नई दिल्लीः बच्चों के कोरोना संक्रमित होने के साथ ही कोरोना की तीसरी लहर के आने की आहट शुरू हो गयी है. ऐसे में देशभर में खासकर उन परिवारों में लोगों की चिंताएं बढ़ गई हैं, जहां छोटे-छोटे बच्चे हैं. माता-पिता की चिंता इसलिए बढ़ रही हैं, क्योंकि अगर उनके बच्चे कोरोना से पीड़ित हुए तो उनके लिए यह कितना खतरा होगा? बच्चों के फेफड़े बड़ों की तुलना में छोटे और संकुचित होते हैं. क्या इसका असर उनके ऊपर पड़ेगा? मृत्यु दर बढ़ेगी. इन सारे सवालों के जवाब विशेषज्ञ दे रहे हैं.
बाल रोग विशेषज्ञ वैक्सीन india.org के फैसिलिटेटर और दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि सामान्य तौर पर बच्चों में कोरोना का असर बहुत कम होता है. अभी दुनिया भर से जो आंकड़े आ रहे हैं, उससे यही पता चलता है कि कुल कोरोना मरीजों की संख्या में केवल 3 से 5 फीसदी मरीज ही बच्चे हैं. पहले महामारी के पहले सप्ताह में अस्पतालों में बच्चों के एडमिशन ज्यादा देखे गए.
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बच्चों की सांस की नली पतली, सांस लेने में होगी ज्यादा दिक्कत
बच्चों की उम्र के हिसाब से वर्गीकरण करते हुए डॉ. अजय गंभीर ने बताया कि आमतौर पर 1 साल के बच्चे को शिशु कहा जाता है. 5 साल तक के बच्चों को प्री अडोलसेंस, 18 साल से नीचे के बच्चों को ऐडलसेंस कहा जाता है. जहां तक कोरोना संक्रमण की वजह से सांस की समस्या की बात है, तो बड़ों की सांस की नली थोड़ी मोटी होती है, वहीं बच्चों के सांस की नली पतली होती है. इससे जाहिर है कि बच्चे के सांस लेने की समस्या थोड़ी बढ़ेगी.
सांस नली पर ज्यादा दबाव पड़ने से बच्चे की तकलीफ बढ़ सकती है. इसलिए आमतौर पर देखा गया है कि जिन बच्चों को निमोनिया है या सांस लेने की तकलीफ है उनकी सांस लेने की रफ्तार और दिल की धड़कन काफी तेज हो जाती है. बच्चों की रेस्पिरेटरी रेट बहुत ज्यादा बढ़ जाती है.
5% बच्चों की ही ICU की जरूरत, 1% जा सकते हैं वेंटिलेटर पर
डॉ. गंभीर बताते हैं कि अगर तीसरी लहर में बच्चे कोरोना से प्रभावित होंगे, तो इसके लिए क्या हम तैयार हैं? पूरा हेल्थसिस्टम पहले से ही इसको लेकर तैयार है. केवल 5 से 7 परसेंट बच्चों के लिए आईसीयू एडमिशन की जरूरत होगी. बाकी केस हल्का इंफेक्शन का ही होगा. एक परसेंट बच्चे के ही वेंटिलेटर पर जाने की संभावना होती है.
बच्चों को सांस की ज्यादा जरूरत
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सेंट्रल दिल्ली ब्रांच के पूर्व अध्यक्ष एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रमेश बंसल बताते हैं कि बच्चों के फेफड़े छोटे और संकुचित होते हैं. इसलिए उन्हें सांस लेने के लिए ज्यादा मेहनत करनी होती है. नवजात बच्चा 1 मिनट में 50 से 60 बार सांस लेता है. एक साल का बच्चा 30-35 बार सांस लेता है और 4 साल तक का बच्चा 25 से 28 बार सांस लेता है, जबकि एडल्ट को अपनी सांस की जरूरत पूरा करने के लिए 10 से 12 बार प्रयास करना होता है.
थोड़े से इनफेक्शन से भी बढ़ सकती है परेशानी
डॉक्टर बंसल ने बच्चों की रेस्पिरेटरी सिस्टम के बारे में बताते हुए कहा कि बच्चों के रेस्पिरेट्री सिस्टम में जो पाइप होता है वह बहुत ही मुलायम होता है. उसका आंतरिक व्यास भी बहुत छोटा होता है. इसकी वजह से रुकावट जल्दी आ जाती है. ज्यादा परेशानी होने पर पूरा सिस्टम भी जल्दी ही ठप हो जाता है. थोड़े से इंफेक्शन से ही बच्चों की तकलीफ बढ़ जाती है.
कोमोरबिड बच्चे के लिए कोरोना संक्रमण जानलेवा
डॉ. बंसल के मुताबिक जिन बच्चों को हार्ट संबंधी परेशानी है. किसी तरह का कैंसर है. किसी को मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है या किसी को सांस संबंधी परेशानी है. या फिर अस्थमा है, तो इन बच्चों में कोरोना का संक्रमण घातक हो सकता है. डॉक्टर बंसल बताते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि ज्यादातर बच्चे बिना किसी कॉम्प्लिकेशन के संक्रमण से बाहर आ जाएंगे.
ताइवान और सिंगापुर से लेनी होगी सीख
बताया गया कि ताइवान और सिंगापुर में बच्चों के कोरोना संक्रमित होने की खबरें ज्यादा आ रही है. इसको लेकर हमारे देश में कोई ज्यादा अनुभव नहीं है. अभी तक संक्रमण के जो भी मामले सामने आए हैं वह साधारण जुकाम की तरह ठीक हो रहे हैं, लेकिन आने वाले समय के लिए हमें पूरी तरह से तैयार रहना होगा, क्योंकि सिंगापुर और ताइवान के अनुभवों से हमें सीख लेनी चाहिए.
एक साल के बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता
1 साल से छोटे बच्चों के लिए कोरोना संक्रमण घातक हो सकता है. साथ ही उन बच्चों के लिए भी यह संक्रमण घातक हो सकता है, जिन्हें पहले से ही कोई घातक बीमारी है. डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि सावधानी के तौर पर हमें बच्चों के हाथ साफ करने और मास्क लगाने की आदत डालनी शुरू करनी चाहिए. 5 साल से नीचे के बच्चों का ट्रीटमेंट प्रोटोकोल बड़े बच्चों की तुलना में अलग होता है.