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मिलावटखोरों ने हनी को हेल्थ नहीं, मनी बनाने का बना दिया जरिया

मधुमक्खी फूड चेन में बड़ी भूमिका निभाती है. यह हमें शहद के रूप में अमृत देती ही है. इसके अलावा वह पर्यावरण मित्र के रूप में बायो डाइवर्सिटी कायम रखने में भी बहुत कारगर है. लेकिन शहद के रूप में जो अमृत पर्यावरण मित्र से हमें मिलता है, उसे मनुष्यों ने अपने लाभ के लिये मिलावट करके जहर बना दिया है. इस रिपोर्ट में पढ़ें..

हनी में मिलावट
हनी में मिलावट
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Published : May 23, 2022, 9:03 PM IST

नई दिल्ली: मधुमक्खी हमारा पर्यावरण मित्र है. इकोसिस्टम में बायोडायवर्सिटी बनाये रखने में यह अहम भूमिका निभाती है. पोलिनेटर्स के रूप में यह पेड़ पौधों की उत्तम क्वालिटी बनाए रखने में तो मदद करती ही है. साथ में बाय प्रोडक्ट के रूप में हमें शहद देती है, जो मनुष्यों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.

भारत का पांचवां स्थान: शहद के कारण मधुमक्खी पालन एक बड़ा व्यवसाय का रूप ले लिया है. हर सीजन में आम, लीची, महुआ और फूलों के बागान में मधुमक्खी पालन किया जा रहा है. साथ ही अलग-अलग स्वाद की शहद तैयार की जा रही है. शहद उत्पादन में भारत दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा देश है. शहद के उत्पादन में हाल के वर्षों में 242 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

शहद 100 फीसदी शुद्ध: आयुर्वेद डॉक्टर एनडी शर्मा बताते हैं कि शहद एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो प्राकृतिक रूप से 100 फीसदी शुद्ध होता है. ऐसे में यह हजारों साल तक खराब नहीं होता है. एन्टी बायोटिक और इम्यून बूस्टर गुणों के कारण इसका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है. अगर यह शुद्धतम रूप में हो तो यह काफी गुणकारी होता है.

केमिकल के प्रयोग से जहर: डॉ शर्मा बताते हैं कि शहद बिना मिलावट के ही शुद्ध होता है.लेकिन यदि उसमें मिलावट हो तो यह जहर का काम भी करता है. आजकल लोग ज्यादा शहद उतपादन के लालच में टेट्रासिक्लीन और दूसरे एंटीबायोटिक का इस्तेमल करते हैं, ताकि रानी मधुमख्खी ज्यादा ब्रीड कर सके. लेकिन ऐसा करने से शहद की शुद्धता प्रभावित होती है.

बढ़ा शहर का उत्पादन: राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के अनुसार भारत में शहद का उत्पादन 2005-06 में 35 हजार टन था. यह आंकड़ा 2017-18 में बढ़कर 1,05000 टन तक पहुंच गया. वहीं 2019-20 में शहद के उत्पादन मेम 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. मधुमक्खी से केवल शहद ही नहीं मिलता, बल्कि इससे भी कीमती एक और चीज मिलती है. जिसका इस्तेमाल कैंसर की दवा बनाने में किया जाता है.

करोड़ों में मधुमक्खी का जहर: मधुमक्खी का जहर कैंसर की दवा बनाने में इस्तेमाल होता है. किसान इसके जहर को निकालते हैं. यह जहर काफी महंगे दामों में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बिकते हैं. जानकारी के मुताबित मधुमक्खी का जहर एक करोड़ रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है. ऐसे में यह कारोबार किसानों को लाखों रुपये का मुनाफा कराती है.

