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जमात-ए-इस्लामी हिंद ने गाजा में संघर्ष विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र में मतदान से भारत के दूर रहने पर निराशा व्यक्त की

जमात-ए-इस्लामी हिंद गाजा में संघर्ष विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र में हुए मतदान में भारत की अनुपस्थिति पर चिंता व्यक्त की है. साथ ही UN के प्रस्ताव का स्वागत किया है. Jamaat-e-Islami Hind expressed disappointment over India's distancing from ceasefire vote, Jamaat e Islami Hind, UN votes for ceasefire in Gaza

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 29, 2023, 10:17 PM IST

नई दिल्लीः गाजा में हमास के खिलाफ इजराइल के हमले जारी है. इसको लेकर विश्व स्तर दो धड़े में बंटता नजर आ रहा है. वहीं, दोनों के बीच संघर्ष विराम को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव पर हुए मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया. इस पर जमात-ए-इस्लामी हिंद ने निराशा व्यक्त की है. जमात-ए-इस्लामी हिंद के अमीर (अध्यक्ष) सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने गाजा पट्टी में तत्काल स्थायी 'मानवीय संघर्ष विराम' के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव का स्वागत किया और हस्ताक्षरकर्ता देशों से इसका तत्काल प्रवर्तन सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.

उन्होंने बयान जारी कर कहा कि लाखों फिलिस्तीनियों को भोजन, पानी, चिकित्सा सहायता, संचार और बिजली से वंचित करना और हजारों निर्दोष लोगों का दुखद नुकसान व मानव अधिकारों का तीव्र उल्लंघन हमारे समय का सबसे बड़ा मानवीय संकट है. इस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अधिक ठोस कार्रवाई की मांग करते हैं. भारत हमेशा से फिलिस्तीनियों के अधिकारों का समर्थक और इजरायल के उपनिवेशवादी अत्याचारों का जोरदार विरोध करने वाला एक प्रमुख आवाज रहा है. भारत के ऐतिहासिक रिकॉर्ड में 1947 में इजराइल के गठन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण वोट और फिलिस्तीन के पक्ष में कई निर्णायक वोट शामिल हैं.

यह भी पढ़ेंः जमात-ए-इस्लामी हिंद ने मुस्लिम महिलाओं को आरक्षण देने की मांग की

भारत की अनुपस्थिति ने चौंकायाः हुसैनी ने कहा कि सत्ता में कोई भी पार्टी हो, इसकी परवाह किए बिना सरकारों ने लगातार इस सैद्धांतिक रुख को दोहराया है. और हाल के संकट के दौरान भारत सरकार ने भी फिलिस्तीनी मुद्दे के समर्थन की पुष्टि की गई है. इस रिकॉर्ड के साथ, इस महत्वपूर्ण वोट में भारत का अनुपस्थित रहना चौंकाने वाला और बेहद निराशाजनक है. यह भारत के लोगों की नैतिकता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.

उन्होंने आगे कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधियों ने साम्राज्यवादी पश्चिमी देशों के साथ मित्रता करने और पूरे वैश्विक दक्षिण, दक्षिण एशिया के सभी देशों और ब्रिक्स जैसी उभरती साम्राज्यवाद विरोधी शक्तियों से अलग होने का विकल्प चुना है. इस असंगतता और भ्रम के कारण हमने वैश्विक दक्षिण का एक शक्तिशाली नेता बनने का एक बड़ा अवसर खो दिया है. उन्होंने अपील की कि मौजूदा स्थिति के मद्देनजर हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संघर्ष विराम और शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में त्वरित और निर्णायक कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं.”

यह भी पढ़ेंः जमात-ए-इस्लामी हिंद ने इजराइल और हमास के बीच बढ़ती शत्रुता पर व्यक्त की चिंता, कहा- भारत फिलिस्तीनियों का करे समर्थन

नई दिल्लीः गाजा में हमास के खिलाफ इजराइल के हमले जारी है. इसको लेकर विश्व स्तर दो धड़े में बंटता नजर आ रहा है. वहीं, दोनों के बीच संघर्ष विराम को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव पर हुए मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया. इस पर जमात-ए-इस्लामी हिंद ने निराशा व्यक्त की है. जमात-ए-इस्लामी हिंद के अमीर (अध्यक्ष) सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने गाजा पट्टी में तत्काल स्थायी 'मानवीय संघर्ष विराम' के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव का स्वागत किया और हस्ताक्षरकर्ता देशों से इसका तत्काल प्रवर्तन सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.

उन्होंने बयान जारी कर कहा कि लाखों फिलिस्तीनियों को भोजन, पानी, चिकित्सा सहायता, संचार और बिजली से वंचित करना और हजारों निर्दोष लोगों का दुखद नुकसान व मानव अधिकारों का तीव्र उल्लंघन हमारे समय का सबसे बड़ा मानवीय संकट है. इस पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अधिक ठोस कार्रवाई की मांग करते हैं. भारत हमेशा से फिलिस्तीनियों के अधिकारों का समर्थक और इजरायल के उपनिवेशवादी अत्याचारों का जोरदार विरोध करने वाला एक प्रमुख आवाज रहा है. भारत के ऐतिहासिक रिकॉर्ड में 1947 में इजराइल के गठन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण वोट और फिलिस्तीन के पक्ष में कई निर्णायक वोट शामिल हैं.

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भारत की अनुपस्थिति ने चौंकायाः हुसैनी ने कहा कि सत्ता में कोई भी पार्टी हो, इसकी परवाह किए बिना सरकारों ने लगातार इस सैद्धांतिक रुख को दोहराया है. और हाल के संकट के दौरान भारत सरकार ने भी फिलिस्तीनी मुद्दे के समर्थन की पुष्टि की गई है. इस रिकॉर्ड के साथ, इस महत्वपूर्ण वोट में भारत का अनुपस्थित रहना चौंकाने वाला और बेहद निराशाजनक है. यह भारत के लोगों की नैतिकता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है.

उन्होंने आगे कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधियों ने साम्राज्यवादी पश्चिमी देशों के साथ मित्रता करने और पूरे वैश्विक दक्षिण, दक्षिण एशिया के सभी देशों और ब्रिक्स जैसी उभरती साम्राज्यवाद विरोधी शक्तियों से अलग होने का विकल्प चुना है. इस असंगतता और भ्रम के कारण हमने वैश्विक दक्षिण का एक शक्तिशाली नेता बनने का एक बड़ा अवसर खो दिया है. उन्होंने अपील की कि मौजूदा स्थिति के मद्देनजर हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संघर्ष विराम और शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में त्वरित और निर्णायक कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं.”

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