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कोविड-19 ट्रीटमेंट प्लान से प्लाज्मा थेरेपी हुई बाहर, जानिए एक्सपर्ट की राय

देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में कुछ दिन पहले ही प्लाज्मा डोनेशन ड्राइव भी चलाया गया, लेकिन सरकार ने कोविड-19 ट्रीटमेंट प्लान से प्लाज्मा थेरेपी को यह कहते हुए हटा दिया कि यह संक्रमण को रोकने में प्रभावी नहीं है. दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन ने सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि बहुत पहले ही सरकार को ऐसे निर्णय लेने चाहिए थे.

Plasma therapy
प्लाज्मा थेरेपी
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Published : May 21, 2021, 7:15 AM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने कोरोना के इलाज के लिए राष्ट्रीय प्रोटोकॉल के तहत शामिल प्लाज्मा थेरेपी को लेकर अहम फैसला लिया है. उसमें कई तरह के बदलाव किए गए हैं. यह बदलाव बच्चे और बड़ों के लिए भी है. सबसे बड़ा बदलाव प्लाज्मा थेरेपी को लेकर है.

वीडियो रिपोर्ट

पढ़ें- दिल्ली: 5.5 फीसदी हुई कोरोना संक्रमण दर, 24 घंटे में 233 की मौत

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर प्लाज्मा थेरेपी की सफलता को लेकर कभी भी आशान्वित नहीं रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह काफी समय से कहते आ रहे हैं कि प्लाज्मा थेरेपी के नाम पर गलत तरीके से इसे प्रमोट कर मोटा मुनाफा कमाया जा रहा है.

इसकी मार्केटिंग की जा रही है. इलाज के इस सिस्टम से लोगों के पैसे भी अधिक खर्च हो रहे हैं और उन्हें कोई फायदा भी नहीं मिल रहा है. प्लाज्मा थेरेपी कॉस्ट बेनिफिट नहीं है. इसका केवल हौवा खड़ा किया गया है. खासकर दिल्ली सरकार ने तो इसे रामबाण के रूप में प्रमोट किया.

प्लाज्मा थेरेपी की खोज करने वाले आविष्कारक को मिला था नोबेल प्राइज

डॉ अजय गंभीर प्लाज्मा थेरेपी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ब्रिंगन नाम के एक साइंटिस्ट ने 1888 ईस्वी में प्लाज्मा थेरेपी की खोज की. इस खोज के लिए ब्रिंगन को 1901 में चिकित्सा विज्ञान के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था. 1920 में प्लाज्मा थेरेपी का स्पेनिश फ्लू के इलाज में काफी प्रयोग किया गया था. यह तकनीक 125 साल पुरानी है. यह इलाज की काफी पुरानी पद्धति है.

पढ़ें- दिल्ली में शुक्रवार को 150 केंद्रों पर बंद रहेगा 18+ का वैक्सीनेशन

प्लाज्मा थैरेपी की सफलता दर केवल 0.7 फीसदी

डॉ अजय बताते हैं कि प्लाज्मा थेरेपी का फार्मूला यह है कि अगर मुझे किसी तरह का इंफेक्शन हुआ है और उस इन्फेक्शन से हम सफलतापूर्वक बाहर आ गए हैं तो मेरा प्लाज्मा अगर किसी दूसरे संक्रमित व्यक्ति के शरीर में डाला जाएगा तो उसे उस संक्रमण से सुरक्षा मिल जाएगी, क्योंकि उस इंफेक्शन के खिलाफ उसके शरीर में एंटीबॉडी बन जाएंगे जो उन्हें उस संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करेगी.

लेकिन इसकी जब अमेरिका में स्टडी की गई तो सफलता केवल 7 फ़ीसदी ही पाया गया. बाद की स्थिति में यह साबित हो गया कि प्लाज्मा थेरेपी का असर केवल 0.1% ही है. इससे साफ स्पष्ट है कि प्लाजमा थेरेपी कोरोना के इलाज के लिए असरकारक नहीं है.

डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि कोरोना के इलाज के लिए भारत सरकार अगर सभी कुछ साक्ष्यों के आधार पर ले रही है तो कोरोना के मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी का कोई रोल नहीं आता है. भारत सरकार ने कोरोना के इलाज के प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को निकाल कर बहुत अच्छा किया, बल्कि यह फैसला बहुत पहले ही लिया जाना चाहिए था. फिर भी देरी ही सही, लेकिन सरकार ने सही फैसला लिया है. प्लाज्मा थेरेपी के नाम पर एक झूठ फैलाया गया. निजी अस्पतालों में प्लाज्मा थेरेपी के नाम पर काफी पैसे लूटे गए.

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने कोरोना के इलाज के लिए राष्ट्रीय प्रोटोकॉल के तहत शामिल प्लाज्मा थेरेपी को लेकर अहम फैसला लिया है. उसमें कई तरह के बदलाव किए गए हैं. यह बदलाव बच्चे और बड़ों के लिए भी है. सबसे बड़ा बदलाव प्लाज्मा थेरेपी को लेकर है.

वीडियो रिपोर्ट

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दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अजय गंभीर प्लाज्मा थेरेपी की सफलता को लेकर कभी भी आशान्वित नहीं रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह काफी समय से कहते आ रहे हैं कि प्लाज्मा थेरेपी के नाम पर गलत तरीके से इसे प्रमोट कर मोटा मुनाफा कमाया जा रहा है.

इसकी मार्केटिंग की जा रही है. इलाज के इस सिस्टम से लोगों के पैसे भी अधिक खर्च हो रहे हैं और उन्हें कोई फायदा भी नहीं मिल रहा है. प्लाज्मा थेरेपी कॉस्ट बेनिफिट नहीं है. इसका केवल हौवा खड़ा किया गया है. खासकर दिल्ली सरकार ने तो इसे रामबाण के रूप में प्रमोट किया.

प्लाज्मा थेरेपी की खोज करने वाले आविष्कारक को मिला था नोबेल प्राइज

डॉ अजय गंभीर प्लाज्मा थेरेपी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ब्रिंगन नाम के एक साइंटिस्ट ने 1888 ईस्वी में प्लाज्मा थेरेपी की खोज की. इस खोज के लिए ब्रिंगन को 1901 में चिकित्सा विज्ञान के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था. 1920 में प्लाज्मा थेरेपी का स्पेनिश फ्लू के इलाज में काफी प्रयोग किया गया था. यह तकनीक 125 साल पुरानी है. यह इलाज की काफी पुरानी पद्धति है.

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प्लाज्मा थैरेपी की सफलता दर केवल 0.7 फीसदी

डॉ अजय बताते हैं कि प्लाज्मा थेरेपी का फार्मूला यह है कि अगर मुझे किसी तरह का इंफेक्शन हुआ है और उस इन्फेक्शन से हम सफलतापूर्वक बाहर आ गए हैं तो मेरा प्लाज्मा अगर किसी दूसरे संक्रमित व्यक्ति के शरीर में डाला जाएगा तो उसे उस संक्रमण से सुरक्षा मिल जाएगी, क्योंकि उस इंफेक्शन के खिलाफ उसके शरीर में एंटीबॉडी बन जाएंगे जो उन्हें उस संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करेगी.

लेकिन इसकी जब अमेरिका में स्टडी की गई तो सफलता केवल 7 फ़ीसदी ही पाया गया. बाद की स्थिति में यह साबित हो गया कि प्लाज्मा थेरेपी का असर केवल 0.1% ही है. इससे साफ स्पष्ट है कि प्लाजमा थेरेपी कोरोना के इलाज के लिए असरकारक नहीं है.

डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि कोरोना के इलाज के लिए भारत सरकार अगर सभी कुछ साक्ष्यों के आधार पर ले रही है तो कोरोना के मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी का कोई रोल नहीं आता है. भारत सरकार ने कोरोना के इलाज के प्रोटोकॉल से प्लाज्मा थेरेपी को निकाल कर बहुत अच्छा किया, बल्कि यह फैसला बहुत पहले ही लिया जाना चाहिए था. फिर भी देरी ही सही, लेकिन सरकार ने सही फैसला लिया है. प्लाज्मा थेरेपी के नाम पर एक झूठ फैलाया गया. निजी अस्पतालों में प्लाज्मा थेरेपी के नाम पर काफी पैसे लूटे गए.

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