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दो डोजों का अंतराल अधिक होने पर चिंता की बात नहीं, जाने वैक्सीनेशन से जुड़े सभी पहलू

दिल्ली में टीके की किल्लत के चलते दिल्ली में 18 साल से ऊपर के लोगों को टीका लगाने का काम रोकना पड़ा है. वहीं कई लोगों को दूसरी डोज नहीं लग पाई है. ऐसे में लोगों के मन में सवाल पैदा हो रहे हैं. मसलन, क्या दूसरी डोज दूसरी कंपनी की लगवाई जा सकती है? वहीं कई लोगों के मन में आशंका है कि अगर दूसरी डोज न मिली या देर से मिली तो पहली डोज का क्या मतलब रहेगा? इन सब सवालों के जवाब दे रहे हैं एक्सपर्ट...

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Published : May 27, 2021, 8:06 PM IST

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वैक्सीनेशन जुड़े सभी पहलू

नई दिल्ली: टीकाकरण कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए एकमात्र प्रभावी उपाय है, लेकिन टीके की किल्लत के चलते दिल्ली में 18 साल से ऊपर के लोगों को टीका लगाने का काम रोकना पड़ा है. वहीं कई लोगों को दूसरी डोज नहीं लग पाई है. ऐसे में लोगों के मन में सवाल पैदा हो रहे हैं. मसलन क्या दूसरी डोज दूसरी कंपनी की लगवाई जा सकती है? वहीं कई लोग के मन में आशंका है कि अगर दूसरी डोज न मिली या देर से मिली तो पहली डोज का क्या मतलब रहेगा? इन सब सवालों के जवाब दे रहे हैं एक्सपर्ट...

जानें वैक्सीनेशन जुड़े सभी पहलू.

खराब नहीं होता पहला डोज

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉक्टर अरुण गुप्ता बताते हैं कि हमारे देश में जो टीके लगाए जा रहे हैं, उनके दो डोज दिए जा रहे हैं. दूसरा डोज लेने के 15 दिन बाद शरीर में एंटीबॉडी बनना शुरू होता है. ऐसे में जिनको पहला डोज लग चुका है, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है. पहला डोज लेने के बाद कुछ हद तक सुरक्षा मिल जाती है और अगर दूसरा डोज लेने में 2 या 3 महीने की देरी हो जाती है तो आपका पहला डोज खराब नहीं होता है.

इसे भी पढ़ें- सोशल मीडिया में वैक्सीन को लेकर जारी रही सियासत, देखिये किस नेता ने किसे बनाया निशाना

अंतराल ज्यादा तो चिंता की जरूरत नहीं

वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सेंट्रल दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष डॉ रमेश बंसल बताते हैं कि जिन्हें कोविशील्ड का पहला डोज लग चुका है और किन्हीं कारणों से दूसरा डोज लेने में 3 से 4 महीने की देरी हो जाती है. फिर भी उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी 8- 16 हफ्तों के अंतर को अच्छा बताया है. जिन लोगों को कोवैक्सीन लगी है, वह भी तीन-चार महीनों के अंतराल पर दूसरा डोज ले सकते हैं.

डोज के बीच अंतर बढ़ने से ज्यादा फायदा
शुरुआत में वैक्सीन के दोनों डोज के बीच 21 से 28 दिनों का अंतर रखा गया था. बाद में यूके में एक प्रयोग किया गया. वहां यह देखा गया कि अगर पहला डोज और दूसरे डोज के बीच के अंतर को 2 महीने और 3 महीने तक बढ़ा दिया जाए तो इसका क्या फर्क पड़ता है. इस प्रयोग का उत्साहजनक परिणाम आया. दूसरा डोज लेने में जितना ज्यादा समय लगेगा. लाभार्थी को उतना ही ज्यादा सुरक्षा मिलेगी. 60 से 90 दिनों तक का अंतर से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, बल्कि इससे ज्यादा लाभ होगा.

