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डॉ. जुल्का से जानिए क्या है न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर, जिसने ली अभिनेता इरफान की जान

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Published : May 7, 2020, 12:45 PM IST

न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर जिसने मशहूर एक्टर इरफान खान की जान ले ली. ऐसे में आप ये सोच रहे होंगे कि न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर क्या वाकई इतनी खतरनाक बीमारी है कि उससे बचना मुश्किल है. इस बारे में ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पीके जुल्का ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. सुनिए उन्होंने क्या कहा.

know all about endocrine tumor which killed irfan khan by famous oncologist dr.pk julka
न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर

नई दिल्लीः वो बहुत दिलकश था! उसकी बोलती आंखें सबको खामोश कर देती थी और चेहरे पर बड़ी तेजी से उभरते रंग सबको जैसे मंत्रमुग्ध कर देता था, पर अफसोस वो सितारा ठीक से उदय होने से पहले ही अस्त हो गया. मालूम है वो सितारा कौन था और किसने उस चमकते सितारे की रौशनी छीन ली. हम बात कर रहे हैं उस एक्टर की जिसकी एक्टिंग सच से भी एक बड़ा सच मालूम पड़ती थी.

न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर के बारे में बता रहे हैं डॉ. पीके जुल्का

वो एक्टर इरफान खान थे और न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर एक अत्यंत सूक्ष्म दैत्य जिसने इस मशहूर एक्टर को समय से पहले ही काल के गाल में समा दिया. अगर आप साइंस से ज्यादा मतलब नहीं रखते हैं, तो यह आपके लिए बिल्कुल एक नया शब्द है. इसने एक्टर इरफान खान का जो हस्र किया उससे यकीनन आप भी इससे खौफ खा गए होंगे. आप इसकी परछाई से भी दूर रहना चाहेंगे.

कोई कॉमन सिम्पटम्स नहीं

ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पीके जुल्का के मुताबिक न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर का कोई कॉमन सिम्पटम्स नहीं होता है. इसलिए प्राथमिक अवस्था में इसकी पहचान करना बहुत मुश्किल है. यह मानव शरीर में अपनी उपस्थिति का कोई क्लू नहीं छोड़ता है. लेकिन अगर आप भाग्यशाली हैं तो अपनी किसी और सर्जरी या किसी और बीमारी की वजह से एक्स-रे करवाते हैं, तो शायद यह आपके डॉक्टर को दिख सकता है.

अगर गलती से भी इसने कोई लक्षण दिखा दी तो, आपका डॉक्टर उसके आकर और स्थिति के बारे में पता कर लेंगे. आपके शरीर में ऐसा जरूर कुछ अजीब होने लगता है, जिसे आप खुद नहीं समझ सकते हैं. ऐसी चीजों को बिल्कुल नजरअंदाज न करें. ऐसी चीजें आपको थोड़े से पल के लिए भी आपको महसूस हो सकती है. उसके बाद अचानक से वो गायब भी हो सकती है.

ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पीके जुल्का बताते हैं कि न्यूरॉन और एंडोक्राइन सेल में बनने वाले ये ट्यूमर्स काफी रेयर होते हैं. ये उतने कॉमन नहीं होते हैं, जितने कि लंग कैंसर, ब्रैस्ट कैंसर या माउथ कैंसर होते हैं. डॉ. जुल्का के मुताबिक न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर्स को ऑन्कोलॉजिस्ट केए- 67 इंडेक्स पर बढ़ते हुए देख पाते हैं. इस इंडेक्स पर सांसेर कोशिका के बढ़ने की रफ्तार को मापते हैं.

'इसे कैंसर नहीं मानते हैं'

इस इंडेक्स पर 2-3 फीसदी ऐसे मामले होते हैं, जिनकी ग्रोथ बहुत धीमी होती है. इन्हें हम कैंसर नहीं मानते हैं. ये बहुत ही हाई ग्रेड ट्यूमर होते हैं. बहुत तेजी से ये बढ़ते हैं. इसकी ग्रोथ को धीमी को रोकना मुश्किल होता है. इसे नियंत्रित रखने के लिए मरीज को विशेष माहौल में रखना पड़ता है. एक्टर इरफान खान को इसी ग्रेड का कैंसर था, जो अचानक ही डिटेक्ट हुआ था.