भारत सरकार की पहल: भारत सरकार ने किसानों को स्वरोजगार के रूप में मधुमक्खी पालन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए 500 करोड़ रुपये का अनुदान देने के लिए बजट निर्धारित किया है. मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण के लिए चार मॉड्यूल तैयार किया गया है. जिसके तहत लगभग 30 लाख किसानों को प्रशिक्षित किया गया है. सैकड़ों किसान इस व्यवसाय से जुड़े हैं.
मिलावटखोरों से नुकसान: शहद उत्पादन का सबसे बुरा पहलू यह है कि इसके उत्पादन में सर्वाधिक मिलावट की जाती है. हर्बल विधि से तैयार चीनी के सिरप को शहद में मिलाकर उसे जहरीला बनाकर बेचा जाता है. ऐसा शहद स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होता है. में सबसे ज्यादा मिलावट की जाती है. मिलावट भी इस तरह की होती है जिसे आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता.

मिलावट पकड़ना बेहद मुश्किल: शहद की गुणवत्ता जांच परीक्षण की शुरुआत फोर सी शुगर का पता लगाने से हुई थी. यह सिरप मक्का और गन्ना जैसे पौधों से प्राप्त किया जाता है, जो फोटो सिंथेटिक पाथवे का इस्तेमाल करता है. दुनिया भर में मिलावट के कारोबार को बढ़ाने के लिए लैब टेस्ट्स के परिणामों को प्रभावित करने के लिए यह बड़े पैमाने पर हो रहा है.शहद में राइस सिरप को पकड़ने के लिए स्पेशल मार्कर और ट्रेस मार्कर का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन यह मिलावट को ट्रेस करने के लिये अधिक कारगर उपाय नहीं है.

शहद गुणवत्ता जांच के मानकों में 2018 के बाद बड़े बदलाव किए गए. पोलन काउंट्स को मानक पैरामीटर माना गया. 2017 में इस मानक के तहत पोलन काउंट 50000 रखा गया. जिसे 2018 में घटाकर 25000 कर दिया गया. वहीं 2020 में इसे घटाकर केवल 5000 तक सीमित कर दिया गया है. गोल्डन सिरप, इनवर्ट शुगर और राइस सिरप शहद के मिलावट के मुख्य कारक हैं, जो आसानी से लैब टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आते.

विशेषज्ञ बताते हैं कि शहद में मिलावट करने का एक बड़ा कारक फ्रुक्टोज सिरप है. इसे चीन से ज्यादा मात्रा में निर्यात किया जाता है. 2014-15 में 10 हजार मैट्रिक टन निर्यात किया गया था. वहीं 2018 में यह मात्रा बढ़ कर 4300 मेट्रिक टन तक पहुंच गई है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमृत समझे जाने वाले शहद में जहर मिलाने का कितना बड़ा कारोबार चल रहा है.

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नई दिल्ली: मधुमक्खी हमारा पर्यावरण मित्र है. इकोसिस्टम में बायोडायवर्सिटी बनाये रखने में यह अहम भूमिका निभाती है. पोलिनेटर्स के रूप में यह पेड़ पौधों की उत्तम क्वालिटी बनाए रखने में तो मदद करती ही है. साथ में बाय प्रोडक्ट के रूप में हमें शहद देती है, जो मनुष्यों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है.

भारत का पांचवां स्थान: शहद के कारण मधुमक्खी पालन एक बड़ा व्यवसाय का रूप ले लिया है. हर सीजन में आम, लीची, महुआ और फूलों के बागान में मधुमक्खी पालन किया जा रहा है. साथ ही अलग-अलग स्वाद की शहद तैयार की जा रही है. शहद उत्पादन में भारत दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा देश है. शहद के उत्पादन में हाल के वर्षों में 242 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

शहद 100 फीसदी शुद्ध: आयुर्वेद डॉक्टर एनडी शर्मा बताते हैं कि शहद एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो प्राकृतिक रूप से 100 फीसदी शुद्ध होता है. ऐसे में यह हजारों साल तक खराब नहीं होता है. एन्टी बायोटिक और इम्यून बूस्टर गुणों के कारण इसका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है. अगर यह शुद्धतम रूप में हो तो यह काफी गुणकारी होता है.

केमिकल के प्रयोग से जहर: डॉ शर्मा बताते हैं कि शहद बिना मिलावट के ही शुद्ध होता है.लेकिन यदि उसमें मिलावट हो तो यह जहर का काम भी करता है. आजकल लोग ज्यादा शहद उतपादन के लालच में टेट्रासिक्लीन और दूसरे एंटीबायोटिक का इस्तेमल करते हैं, ताकि रानी मधुमख्खी ज्यादा ब्रीड कर सके. लेकिन ऐसा करने से शहद की शुद्धता प्रभावित होती है.

