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AIIMS में पहली बार ब्लू बेबी सिंड्रोम का सफल ऑपरेशन, जानें क्या होती है ये बीमारी? - heart transplant

देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में पहले ब्लू ब्लड सिंड्रोम से पीड़ित 18 वर्ष के युवक का हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया है. वड़ोदरा की एक 20 वर्षीय ब्रेन डेड युवती का दिल उसके सीने में धड़क रहा है.

Delhi AIIMS heart transplant
ब्लू बेबी हार्ट ट्रांसप्लांट
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Published : Dec 28, 2020, 3:36 PM IST

Updated : Jan 22, 2021, 2:55 PM IST

नई दिल्ली: 18 वर्षीय अमन बड़ी मुश्किल से इतनी उम्र तक पहुंच पाया, क्योंकि वो सामान्य बेबी के रूप में पैदा नहीं हुआ था. वो एक ब्लू बेबी था, जो इस सिंड्रोम के साथ पैदा हुआ था. उसके दिल में जन्मजात ऐसा डिफेक्ट था कि दिल ऑक्सिजनटेड ब्लड यानी शुद्ध रक्त और डीऑक्सिजनटेड ब्लड यानी अशुद्ध खून को अलग कर पाने में सक्षम नहीं था. जिसकी वजह से दोनों तरह का रक्त एक जगह आकर मिल जाता था.

ब्लू ब्लड सिंड्रोम से पीड़ित 18 वर्ष के युवक का हार्ट किया गया ट्रांसप्लांट

इसका असर शरीर के वाइटल ऑर्गन्स पर पड़ रहा था, क्योंकि उन अंगों को जरूरी ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं हो पाती थी. ऐसी परिस्थिति से बाहर आने का एक ही उपाय था, डिफेक्टेड हार्ट को बदलना. यह तभी संभव होता, जब उसे कोई उपयुक्त डोनर मिलता.

हार्ट ट्रांसप्लांट ही था एकमात्र इलाज

गुजरात के वड़ोदरा की 20 वर्षीय लड़की का दिल अमन के लिए बिल्कुल परफेक्ट था. अमन को सौभाग्य से एकदम युवा और स्वस्थ दिल मिला. एम्स में जिन डॉक्टरों की टीम ने अमन का ट्रीटमेंट किया, उनमें से एक डॉक्टर ने अपनी पहचान छुपाकर बताया कि अमन एक ब्लू बेबी पैदा हुआ था. उसके हार्ट में जन्मजात डिफेक्ट था, इससे उबरने के लिए एकमात्र उपाय हार्ट ट्रांसप्लांट ही था.

डॉक्टर ने बताया-

अगर अमन को हार्ट नहीं मिलता तो वो मुश्किल से एक से पांच साल और जीवित रहता, लेकिन उसकी अच्छी किस्मत थी जो उसे बिल्कुल परफेक्ट हार्ट मिला है. दो साल पहले उसके हार्ट का वाल्व बदलकर उसे ठीक करने की कोशिश की गई थी, लेकिन ये काम नहीं किया, फिर हार्ट ट्रांसप्लांट ही करना पड़ा.

डॉक्टर ने बताया कि अमन का हार्ट ट्रांसप्लांट सफल रहा है. नया हार्ट मिलते ही अब वो ब्लू ब्लड सिंड्रोम से बाहर आ गया है. फिलहाल उसे पोस्ट ऑपरेटिव केयर में विशेष आईसीयू में रखा गया है, जहां उसके स्वास्थ्य पर गहन नजर रखी जा रही है.

ऑर्गन रिजेक्शन की संभावना को समाप्त करने के लिए अमन को ट्रांसप्लांट के बाद विशेष मेडिकेशन पर रखा गया है, क्योंकि अमन के बॉडी में किसी दूसरे के बॉडी का अंग प्रत्यारोपित किया गया है. जिसे उसका इम्यून सिस्टम नहीं पहचान पा रहा है. ऐसी परिस्थिति में उसका इम्यून सिस्टम उसे रिजेक्ट कर सकता है. इसलिए फिलहाल उसे इम्यून सप्रेसिंग मेडिकेशन दी जा रही है, ताकि उसका इम्यून सिस्टम नए हार्ट को एक्सेप्ट करने तक रियेक्ट ना कर सके.