दूसरा डोज अलग कंपनी का लेने का प्रावधान नहीं

दूसरा सवाल यह भी है कि जिन लोगों ने पहला डोज कोविशील्ड का लिया है, क्या वह दूसरा डोज कोवैक्सीन का टीका ले सकता है ? इस पर डॉ गुप्ता बताते हैं कि ऐसा प्रावधान नहीं है, क्योंकि दोनों टीका बनाने की टेक्नोलॉजी अलग-अलग है.

क्यों हो रही देरी

वैक्सीन इंडिया डॉट ओआरजी के फैसिलिटेटर डॉ. अजय गंभीर ने बताया कि शुरुआत में टीकाकरण केंद्र पर ही पहला डोज लेने की पहले ही लाभार्थियों से मोबाइल नंबर और आधार नंबर ले लिया जाता था. जिसकी वजह से उन्हें तत्काल टीका से संबंधित उनके मोबाइल नंबर पर एसएमएस प्राप्त हो जाता था. यह SMS टीका प्राप्त करने का एक तरह से प्रमाण पत्र की तरह काम करता था, लेकिन जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई टीकाकरण केंद्र पर लाभार्थियों के आंकड़े उसी समय ऑनलाइन अपलोड नहीं किए जा रहे हैं. इसकी वजह से उन्हें ना कोई SMS प्राप्त हो रहा है और ना ही टीकाकरण से संबंधित सर्टिफिकेट मिल पा रहे हैं. इसका परिणाम यह है कि ऐसे लोगों को टीका का दूसरा डोज नहीं मिल पा रहा है. दूसरी तरफ टीका की किल्लत भी एक बड़ी वजह बन रही है.

पहले भी हुई परेशानी
डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि टीकाकरण के लिए केंद्र सरकार ने जो योजना बनाई है वही त्रुटिपूर्ण थी. जिसकी वजह से यह समस्या आ रही है. रजिस्ट्रेशन से लेकर सॉफ्टवेयर तक में काफी दिक्कतें थी. इसमें काफी इंप्रूवमेंट की जरूरत थी. इसके लिए उन्होंने सरकार को फीडबैक भी दिया था, लेकिन इस पर काम नहीं हो पाया. इन कमियों की वजह से टीकाकरण में काफी परेशानी भी लोगों को उठानी पड़ी. रजिस्ट्रेशन हो जाती है तो सेंटर नहीं मिलते हैं. सेंटर मिल जाए किसी को कोवैक्सीन चाहिए तो किसी को कोविशील्ड चाहिए.

साफ्टवेयर में कई गड़बड़ियां

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि समस्या तब से शुरू हुई जब 18 से 45 साल के उम्र के लोगों को वैक्सीन लेने की अनुमति दी गई. बहुत सारे लोगों ने टीका का पहला डोज ले लिया है, लेकिन अब दूसरा डोज लेने में उन्हें परेशानी हो रही है. क्योंकि टीका उपलब्ध नहीं है. कई लोगों ने दूसरा डोज नहीं लिया है फिर भी उनका सर्टिफिकेट आ गया है. कई लोगों के तो पहला डोज लेने के पहले ही उनके पास सर्टिफिकेट आ गया. डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि लोगों को इसके लिए डरने की आवश्यकता नहीं है. वैक्सीन कोई जादू की छड़ी नहीं है. अगर किसी व्यक्ति को बिना टीका लगाए हुए उनको सर्टिफिकेट मिल गया है. कोविन सॉफ्टवेयर में जाकर या आरोग्य सेतु ऐप पर इसका फीडबैक डालें.