एम्स के पूर्व डीन, मशहूर ऑन्कोलॉजिस्ट और मैक्स डे केयर के सीनियर डायरेक्टर डॉ. पीके जुल्का बताते हैं कि न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर आसानी से शुरुआती अवस्था में पकड़ में नहीं आता है. जब यह दूसरी या तीसरी अवस्था में पहुंचता है तो थकावट, भूख की कमी और बिना वजह के वजन का लगातार गिरने जैसे लक्षण दिख सकते हैं.

ये लक्षण हैं खतरनाक

शरीर के किसी हिस्से में जिद्दी दर्द जो आसानी से न जाये, शरीर के किसी भाग में गांठ का बनना, मितली, खांसी या गले में खरास जो आसानी से न जाए, पेट की गड़बड़ी, जॉन्डिस, शरीर का पीला पड़ना और आंखों का सफेद पड़ना, नाक या मुंह से अचानक ब्लीडिंग जैसे लक्षण दिख सकते हैं.

इन तरीकों से हो सकता है इलाज

डॉ. जुल्का बताते हैं कि न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर के इलाजे की एक रणनीति बनानी होती है, जिसके बारे में मरीज को बताया जाता है. आम तौर पर सोमटोस्टेटिन एनालॉगस, कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी, इममुनों थेरेपी और पेप्टाइड रिसेप्टर रेडियो न्यूक्लिड थेरेपी का इस्तेमाल इस ट्यूमर को खत्म करने के लिए किया जाता है. आखिर में पैलिएटिव केयर ट्रीटमेंट की सलाह दी जाती है.

अगर कैंसर रिपीट करता है तो सारे डाइग्नोसिस से लेकर ट्रीटमेंट प्लान नए सिरे से करना होता है. बीमारी का यह वो स्टेज होता है जब मरीज भावनात्मक रूप से टूटने लगता है. निराशाजनक विचार आने से मोरल डाउन हो जाता है. इस अवस्था को अगर पार कर गये तो सर्वाइवल की संभावना बची रहती है.

नई दिल्लीः वो बहुत दिलकश था! उसकी बोलती आंखें सबको खामोश कर देती थी और चेहरे पर बड़ी तेजी से उभरते रंग सबको जैसे मंत्रमुग्ध कर देता था, पर अफसोस वो सितारा ठीक से उदय होने से पहले ही अस्त हो गया. मालूम है वो सितारा कौन था और किसने उस चमकते सितारे की रौशनी छीन ली. हम बात कर रहे हैं उस एक्टर की जिसकी एक्टिंग सच से भी एक बड़ा सच मालूम पड़ती थी.

न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर के बारे में बता रहे हैं डॉ. पीके जुल्का

वो एक्टर इरफान खान थे और न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर एक अत्यंत सूक्ष्म दैत्य जिसने इस मशहूर एक्टर को समय से पहले ही काल के गाल में समा दिया. अगर आप साइंस से ज्यादा मतलब नहीं रखते हैं, तो यह आपके लिए बिल्कुल एक नया शब्द है. इसने एक्टर इरफान खान का जो हस्र किया उससे यकीनन आप भी इससे खौफ खा गए होंगे. आप इसकी परछाई से भी दूर रहना चाहेंगे.

कोई कॉमन सिम्पटम्स नहीं

ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पीके जुल्का के मुताबिक न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर का कोई कॉमन सिम्पटम्स नहीं होता है. इसलिए प्राथमिक अवस्था में इसकी पहचान करना बहुत मुश्किल है. यह मानव शरीर में अपनी उपस्थिति का कोई क्लू नहीं छोड़ता है. लेकिन अगर आप भाग्यशाली हैं तो अपनी किसी और सर्जरी या किसी और बीमारी की वजह से एक्स-रे करवाते हैं, तो शायद यह आपके डॉक्टर को दिख सकता है.

