नई दिल्ली: देश में हमेशा पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल उठते रहते हैं. भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो संजय द्विवेदी ने बताया कि मानवाधिकार की रक्षा करते हुए 1990 से लेकर अब तक 2500 पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं. संजय द्विवेदी ने ये बात राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कही.
देश भर के विद्यार्थी हुए शामिल
एक सुंदर समाज की रचना करने में मीडिया प्रारंभ से ही लगा हुआ है. मीडिया के कारण ही मानव अधिकारों के बहुत सारे संवेदनशील मामले सामने आए हैं. मानवाधिकारों की रक्षा करना पत्रकारिता की प्रतिबद्धता है।'' यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किए. इस आयोजन में देशभर के अनेक विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया. इस अवसर पर प्रो. द्विवेदी ने कहा कि मानवाधिकार सभी के लिए समान हैं, लेकिन इसका वास्तविक लाभ उसे ही मिल पता है, जिसके पास पर्याप्त जानकारी अथवा संसाधन उपलब्ध हैं.
पद और सत्ता के आधार पर इंसानों में भेद नहीं कर सकते
प्रो. द्विवेदी के अनुसार, मीडिया ने यह साबित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है कि एक प्रजातांत्रिक देश में पद और सत्ता के आधार पर इंसानों में भेद नहीं किया जा सकता. सभी मनुष्य समान हैं. उन्होंने कहा कि मीडिया ने वर्तमान संदर्भ में एक नई संस्कृति को विकसित करने की कोशिश की है, जिसे हम सशक्तीकरण की संस्कृति भी कह सकते हैं. प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारत में मीडिया की भूमिका हमेशा सकारात्मक रही है. मानव अधिकारों को लेकर मीडियाकर्मी ज्यादा संवेदनशील हैं. मानवाधिकारों से जुड़े कई प्रमुख विषयों को मीडिया लगातार उजागर कर रहा है, जिसके कारण समाज में जागरूकता पैदा होती है.
31 वर्षों में 2500 पत्रकार गंवा चुके हैं अपनी जान
IIMC के महानिदेशक के अनुसार, मानवाधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मीडिया को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है. प्रो. द्विवेदी ने तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि दुनिया भर में 1990 से लेकर आज तक मानवाधिकारों की रक्षा के अपने प्रयासों के दौरान लगभग 2500 से ज्यादा पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं. वर्ष 1992 से 2018 के बीच 58 पत्रकार लापता हुए हैं, लेकिन इन सबके बावजूद पत्रकार न केवल मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि उनके संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहे हैं.
मानवाधिकार की रक्षा करते हुए 2500 पत्रकार गंवा चुके हैं जान: IIMC निदेशक - journalist death after 1990
भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो संजय द्विवेदी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बताया कि 1990 से लेकर अब तक 2500 पत्रकार मानवाधिकार की रक्षा करते हुए अपनी जान गंवा चुके हैं.
नई दिल्ली: देश में हमेशा पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल उठते रहते हैं. भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो संजय द्विवेदी ने बताया कि मानवाधिकार की रक्षा करते हुए 1990 से लेकर अब तक 2500 पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं. संजय द्विवेदी ने ये बात राष्ट्रीय मानवाधिकार द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कही.
देश भर के विद्यार्थी हुए शामिल
एक सुंदर समाज की रचना करने में मीडिया प्रारंभ से ही लगा हुआ है. मीडिया के कारण ही मानव अधिकारों के बहुत सारे संवेदनशील मामले सामने आए हैं. मानवाधिकारों की रक्षा करना पत्रकारिता की प्रतिबद्धता है।'' यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किए. इस आयोजन में देशभर के अनेक विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया. इस अवसर पर प्रो. द्विवेदी ने कहा कि मानवाधिकार सभी के लिए समान हैं, लेकिन इसका वास्तविक लाभ उसे ही मिल पता है, जिसके पास पर्याप्त जानकारी अथवा संसाधन उपलब्ध हैं.
पद और सत्ता के आधार पर इंसानों में भेद नहीं कर सकते
प्रो. द्विवेदी के अनुसार, मीडिया ने यह साबित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है कि एक प्रजातांत्रिक देश में पद और सत्ता के आधार पर इंसानों में भेद नहीं किया जा सकता. सभी मनुष्य समान हैं. उन्होंने कहा कि मीडिया ने वर्तमान संदर्भ में एक नई संस्कृति को विकसित करने की कोशिश की है, जिसे हम सशक्तीकरण की संस्कृति भी कह सकते हैं. प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारत में मीडिया की भूमिका हमेशा सकारात्मक रही है. मानव अधिकारों को लेकर मीडियाकर्मी ज्यादा संवेदनशील हैं. मानवाधिकारों से जुड़े कई प्रमुख विषयों को मीडिया लगातार उजागर कर रहा है, जिसके कारण समाज में जागरूकता पैदा होती है.
31 वर्षों में 2500 पत्रकार गंवा चुके हैं अपनी जान
IIMC के महानिदेशक के अनुसार, मानवाधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मीडिया को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है. प्रो. द्विवेदी ने तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि दुनिया भर में 1990 से लेकर आज तक मानवाधिकारों की रक्षा के अपने प्रयासों के दौरान लगभग 2500 से ज्यादा पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं. वर्ष 1992 से 2018 के बीच 58 पत्रकार लापता हुए हैं, लेकिन इन सबके बावजूद पत्रकार न केवल मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि उनके संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहे हैं.