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दिल्ली मैक्स में हुआ युवक का सफलतापूर्वक लंग्स ट्रांसप्लांट - max saket hospital lungs transplant

दिल्ली के मैक्स साकेत अस्पताल में एक 31 वर्षीय मरीज का लंग्स ट्रांसप्लांट किया गया. उत्तर भारत के किसी अस्पताल में यह पहली बार लंग्स ट्रांसप्लांट किया गया है.

a rare lungs  transplant done at max saket hospital
दिल्ली मैक्स में हुआ युवक का सफलतापूर्वक लंग्स ट्रांसप्लांट
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Published : Dec 4, 2020, 6:44 PM IST

नई दिल्ली: राजधानी के एक निजी अस्पताल में एक ऐसे मरीज का लंग ट्रांसप्लांट किया गया, जिन्हें कोरोना संक्रमण हो गया था. कोविड-19 से बाहर आने के बाद एक 31 वर्षीय युवक का लंग्स ट्रांसप्लांट दिल्ली के साकेत मैक्स हॉस्पिटल में किया गया. इस व्यक्ति को फाइब्रोसिस हो गया था, जो एक ऐसी कंडीशन है जिसमें किसी इंजरी से उबरने के बाद लंग्स के टिश्यूज कठोर हो जाते हैं, जिसकी वजह से मरीज को सांस लेना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा इस व्यक्ति को पहले से ही लंग सिलकोसिस की समस्या थी. इतनी सारी बीमारियों से जूझने के बाद जब उसे कोरोना हुआ तो स्थिति काफी खराब हो गई. आखिरकार मैक्स साकेत अस्पताल में लंग्स ट्रांसप्लांट कर उसे एक नई जिंदगी दी गयी.



अभी तक सिर्फ दो ही लंग्स ट्रांसप्लांट हुए हैं

अभी तक कोरोना से पीड़ित रह चुके सिर्फ दो ही मरीजों का लंग्स ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया जा सका है. गुड़गांव के रहने वाले एक 48 वर्षीय व्यवसाई का चेन्नई में और चंडीगढ़ के रहने वाले 32 वर्ष के एक व्यक्ति का हैदराबाद में लंग्स ट्रांसप्लांट किया गया है.




15 डॉक्टर्स की टीम किया ऑपरेशन

मैक्स हॉस्पिटल के 15 डॉक्टरों की एक बड़ी टीम ने ऑपरेशन को अंजाम दिया. डोनर जयपुर की 49 वर्ष की एक महिला थी, जो रोड एक्सीडेंट के बाद बुरी तरह से घायल हो गई थी. ब्रेन इंजरी की वजह से उनकी मौत हो गई थी. मैक्स साकेत के डॉक्टरों की एक टीम इस महिला के लंग को रिट्रीव कर जयपुर से हवाई मार्ग से दिल्ली लाई. उसके बाद दिल्ली एयरपोर्ट से लेकर मैक्स साकेत हॉस्पिटल के 18.3 किलोमीटर का एक ग्रीन कॉरिडोर बनाकर हॉस्पिटल तक की यह दूरी सिर्फ 18 मिनट में पूरी की गई.



लंग्स ट्रांस्प्लांट्स सबसे चुनौतीपूर्ण


डॉक्टरों के मुताबिक व्यक्ति की मृत्यु के बाद जब उसके शरीर से फेफड़ा बाहर निकाला जाता है तो 8 घंटे तक जीवित रह सकता है. अभी तक जितने भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुए हैं उन सब में लंग्स ट्रांसप्लांट करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण और कॉम्प्लिकेशंस भरा हुआ रहा है. ज्यादातर लंग्स सड़क दुर्घटना में व्यक्ति के शरीर से प्राप्त किया जाता है. दुर्घटना की वजह से व्यक्ति के मरने के पहले उल्टियां होती है. उल्टी के कुछ अंश फेफड़े में पहुंच जाते हैं, जिसकी वजह से फेफड़े को काफी नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा लंग में लिंफ्यावड टिश्यूज पाए जाते हैं, जिसकी वजह से रिजेक्शन की संभावना काफी ज्यादा होती है.