कोरोना संक्रमण को लेकर काफी सावधानी बरती जा रही है, क्योंकि हार्ट ट्रांसप्लांट की वजह से पहले ही उसका इम्यून सिस्टम लगभग सस्पेंडेड अवस्था में है. ऐसी परिस्थिति में कोरोना के अलावा हर तरह के संक्रमण का उसे खतरा है.

क्या है ब्लू बेबी सिंड्रोम ?

राम मनोहर लोहिया अस्पताल के कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के पूर्व विभागाध्यक्ष और सीनियर कंसलटेंट इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर दीपक नटराजन बताते हैं कि कुछ बच्चों में जन्मजात बीमारी होती है. जब वे पैदा होते हैं, तो उनके हार्ट में डिफेक्ट होने की वजह से ऑक्सीजन युक्त ब्लड पूरे शरीर में नहीं पहुंच पाता है. ब्लड में ऑक्सीजन ट्रैवल करता है, जिससे हर वाइटल ऑर्गन तक जरूरी मात्रा में ऑक्सीजन मिलता है, लेकिन जिन बच्चों के हार्ट में डिफेक्ट होता है उनकी ऑक्सिजनेटेड और डीऑक्सीजनेटेड ब्लड दोनों मिल जाते हैं.

इसकी वजह से शुद्ध रक्त का प्रवाह पूरे शरीर में नहीं हो पाता. जिन बच्चों में इस तरह का डिफेक्ट होता है, उनके शरीर का रंग नीला पड़ जाता है. इन बच्चों के जीभ और होंठ भी नीले होते हैं. हाथ-पैर भी नीले हो जाते हैं. इसलिए ऐसे बच्चे को ब्लू बेबी कहा जाता है. इनके खून में ऑक्सीजन की कमी होने की वजह से वह तेज सांस लेते हैं. इनकी हार्टबीट भी बढ़ी हुई होती है. इन बच्चों का जल्दी ही इलाज होना चाहिए. इसका परमानेंट इलाज हार्ट ट्रांसप्लांट है. जिन बच्चों का हार्ट ट्रांसप्लांट नहीं हो पाता, वो लंबे समय तक नहीं जीवित नहीं रह पाते हैं.

नई दिल्ली: 18 वर्षीय अमन बड़ी मुश्किल से इतनी उम्र तक पहुंच पाया, क्योंकि वो सामान्य बेबी के रूप में पैदा नहीं हुआ था. वो एक ब्लू बेबी था, जो इस सिंड्रोम के साथ पैदा हुआ था. उसके दिल में जन्मजात ऐसा डिफेक्ट था कि दिल ऑक्सिजनटेड ब्लड यानी शुद्ध रक्त और डीऑक्सिजनटेड ब्लड यानी अशुद्ध खून को अलग कर पाने में सक्षम नहीं था. जिसकी वजह से दोनों तरह का रक्त एक जगह आकर मिल जाता था.

ब्लू ब्लड सिंड्रोम से पीड़ित 18 वर्ष के युवक का हार्ट किया गया ट्रांसप्लांट

इसका असर शरीर के वाइटल ऑर्गन्स पर पड़ रहा था, क्योंकि उन अंगों को जरूरी ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं हो पाती थी. ऐसी परिस्थिति से बाहर आने का एक ही उपाय था, डिफेक्टेड हार्ट को बदलना. यह तभी संभव होता, जब उसे कोई उपयुक्त डोनर मिलता.

हार्ट ट्रांसप्लांट ही था एकमात्र इलाज

गुजरात के वड़ोदरा की 20 वर्षीय लड़की का दिल अमन के लिए बिल्कुल परफेक्ट था. अमन को सौभाग्य से एकदम युवा और स्वस्थ दिल मिला. एम्स में जिन डॉक्टरों की टीम ने अमन का ट्रीटमेंट किया, उनमें से एक डॉक्टर ने अपनी पहचान छुपाकर बताया कि अमन एक ब्लू बेबी पैदा हुआ था. उसके हार्ट में जन्मजात डिफेक्ट था, इससे उबरने के लिए एकमात्र उपाय हार्ट ट्रांसप्लांट ही था.