सबको टीका लगाने के लिये बड़ी प्लानिंग की जरूरी
हमारे देश में ज्यादातर लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन लगी है और इसका उत्पादन कोवैक्सीन के मुकाबले 3 गुना ज्यादा हो रही है. कोविशील्ड के दूसरे डोज में तीन-चार महीने का गैप रखा जा सकता है. इससे इस वैक्सीन की प्रभावशीलता पर कोई असर नहीं पड़ता है. उन्होंने कहा कि वैक्सीन की काफी कमी है. इसी वजह से वैक्सीनेशन केंद्रों को बंद किया जा रहा है. ऐसे में इतनी बड़ी आबादी को टीका लगाना कैसे संभव हो पाएगा. ऐसे में हमारी क्या प्लानिंग होनी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीके लगाया जा सके.

नई दिल्ली: टीकाकरण कोरोना महामारी को नियंत्रित करने के लिए एकमात्र प्रभावी उपाय है, लेकिन टीके की किल्लत के चलते दिल्ली में 18 साल से ऊपर के लोगों को टीका लगाने का काम रोकना पड़ा है. वहीं कई लोगों को दूसरी डोज नहीं लग पाई है. ऐसे में लोगों के मन में सवाल पैदा हो रहे हैं. मसलन क्या दूसरी डोज दूसरी कंपनी की लगवाई जा सकती है? वहीं कई लोग के मन में आशंका है कि अगर दूसरी डोज न मिली या देर से मिली तो पहली डोज का क्या मतलब रहेगा? इन सब सवालों के जवाब दे रहे हैं एक्सपर्ट...

जानें वैक्सीनेशन जुड़े सभी पहलू.

खराब नहीं होता पहला डोज

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉक्टर अरुण गुप्ता बताते हैं कि हमारे देश में जो टीके लगाए जा रहे हैं, उनके दो डोज दिए जा रहे हैं. दूसरा डोज लेने के 15 दिन बाद शरीर में एंटीबॉडी बनना शुरू होता है. ऐसे में जिनको पहला डोज लग चुका है, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है. पहला डोज लेने के बाद कुछ हद तक सुरक्षा मिल जाती है और अगर दूसरा डोज लेने में 2 या 3 महीने की देरी हो जाती है तो आपका पहला डोज खराब नहीं होता है.

इसे भी पढ़ें- सोशल मीडिया में वैक्सीन को लेकर जारी रही सियासत, देखिये किस नेता ने किसे बनाया निशाना

अंतराल ज्यादा तो चिंता की जरूरत नहीं

वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सेंट्रल दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष डॉ रमेश बंसल बताते हैं कि जिन्हें कोविशील्ड का पहला डोज लग चुका है और किन्हीं कारणों से दूसरा डोज लेने में 3 से 4 महीने की देरी हो जाती है. फिर भी उन्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी 8- 16 हफ्तों के अंतर को अच्छा बताया है. जिन लोगों को कोवैक्सीन लगी है, वह भी तीन-चार महीनों के अंतराल पर दूसरा डोज ले सकते हैं.

डोज के बीच अंतर बढ़ने से ज्यादा फायदा
शुरुआत में वैक्सीन के दोनों डोज के बीच 21 से 28 दिनों का अंतर रखा गया था. बाद में यूके में एक प्रयोग किया गया. वहां यह देखा गया कि अगर पहला डोज और दूसरे डोज के बीच के अंतर को 2 महीने और 3 महीने तक बढ़ा दिया जाए तो इसका क्या फर्क पड़ता है. इस प्रयोग का उत्साहजनक परिणाम आया. दूसरा डोज लेने में जितना ज्यादा समय लगेगा. लाभार्थी को उतना ही ज्यादा सुरक्षा मिलेगी. 60 से 90 दिनों तक का अंतर से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, बल्कि इससे ज्यादा लाभ होगा.

दूसरा डोज अलग कंपनी का लेने का प्रावधान नहीं

दूसरा सवाल यह भी है कि जिन लोगों ने पहला डोज कोविशील्ड का लिया है, क्या वह दूसरा डोज कोवैक्सीन का टीका ले सकता है ? इस पर डॉ गुप्ता बताते हैं कि ऐसा प्रावधान नहीं है, क्योंकि दोनों टीका बनाने की टेक्नोलॉजी अलग-अलग है.