उत्तर भारत में होने वाला पहला लंग्स ट्रांस्प्लांट्स

मैक्स हॉस्पिटल के वाइस प्रेसिडेंट डॉक्टर गुरप्रीत सिंह ने बताया कि गर्व की बात है कि भारत में इस तरह का पहला ट्रांसप्लांट उनके हॉस्पिटल में किया गया है. ऐसे व्यक्ति के ऊपर किया गया है जिनके फेफड़े कोरोना की वजह से खराब हो चुके थे.

नई दिल्ली: राजधानी के एक निजी अस्पताल में एक ऐसे मरीज का लंग ट्रांसप्लांट किया गया, जिन्हें कोरोना संक्रमण हो गया था. कोविड-19 से बाहर आने के बाद एक 31 वर्षीय युवक का लंग्स ट्रांसप्लांट दिल्ली के साकेत मैक्स हॉस्पिटल में किया गया. इस व्यक्ति को फाइब्रोसिस हो गया था, जो एक ऐसी कंडीशन है जिसमें किसी इंजरी से उबरने के बाद लंग्स के टिश्यूज कठोर हो जाते हैं, जिसकी वजह से मरीज को सांस लेना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा इस व्यक्ति को पहले से ही लंग सिलकोसिस की समस्या थी. इतनी सारी बीमारियों से जूझने के बाद जब उसे कोरोना हुआ तो स्थिति काफी खराब हो गई. आखिरकार मैक्स साकेत अस्पताल में लंग्स ट्रांसप्लांट कर उसे एक नई जिंदगी दी गयी.



अभी तक सिर्फ दो ही लंग्स ट्रांसप्लांट हुए हैं

अभी तक कोरोना से पीड़ित रह चुके सिर्फ दो ही मरीजों का लंग्स ट्रांसप्लांट सफलतापूर्वक किया जा सका है. गुड़गांव के रहने वाले एक 48 वर्षीय व्यवसाई का चेन्नई में और चंडीगढ़ के रहने वाले 32 वर्ष के एक व्यक्ति का हैदराबाद में लंग्स ट्रांसप्लांट किया गया है.




15 डॉक्टर्स की टीम किया ऑपरेशन

मैक्स हॉस्पिटल के 15 डॉक्टरों की एक बड़ी टीम ने ऑपरेशन को अंजाम दिया. डोनर जयपुर की 49 वर्ष की एक महिला थी, जो रोड एक्सीडेंट के बाद बुरी तरह से घायल हो गई थी. ब्रेन इंजरी की वजह से उनकी मौत हो गई थी. मैक्स साकेत के डॉक्टरों की एक टीम इस महिला के लंग को रिट्रीव कर जयपुर से हवाई मार्ग से दिल्ली लाई. उसके बाद दिल्ली एयरपोर्ट से लेकर मैक्स साकेत हॉस्पिटल के 18.3 किलोमीटर का एक ग्रीन कॉरिडोर बनाकर हॉस्पिटल तक की यह दूरी सिर्फ 18 मिनट में पूरी की गई.



लंग्स ट्रांस्प्लांट्स सबसे चुनौतीपूर्ण


डॉक्टरों के मुताबिक व्यक्ति की मृत्यु के बाद जब उसके शरीर से फेफड़ा बाहर निकाला जाता है तो 8 घंटे तक जीवित रह सकता है. अभी तक जितने भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुए हैं उन सब में लंग्स ट्रांसप्लांट करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण और कॉम्प्लिकेशंस भरा हुआ रहा है. ज्यादातर लंग्स सड़क दुर्घटना में व्यक्ति के शरीर से प्राप्त किया जाता है. दुर्घटना की वजह से व्यक्ति के मरने के पहले उल्टियां होती है. उल्टी के कुछ अंश फेफड़े में पहुंच जाते हैं, जिसकी वजह से फेफड़े को काफी नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा लंग में लिंफ्यावड टिश्यूज पाए जाते हैं, जिसकी वजह से रिजेक्शन की संभावना काफी ज्यादा होती है.



उत्तर भारत में होने वाला पहला लंग्स ट्रांस्प्लांट्स

मैक्स हॉस्पिटल के वाइस प्रेसिडेंट डॉक्टर गुरप्रीत सिंह ने बताया कि गर्व की बात है कि भारत में इस तरह का पहला ट्रांसप्लांट उनके हॉस्पिटल में किया गया है. ऐसे व्यक्ति के ऊपर किया गया है जिनके फेफड़े कोरोना की वजह से खराब हो चुके थे.

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