डॉक्टर ने बताया-

अगर अमन को हार्ट नहीं मिलता तो वो मुश्किल से एक से पांच साल और जीवित रहता, लेकिन उसकी अच्छी किस्मत थी जो उसे बिल्कुल परफेक्ट हार्ट मिला है. दो साल पहले उसके हार्ट का वाल्व बदलकर उसे ठीक करने की कोशिश की गई थी, लेकिन ये काम नहीं किया, फिर हार्ट ट्रांसप्लांट ही करना पड़ा.

डॉक्टर ने बताया कि अमन का हार्ट ट्रांसप्लांट सफल रहा है. नया हार्ट मिलते ही अब वो ब्लू ब्लड सिंड्रोम से बाहर आ गया है. फिलहाल उसे पोस्ट ऑपरेटिव केयर में विशेष आईसीयू में रखा गया है, जहां उसके स्वास्थ्य पर गहन नजर रखी जा रही है.

ऑर्गन रिजेक्शन की संभावना को समाप्त करने के लिए अमन को ट्रांसप्लांट के बाद विशेष मेडिकेशन पर रखा गया है, क्योंकि अमन के बॉडी में किसी दूसरे के बॉडी का अंग प्रत्यारोपित किया गया है. जिसे उसका इम्यून सिस्टम नहीं पहचान पा रहा है. ऐसी परिस्थिति में उसका इम्यून सिस्टम उसे रिजेक्ट कर सकता है. इसलिए फिलहाल उसे इम्यून सप्रेसिंग मेडिकेशन दी जा रही है, ताकि उसका इम्यून सिस्टम नए हार्ट को एक्सेप्ट करने तक रियेक्ट ना कर सके.

कोरोना संक्रमण को लेकर काफी सावधानी बरती जा रही है, क्योंकि हार्ट ट्रांसप्लांट की वजह से पहले ही उसका इम्यून सिस्टम लगभग सस्पेंडेड अवस्था में है. ऐसी परिस्थिति में कोरोना के अलावा हर तरह के संक्रमण का उसे खतरा है.

क्या है ब्लू बेबी सिंड्रोम ?

राम मनोहर लोहिया अस्पताल के कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के पूर्व विभागाध्यक्ष और सीनियर कंसलटेंट इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर दीपक नटराजन बताते हैं कि कुछ बच्चों में जन्मजात बीमारी होती है. जब वे पैदा होते हैं, तो उनके हार्ट में डिफेक्ट होने की वजह से ऑक्सीजन युक्त ब्लड पूरे शरीर में नहीं पहुंच पाता है. ब्लड में ऑक्सीजन ट्रैवल करता है, जिससे हर वाइटल ऑर्गन तक जरूरी मात्रा में ऑक्सीजन मिलता है, लेकिन जिन बच्चों के हार्ट में डिफेक्ट होता है उनकी ऑक्सिजनेटेड और डीऑक्सीजनेटेड ब्लड दोनों मिल जाते हैं.

इसकी वजह से शुद्ध रक्त का प्रवाह पूरे शरीर में नहीं हो पाता. जिन बच्चों में इस तरह का डिफेक्ट होता है, उनके शरीर का रंग नीला पड़ जाता है. इन बच्चों के जीभ और होंठ भी नीले होते हैं. हाथ-पैर भी नीले हो जाते हैं. इसलिए ऐसे बच्चे को ब्लू बेबी कहा जाता है. इनके खून में ऑक्सीजन की कमी होने की वजह से वह तेज सांस लेते हैं. इनकी हार्टबीट भी बढ़ी हुई होती है. इन बच्चों का जल्दी ही इलाज होना चाहिए. इसका परमानेंट इलाज हार्ट ट्रांसप्लांट है. जिन बच्चों का हार्ट ट्रांसप्लांट नहीं हो पाता, वो लंबे समय तक नहीं जीवित नहीं रह पाते हैं.

Last Updated : Jan 22, 2021, 2:55 PM IST
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