंसी वाले रोगियों के लिए एक जीवन रक्षक प्रक्रिया है. डॉ. तलवार ने कहा कि निजी सेटअप में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की लागत लगभग 10-15 लाख होती है, लेकिन सफदरजंग अस्पताल में यह नगण्य लागत पर किया जाता है.
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इस प्रकार होता है बोनमैरो ट्रांसप्लांट: डॉ.कालरा ने ट्रांसप्लांट के बारे में बताया कि साइटोटॉक्सिक दवा डालने से पहले शरीर की स्टेम कोशिकाओं को संरक्षित किया जाता है और संरक्षित स्टेम कोशिकाओं को फिर से तैयार किया जाता है. फिर उसे मरीज के शरीर में डाला जाता है. मरीज बोनमैरो में स्टेम कोशिकाओं के प्रत्यारोपण में लगभग 12 दिन लगते हैं. पिछले दो सप्ताह का समय मरीज के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी और संक्रमण का खतरा था. । मरीज को 1 अगस्त 2023 को भर्ती कराया गया था और 5 अगस्त 2023 को अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण किया गया था.
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