बढ़ा शहर का उत्पादन: राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के अनुसार भारत में शहद का उत्पादन 2005-06 में 35 हजार टन था. यह आंकड़ा 2017-18 में बढ़कर 1,05000 टन तक पहुंच गया. वहीं 2019-20 में शहद के उत्पादन मेम 13 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई. मधुमक्खी से केवल शहद ही नहीं मिलता, बल्कि इससे भी कीमती एक और चीज मिलती है. जिसका इस्तेमाल कैंसर की दवा बनाने में किया जाता है.

करोड़ों में मधुमक्खी का जहर: मधुमक्खी का जहर कैंसर की दवा बनाने में इस्तेमाल होता है. किसान इसके जहर को निकालते हैं. यह जहर काफी महंगे दामों में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बिकते हैं. जानकारी के मुताबित मधुमक्खी का जहर एक करोड़ रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है. ऐसे में यह कारोबार किसानों को लाखों रुपये का मुनाफा कराती है.

भारत सरकार की पहल: भारत सरकार ने किसानों को स्वरोजगार के रूप में मधुमक्खी पालन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए 500 करोड़ रुपये का अनुदान देने के लिए बजट निर्धारित किया है. मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण के लिए चार मॉड्यूल तैयार किया गया है. जिसके तहत लगभग 30 लाख किसानों को प्रशिक्षित किया गया है. सैकड़ों किसान इस व्यवसाय से जुड़े हैं.
मिलावटखोरों से नुकसान: शहद उत्पादन का सबसे बुरा पहलू यह है कि इसके उत्पादन में सर्वाधिक मिलावट की जाती है. हर्बल विधि से तैयार चीनी के सिरप को शहद में मिलाकर उसे जहरीला बनाकर बेचा जाता है. ऐसा शहद स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होता है. में सबसे ज्यादा मिलावट की जाती है. मिलावट भी इस तरह की होती है जिसे आसानी से पकड़ा नहीं जा सकता.

मिलावट पकड़ना बेहद मुश्किल: शहद की गुणवत्ता जांच परीक्षण की शुरुआत फोर सी शुगर का पता लगाने से हुई थी. यह सिरप मक्का और गन्ना जैसे पौधों से प्राप्त किया जाता है, जो फोटो सिंथेटिक पाथवे का इस्तेमाल करता है. दुनिया भर में मिलावट के कारोबार को बढ़ाने के लिए लैब टेस्ट्स के परिणामों को प्रभावित करने के लिए यह बड़े पैमाने पर हो रहा है.शहद में राइस सिरप को पकड़ने के लिए स्पेशल मार्कर और ट्रेस मार्कर का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन यह मिलावट को ट्रेस करने के लिये अधिक कारगर उपाय नहीं है.

शहद गुणवत्ता जांच के मानकों में 2018 के बाद बड़े बदलाव किए गए. पोलन काउंट्स को मानक पैरामीटर माना गया. 2017 में इस मानक के तहत पोलन काउंट 50000 रखा गया. जिसे 2018 में घटाकर 25000 कर दिया गया. वहीं 2020 में इसे घटाकर केवल 5000 तक सीमित कर दिया गया है. गोल्डन सिरप, इनवर्ट शुगर और राइस सिरप शहद के मिलावट के मुख्य कारक हैं, जो आसानी से लैब टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आते.

विशेषज्ञ बताते हैं कि शहद में मिलावट करने का एक बड़ा कारक फ्रुक्टोज सिरप है. इसे चीन से ज्यादा मात्रा में निर्यात किया जाता है. 2014-15 में 10 हजार मैट्रिक टन निर्यात किया गया था. वहीं 2018 में यह मात्रा बढ़ कर 4300 मेट्रिक टन तक पहुंच गई है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमृत समझे जाने वाले शहद में जहर मिलाने का कितना बड़ा कारोबार चल रहा है.

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