अगर गलती से भी इसने कोई लक्षण दिखा दी तो, आपका डॉक्टर उसके आकर और स्थिति के बारे में पता कर लेंगे. आपके शरीर में ऐसा जरूर कुछ अजीब होने लगता है, जिसे आप खुद नहीं समझ सकते हैं. ऐसी चीजों को बिल्कुल नजरअंदाज न करें. ऐसी चीजें आपको थोड़े से पल के लिए भी आपको महसूस हो सकती है. उसके बाद अचानक से वो गायब भी हो सकती है.

ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. पीके जुल्का बताते हैं कि न्यूरॉन और एंडोक्राइन सेल में बनने वाले ये ट्यूमर्स काफी रेयर होते हैं. ये उतने कॉमन नहीं होते हैं, जितने कि लंग कैंसर, ब्रैस्ट कैंसर या माउथ कैंसर होते हैं. डॉ. जुल्का के मुताबिक न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर्स को ऑन्कोलॉजिस्ट केए- 67 इंडेक्स पर बढ़ते हुए देख पाते हैं. इस इंडेक्स पर सांसेर कोशिका के बढ़ने की रफ्तार को मापते हैं.

'इसे कैंसर नहीं मानते हैं'

इस इंडेक्स पर 2-3 फीसदी ऐसे मामले होते हैं, जिनकी ग्रोथ बहुत धीमी होती है. इन्हें हम कैंसर नहीं मानते हैं. ये बहुत ही हाई ग्रेड ट्यूमर होते हैं. बहुत तेजी से ये बढ़ते हैं. इसकी ग्रोथ को धीमी को रोकना मुश्किल होता है. इसे नियंत्रित रखने के लिए मरीज को विशेष माहौल में रखना पड़ता है. एक्टर इरफान खान को इसी ग्रेड का कैंसर था, जो अचानक ही डिटेक्ट हुआ था.

एम्स के पूर्व डीन, मशहूर ऑन्कोलॉजिस्ट और मैक्स डे केयर के सीनियर डायरेक्टर डॉ. पीके जुल्का बताते हैं कि न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर आसानी से शुरुआती अवस्था में पकड़ में नहीं आता है. जब यह दूसरी या तीसरी अवस्था में पहुंचता है तो थकावट, भूख की कमी और बिना वजह के वजन का लगातार गिरने जैसे लक्षण दिख सकते हैं.

ये लक्षण हैं खतरनाक

शरीर के किसी हिस्से में जिद्दी दर्द जो आसानी से न जाये, शरीर के किसी भाग में गांठ का बनना, मितली, खांसी या गले में खरास जो आसानी से न जाए, पेट की गड़बड़ी, जॉन्डिस, शरीर का पीला पड़ना और आंखों का सफेद पड़ना, नाक या मुंह से अचानक ब्लीडिंग जैसे लक्षण दिख सकते हैं.

इन तरीकों से हो सकता है इलाज

डॉ. जुल्का बताते हैं कि न्यूरो एंडोक्राइन ट्यूमर के इलाजे की एक रणनीति बनानी होती है, जिसके बारे में मरीज को बताया जाता है. आम तौर पर सोमटोस्टेटिन एनालॉगस, कीमोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी, इममुनों थेरेपी और पेप्टाइड रिसेप्टर रेडियो न्यूक्लिड थेरेपी का इस्तेमाल इस ट्यूमर को खत्म करने के लिए किया जाता है. आखिर में पैलिएटिव केयर ट्रीटमेंट की सलाह दी जाती है.

अगर कैंसर रिपीट करता है तो सारे डाइग्नोसिस से लेकर ट्रीटमेंट प्लान नए सिरे से करना होता है. बीमारी का यह वो स्टेज होता है जब मरीज भावनात्मक रूप से टूटने लगता है. निराशाजनक विचार आने से मोरल डाउन हो जाता है. इस अवस्था को अगर पार कर गये तो सर्वाइवल की संभावना बची रहती है.

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