क्यों हो रही देरी

वैक्सीन इंडिया डॉट ओआरजी के फैसिलिटेटर डॉ. अजय गंभीर ने बताया कि शुरुआत में टीकाकरण केंद्र पर ही पहला डोज लेने की पहले ही लाभार्थियों से मोबाइल नंबर और आधार नंबर ले लिया जाता था. जिसकी वजह से उन्हें तत्काल टीका से संबंधित उनके मोबाइल नंबर पर एसएमएस प्राप्त हो जाता था. यह SMS टीका प्राप्त करने का एक तरह से प्रमाण पत्र की तरह काम करता था, लेकिन जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई टीकाकरण केंद्र पर लाभार्थियों के आंकड़े उसी समय ऑनलाइन अपलोड नहीं किए जा रहे हैं. इसकी वजह से उन्हें ना कोई SMS प्राप्त हो रहा है और ना ही टीकाकरण से संबंधित सर्टिफिकेट मिल पा रहे हैं. इसका परिणाम यह है कि ऐसे लोगों को टीका का दूसरा डोज नहीं मिल पा रहा है. दूसरी तरफ टीका की किल्लत भी एक बड़ी वजह बन रही है.

पहले भी हुई परेशानी
डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि टीकाकरण के लिए केंद्र सरकार ने जो योजना बनाई है वही त्रुटिपूर्ण थी. जिसकी वजह से यह समस्या आ रही है. रजिस्ट्रेशन से लेकर सॉफ्टवेयर तक में काफी दिक्कतें थी. इसमें काफी इंप्रूवमेंट की जरूरत थी. इसके लिए उन्होंने सरकार को फीडबैक भी दिया था, लेकिन इस पर काम नहीं हो पाया. इन कमियों की वजह से टीकाकरण में काफी परेशानी भी लोगों को उठानी पड़ी. रजिस्ट्रेशन हो जाती है तो सेंटर नहीं मिलते हैं. सेंटर मिल जाए किसी को कोवैक्सीन चाहिए तो किसी को कोविशील्ड चाहिए.

साफ्टवेयर में कई गड़बड़ियां

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि समस्या तब से शुरू हुई जब 18 से 45 साल के उम्र के लोगों को वैक्सीन लेने की अनुमति दी गई. बहुत सारे लोगों ने टीका का पहला डोज ले लिया है, लेकिन अब दूसरा डोज लेने में उन्हें परेशानी हो रही है. क्योंकि टीका उपलब्ध नहीं है. कई लोगों ने दूसरा डोज नहीं लिया है फिर भी उनका सर्टिफिकेट आ गया है. कई लोगों के तो पहला डोज लेने के पहले ही उनके पास सर्टिफिकेट आ गया. डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि लोगों को इसके लिए डरने की आवश्यकता नहीं है. वैक्सीन कोई जादू की छड़ी नहीं है. अगर किसी व्यक्ति को बिना टीका लगाए हुए उनको सर्टिफिकेट मिल गया है. कोविन सॉफ्टवेयर में जाकर या आरोग्य सेतु ऐप पर इसका फीडबैक डालें.

सबको टीका लगाने के लिये बड़ी प्लानिंग की जरूरी
हमारे देश में ज्यादातर लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन लगी है और इसका उत्पादन कोवैक्सीन के मुकाबले 3 गुना ज्यादा हो रही है. कोविशील्ड के दूसरे डोज में तीन-चार महीने का गैप रखा जा सकता है. इससे इस वैक्सीन की प्रभावशीलता पर कोई असर नहीं पड़ता है. उन्होंने कहा कि वैक्सीन की काफी कमी है. इसी वजह से वैक्सीनेशन केंद्रों को बंद किया जा रहा है. ऐसे में इतनी बड़ी आबादी को टीका लगाना कैसे संभव हो पाएगा. ऐसे में हमारी क्या प्लानिंग होनी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीके लगाया जा सके.

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