नई दिल्ली: फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग के डॉक्टरों ने 22 वर्षीय मरीज की गहन सर्जरी कर उसके शरीर से 37.4 सेंटीमीटर आकार का ट्यूमर निकाला है जो कि दुनिया में सबसे बड़ा रिकॉर्डेड स्पाइनल एपेंडीमोमा ट्यूमर है. इससे पहले जो सबसे बड़ा स्पाइनल एपेंडीमोमा ट्यूमर इतिहास में दर्ज है उसका आकार 28 सेंटीमीटर था, लेकिन वह मौजूदा मामले की तुलना में 9 सेंटीमीटर छोटा था. फोर्टिस शालीमार बाग की डॉ सोनल गुप्ता, न्यूरो एवं स्पाइ सर्जरी के नेतृत्व में यह जटिल और बेहद जोखिमपूर्ण सर्जरी 12 घंटे चली और ट्यूमर को सफलतापूर्वक हटाया गया.
डेढ़ साल इलाज चलने के बाद भी नहीं मिल रही थी राहत
मरीज़ की पीठ में लगातार दर्द बना हुआ था. इसका इलाज पहले दवाओं और फिजियोथेरेपी से किया जा रहा था और करीब डेढ़ साल उसका इलाज चला. लेकिन कुछ समय बाद मरीज़ को दोनों पैरों में कमज़ोरी महसूस होने लगी थी, जिसकी वजह से मरीज़ को चलने फिरने में परेशानी होने लगी. एमआरआई से मरीज़ के शरीर में स्पाइनल ट्यूमर की मौजूदगी की पुष्टि हुई जो 14 वर्टिब्रल कॉलम्स में फैला हुआ था, और यह मरीज़ की पीठ के मध्य भाग से उसकी कमर के निचले भाग के अंतिम सिरे तक था.
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बेहद जोखिम भरी थी सर्जरी
न्यूरो एवं स्पाइ सर्जरी, फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग की डॉ सोनल गुप्ता ने बताया कि यह काफी जोखिम से भरपूर केस था, क्योंकि इसमें कई सेगमेंट्स शामिल थे. ट्यूमर को निकालने के लिए स्पाइनल कॉर्ड पर सर्जरी की जानी थी, जहां काफी नर्व्स होती हैं और ज़रा-सी चूक भी मरीज़ को बाकी जीवन के लिए अपाहिज बना सकती थी. एक अन्य चुनौती यह थी कि लोकेशन स्पाइनल कैनाल के भीतर थी. उन्हें 14 लैवल्स पर बोन्स को निकालना था, जिसकी वजह से मरीज़ की स्पाइन में अस्थिरता पैदा होने का खतरा था.
इसलिए उन्होंने स्पाइन को खोलने ओपन डोर लैमिनोप्लास्टी तकनीक से खोलने का फैसला किया, जिसके लिए ड्रिलिंग की गई और फिर इसे प्लेट्स की मदद से वापस बंद किया गया. हडि्डयों को भी प्लेट्स के साथ वापस फिक्स किया गया. उन्हें कांट-छांटकर ऐसा किया गया. अगर स्पाइन के 14 लैवल्स को फिक्स किया होता तो बहुत संभव है कि मरीज़ की पीठ में कड़ापन (रिजिडिटी) आ जाती, और वह आजीवन सामने की ओर झुकने में असमर्थ हो सकती थीं. डॉ सोनल ने बताया कि सर्जरी के दौरान उन्होंने एडवांस इलैक्ट्रोफिजियोलॉजी मॉनीटरिंग का इस्तेमाल किया, यानी यदि वह सर्जरी के दौरान किसी भी नर्व को छूते तो मशीन से आवाज़ होने लगती थी. इस तरह, वह बहुत सावधानी के साथ ट्यूमर को निकाल पाए और नर्व टिश्यू को भी नुकसान नहीं होने दिया.
12 घंटे तक चली मैराथन सर्जरी, मरीज अब सहारे से चल रही है
डॉ सोनल ने बताया कि उन्होंने सुबह 8 बजे सर्जरी शुरू की थी जो रात 8 बजे तक चली. सर्जरी के 11वें दिन मरीज़ अब सहारे से चलने लगी हैं और उनका न्यूरो रीहेबिलिटेशन प्रोग्राम भी चल रहा है. उन्हें नियमित रूप से न्यूरो रीहेबिलिटेशन की आवश्यकता होगी तथा ट्यूमर दोबारा न हो जाए इस पर नज़र रखने के लिए फौलो-अप इमेजिंग भी जरूरी है.